उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की उच्च हिमालयी घाटियों में पहली बार सी बकथॉर्न का व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन शुरू हुआ है। सुपरफूड के रूप में दुनिया भर में मशहूर यह फल अब तक केवल जंगली तौर पर उपलब्ध था, लेकिन इस साल वन विभाग के सहयोग से इसे बड़े पैमाने पर प्रोसेस किया गया है। ग्रामीणों ने इस सीजन में करीब 5,000 लीटर पल्प तैयार किया है, जो अब तक का सबसे बड़ा संगठित प्रयास माना जा रहा है। इसके साथ ही पत्तियां और बीज भी पहली बार व्यवस्थित तरीके से एकत्र किए गए हैं, जिन्हें बाजार में अलग-अलग दरों पर खरीदा जा रहा है। उत्तराखंड में मिलने वाली सी बकथॉर्न की प्रजाति विटामिन सी से भरपूर है, जिसकी वजह से इसकी राष्ट्रीय संस्थाओं और बाजारों में मांग तेजी से बढ़ रही है। पहली बार उत्पादन के इस चरण को पर्यटन, प्रसंस्करण और स्थानीय अर्थव्यवस्था से जोड़ने की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं, जो आने वाले समय में गांवों की आय का बड़ा स्रोत बन सकती हैं। नवंबर में पक जाती है फसल
धारचूला विकासखंड के दारमा, व्यास और चौंदास घाटियों में सी बकथॉर्न को वनचूक कहा जाता है। नवंबर माह में यह पककर तैयार हो जाता है। इस बार भी दारमा में दुग्तू, नागलिंग, चल, सेला, व्यास में, बूंदी, गर्ब्यांग और चौदांस घाटी के सिर्खा में सी बकथॉर्न का काफी उत्पादन हुआ है। डॉक्टर बोले- कई बीमारियों की दवा है ये सुपरफूड एमडी आयुर्वेद डॉ.नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि सी बकथॉर्न में सबसे अधिक विटामिन सी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें फ्लैकिनाइड, विटामिन ई के फिनालिक कम्पाउंड, कैरोटिनाइड, लाइकोपीन, ओमेगा 3, ओमेगा 6 और ओमेगा 9 से भरपूर है। इसका उपयोग कैंसर, शुगर, खासी, गले के दर्द में, बच्चों के पेट में कीड़े मारने और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसकी जड़ें भूमि में नाइट्रोजन भी फिक्स करती है, तथा बंजर भूमि को उपजाऊ बनाती है। विश्व में चीन व मंगोलिया इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। 200 रुपए किलो बिकते हैं सी बकथॉर्न के बीज व पत्ती इस बार कृषकों द्वारा पल्प के अतिरिक्त पत्तियां एवं बीज भी एकत्रित किये गए हैं। पल्प 250 रुपए लीटर, पत्ती बीज 200 रुपए किलो की दर से खरीदा जा रहा है। मार्केटिंग के लिए विभिन्न व्यवसायियों से सम्पर्क किया जा रहा है। इसके अलावा सी बकथॉर्न से कई उत्पाद तैयार किये जाने का प्रयास भी किया जा रहा है। रिसर्च के लिए राष्ट्रीय संस्थाओं से किया जा रहा है संपर्क पिथौरागढ़ के डीएफओ आशुतोष सिंह ने बताया कि उत्तराखंड के सी बकथॉर्न (हिपोपी सालिसिफोलिया) में विटामिन सी सर्वाधिक पाया जाता है। इसके औषधीय गुणों पर अनुसंधान के लिए विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं से सम्पर्क किया जा रहा है। अगले वर्ष सी बकथॉर्न और इसके उत्पादों को स्थानीय पर्यटन से जोड़े जाने की कवायद शुरू की गई है। इसके लिए धारचूला की तीनों घाटियों में एक-एक मार्केटिंग सेंटर की स्थापना की जाएगी। ग्रामीणों को निशुल्क दी गई है पल्प निकालने की मशीन पहली बार ग्रामीणों को सीबक थौर्न से पल्प निकालने वाली मशीन फ्री दी गई है। कृषकों को भविष्य में इससे रोजगार पाने की बहुत बड़ी उम्मीद जगी है। वन विभाग द्वारा इसके पौधों को बढ़ाने के लिए विभिन्न वन पंचायतों को चयनित किया गया है। दारमा घाटी के सीपू गांव में तिब्बतन सी बकथॉर्न के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास भी किया जा रहा है। पिथौरागढ़ मुख्यालय पर भी एक विपणन केंद्र खोलने के प्रयास हो रहे हैं, जिसमें सी बकथॉर्न सहित अन्य जड़ी-बूटी उत्पाद बेचे जाएंगे।