मध्य प्रदेश में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को मान्यता नहीं है। इसकी डिग्री को हासिल करने वाले लोग न तो खुद के नाम के आगे डॉक्टर लिख सकते हैं और न ही इलाज कर सकते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि बाकायदा इनके क्लिनिक खुले हैं और ये मरीजों को कैप्सूल, गोलियां देने के साथ इंजेक्शन भी लगा रहे हैं। ये डिग्री 35 हजार रुपए देकर तीन महीने में मिल जाती है। इसके लिए NEET का कठिन एग्जाम देने की भी जरूरत नहीं है। दसवीं और 12वीं पास होना काफी है। एक बार एडमिशन लिया तो क्लास अटेंड करने की भी जरूरत नहीं। दलाल आपके घर के एड्रेस पर डिग्री पहुंचा देंगे। दरअसल, पिछले दिनों इंदौर और उज्जैन में फर्जी डॉक्टरों के इलाज की वजह से लोगों की मौत हो गई थी। प्रशासन को जांच में इन फर्जी डॉक्टरों के पास बीईएमएस (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री मिली। प्रशासन ने इनके क्लिनिक सील कर दिए थे। इन मामलों के सामने आने के बाद भास्कर ने इस पूरे मामले का इन्वेस्टिगेशन किया। करीब 10 दिन के इन्वेस्टिगेशन में भास्कर रिपोर्टर बीईएमएस डिग्रीधारी ‘फर्जी डॉक्टरों’ के क्लिनिक में मरीज बनकर पहुंचा, तो डिग्री देने वाले दलालों से भी संपर्क किया। साथ ही डिग्री को मान्यता देने वाले एक प्राइवेट काउंसिल के सेक्रेटरी से भी बात की तो पता चला कि काउंसिल ने 20 हजार लोगों का रजिस्ट्रेशन किया है। किस तरह से बीईएमएस डिग्रीधारी ‘फर्जी डॉक्टर’ बनकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं? पढ़िए पूरा खुलासा… चार मौतें, एक पैटर्न: इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री, एलोपैथी का इलाज इंदौर के खातीवाला टैंक निवासी 45 वर्षीय मंजू की तबीयत बिगड़ने पर परिजन उसे हर्ष क्लिनिक ले गए। वहां इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डिग्रीधारी श्रीचंद बागेचा ने उसे एलोपैथी इंजेक्शन लगाकर घर भेज दिया। कुछ ही देर बाद मंजू की मौत हो गई। हंगामे के बाद जब स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची तो क्लिनिक से भारी मात्रा में एक्सपायरी दवाइयां मिलीं। जांच में पता चला कि क्लिनिक एक रजिस्टर्ड डॉक्टर का था, लेकिन उसे चलाने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को दे दिया गया था, जो एलोपैथी इलाज के लिए अधिकृत ही नहीं था। क्लिनिक में अवैध रूप से 15 बेड का अस्पताल भी चल रहा था। डिलीवरी के दर्द से तड़प रही काजल मालवीय को एक महिला के कहने पर परिजन डॉ. तैय्यबा शेख के पास ले गए। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री रखने वाली तैय्यबा ने खुद को गायनाकोलॉजिस्ट बताकर काजल को भर्ती कर लिया और कहा कि बच्चे के हाथ-पैर नहीं बने हैं। उसने खून की बोतलें और इंजेक्शन लगाए, जिससे काजल की हालत और बिगड़ गई। जब मामला गंभीर हुआ तो वह मरीज को दूसरे अस्पताल भेजकर खुद फरार हो गई। वहां काजल की नॉर्मल डिलीवरी हुई, लेकिन बच्चे की मौत हो चुकी थी। प्रशासन ने तैय्यबा पर एफआईआर दर्ज की है। 58 वर्षीय मदनलाल को मामूली सर्दी-खांसी थी। उनका बेटा उन्हें मोहल्ले के एसएस मेडिकल स्टोर पर ले गया, जिसे डॉ. मोहम्मद इरफान चलाता था। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री रखने वाले इरफान ने मदनलाल को डायनापार और डाइक्लोफेन जैसे एलोपैथिक इंजेक्शन लगा दिए। इसके तुरंत बाद मदनलाल की हालत बिगड़ गई और किडनी-लिवर समेत कई अंगों के फेल हो जाने से उनकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण इलाज में लापरवाही बताया गया। हवा बंगला निवासी श्याम पलवार को तेज बुखार आने पर पत्नी आरती, पटेल क्लिनिक ले गईं। वहां इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डिग्रीधारी डॉ. प्रदीप पटेल ने उन्हें कई इंजेक्शन लगाए, जिसके 3 घंटे के भीतर ही श्याम की मौत हो गई। परिवार की शिकायत और 15 महीने की लंबी जांच के बाद 21 अगस्त 2025 को डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। भास्कर इन्वेस्टिगेशन पार्ट-1 रिपोर्टर मरीज बनकर क्लिनिक पर पहुंचा
इन फर्जी डॉक्टरों को बेनकाब करने के लिए हमारी टीम मरीज बनकर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में पहुंची। इन डॉक्टरों को एलोपैथी की दवाइयां देते हुए अपने खुफिया कैमरे में कैद किया। इस दौरान ये भी पता चला कि जिन डॉक्टरों के खिलाफ प्रशासन ने मामला दर्ज किया और उनके क्लिनिक सील किए, वो अभी भी चोरी-छिपे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हवा बंगला स्थित पटेल क्लिनिक के संचालक प्रदीप पटेल पर श्याम पलवार की मौत के मामले में FIR दर्ज है। पुलिस का दावा है कि क्लिनिक बंद है। लेकिन 8 अक्टूबर की शाम जब हमारा रिपोर्टर मरीज बनकर पहुंचा, तो प्रदीप पटेल न केवल क्लिनिक में बैठा था, बल्कि मरीजों को देख भी रहा था। रिपोर्टर ने बुखार की शिकायत की, तो पटेल ने तुरंत दवाइयां लिखकर दीं।छोटे बच्चों का भी इलाज करते हुए कैमरे में कैद हुआ। मदनलाल की मौत के आरोपी डॉ. इरफान के खिलाफ पुलिस ने FIR दर्ज की है। हमारा रिपोर्टर जब उसके नए क्लिनिक पर पहुंचा तो वह मेन काउंटर पर बैठा था। रिपोर्टर ने बुखार की शिकायत की तो इरफान ने तुरंत अपने सहयोगी से एलोपैथिक दवाइयां दिलवाईं। पूछने पर इंजेक्शन लगाने के लिए भी तैयार हो गया। इंदौर के निरंजनपुर में इस क्लिनिक के बोर्ड पर MBBS डॉक्टरों के नाम लिखे हैं, लेकिन इसे चलाते हैं डॉ. एम. के. जाट, जिनकी डिग्री BEMS (इलेक्ट्रोहोम्योपैथी) है। हमारे रिपोर्टर ने जब फोन पर बुखार के इलाज के लिए संपर्क किया, तो डॉ. जाट ने शाम को क्लिनिक आने को कहा। पुष्टि की कि “दवाई और इंजेक्शन सब हो जाएगा।” भास्कर इन्वेस्टिगेशन पार्ट-2 डिग्री के गोरखधंधे को एक्सपोज किया
यह झोलाछाप डॉक्टर आते कहां से हैं? इसका जवाब हमें बिहार और छत्तीसगढ़ में बैठे उन दलालों से मिला, जो पैसे लेकर डिग्रियां बेच रहे हैं। भास्कर रिपोर्टर को बिहार के पटना में द वर्ल्ड एजुकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट चलाने वाले एक दलाल के बारे में पता चला था। रिपोर्टर ने इंस्टीट्यूट के नंबर 94314xxx98 पर वॉट्सएप मैसेज किया। कुछ देर बाद दलाल ने वॉट्सएप पर चैटिंग शुरू की। हमारे रिपोर्टर ने BEMS डिग्री के लिए दलाल से संपर्क किया। उसने बताया कि साढ़े चार साल का कोर्स 1.30 लाख का है, लेकिन बैकडेट में भी हो जाएगा। पांच एडमिशन का सौदा करने पर उसने फीस 55 हजार रुपए