केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना का फायदा लाखों मरीजों को मिल रहा है, लेकिन इसका एक नियम मरीजों की प्राइवेसी और आत्म सम्मान को नुकसान पहुंचा रहा है। सबसे ज्यादा खतरा महिला मरीजों के लिए है। दरअसल, इलाज की पुष्टि और क्लेम पास कराने के लिए मरीज के चेहरे समेत सर्जरी वाले पार्ट की फोटो ली जाती है। इन फोटोज को आयुष्मान पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। इसके बाद केशलैस इलाज की सुविधा मिलती है। योजना के इस नियम को लेकर डॉक्टरों को आपत्ति है। डॉक्टरों का कहना है कि ये नियम महिला मरीजों के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला है। यदि महिला के ब्रेस्ट की सर्जरी हुई है, तो उसके चेहरे के साथ ऑपरेटिव पार्ट की फोटो ली जाती है। हम जब इसका विरोध करते हैं, तो कहा जाता है कि नियम है। इसके बिना क्लेम पास नहीं होगा। डॉक्टरों के मुताबिक पोर्टल पर अपलोड होने के बाद फोटोज के लीक होने की भी पूरी संभावना है। भास्कर को भी ये फोटो आयुष्मान योजना से जुड़े एक कर्मचारी ने दी है। डॉक्टरों का कहना है कि क्लेम पास कराने के लिए फोटो के बजाय किसी और विकल्प पर विचार करना चाहिए। दरअसल, ये नियम योजना में चल रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए है। भास्कर ने जिम्मेदारों से बात की तो उन्होंने कहा कि ये नियम के मुताबिक है। वहीं, स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर ने कहा कि यदि ऐसा हो रहा है, तो इसे बदलने की पहल करेंगे। आखिर ये नियम क्यों जरूरी है और इससे कैसे प्राइवेसी भंग होने का खतरा है, पढ़िए रिपोर्ट… पहले जानिए, आयुष्मान योजना में क्लेम की प्रोसेस मध्यप्रदेश के 497 सरकारी और 582 प्राइवेट अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत केशलैस इलाज मुहैया कराते हैं। इसमें 5 लाख रुपए तक का बीमा क्लेम कवर किया जाता है। अस्पतालों को मरीज के इलाज का खर्च सरकार देती है। मरीज के भर्ती होने से लेकर उसके डिस्चार्ज होने तक की सारी प्रोसेस आयुष्मान योजना के ट्रांजैक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (TMS) पोर्टल पर अपलोड की जाती है। इसकी दो प्रोसेस होती हैं… पहली: प्री ऑथराइजेशन दूसरी: क्लेम हासिल करना 5 लोगों के हाथों से गुजरती हैं ये तस्वीरें
TMS पोर्टल पर सारे दस्तावेजों को अपलोड करने के लिए सरकारी अस्पतालों में आयुष्मान नोडल ऑफिसर नियुक्त किए गए हैं। प्राइवेट अस्पतालों में ये काम मेडिकल ऑफिसर करता है। इन्हें अपॉइन्ट करने की जिम्मेदारी प्राइवेट अस्पतालों की होती है। इन तक सारे दस्तावेज आयुष्मान मित्र पहुंचाते हैं। हर 50 बेड पर एक आयुष्मान मित्र होता है। आयुष्मान मित्र भर्ती होने वाले मरीज का आयुष्मान कार्ड बनाने से लेकर इलाज की जानकारी के दस्तावेज तैयार करते हैं। मध्यप्रदेश में दो प्राइवेट कंपनियां सेफ-वे और पैरामाउंट क्लेम प्रोसेस का काम करती हैं। इसके बाद ऑडिट प्रोसेस का काम निजी कंपनी वाय-फ्लैक्स करती है। तीनों कंपनियों का सिलेक्शन टेंडर के जरिए हुआ है। क्लेम का सारा रिकॉर्ड इन कंपनियों के कर्मचारियों तक ऑनलाइन पहुंचता है। इस तरह एक क्लेम की पूरी प्रोसेस 5-6 हाथों से होकर गुजरती है। कर्मचारी बोला- फोटो खींचते वक्त बुरा लगता है
