प्रदेश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान चल रहा है। चुनाव आयोग के बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) ने एसआईआर फॉर्म भरवाने के लिए अपनी जान झोंक दी है। भाजपा, सपा और बसपा को छोड़कर अन्य राजनीतिक दल एसआईआर में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इस अभियान ने पोलिंग बूथों पर राजनीतिक दलों की ताकत की हकीकत की पोल भी खोल दी है। देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के पास यूपी के 17 जिलों में बूथ पर कोई एजेंट (बीएलए) तक नहीं है। कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में तीन दशक तक विराजमान रही है। वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने, काटने या संशोधन के लिए बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को निर्वाचन आयोग की पहली और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है। वहीं, बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) राजनीतिक दलों की सबसे अहम कड़ी हैं। बीएलए ही चुनाव के दौरान बूथ प्रबंधन से लेकर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। माना जाता है कि जिस राजनीतिक दल का बूथ प्रबंधन सबसे बेहतर होता है, चुनावी नतीजे उसी दल के पक्ष में आते हैं। SIR में भी बीएलओ और बीएलए ही अहम कड़ी हैं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने एसआईआर शुरू करने से पहले सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक की थी। रिणवा ने सभी राजनीतिक दलों से एसआईआर के लिए बूथों पर अपने बीएलए नियुक्त करने और उनकी सूची आयोग को भेजने का आग्रह किया था। सीईओ दफ्तर से मिली जानकारी के अनुसार यूपी में 1,62,486 बूथों पर एसआईआर के लिए राजनीतिक दलों की ओर से कुल 4,91,115 बीएलए नियुक्त किए गए हैं। भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा 1,59,843 सपा की ओर से 1,42,121, बसपा की ओर से 1,38,681, कांग्रेस की ओर से 4,9121, अपना दल (एस) की ओर से 1056, सीपीआई (एम) की ओर से 208 और आम आदमी पार्टी की ओर से 85 बूथों पर बीएलए नियुक्त किए गए हैं। प्रदेश में अब तक 8 बीएलओ की मौत हो चुकी है। तीन बीएलओ ने एसआईआर के भय से आत्महत्या कर ली। वहीं, एसआईआर के कारण तनाव बढ़ने से हार्ट अटैक से भी चार बीएलओ की मौत हुई है। 17 जिलों में कांग्रेस बूथों पर साफ कांग्रेस ने 49,121 (30.23 फीसदी) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं। करीब 70 फीसदी बूथों पर कांग्रेस का एक भी बीएलए नहीं है। सीईओ दफ्तर से मिली जानकारी के अनुसार अंबेडकर नगर, औरैया, बहराइच, बलिया, भदोही, हमीरपुर, झांसी, कन्नौज, कौशांबी, मथुरा, मऊ, प्रयागराज, सहानपुर, संतकबीर नगर, शाहजहांपुर, शामली और सुल्तानपुर में कांग्रेस का एक भी बूथ पर बीएलए नहीं है। वहीं, पांच जिलों में कांग्रेस के सौ से भी कम बूथों पर बीएलए हैं। सोनभद्र में 70, कुशीनगर में 80, हापुड़ में 93, फतेहपुर में 83, इटावा में 35 बीएलए हैं। कानपुर नगर में बसपा गायब कानपुर नगर में बसपा का एक भी बूथ लेवल एजेंट नहीं है। बसपा ने 1,62,484 बूथों में से 1,38,681 (85.34 प्रतिशत) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं। लेकिन कानपुर नगर एक मात्र जिला है जहां बसपा का एक भी बीएलए नहीं है। आजम के गढ़ में सपा का एक भी बीएलए नहीं सपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री आजम खां के रामपुर जिले में समाजवादी पार्टी का एक भी बीएलए नहीं है। सपा ने 1,62,486 बूथों में से 1,42,121 (87.46 प्रतिशत) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं लेकिन रामपुर जिले में सपा का एक भी बीएलए नहीं है। ढाई हजार बूथों पर भाजपा भी साफ प्रदेश और देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल का दावा करने वाली भाजपा के भी यूपी में ढाई हजार बूथों पर चुनावी बस्ता उठाने वाला कोई नहीं है। यूपी में 1,62,486 बूथों में से भाजपा के 1,59,843 बूथों पर ही बूथ लेवल एजेंट हैं। जबकि 2,643 बूथों पर भाजपा का एक भी बीएलए नहीं है। यह स्थिति तब है जब केंद्र में बीते साढ़े ग्यारह साल और यूपी में करीब पौने नौ साल से भाजपा की सरकार है। जानकार मानते हैं कि मुस्लिम और यादव बहुल इलाकों में स्थित इन बूथों पर भाजपा को एक कार्यकर्ता भी बीएलए के रूप में काम करने के नहीं मिलता है। सहयोगी दल भाजपा के भरोसे यूपी में एनडीए के घटक दल