कर दी और वादा किया कि नवंबर में परीक्षा करवाकर दिसंबर तक मार्कशीट और रजिस्ट्रेशन हाथ में दे देगा। उसने कबूल किया कि संस्थान चलाने के लिए पैसे चाहिए, इसलिए ऐसी डिग्रियां दे रहे हैं। पढ़िए बातचीत…. इसके बाद दलाल ने भास्कर रिपोर्टर के वॉट्सएप नंबर पर मार्कशीट की फोटो भी भेज दी। मार्कशीट की फोटो भेजने के बाद रिपोर्टर और दलाल चौबे के बीच फिर बातचीत हुई… इसके बाद दलाल ने भास्कर रिपोर्टर के वॉट्सएप नंबर पर अपने संस्थान के अकाउंट नंबर और बैंक का आईएफएससी कोड भेज दिया। इसने 35 हजार रुपए में 3 महीने के अंदर BEMS की डिग्री देने का वादा किया। जब रिपोर्टर ने और जल्दी करने को कहा, तो वह बोला- 5 हजार और लगेंगे, एक महीने में सर्टिफिकेट दे देंगे। बस आपकी जवाबदारी है कि बंदे को थोड़ा-बहुत मेडिकल का नॉलेज हो। उसने यह भी बताया कि 12वीं में साइंस होना भी जरूरी नहीं है, आर्ट्स वाले को भी डिग्री मिल जाएगी। पढ़िए बातचीत… BEMS डिग्री लेने वालों का प्राइवेट काउंसिल में रजिस्ट्रेशन
एक संस्था है- काउंसिल ऑफ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी, जहां BEMS की डिग्री लेने वालों का रजिस्ट्रेशन होता है। भास्कर रिपोर्टर इस संस्था के जनरल सेक्रेटरी एमके समीर से मिला। उनसे पूछा कि संस्था कब से काम कर रही है तो समीर ने बताया कि हमारी संस्था 1982 से काम कर रही है। तब से लेकर 2019 तक हमने पूरे मध्य प्रदेश में रजिस्ट्रेशन किए हैं। कोविड के बाद से रजिस्ट्रेशन बंद हैं। समीर ने बताया कि अब तक हम लोग 15 से 20 हजार इलेक्ट्रोहोम्योपैथी प्रैक्टिशनर्स का रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं। और क्या कहा समीर ने, पढ़िए बातचीत… चिकित्सा महासंघ बोला- ये सब सिस्टम की मिलीभगत
जब बीईएमएस डिग्री को मान्यता ही नहीं है, तो फिर कुछ संस्थाएं ये डिग्री क्यों दे रही हैं? इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश चिकित्सा महासंघ के संयोजक डॉ. राकेश मालवीय कहते हैं कि ये सब सिस्टम की मिलीभगत से होता है। वे कहते हैं- आज भी दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में लोगों को ये नहीं पता होता कि जिस फर्जी डॉक्टर से वो इलाज करा रहे हैं, उसके पास एमबीबीएस की डिग्री है भी या नहीं? इसी का फायदा फर्जी डॉक्टर उठाते हैं। वो अपना क्लिनिक खोलते हैं। बोर्ड में कोई भी फैंसी सी डिग्री लिख लेते हैं। उन पर कोई एक्शन होता नहीं है इसलिए वो फलते फूलते हैं। डॉ. मालवीय कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बरसों से एक जगह पर रहकर बिना एमबीबीएस की डिग्री के लोगों को दवाएं बांट रहा है, उन्हें इंजेक्शन लगा रहा है और प्रशासन को इसके बारे में पता नहीं होता, ये कैसे संभव है? भास्कर की ये इन्वेस्टिगेशन भी पढ़ें… 1 बाइक, 4 एक्सीडेंट, चारों बार अलग-अलग ड्राइवर; फर्जी FIR से क्लेम उठा रहे मध्यप्रदेश में दुर्घटना बीमा क्लेम की रकम हासिल करने के लिए दलाल और पुलिस का एक पूरा रैकेट काम कर रहा है। फर्जी क्लेम के इस कारोबार में पीड़ित परिवार के साथ क्लेम की राशि का 50 फीसदी का सौदा होता है। पीड़ित परिवार भी अनजाने में पैसों के लालच के चलते कानून का उल्लंघन कर रहा है। इसे एक्सपोज करने के लिए भास्कर ने फर्जी क्लेम के ऐसे 10 मामलों की पड़ताल की। पढ़ें पूरी खबर…
मध्य प्रदेश में इलेक्ट्रोहोम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को मान्यता नहीं है। इसकी डिग्री को हासिल करने वाले लोग न तो खुद के नाम के आगे डॉक्टर लिख सकते हैं और न ही इलाज कर सकते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि बाकायदा इनके क्लिनिक खुले हैं और ये मरीजों को कैप्सूल, गोलियां देने के साथ इंजेक्शन भी लगा रहे हैं। ये डिग्री 35 हजार रुपए देकर तीन महीने में मिल जाती है। इसके लिए NEET का कठिन एग्जाम देने की भी जरूरत नहीं है। दसवीं और 12वीं पास होना काफी है। एक बार एडमिशन लिया तो क्लास अटेंड करने की भी जरूरत नहीं। दलाल आपके घर के एड्रेस पर डिग्री पहुंचा देंगे। दरअसल, पिछले दिनों इंदौर और उज्जैन में फर्जी डॉक्टरों के इलाज की वजह से लोगों की मौत हो गई थी। प्रशासन को जांच में इन फर्जी डॉक्टरों के पास बीईएमएस (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी) की डिग्री मिली। प्रशासन ने इनके क्लिनिक सील कर दिए थे। इन मामलों के सामने आने के बाद भास्कर ने इस पूरे मामले का इन्वेस्टिगेशन किया। करीब 10 दिन के इन्वेस्टिगेशन में भास्कर रिपोर्टर बीईएमएस डिग्रीधारी ‘फर्जी डॉक्टरों’ के क्लिनिक में मरीज बनकर पहुंचा, तो डिग्री देने वाले दलालों से भी संपर्क किया। साथ ही डिग्री को मान्यता देने वाले एक प्राइवेट काउंसिल के सेक्रेटरी से भी बात की तो पता चला कि काउंसिल ने 20 हजार लोगों का रजिस्ट्रेशन किया है। किस तरह से बीईएमएस डिग्रीधारी ‘फर्जी डॉक्टर’ बनकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं? पढ़िए पूरा खुलासा… चार मौतें, एक पैटर्न: इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री, एलोपैथी का इलाज इंदौर के खातीवाला टैंक निवासी 45 वर्षीय मंजू की तबीयत बिगड़ने पर परिजन उसे हर्ष क्लिनिक ले गए। वहां इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डिग्रीधारी श्रीचंद बागेचा ने उसे एलोपैथी इंजेक्शन लगाकर घर भेज दिया। कुछ ही देर बाद मंजू की मौत हो गई। हंगामे के बाद जब स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची तो क्लिनिक से भारी मात्रा में एक्सपायरी दवाइयां मिलीं। जांच में पता चला कि क्लिनिक एक रजिस्टर्ड डॉक्टर का था, लेकिन उसे चलाने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को दे दिया गया था, जो एलोपैथी इलाज के लिए अधिकृत ही नहीं था। क्लिनिक में अवैध रूप से 15 बेड का अस्पताल भी चल रहा था। डिलीवरी के दर्द से तड़प रही काजल मालवीय को एक महिला के कहने पर परिजन डॉ. तैय्यबा शेख के पास ले गए। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री रखने वाली तैय्यबा ने खुद को गायनाकोलॉजिस्ट बताकर काजल को भर्ती कर लिया और कहा कि बच्चे के हाथ-पैर नहीं बने हैं। उसने खून की बोतलें और इंजेक्शन लगाए, जिससे काजल की हालत और बिगड़ गई। जब मामला गंभीर हुआ तो वह मरीज को दूसरे अस्पताल भेजकर खुद फरार हो गई। वहां काजल की नॉर्मल डिलीवरी हुई, लेकिन बच्चे की मौत हो चुकी थी। प्रशासन ने तैय्यबा पर एफआईआर दर्ज की है। 