भास्कर ने आयुष्मान की प्रोसेस से जुड़े एक कर्मचारी से बात की। नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया- हम लोग मरीज के इलाज के दस्तावेज भी पोर्टल पर अपलोड करते हैं, लेकिन कंपनी फोटो को ही सबूत मानती है। केवल ऑपरेटिव पार्ट की फोटो से भी काम नहीं चलता। इसके साथ चेहरे की फोटो लेना भी जरूरी होता है, नहीं तो क्लेम रिजेक्ट हो जाता है। उससे पूछा कि महिला के प्राइवेट पार्ट की सर्जरी हुई हो तो क्या इसकी फोटो भी ली जाती है, तो वह बोला- ये जरूरी है। हमें भी ऐसी फोटो खींचते वक्त बुरा लगता है, मगर कोई ऑप्शन नहीं है। इलाज के ये पैकेज काफी महंगे होते हैं। फोटो नहीं देंगे तो क्लेम अटकने का डर होता है। उसने कहा- इलाज का जितना ज्यादा महंगा पैकेज होता है, उसकी प्रोसेस में उतनी ज्यादा सख्ती बरती जाती है। ऐसे पैकेज में फोटो बहुत जरूरी होता है। अब जानिए, नियम को लेकर डॉक्टरों की आपत्ति मेरे सामने महिला के प्राइवेट पार्ट की फोटो ली
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. वरुणा पाठक कहती हैं कि जब आयुष्मान भारत योजना लागू हुई थी, तब डिलीवरी के केसेज भी इसमें कवर किए जाते थे। अब ये सुविधा केवल सरकारी अस्पतालों में दी जाती है। एक बार ऐसे ही केस में मेरे सामने डिलीवरी के वक्त पेशेंट की फोटो ली गई। मैंने इसका विरोध किया तो आयुष्मान से जुड़े लोगों ने कहा कि मैडम, क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा। तब भी मैंने चेहरे का फोटो नहीं लेने दिया। हम लोग डिलीवरी के वक्त महिला के पति को भी तभी ओटी में आने देते हैं, जब उसका पूरा शरीर ढंका होता है। केवल ऑपरेटिव पार्ट ही विजिबल होता है। डॉ. वरुणा पाठक कहती हैं, ‘ये नियम अमानवीय है। खासतौर पर महिला मरीजों के आत्म सम्मान को खतरा है। जो पहले से परेशानी में है और अपना इलाज कराने आया है, उसकी तस्वीरें खींचकर ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करना बेहद गलत है। यह डॉक्टर और पेशेंट के भरोसे को खत्म करने वाला है। इस वैज्ञानिक युग में क्या केवल फोटो ही उसके इलाज का सबूत है? क्या कोई दूसरा ऑप्शन नहीं हो सकता?’ मरीज से ऐसी फोटो लेते वक्त पूछा भी नहीं जाता
सीनियर गायनोकॉलोजिस्ट और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की मेंबर डॉ. आभा जैन को इस बात से आपत्ति है कि ऐसी फोटो लेते वक्त मरीज से उसकी सहमति नहीं ली जाती। वे कहती हैं, ‘मरीज को भर्ती करने से लेकर सर्जरी तक की प्रोसेस में उसकी सहमति होती है। मरीज डॉक्टर के भरोसे पर अस्पताल में भर्ती होता है।’ डॉ. आभा जैन ने कहा- यदि डॉक्टर्स लिखकर दे रहे हैं कि इसका इलाज हुआ है, तो उसे माना जाना चाहिए। क्या डॉक्टर्स के नोट, सील पर भरोसा नहीं है? इसके बजाय उसकी तस्वीरें ली जाती हैं। अब जानिए, क्यों लागू किया ये नियम दरअसल, आयुष्मान योजना में लगातार हो रहे घोटालों पर अंकुश लगाने में सरकार फेल हुई है। योजना की मॉनिटरिंग के दौरान कई मामले ऐसे आए हैं, जिनमें प्राइवेट अस्पतालों ने फर्जी मरीजों को भर्ती कर क्लेम की रकम हासिल की है। इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए फोटो खींचने का नियम लागू किया गया है। मध्यप्रदेश में साल 2018 में योजना की शुरुआत हुई। इन सात सालों में ऐसे 119 अस्पतालों में गड़बड़ी पाई गई। इन पर जुर्माना भी लगाया गया। 26 अस्पतालों को तो योजना से बाहर ही कर दिया गया। तीन अस्पतालों पर एफआईआर भी दर्ज कराई गई। सीईओ बोले- सब कुछ पॉलिसी के तहत हो रहा