भी एसआईआर में भाजपा के भरोसे ही नजर आ रहे हैं। एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा और निषाद पार्टी ने एसआईआर के लिए एक भी बीएलए नियुक्त नहीं किया है। यही स्थिति मैदान के बाहर से भाजपा का समर्थन करने वाले जनसत्ता दल लोकतांत्रिक की भी है। विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की पार्टी के यूपी में दो विधायक हैं। उनकी पार्टी पूर्वांचल और बुंदेलखंड में राजनीति करती है लेकिन आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार उन्होंने एक भी बीएलए नियुक्त नहीं किया है। एनडीए में शामिल रालोद, सुभासपा, निषाद पार्टी भी विधानसभा और विधान परिषद में सदस्य हैं। लेकिन इनके भी बीएलए नहीं हैं। नेता नहीं ले रहे दिलचस्पी एसआईआर में तमाम राजनीतिक दलों के स्थानीय नेता दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। नेताओं ने एसआईआर का काम स्थानीय युवकों के भरोसे छोड़ दिया है। स्थानीय युवक भी जहां परेशानी आती है वहां काम छोड़कर भाग जाते हैं। आरएसएस के बड़े पदाधिकारियों को यहां तक कहना पड़ा है कि भाजपा के सांसद और विधायक तक एसआईआर में सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे हैं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा का कहना है कि करीब 4.91 लाख से अधिक बीएलए नियुक्त किए गए हैं। कई राजनीतिक दलों का जिलों में एक भी बीएलए नहीं है। ——————- ये खबर भी पढ़ें… ‘SIR का विरोध नहीं, बिहार की हार का विलाप है’:भाजपा सांसद का तंज; कहा- अब बंगाल की बारी है… संसद के शीतकालीन सत्र में एसआईआर को लेकर लगातार दूसरे दिन हंगामा हुआ। राज्यसभा और लोकसभा में सपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने SIR पर चर्चा की मांग को लेकर नारेबाजी की। इजाजत न मिलने पर जमकर हंगामा किया। सदन के बाहर भी सांसदों ने सरकार पर भड़ास निकाली। दोनों सदनों में कामकाज नहीं हो पाया और कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले अयोध्या लोकसभा सीट से सपा सांसद अवधेश प्रसाद आरोप लगाया कि एसआईआर की आड़ में भाजपा वोट चोरी करा रही है। सोची-समझी रणनीति के तहत वोट काटे जा रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर
प्रदेश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान चल रहा है। चुनाव आयोग के बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) ने एसआईआर फॉर्म भरवाने के लिए अपनी जान झोंक दी है। भाजपा, सपा और बसपा को छोड़कर अन्य राजनीतिक दल एसआईआर में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इस अभियान ने पोलिंग बूथों पर राजनीतिक दलों की ताकत की हकीकत की पोल भी खोल दी है। देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के पास यूपी के 17 जिलों में बूथ पर कोई एजेंट (बीएलए) तक नहीं है। कांग्रेस प्रदेश की सत्ता में तीन दशक तक विराजमान रही है। वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने, काटने या संशोधन के लिए बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) को निर्वाचन आयोग की पहली और सबसे महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है। वहीं, बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) राजनीतिक दलों की सबसे अहम कड़ी हैं। बीएलए ही चुनाव के दौरान बूथ प्रबंधन से लेकर मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने में अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। माना जाता है कि जिस राजनीतिक दल का बूथ प्रबंधन सबसे बेहतर होता है, चुनावी नतीजे उसी दल के पक्ष में आते हैं। SIR में भी बीएलओ और बीएलए ही अहम कड़ी हैं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने एसआईआर शुरू करने से पहले सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक की थी। रिणवा ने सभी राजनीतिक दलों से एसआईआर के लिए बूथों पर अपने बीएलए नियुक्त करने और उनकी सूची आयोग को भेजने का आग्रह किया था। सीईओ दफ्तर से मिली जानकारी के अनुसार यूपी में 1,62,486 बूथों पर एसआईआर के लिए राजनीतिक दलों की ओर से कुल 4,91,115 बीएलए नियुक्त किए गए हैं। भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा 1,59,843 सपा की ओर से 1,42,121, बसपा की ओर से 1,38,681, कांग्रेस की ओर से 4,9121, अपना दल (एस) की ओर से 1056, सीपीआई (एम) की ओर से 208 और आम आदमी पार्टी की ओर से 85 बूथों पर बीएलए नियुक्त किए गए हैं। प्रदेश में अब तक 8 बीएलओ की मौत हो चुकी है। तीन बीएलओ ने एसआईआर के भय से आत्महत्या कर ली। वहीं, एसआईआर के कारण तनाव बढ़ने से हार्ट अटैक से भी चार बीएलओ की मौत हुई है। 