सालभर बर्फ की सफेद चादर से ढकी रहने वाली उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित हिमालय की 5 प्रमुख चोटियां अब काली पड़ने लगी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर इतना बढ़ गया है कि समुद्र तल से 6,334 मीटर से 6,904 मीटर ऊंचाई पर स्थित हिमालयन रेंज में स्थित पंचाचूली की चोटियां बर्फ विहीन हो गई हैं। हिमपात नहीं होने और दिन में धूप की तपिश से बर्फ तेजी से पिघल रही है। पंचाचूली की मुख्य चोटी के टॉप में ही बर्फ दिखाई दे रही है। चार अन्य चोटियों की बर्फ पिघल चुकी है। इसके अलावा नेपाल तक के हिमालयी क्षेत्र की चोटियां भी काली दिखाई दे रही हैं। इससे पर्यावरण प्रेमी और पर्यटक निराश हैं। सफेद चमकती चोटियों का यह बदलाव केवल उत्तराखंड के पर्वतीय सौंदर्य का संकट नहीं, बल्कि एक गहरे जलवायु संकट की ओर संकेत करता है। कई वर्षों से हिमालय में मौसम चक्र परिवर्तन होने से समय पर हिमपात नहीं हो रहा है। अक्टूबर से जनवरी तक सफेद चादर में लिपटी रहने वाली इन चोटियों में हिमपात फरवरी अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल तक हो रहा है। जिसके चलते बर्फ जम नहीं पा रही है। 3 प्वाइंट्स में जानिए हिमालय की चोटियों में क्यों पिघल रही बर्फ… बर्फबारी नहीं होने से माइग्रेशन का समय भी बदला
पिथौरागढ़ के धारचूला और मुनस्यारी के सैकड़ों परिवार हर साल माइग्रेशन पर अपने मूल गांवों में जाते हैं। अप्रैल में बर्फ पिघलने पर पशुओं के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाते हैं। पहले यह परिवार वहां पर खेती करने के बाद अक्तूबर अंतिम सप्ताह तक लौट आते थे। पिछले कुछ सालों से बर्फबारी देरी से होने के कारण माइग्रेशन की अवधि भी बढ़ गई है। धारचूला की दारमा, व्यास और मुनस्यारी के मल्ला जोहार के अब कई परिवार नवंबर अंतिम सप्ताह में घाटियों की ओर लौट रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान डॉ. इंद्र दत्त भट्ट ने बताया कि पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से स्थानीय वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी खतरा बढ़ेगा, जिससे बायोडायवर्सिटी लॉस होगा और आक्रामक प्रजातियां (इनवेजिव स्पीशीज़) उनका स्थान ले सकती हैं। इससे निपटने के बारे में भट्ट ने कहा- हिमालयी क्षेत्रों के तापमान को स्थिर रखने के लिए कई पहलें चल रही हैं। भारत सरकार ग्रीन इंडिया मिशन के तहत काम कर रही है, जबकि उत्तराखंड सरकार, वन विभाग और वन पंचायतें बड़े पैमाने पर पौधारोपण कर धरती के तापमान को नियंत्रित रखने में योगदान दे रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर धरती के तापमान को सीमित रखना अत्यंत जरूरी है। इको सिस्टम को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को अपनी जीवनशैली प्रकृति के अनुरूप बदलनी होगी और यह प्रयास सिर्फ स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर करना आवश्यक है।
सालभर बर्फ की सफेद चादर से ढकी रहने वाली उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित हिमालय की 5 प्रमुख चोटियां अब काली पड़ने लगी हैं। ग्लोबल वार्मिंग का असर इतना बढ़ गया है कि समुद्र तल से 6,334 मीटर से 6,904 मीटर ऊंचाई पर स्थित हिमालयन रेंज में स्थित पंचाचूली की चोटियां बर्फ विहीन हो गई हैं। हिमपात नहीं होने और दिन में धूप की तपिश से बर्फ तेजी से पिघल रही है। पंचाचूली की मुख्य चोटी के टॉप में ही बर्फ दिखाई दे रही है। चार अन्य चोटियों की बर्फ पिघल चुकी है। इसके अलावा नेपाल तक के हिमालयी क्षेत्र की चोटियां भी काली दिखाई दे रही हैं। इससे पर्यावरण प्रेमी और पर्यटक निराश हैं। सफेद चमकती चोटियों का यह बदलाव केवल उत्तराखंड के पर्वतीय सौंदर्य का संकट नहीं, बल्कि एक गहरे जलवायु संकट की ओर संकेत करता है। कई वर्षों से हिमालय में मौसम चक्र परिवर्तन होने से समय पर हिमपात नहीं हो रहा है। अक्टूबर से जनवरी तक सफेद चादर में लिपटी रहने वाली इन चोटियों में हिमपात फरवरी अंतिम सप्ताह से लेकर अप्रैल तक हो रहा है। जिसके चलते बर्फ जम नहीं पा रही है। 3 प्वाइंट्स में जानिए हिमालय की चोटियों में क्यों पिघल रही बर्फ… बर्फबारी नहीं होने से माइग्रेशन का समय भी बदला
पिथौरागढ़ के धारचूला और मुनस्यारी के सैकड़ों परिवार हर साल माइग्रेशन पर अपने मूल गांवों में जाते हैं। अप्रैल में बर्फ पिघलने पर पशुओं के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जाते हैं। पहले यह परिवार वहां पर खेती करने के बाद अक्तूबर अंतिम सप्ताह तक लौट आते थे। पिछले कुछ सालों से बर्फबारी देरी से होने के कारण माइग्रेशन की अवधि भी बढ़ गई है। धारचूला की दारमा, व्यास और मुनस्यारी के मल्ला जोहार के अब कई परिवार नवंबर अंतिम सप्ताह में घाटियों की ओर लौट रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान डॉ. इंद्र दत्त भट्ट ने बताया कि पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने से स्थानीय वनस्पतियों के अस्तित्व पर भी खतरा बढ़ेगा, जिससे बायोडायवर्सिटी लॉस होगा और आक्रामक प्रजातियां (इनवेजिव स्पीशीज़) उनका स्थान ले सकती हैं। इससे निपटने के बारे में भट्ट ने कहा- हिमालयी क्षेत्रों के तापमान को स्थिर रखने के लिए कई पहलें चल रही हैं। भारत सरकार ग्रीन इंडिया मिशन के तहत काम कर रही है, जबकि उत्तराखंड सरकार, वन विभाग और वन पंचायतें बड़े पैमाने पर पौधारोपण कर धरती के तापमान को नियंत्रित रखने में योगदान दे रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर धरती के तापमान को सीमित रखना अत्यंत जरूरी है। इको सिस्टम को सुरक्षित रखने के लिए लोगों को अपनी जीवनशैली प्रकृति के अनुरूप बदलनी होगी और यह प्रयास सिर्फ स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर करना आवश्यक है।