दैनिक भास्कर से बात करते हुए आयुष्मान भारत योजना के सीईओ डॉ. योगेश भरसट ने बताया कि गड़बड़ी को रोकने के लिए सरकार नई एसओपी तैयार कर रही है। हमें शिकायतें मिलीं कि डायलिसिस के मामले में अस्पताल संचालक फर्जी बिल बनाकर क्लेम की रकम हासिल कर रहे हैं। राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (एसएचए) ने डायलिसिस मरीजों के लिए एक जरूरी बदलाव किया। इसमें अस्पतालों को डायलिसिस पर क्लेम तभी मिलेगा, जब डॉक्टर या अस्पताल अधीक्षक मरीज के साथ खुद की फोटो TMS पोर्टल पर अपलोड करेंगे। यदि ये फोटो अपलोड नहीं हुई तो क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाएगा। हम प्रदेश के 1 हजार से ज्यादा इम्पेनल्ड अस्पतालों की नए सिरे से स्क्रीनिंग कर रहे हैं। उनसे पूछा कि इससे मरीज की प्राइवेसी भंग होने का खतरा है तो उन्होंने जवाब दिया- ‘नो कमेंट’। वहीं, स्वास्थ्य आयुक्त तरुण राठी ने कहा- पहले ये देखना होगा कि आयुष्मान पोर्टल स्टेट का है या सेंट्रल का बनाया हुआ है। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… ——————– ये खबर भी पढ़ें… मेडिकल कॉलेज में टॉयलेट के पानी से बना खाना जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में टॉयलेट कमोड के पास लगे नल के पानी से खाना पकाया जा रहा था। इसका वीडियो सामने आया है, जो 6 फरवरी का बताया जा रहा है। वीडियो को लेकर मेडिकल कॉलेज के डीन का कहना है कि उस पानी से सिर्फ बर्तन धोए गए थे। पढे़ं पूरी खबर…
केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना का फायदा लाखों मरीजों को मिल रहा है, लेकिन इसका एक नियम मरीजों की प्राइवेसी और आत्म सम्मान को नुकसान पहुंचा रहा है। सबसे ज्यादा खतरा महिला मरीजों के लिए है। दरअसल, इलाज की पुष्टि और क्लेम पास कराने के लिए मरीज के चेहरे समेत सर्जरी वाले पार्ट की फोटो ली जाती है। इन फोटोज को आयुष्मान पोर्टल पर अपलोड किया जाता है। इसके बाद केशलैस इलाज की सुविधा मिलती है। योजना के इस नियम को लेकर डॉक्टरों को आपत्ति है। डॉक्टरों का कहना है कि ये नियम महिला मरीजों के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला है। यदि महिला के ब्रेस्ट की सर्जरी हुई है, तो उसके चेहरे के साथ ऑपरेटिव पार्ट की फोटो ली जाती है। हम जब इसका विरोध करते हैं, तो कहा जाता है कि नियम है। इसके बिना क्लेम पास नहीं होगा। डॉक्टरों के मुताबिक पोर्टल पर अपलोड होने के बाद फोटोज के लीक होने की भी पूरी संभावना है। भास्कर को भी ये फोटो आयुष्मान योजना से जुड़े एक कर्मचारी ने दी है। डॉक्टरों का कहना है कि क्लेम पास कराने के लिए फोटो के बजाय किसी और विकल्प पर विचार करना चाहिए। दरअसल, ये नियम योजना में चल रहे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए है। भास्कर ने जिम्मेदारों से बात की तो उन्होंने कहा कि ये नियम के मुताबिक है। वहीं, स्वास्थ्य विभाग के कमिश्नर ने कहा कि यदि ऐसा हो रहा है, तो इसे बदलने की पहल करेंगे। आखिर ये नियम क्यों जरूरी है