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की उच्च हिमालयी घाटियों में पहली बार सी बकथॉर्न का व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन शुरू हुआ है। सुपरफूड के रूप में दुनिया भर में मशहूर यह फल अब तक केवल जंगली तौर पर उपलब्ध था, लेकिन इस साल वन विभाग के सहयोग से इसे बड़े पैमाने पर प्रोसेस किया गया है। ग्रामीणों ने इस सीजन में करीब 5,000 लीटर पल्प तैयार किया है, जो अब तक का सबसे बड़ा संगठित प्रयास माना जा रहा है। इसके साथ ही पत्तियां और बीज भी पहली बार व्यवस्थित तरीके से एकत्र किए गए हैं, जिन्हें बाजार में अलग-अलग दरों पर खरीदा जा रहा है। उत्तराखंड में मिलने वाली सी बकथॉर्न की प्रजाति विटामिन सी से भरपूर है, जिसकी वजह से इसकी राष्ट्रीय संस्थाओं और बाजारों में मांग तेजी से बढ़ रही है। पहली बार उत्पादन के इस चरण को पर्यटन, प्रसंस्करण और स्थानीय अर्थव्यवस्था से जोड़ने की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं, जो आने वाले समय में गांवों की आय का बड़ा स्रोत बन सकती हैं। नवंबर में पक जाती है फसल
धारचूला विकासखंड के दारमा, व्यास और चौंदास घाटियों में सी बकथॉर्न को वनचूक कहा जाता है। नवंबर माह में यह पककर तैयार हो जाता है। इस बार भी दारमा में दुग्तू, नागलिंग, चल, सेला, व्यास में, बूंदी, गर्ब्यांग और चौदांस घाटी के सिर्खा में सी बकथॉर्न का काफी उत्पादन हुआ है। डॉक्टर बोले- कई बीमारियों की दवा है ये सुपरफूड एमडी आयुर्वेद डॉ.नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि सी बकथॉर्न में सबसे अधिक विटामिन सी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें फ्लैकिनाइड, विटामिन ई के फिनालिक कम्पाउंड, कैरोटिनाइड, लाइकोपीन, ओमेगा 3, ओमेगा 6 और ओमेगा 9 से भरपूर है। इसका उपयोग कैंसर, शुगर, खासी, गले के दर्द में, बच्चों के पेट में कीड़े मारने और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसकी जड़ें भूमि में नाइट्रोजन भी फिक्स करती है, तथा बंजर भूमि को उपजाऊ बनाती है। विश्व में चीन व मंगोलिया इसके सबसे बड़े उत्पादक देश हैं। 200 रुपए किलो बिकते हैं सी बकथॉर्न के बीज व पत्ती इस बार कृषकों द्वारा पल्प के अतिरिक्त पत्तियां एवं बीज भी एकत्रित किये गए हैं। पल्प 250 रुपए लीटर, पत्ती बीज 200 रुपए किलो की दर से खरीदा जा रहा है। मार्केटिंग के लिए विभिन्न व्यवसायियों से सम्पर्क किया जा रहा है। इसके अलावा सी बकथॉर्न से कई उत्पाद तैयार किये जाने का प्रयास भी किया जा रहा है। रिसर्च के लिए राष्ट्रीय संस्थाओं से किया जा रहा है संपर्क पिथौरागढ़ के डीएफओ आशुतोष सिंह ने बताया कि उत्तराखंड के सी बकथॉर्न (हिपोपी सालिसिफोलिया) में विटामिन सी सर्वाधिक पाया जाता है। इसके औषधीय गुणों पर अनुसंधान के लिए विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं से सम्पर्क किया जा रहा है। अगले वर्ष सी बकथॉर्न और इसके उत्पादों को स्थानीय पर्यटन से जोड़े जाने की कवायद शुरू की गई है। इसके लिए धारचूला की तीनों घाटियों में एक-एक मार्केटिंग सेंटर की स्थापना की जाएगी। ग्रामीणों को निशुल्क दी गई है पल्प निकालने की मशीन पहली बार ग्रामीणों को सीबक थौर्न से पल्प निकालने वाली मशीन फ्री दी गई है। कृषकों को भविष्य में इससे रोजगार पाने की बहुत बड़ी उम्मीद जगी है। वन विभाग द्वारा इसके पौधों को बढ़ाने के लिए विभिन्न वन पंचायतों को चयनित किया गया है। दारमा घाटी के सीपू गांव में तिब्बतन सी बकथॉर्न के उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास भी किया जा रहा है। पिथौरागढ़ मुख्यालय पर भी एक विपणन केंद्र खोलने के प्रयास हो रहे हैं, जिसमें सी बकथॉर्न सहित अन्य जड़ी-बूटी उत्पाद बेचे जाएंगे।