उत्तराखंड के दो इंजीनियरों ने डेढ़ साल की मेहनत के बाद खास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तैयार किया है, जिसका नाम रखा गया है ‘पहाड़ी AI’। यह एआई सभी तरह के सवालों के जवाब 3 पहाड़ी भाषाओं- गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी में देगा। रविवार को ही देहरादून में इसे भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने लॉन्च किया है। इस मौके पर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी भी मौजूद रहे और उन्होंने कहा- नई तकनीक नई पीढ़ी को अपनी भाषा से जोड़ने में मदद करेगी। युवाओं को अपनी भाषा के प्रति आकर्षित करने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। दिलचस्प बात ये भी है कि इस एआई को डेवलप करने के लिए जय आदित्य नौटियाल और सुमितेश नैथानी यूरोप की नौकरी छोड़कर उत्तराखंड लौट आए। उन्होंने गांव-गांव जाकर स्थानीय बोलियों, उच्चारणों और भाषायी पैटर्न का अध्ययन किया। जानिए कौन हैं इस AI के संस्थापक और कैसे उन्हें ये आइडिया आया… जय आदित्य नौटियाल और सुमितेश नैथानी, यूरोप में विश्व-स्तरीय संगठनों के लिए स्केलेबल AI समाधान तैयार कर रहे थे। दोनों अक्सर जब मिलते थे तो आपस में विलुप्त होने की कगार पर खड़ी पहाड़ी भाषाओं की स्थिति के बारे में सोचकर परेशान होते थे। एक दिन अचानक उन्हें पहाड़ी भाषाओं के सरंक्षण के लिए एआई वेबसाइट डेवलप करने का आइडिया आया। यही आइडिया उन्हें वापस उत्तराखंड लेकर आया और यहां उन्होंने गांव-गांव जाकर स्थानीय बोलियों, उच्चारणों, ध्वनियों और भाषायी पैटर्न का गहन अध्ययन किया। कहावतें और मुहावरे भी अब अपनी भाषा में इस प्रोसेस में उन्होंने यह ध्यान रखा कि भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा की अभिव्यक्ति भी है। इसलिए उन्होंने गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी के मुहावरे, कहावतें और लोकगीतों की शैली को भी डेटा में शामिल किया। डेटा कलेक्शन के बाद इसे AI मॉडल में डाला गया, और करीब डेढ़ साल की मेहनत और लगातार परीक्षण के बाद पहाड़ी AI तैयार हुआ, जो अब उत्तराखंड की तीन भाषाओं में फ्री में सवालों के जवाब दे रहा है। नरेंद्र सिंह नेगी के साथ टीम में शामिल मंत्री उनियाल इस पूरे प्रोजेक्ट की टीम में मार्गदर्शक के तौर पर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल और लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी भी जुड़े हैं। भाषा विशेषज्ञ के रूप में डॉ. गणेश खुगशाल ‘गणी’ भी पहाड़ी भाषाओं के व्याकरण, स्वर और संरचना को AI-मॉडल में शामिल करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा, प्रोजेक्ट में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय और उत्तराखंड भाषा विभाग भी पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। मंत्री बोले- पूरी तरह विकसित करेंगे लॉन्चिंग के दौरान शामिल रहे और पहाड़ी एआई टीम में शामिल कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, पहाड़ी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए इन एआई इंजीनियरों का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाषा मंत्री ने आगे कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात बहुत से लोग कर रहें हैं लेकिन इन दो युवा ए आई इंजीनियरों ने यह काम करके दिखा दिया और बड़े वैज्ञानिक तरीके से किया है। इस कार्य में उत्तराखंड भाषा विभाग और एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय मिलकर सॉफ्टवेयर को पूर्ण रूप से विकसित करेंगे।
उत्तराखंड के दो इंजीनियरों ने डेढ़ साल की मेहनत के बाद खास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तैयार किया है, जिसका नाम रखा गया है ‘पहाड़ी AI’। यह एआई सभी तरह के सवालों के जवाब 3 पहाड़ी भाषाओं- गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी में देगा। रविवार को ही देहरादून में इसे भाषा मंत्री सुबोध उनियाल ने लॉन्च किया है। इस मौके पर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी भी मौजूद रहे और उन्होंने कहा- नई तकनीक नई पीढ़ी को अपनी भाषा से जोड़ने में मदद करेगी। युवाओं को अपनी भाषा के प्रति आकर्षित करने के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। दिलचस्प बात ये भी है कि इस एआई को डेवलप करने के लिए जय आदित्य नौटियाल और सुमितेश नैथानी यूरोप की नौकरी छोड़कर उत्तराखंड लौट आए। उन्होंने गांव-गांव जाकर स्थानीय बोलियों, उच्चारणों और भाषायी पैटर्न का अध्ययन किया। जानिए कौन हैं इस AI के संस्थापक और कैसे उन्हें ये आइडिया आया… जय आदित्य नौटियाल और सुमितेश नैथानी, यूरोप में विश्व-स्तरीय संगठनों के लिए स्केलेबल AI समाधान तैयार कर रहे थे। दोनों अक्सर जब मिलते थे तो आपस में विलुप्त होने की कगार पर खड़ी पहाड़ी भाषाओं की स्थिति के बारे में सोचकर परेशान होते थे। एक दिन अचानक उन्हें पहाड़ी भाषाओं के सरंक्षण के लिए एआई वेबसाइट डेवलप करने का आइडिया आया। यही आइडिया उन्हें वापस उत्तराखंड लेकर आया और यहां उन्होंने गांव-गांव जाकर स्थानीय बोलियों, उच्चारणों, ध्वनियों और भाषायी पैटर्न का गहन अध्ययन किया। कहावतें और मुहावरे भी अब अपनी भाषा में इस प्रोसेस में उन्होंने यह ध्यान रखा कि भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि संस्कृति और परंपरा की अभिव्यक्ति भी है। इसलिए उन्होंने गढ़वाली, कुमाऊंनी और जौनसारी के मुहावरे, कहावतें और लोकगीतों की शैली को भी डेटा में शामिल किया। डेटा कलेक्शन के बाद इसे AI मॉडल में डाला गया, और करीब डेढ़ साल की मेहनत और लगातार परीक्षण के बाद पहाड़ी AI तैयार हुआ, जो अब उत्तराखंड की तीन भाषाओं में फ्री में सवालों के जवाब दे रहा है। नरेंद्र सिंह नेगी के साथ टीम में शामिल मंत्री उनियाल इस पूरे प्रोजेक्ट की टीम में मार्गदर्शक के तौर पर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल और लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी भी जुड़े हैं। भाषा विशेषज्ञ के रूप में डॉ. गणेश खुगशाल ‘गणी’ भी पहाड़ी भाषाओं के व्याकरण, स्वर और संरचना को AI-मॉडल में शामिल करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा, प्रोजेक्ट में एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय और उत्तराखंड भाषा विभाग भी पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। मंत्री बोले- पूरी तरह विकसित करेंगे लॉन्चिंग के दौरान शामिल रहे और पहाड़ी एआई टीम में शामिल कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा, पहाड़ी भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए इन एआई इंजीनियरों का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाषा मंत्री ने आगे कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात बहुत से लोग कर रहें हैं लेकिन इन दो युवा ए आई इंजीनियरों ने यह काम करके दिखा दिया और बड़े वैज्ञानिक तरीके से किया है। इस कार्य में उत्तराखंड भाषा विभाग और एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय मिलकर सॉफ्टवेयर को पूर्ण रूप से विकसित करेंगे।