और इससे कैसे प्राइवेसी भंग होने का खतरा है, पढ़िए रिपोर्ट… पहले जानिए, आयुष्मान योजना में क्लेम की प्रोसेस मध्यप्रदेश के 497 सरकारी और 582 प्राइवेट अस्पताल आयुष्मान योजना के तहत केशलैस इलाज मुहैया कराते हैं। इसमें 5 लाख रुपए तक का बीमा क्लेम कवर किया जाता है। अस्पतालों को मरीज के इलाज का खर्च सरकार देती है। मरीज के भर्ती होने से लेकर उसके डिस्चार्ज होने तक की सारी प्रोसेस आयुष्मान योजना के ट्रांजैक्शन मैनेजमेंट सिस्टम (TMS) पोर्टल पर अपलोड की जाती है। इसकी दो प्रोसेस होती हैं… पहली: प्री ऑथराइजेशन दूसरी: क्लेम हासिल करना 5 लोगों के हाथों से गुजरती हैं ये तस्वीरें
TMS पोर्टल पर सारे दस्तावेजों को अपलोड करने के लिए सरकारी अस्पतालों में आयुष्मान नोडल ऑफिसर नियुक्त किए गए हैं। प्राइवेट अस्पतालों में ये काम मेडिकल ऑफिसर करता है। इन्हें अपॉइन्ट करने की जिम्मेदारी प्राइवेट अस्पतालों की होती है। इन तक सारे दस्तावेज आयुष्मान मित्र पहुंचाते हैं। हर 50 बेड पर एक आयुष्मान मित्र होता है। आयुष्मान मित्र भर्ती होने वाले मरीज का आयुष्मान कार्ड बनाने से लेकर इलाज की जानकारी के दस्तावेज तैयार करते हैं। मध्यप्रदेश में दो प्राइवेट कंपनियां सेफ-वे और पैरामाउंट क्लेम प्रोसेस का काम करती हैं। इसके बाद ऑडिट प्रोसेस का काम निजी कंपनी वाय-फ्लैक्स करती है। तीनों कंपनियों का सिलेक्शन टेंडर के जरिए हुआ है। क्लेम का सारा रिकॉर्ड इन कंपनियों के कर्मचारियों तक ऑनलाइन पहुंचता है। इस तरह एक क्लेम की पूरी प्रोसेस 5-6 हाथों से होकर गुजरती है। कर्मचारी बोला- फोटो खींचते वक्त बुरा लगता है
भास्कर ने आयुष्मान की प्रोसेस से जुड़े एक कर्मचारी से बात की। नाम न छापने की शर्त पर उसने बताया- हम लोग मरीज के इलाज के दस्तावेज भी पोर्टल पर अपलोड करते हैं, लेकिन कंपनी फोटो को ही सबूत मानती है। केवल ऑपरेटिव पार्ट की फोटो से भी काम नहीं चलता। इसके साथ चेहरे की फोटो लेना भी जरूरी होता है, नहीं तो क्लेम रिजेक्ट हो जाता है। उससे पूछा कि महिला के प्राइवेट पार्ट की सर्जरी हुई हो तो क्या इसकी फोटो भी ली जाती है, तो वह बोला- ये जरूरी है। हमें भी ऐसी फोटो खींचते वक्त बुरा लगता है, मगर कोई ऑप्शन नहीं है। इलाज के ये पैकेज काफी महंगे होते हैं। फोटो नहीं देंगे तो क्लेम अटकने का डर होता है। उसने कहा- इलाज का जितना ज्यादा महंगा पैकेज होता है, उसकी प्रोसेस में उतनी ज्यादा सख्ती बरती जाती है। ऐसे पैकेज में फोटो बहुत जरूरी होता है। अब जानिए, नियम को लेकर डॉक्टरों की आपत्ति मेरे सामने महिला के प्राइवेट पार्ट की फोटो ली
प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. वरुणा पाठक कहती हैं कि जब आयुष्मान भारत योजना लागू हुई थी, तब डिलीवरी के केसेज भी इसमें कवर किए जाते थे। अब ये सुविधा केवल सरकारी अस्पतालों में दी जाती है। एक बार ऐसे ही केस में मेरे सामने डिलीवरी के वक्त पेशेंट की फोटो ली गई। मैंने इसका विरोध किया तो आयुष्मान से जुड़े लोगों ने कहा कि मैडम, क्लेम रिजेक्ट हो जाएगा। तब भी मैंने चेहरे का फोटो नहीं लेने दिया। हम लोग डिलीवरी के वक्त महिला के पति को भी तभी ओटी में आने देते हैं, जब उसका पूरा शरीर ढंका होता है। केवल ऑपरेटिव पार्ट ही विजिबल होता है। डॉ. वरुणा पाठक कहती हैं, ‘ये नियम अमानवीय है। खासतौर पर महिला मरीजों के आत्म सम्मान को खतरा है। जो पहले से परेशानी में है और अपना इलाज कराने आया है, उसकी तस्वीरें खींचकर ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड करना बेहद गलत है। यह डॉक्टर और पेशेंट के भरोसे को खत्म करने वाला है। इस वैज्ञानिक युग में क्या केवल फोटो ही उसके इलाज का सबूत है? क्या कोई दूसरा ऑप्शन नहीं हो सकता?’ मरीज से ऐसी फोटो लेते वक्त पूछा भी नहीं जाता
सीनियर गायनोकॉलोजिस्ट और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की मेंबर डॉ. आभा जैन को इस बात से आपत्ति है कि ऐसी फोटो लेते वक्त मरीज से उसकी सहमति नहीं ली जाती। वे कहती हैं, ‘मरीज को भर्ती करने से लेकर सर्जरी तक की प्रोसेस में उसकी सहमति होती है। मरीज डॉक्टर के भरोसे पर अस्पताल में भर्ती होता है।’ डॉ. आभा जैन ने कहा- यदि डॉक्टर्स लिखकर दे रहे हैं कि इसका इलाज हुआ है, तो उसे माना जाना चाहिए। क्या डॉक्टर्स के नोट, सील पर भरोसा नहीं है? इसके बजाय उसकी तस्वीरें ली जाती हैं। अब जानिए, क्यों लागू किया ये नियम दरअसल, आयुष्मान योजना में लगातार हो रहे घोटालों पर अंकुश लगाने में सरकार फेल हुई है। योजना की मॉनिटरिंग के दौरान कई मामले ऐसे आए हैं, जिनमें प्राइवेट अस्पतालों ने फर्जी मरीजों को भर्ती कर क्लेम की रकम हासिल की है। इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए फोटो खींचने का नियम लागू किया गया है। मध्यप्रदेश में साल 2018 में योजना की शुरुआत हुई। इन सात सालों में ऐसे 119 अस्पतालों में गड़बड़ी पाई गई। इन पर जुर्माना भी लगाया गया। 26 अस्पतालों को तो योजना से बाहर ही कर दिया गया। तीन अस्पतालों पर एफआईआर भी दर्ज कराई गई। सीईओ बोले- सब कुछ पॉलिसी के तहत हो रहा
दैनिक भास्कर से बात करते हुए आयुष्मान भारत योजना के सीईओ डॉ. योगेश भरसट ने बताया कि गड़बड़ी को रोकने के लिए सरकार नई एसओपी तैयार कर रही है। हमें शिकायतें मिलीं कि डायलिसिस के मामले में अस्पताल संचालक फर्जी बिल बनाकर क्लेम की रकम हासिल कर रहे हैं। राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (एसएचए) ने डायलिसिस मरीजों के लिए एक जरूरी बदलाव किया। इसमें अस्पतालों को डायलिसिस पर क्लेम तभी मिलेगा, जब डॉक्टर या अस्पताल अधीक्षक मरीज के साथ खुद की फोटो TMS पोर्टल पर अपलोड करेंगे। यदि ये फोटो अपलोड नहीं हुई तो क्लेम रिजेक्ट कर दिया जाएगा। हम प्रदेश के 1 हजार से ज्यादा इम्पेनल्ड अस्पतालों की नए सिरे से स्क्रीनिंग कर रहे हैं। उनसे पूछा कि इससे मरीज की प्राइवेसी भंग होने का खतरा है तो उन्होंने जवाब दिया- ‘नो कमेंट’। वहीं, स्वास्थ्य आयुक्त तरुण राठी ने कहा- पहले ये देखना होगा कि आयुष्मान पोर्टल स्टेट का है या सेंट्रल का बनाया हुआ है। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… ——————– ये खबर भी पढ़ें… मेडिकल कॉलेज में टॉयलेट के पानी से बना खाना जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में टॉयलेट कमोड के पास लगे नल के पानी से खाना पकाया जा रहा था। इसका वीडियो सामने आया है, जो 6 फरवरी का बताया जा रहा है। वीडियो को लेकर मेडिकल कॉलेज के डीन का कहना है कि उस पानी से सिर्फ बर्तन धोए गए थे। पढे़ं पूरी खबर…