58 वर्षीय मदनलाल को मामूली सर्दी-खांसी थी। उनका बेटा उन्हें मोहल्ले के एसएस मेडिकल स्टोर पर ले गया, जिसे डॉ. मोहम्मद इरफान चलाता था। इलेक्ट्रोहोम्योपैथी की डिग्री रखने वाले इरफान ने मदनलाल को डायनापार और डाइक्लोफेन जैसे एलोपैथिक इंजेक्शन लगा दिए। इसके तुरंत बाद मदनलाल की हालत बिगड़ गई और किडनी-लिवर समेत कई अंगों के फेल हो जाने से उनकी मौत हो गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण इलाज में लापरवाही बताया गया। हवा बंगला निवासी श्याम पलवार को तेज बुखार आने पर पत्नी आरती, पटेल क्लिनिक ले गईं। वहां इलेक्ट्रोहोम्योपैथी डिग्रीधारी डॉ. प्रदीप पटेल ने उन्हें कई इंजेक्शन लगाए, जिसके 3 घंटे के भीतर ही श्याम की मौत हो गई। परिवार की शिकायत और 15 महीने की लंबी जांच के बाद 21 अगस्त 2025 को डॉक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। भास्कर इन्वेस्टिगेशन पार्ट-1 रिपोर्टर मरीज बनकर क्लिनिक पर पहुंचा
इन फर्जी डॉक्टरों को बेनकाब करने के लिए हमारी टीम मरीज बनकर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में पहुंची। इन डॉक्टरों को एलोपैथी की दवाइयां देते हुए अपने खुफिया कैमरे में कैद किया। इस दौरान ये भी पता चला कि जिन डॉक्टरों के खिलाफ प्रशासन ने मामला दर्ज किया और उनके क्लिनिक सील किए, वो अभी भी चोरी-छिपे मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हवा बंगला स्थित पटेल क्लिनिक के संचालक प्रदीप पटेल पर श्याम पलवार की मौत के मामले में FIR दर्ज है। पुलिस का दावा है कि क्लिनिक बंद है। लेकिन 8 अक्टूबर की शाम जब हमारा रिपोर्टर मरीज बनकर पहुंचा, तो प्रदीप पटेल न केवल क्लिनिक में बैठा था, बल्कि मरीजों को देख भी रहा था। रिपोर्टर ने बुखार की शिकायत की, तो पटेल ने तुरंत दवाइयां लिखकर दीं।छोटे बच्चों का भी इलाज करते हुए कैमरे में कैद हुआ। मदनलाल की मौत के आरोपी डॉ. इरफान के खिलाफ पुलिस ने FIR दर्ज की है। हमारा रिपोर्टर जब उसके नए क्लिनिक पर पहुंचा तो वह मेन काउंटर पर बैठा था। रिपोर्टर ने बुखार की शिकायत की तो इरफान ने तुरंत अपने सहयोगी से एलोपैथिक दवाइयां दिलवाईं। पूछने पर इंजेक्शन लगाने के लिए भी तैयार हो गया। इंदौर के निरंजनपुर में इस क्लिनिक के बोर्ड पर MBBS डॉक्टरों के नाम लिखे हैं, लेकिन इसे चलाते हैं डॉ. एम. के. जाट, जिनकी डिग्री BEMS (इलेक्ट्रोहोम्योपैथी) है। हमारे रिपोर्टर ने जब फोन पर बुखार के इलाज के लिए संपर्क किया, तो डॉ. जाट ने शाम को क्लिनिक आने को कहा। पुष्टि की कि “दवाई और इंजेक्शन सब हो जाएगा।” भास्कर इन्वेस्टिगेशन पार्ट-2 डिग्री के गोरखधंधे को एक्सपोज किया
यह झोलाछाप डॉक्टर आते कहां से हैं? इसका जवाब हमें बिहार और छत्तीसगढ़ में बैठे उन दलालों से मिला, जो पैसे लेकर डिग्रियां बेच रहे हैं। भास्कर रिपोर्टर को बिहार के पटना में द वर्ल्ड एजुकेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट चलाने वाले एक दलाल के बारे में पता चला था। रिपोर्टर ने इंस्टीट्यूट के नंबर 94314xxx98 पर वॉट्सएप मैसेज किया। कुछ देर बाद दलाल ने वॉट्सएप पर चैटिंग शुरू की। हमारे रिपोर्टर ने BEMS डिग्री के लिए दलाल से संपर्क किया। उसने बताया कि साढ़े चार साल का कोर्स 1.30 लाख का है, लेकिन बैकडेट में भी हो जाएगा। पांच एडमिशन का सौदा करने पर उसने फीस 55 हजार रुपए कर दी और वादा किया कि नवंबर में परीक्षा करवाकर दिसंबर तक मार्कशीट और रजिस्ट्रेशन हाथ में दे देगा। उसने कबूल किया कि संस्थान चलाने के लिए पैसे चाहिए, इसलिए ऐसी डिग्रियां दे रहे हैं। पढ़िए बातचीत…. इसके बाद दलाल ने भास्कर रिपोर्टर के वॉट्सएप नंबर पर मार्कशीट की फोटो भी भेज दी। मार्कशीट की फोटो भेजने के बाद रिपोर्टर और दलाल चौबे के बीच फिर बातचीत हुई… इसके बाद दलाल ने भास्कर रिपोर्टर के वॉट्सएप नंबर पर अपने संस्थान के अकाउंट नंबर और बैंक का आईएफएससी कोड भेज दिया। इसने 35 हजार रुपए में 3 महीने के अंदर BEMS की डिग्री देने का वादा किया। जब रिपोर्टर ने और जल्दी करने को कहा, तो वह बोला- 5 हजार और लगेंगे, एक महीने में सर्टिफिकेट दे देंगे। बस आपकी जवाबदारी है कि बंदे को थोड़ा-बहुत मेडिकल का नॉलेज हो। उसने यह भी बताया कि 12वीं में साइंस होना भी जरूरी नहीं है, आर्ट्स वाले को भी डिग्री मिल जाएगी। पढ़िए बातचीत… BEMS डिग्री लेने वालों का प्राइवेट काउंसिल में रजिस्ट्रेशन
एक संस्था है- काउंसिल ऑफ इलेक्ट्रोहोम्योपैथी, जहां BEMS की डिग्री लेने वालों का रजिस्ट्रेशन होता है। भास्कर रिपोर्टर इस संस्था के जनरल सेक्रेटरी एमके समीर से मिला। उनसे पूछा कि संस्था कब से काम कर रही है तो समीर ने बताया कि हमारी संस्था 1982 से काम कर रही है। तब से लेकर 2019 तक हमने पूरे मध्य प्रदेश में रजिस्ट्रेशन किए हैं। कोविड के बाद से रजिस्ट्रेशन बंद हैं। समीर ने बताया कि अब तक हम लोग 15 से 20 हजार इलेक्ट्रोहोम्योपैथी प्रैक्टिशनर्स का रजिस्ट्रेशन कर चुके हैं। और क्या कहा समीर ने, पढ़िए बातचीत… चिकित्सा महासंघ बोला- ये सब सिस्टम की मिलीभगत
जब बीईएमएस डिग्री को मान्यता ही नहीं है, तो फिर कुछ संस्थाएं ये डिग्री क्यों दे रही हैं? इस सवाल के जवाब में मध्य प्रदेश चिकित्सा महासंघ के संयोजक डॉ. राकेश मालवीय कहते हैं कि ये सब सिस्टम की मिलीभगत से होता है। वे कहते हैं- आज भी दूर दराज के ग्रामीण इलाकों में लोगों को ये नहीं पता होता कि जिस फर्जी डॉक्टर से वो इलाज करा रहे हैं, उसके पास एमबीबीएस की डिग्री है भी या नहीं? इसी का फायदा फर्जी डॉक्टर उठाते हैं। वो अपना क्लिनिक खोलते हैं। बोर्ड में कोई भी फैंसी सी डिग्री लिख लेते हैं। उन पर कोई एक्शन होता नहीं है इसलिए वो फलते फूलते हैं। डॉ. मालवीय कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बरसों से एक जगह पर रहकर बिना एमबीबीएस की डिग्री के लोगों को दवाएं बांट रहा है, उन्हें इंजेक्शन लगा रहा है और प्रशासन को इसके बारे में पता नहीं होता, ये कैसे संभव है? भास्कर की ये इन्वेस्टिगेशन भी पढ़ें… 1 बाइक, 4 एक्सीडेंट, चारों बार अलग-अलग ड्राइवर; फर्जी FIR से क्लेम उठा रहे मध्यप्रदेश में दुर्घटना बीमा क्लेम की रकम हासिल करने के लिए दलाल और पुलिस का एक पूरा रैकेट काम कर रहा है। फर्जी क्लेम के इस कारोबार में पीड़ित परिवार के साथ क्लेम की राशि का 50 फीसदी का सौदा होता है। पीड़ित परिवार भी अनजाने में पैसों के लालच के चलते कानून का उल्लंघन कर रहा है। इसे एक्सपोज करने के लिए भास्कर ने फर्जी क्लेम के ऐसे 10 मामलों की पड़ताल की। पढ़ें पूरी खबर…