17 जिलों में कांग्रेस बूथों पर साफ कांग्रेस ने 49,121 (30.23 फीसदी) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं। करीब 70 फीसदी बूथों पर कांग्रेस का एक भी बीएलए नहीं है। सीईओ दफ्तर से मिली जानकारी के अनुसार अंबेडकर नगर, औरैया, बहराइच, बलिया, भदोही, हमीरपुर, झांसी, कन्नौज, कौशांबी, मथुरा, मऊ, प्रयागराज, सहानपुर, संतकबीर नगर, शाहजहांपुर, शामली और सुल्तानपुर में कांग्रेस का एक भी बूथ पर बीएलए नहीं है। वहीं, पांच जिलों में कांग्रेस के सौ से भी कम बूथों पर बीएलए हैं। सोनभद्र में 70, कुशीनगर में 80, हापुड़ में 93, फतेहपुर में 83, इटावा में 35 बीएलए हैं। कानपुर नगर में बसपा गायब कानपुर नगर में बसपा का एक भी बूथ लेवल एजेंट नहीं है। बसपा ने 1,62,484 बूथों में से 1,38,681 (85.34 प्रतिशत) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं। लेकिन कानपुर नगर एक मात्र जिला है जहां बसपा का एक भी बीएलए नहीं है। आजम के गढ़ में सपा का एक भी बीएलए नहीं सपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री आजम खां के रामपुर जिले में समाजवादी पार्टी का एक भी बीएलए नहीं है। सपा ने 1,62,486 बूथों में से 1,42,121 (87.46 प्रतिशत) बूथों पर बीएलए नियुक्त किए हैं लेकिन रामपुर जिले में सपा का एक भी बीएलए नहीं है। ढाई हजार बूथों पर भाजपा भी साफ प्रदेश और देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल का दावा करने वाली भाजपा के भी यूपी में ढाई हजार बूथों पर चुनावी बस्ता उठाने वाला कोई नहीं है। यूपी में 1,62,486 बूथों में से भाजपा के 1,59,843 बूथों पर ही बूथ लेवल एजेंट हैं। जबकि 2,643 बूथों पर भाजपा का एक भी बीएलए नहीं है। यह स्थिति तब है जब केंद्र में बीते साढ़े ग्यारह साल और यूपी में करीब पौने नौ साल से भाजपा की सरकार है। जानकार मानते हैं कि मुस्लिम और यादव बहुल इलाकों में स्थित इन बूथों पर भाजपा को एक कार्यकर्ता भी बीएलए के रूप में काम करने के नहीं मिलता है। सहयोगी दल भाजपा के भरोसे यूपी में एनडीए के घटक दल भी एसआईआर में भाजपा के भरोसे ही नजर आ रहे हैं। एनडीए में शामिल राष्ट्रीय लोक दल, सुभासपा और निषाद पार्टी ने एसआईआर के लिए एक भी बीएलए नियुक्त नहीं किया है। यही स्थिति मैदान के बाहर से भाजपा का समर्थन करने वाले जनसत्ता दल लोकतांत्रिक की भी है। विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की पार्टी के यूपी में दो विधायक हैं। उनकी पार्टी पूर्वांचल और बुंदेलखंड में राजनीति करती है लेकिन आयोग के रिकॉर्ड के अनुसार उन्होंने एक भी बीएलए नियुक्त नहीं किया है। एनडीए में शामिल रालोद, सुभासपा, निषाद पार्टी भी विधानसभा और विधान परिषद में सदस्य हैं। लेकिन इनके भी बीएलए नहीं हैं। नेता नहीं ले रहे दिलचस्पी एसआईआर में तमाम राजनीतिक दलों के स्थानीय नेता दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। नेताओं ने एसआईआर का काम स्थानीय युवकों के भरोसे छोड़ दिया है। स्थानीय युवक भी जहां परेशानी आती है वहां काम छोड़कर भाग जाते हैं। आरएसएस के बड़े पदाधिकारियों को यहां तक कहना पड़ा है कि भाजपा के सांसद और विधायक तक एसआईआर में सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे हैं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा का कहना है कि करीब 4.91 लाख से अधिक बीएलए नियुक्त किए गए हैं। कई राजनीतिक दलों का जिलों में एक भी बीएलए नहीं है। ——————- ये खबर भी पढ़ें… ‘SIR का विरोध नहीं, बिहार की हार का विलाप है’:भाजपा सांसद का तंज; कहा- अब बंगाल की बारी है… संसद के शीतकालीन सत्र में एसआईआर को लेकर लगातार दूसरे दिन हंगामा हुआ। राज्यसभा और लोकसभा में सपा समेत तमाम विपक्षी दलों ने SIR पर चर्चा की मांग को लेकर नारेबाजी की। इजाजत न मिलने पर जमकर हंगामा किया। सदन के बाहर भी सांसदों ने सरकार पर भड़ास निकाली। दोनों सदनों में कामकाज नहीं हो पाया और कार्यवाही कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले अयोध्या लोकसभा सीट से सपा सांसद अवधेश प्रसाद आरोप लगाया कि एसआईआर की आड़ में भाजपा वोट चोरी करा रही है। सोची-समझी रणनीति के तहत वोट काटे जा रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर