प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़ के आज 14 दिन बीत गए। आज भी बिहार के मरने वालों के घरों में मातम है। कोई मां के लिए बिलख रहा है तो कोई पत्नी के वियोग में है। वहीं, प्रशासन के सरकारी आंकड़े उनकी मौत की तस्दीक नहीं करते। भगदड़ में बिहार के 15 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से 4 जिलों के 5 लोगों की घरों में भास्कर पहुंचा। उनके परिजनों से बात की। एक-एक करके पढ़िए और देखिए…उनकी जुबानी। पहली कहानीः हॉस्पिटल के नोटिस बोर्ड पर चिपकी थी मां की फोटो छपरा के डुमरी छपिया के रहने वाले रूपम राय की पत्नी मन्ना देवी और बेटी शोभा ने गांव वालों के साथ कुंभ नहाने का प्लान बनाया। पति को बताया और गांव की महिलाओं के साथ छपरा से ट्रेन पकड़कर 28 जनवरी की दोपहर प्रयागराज के लिए निकल गईं। वहां भगदड़ में उनका गांववालों से साथ छूटा और फिर दो दिन बाद परिजनों ने इंस्टाग्राम पर वीडियो देखकर पहचान की। मां और बहन दोनों को खो देने वाले मनीष सफेद धोती और जैकेट पहने तेरहवीं की तैयारी में थे। मनीष की 10वीं बोर्ड की परीक्षा है, मगर तैयारी नहीं हो सकी है। वो भगदड़ की बात सुनते ही जमीन पर देखने लगते हैं। मनीष बताते हैं… मां और बहन के पास मोबाइल नहीं था। साथ में जो लोग गए थे उनको फोन करने पर पता चला कि उनका साथ छूट गया है। लोगों ने कहा- तुम्हारी मां का साथ छूट गया है। इंस्टाग्राम पर भगदड़ का वीडियो दिखा। उसमें बहन की फ्रॉक दिखी। उससे पहचाने। फिर पापा के साथ प्रयागराज गए। ‘प्रयागराज मेले में बने हॉस्पिटल में गए। नहीं मिली। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहे। पुलिस वाले कभी इस हॉस्पिटल भेज रहे थे तो कभी दूसरे हॉस्पिटल। फिर हम लोग मेला छोड़कर शहर में घूमने लगे। वहां एक सरकारी हॉस्पिटल के बाहर मरने वालों की लिस्ट लगी थी। इसमें मां की फोटो लगी थी।’ मनीष के पिता रूपम ने बताया, ‘हॉस्पिटल के अंदर पत्नी की लाश पड़ी थी, लेकिन ड्यूटी पर तैनात पुलिसवाले अंदर जाने नहीं दे रहे थे। जब नहीं जाने दिया तो हमलोग हाथ जोड़कर वहीं खड़े हो गए। कहा- अगर भीतर नहीं जाने देंगे तो हम यहीं रहेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा- जाओ गेट खोलकर देखो। वहां 11 नबंर और 14 नंबर पर बेटी और पत्नी की लाश थी। अफसरों ने 30 हजार रुपया दिया और एंबुलेंस करके बॉडी को भेज दिया।’ 55 साल के रूपम बोलने के साथ ही रो देते हैं। घर में यही दो महिलाएं थीं। एक कमरे के मकान में अब रोने वाला भी कोई नहीं है। DM ने कहा- कोई मौत नहीं छपरा की इन दो मौतों के बारे में जब भास्कर ने छपरा के DM अमन समीर से बात की तो उन्होंने किसी भी मौत से इनकार कर दिया। उनका कहना है, हमारा प्रयागराज जिला प्रशासन से पत्राचार हुआ है। उन्होंने सारण (छपरा) जिले में किसी भी मौत की आधिकारिक सूचना नहीं दी है। जबकि, गांव के मुखिया मिथिलेश कुमार का कहना है, ‘अंचल अधिकारी (CO) ने फोन करके इस मौत के बारे में बताया।’ दूसरी कहानीः काफी मशक्कत के बाद मिली पूनम की बॉडी इसके बाद हम (भास्कर) छपरा से तकरीबन 150 किलोमीटर दूर भोजपुर के पिटाथ गांव पहुंचे। यहां भी भगदड़ में एक मौत हुई है, जो सरकार के आंकड़े पर दर्ज नहीं है। पीड़ित परिवार का कहना है कि स्थानीय थाने से फोन आया कि भगदड़ में मौत हुई है और शव मोती लाल नेहरू चिकित्सालय, प्रयागराज में रखा है। यहां पूनम देवी की मौत हुई है, जो अपनी देवरानी के साथ कुंभ गईं। घर में अब 18 से 21 साल के तीन बच्चे और पिता बचे हैं। पूनम के भाई मंटू वहीं थे, जो भगदड़ की खबर के बाद बहन को खोजने प्रयागराज गए थे। उन्होंने बताया… बहन देवरानी के साथ गई थीं। भगदड़ के बाद देवरानी ने घर वालों को फोन किया कि पूनम का हाथ छूट गया है। फिर हम लोग भाग कर प्रयागराज गए। पूरे दिन मेला में घूमते रहे। जहां-जहां मेले में हॉस्पिटल बना था, हर जगह गए। कोई पूछने वाला नहीं था। फिर मेरे जीजा जी (मृतक के पति) को थाने से फोन आया कि मोतीलाल नेहरू हॉस्पिटल में जाकर बॉडी ले लो। फिर हम लोग वहां गए। वहां पहले तो भीतर नहीं जाने दे रहे थे। फिर भगाने लगे। हम लोग कहे कि बिना लाश लिए नहीं जाएंगे। तब जाकर हमको भीतर भेजा गया। अंदर कुंडी खोलने पर केवल महिलाओं की लाश पड़ी थी। हम लोगों की बॉडी पर 6वां नंबर लिखा था। मंटू का कहना है कि उन्हें भी एक एम्बुलेंस में 15 हजार रुपए कैश देकर भेज दिया गया। तीसरी कहानीः लोगों के धक्के से पति की गंजी छूटी, फिर जिंदा नहीं लौटे बांका के सत्यवान रजक दिव्यांग थे। गांव के लोग कुंभ नहाने जा रहे थे तो पत्नी के साथ जाने का प्लान बनाया। पत्नी कंकाई और झारखंड में रहने वाले कुछ रिश्तेदारों के साथ वह संगम नोज के पास तक पहुंचे थे, तभी भगदड़ हुई और पत्नी का हाथ छूट गया। पत्नी कंकाई बतातीं हैं… पति की गंजी हाथ में थी। ताकि भीड़ में खो नहीं जाए। सामने से जुलूस की तरह लोग आ रहे थे। धक्का लगा तो गंजी छूट गई और वो आगे निकल गए। किसी तरह बचकर बाहर निकले। जब फोन की तो फोन नहीं लगा। पूरा दिन भटकने के बाद कंकाई को पुलिसकर्मियों ने सलाह दी कि मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज जाएं। वहां रात करीब 9 बजे उन्हें पति की लाश मिली। वो कहती हैं… हम कह रहे थे कि देखने दो तो गेट पर ही रोक दिया। खूब चिल्ला कर बोले तो भीतर जाने दिया। वहां पर एक नंबर में मेरे पति का ही शव पड़ा था। उन्हें भी 15 हजार रुपए और एक गार्ड के साथ एंबुलेंस से सीधे गांव भेज दिया गया। आखिरी कहानीः झूसी की दूसरी भगदड़ में दरभंगा के कारी मंडल की जान गई दरभंगा के 75 साल के कारी मंडल की सेक्टर 21 के पास हुई भगदड़ में मौत हो गई। उनके साथ पत्नी और बेटा भी थे। बेटे शंकर ने बताया, ‘हम लोग 5 बजे भोर में पहुंचे और 15 किलोमीटर तक चलते रहे। गांव से एक बस लोग गए थे। सब साथ चल रहे थे। उजाला हो गया था, धूप भी लग रही थी लेकिन भीड़ आगे नहीं बढ़ रही थी। हम लोग सेक्टर 21 के पास पहुंचे तब तक हल्ला होने लगा। सामने से भीड़ ने हम लोगों को पीछे ठेल दिया। इसके बाद पापा का हाथ छूट गया। जब हल्ला रुका तो हम पापा को खोजने लगे। फिर हमको कुछ लोगों ने बताया कि प्रयागराज मेडिकल कॉलेज, सिविल रोड जाइए।’ हम शाम पांच बजे वहां गए। वहां हमको भीतर ले जाकर बॉडी पहचनवाया। मेरे पापा की बॉडी पर 38 नंबर लिखा था। उनका स्वेटर देख कर हम उनको पहचाने। वहां हमारा फोटो खींचा, नाम-नंबर नोट किया। पांच जगह साइन कराया। फिर रात को 11 बजे एंबुलेंस से 15 हजार रुपया देकर गांव भेज दिया। यहां भी स्थानीय प्रशासन ऑन रिकॉर्ड बात करने को तैयार नहीं है। ——————————— ये भी पढ़ें… रात को चौंक कर उठती हैं कुंभ से लौटी महिलाएं:लाशों के बीच फंसी थी जेठानी, परिवार मान चुका था मर गई, 5 दिन बाद लौटी मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी को प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ में बिहार के 15 लोगों की मौत हो गई। हालांकि, UP सरकार ने 30 लोगों के मरने और 60 लोगों के घायल होने का दावा किया है। मरने वालों में पटना से सटे मनेर की सिया देवी भी थीं। वह अपने गांव जीरखान टोले की 14 महिलाओं के साथ महाकुंभ नहाने गईं थी, मगर लौट नहीं पाईं। जो महिलाएं लौट कर आई हैं, उनके चेहरे पर अभी भी मौत का खौफ साफ दिख रहा है। पूरी खबर पढ़िए
प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़ के आज 14 दिन बीत गए। आज भी बिहार के मरने वालों के घरों में मातम है। कोई मां के लिए बिलख रहा है तो कोई पत्नी के वियोग में है। वहीं, प्रशासन के सरकारी आंकड़े उनकी मौत की तस्दीक नहीं करते। भगदड़ में बिहार के 15 लोगों की मौत हुई है, जिनमें से 4 जिलों के 5 लोगों की घरों में भास्कर पहुंचा। उनके परिजनों से बात की। एक-एक करके पढ़िए और देखिए…उनकी जुबानी। पहली कहानीः हॉस्पिटल के नोटिस बोर्ड पर चिपकी थी मां की फोटो छपरा के डुमरी छपिया के रहने वाले रूपम राय की पत्नी मन्ना देवी और बेटी शोभा ने गांव वालों के साथ कुंभ नहाने का प्लान बनाया। पति को बताया और गांव की महिलाओं के साथ छपरा से ट्रेन पकड़कर 28 जनवरी की दोपहर प्रयागराज के लिए निकल गईं। वहां भगदड़ में उनका गांववालों से साथ छूटा और फिर दो दिन बाद परिजनों ने इंस्टाग्राम पर वीडियो देखकर पहचान की। मां और बहन दोनों को खो देने वाले मनीष सफेद धोती और जैकेट पहने तेरहवीं की तैयारी में थे। मनीष की 10वीं बोर्ड की परीक्षा है, मगर तैयारी नहीं हो सकी है। वो भगदड़ की बात सुनते ही जमीन पर देखने लगते हैं। मनीष बताते हैं… मां और बहन के पास मोबाइल नहीं था। साथ में जो लोग गए थे उनको फोन करने पर पता चला कि उनका साथ छूट गया है। लोगों ने कहा- तुम्हारी मां का साथ छूट गया है। इंस्टाग्राम पर भगदड़ का वीडियो दिखा। उसमें बहन की फ्रॉक दिखी। उससे पहचाने। फिर पापा के साथ प्रयागराज गए। ‘प्रयागराज मेले में बने हॉस्पिटल में गए। नहीं मिली। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि किसको क्या कहे। पुलिस वाले कभी इस हॉस्पिटल भेज रहे थे तो कभी दूसरे हॉस्पिटल। फिर हम लोग मेला छोड़कर शहर में घूमने लगे। वहां एक सरकारी हॉस्पिटल के बाहर मरने वालों की लिस्ट लगी थी। इसमें मां की फोटो लगी थी।’ मनीष के पिता रूपम ने बताया, ‘हॉस्पिटल के अंदर पत्नी की लाश पड़ी थी, लेकिन ड्यूटी पर तैनात पुलिसवाले अंदर जाने नहीं दे रहे थे। जब नहीं जाने दिया तो हमलोग हाथ जोड़कर वहीं खड़े हो गए। कहा- अगर भीतर नहीं जाने देंगे तो हम यहीं रहेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा- जाओ गेट खोलकर देखो। वहां 11 नबंर और 14 नंबर पर बेटी और पत्नी की लाश थी। अफसरों ने 30 हजार रुपया दिया और एंबुलेंस करके बॉडी को भेज दिया।’ 55 साल के रूपम बोलने के साथ ही रो देते हैं। घर में यही दो महिलाएं थीं। एक कमरे के मकान में अब रोने वाला भी कोई नहीं है। DM ने कहा- कोई मौत नहीं छपरा की इन दो मौतों के बारे में जब भास्कर ने छपरा के DM अमन समीर से बात की तो उन्होंने किसी भी मौत से इनकार कर दिया। उनका कहना है, हमारा प्रयागराज जिला प्रशासन से पत्राचार हुआ है। उन्होंने सारण (छपरा) जिले में किसी भी मौत की आधिकारिक सूचना नहीं दी है। जबकि, गांव के मुखिया मिथिलेश कुमार का कहना है, ‘अंचल अधिकारी (CO) ने फोन करके इस मौत के बारे में बताया।’ दूसरी कहानीः काफी मशक्कत के बाद मिली पूनम की बॉडी इसके बाद हम (भास्कर) छपरा से तकरीबन 150 किलोमीटर दूर भोजपुर के पिटाथ गांव पहुंचे। यहां भी भगदड़ में एक मौत हुई है, जो सरकार के आंकड़े पर दर्ज नहीं है। पीड़ित परिवार का कहना है कि स्थानीय थाने से फोन आया कि भगदड़ में मौत हुई है और शव मोती लाल नेहरू चिकित्सालय, प्रयागराज में रखा है। यहां पूनम देवी की मौत हुई है, जो अपनी देवरानी के साथ कुंभ गईं। घर में अब 18 से 21 साल के तीन बच्चे और पिता बचे हैं। पूनम के भाई मंटू वहीं थे, जो भगदड़ की खबर के बाद बहन को खोजने प्रयागराज गए थे। उन्होंने बताया… बहन देवरानी के साथ गई थीं। भगदड़ के बाद देवरानी ने घर वालों को फोन किया कि पूनम का हाथ छूट गया है। फिर हम लोग भाग कर प्रयागराज गए। पूरे दिन मेला में घूमते रहे। जहां-जहां मेले में हॉस्पिटल बना था, हर जगह गए। कोई पूछने वाला नहीं था। फिर मेरे जीजा जी (मृतक के पति) को थाने से फोन आया कि मोतीलाल नेहरू हॉस्पिटल में जाकर बॉडी ले लो। फिर हम लोग वहां गए। वहां पहले तो भीतर नहीं जाने दे रहे थे। फिर भगाने लगे। हम लोग कहे कि बिना लाश लिए नहीं जाएंगे। तब जाकर हमको भीतर भेजा गया। अंदर कुंडी खोलने पर केवल महिलाओं की लाश पड़ी थी। हम लोगों की बॉडी पर 6वां नंबर लिखा था। मंटू का कहना है कि उन्हें भी एक एम्बुलेंस में 15 हजार रुपए कैश देकर भेज दिया गया। तीसरी कहानीः लोगों के धक्के से पति की गंजी छूटी, फिर जिंदा नहीं लौटे बांका के सत्यवान रजक दिव्यांग थे। गांव के लोग कुंभ नहाने जा रहे थे तो पत्नी के साथ जाने का प्लान बनाया। पत्नी कंकाई और झारखंड में रहने वाले कुछ रिश्तेदारों के साथ वह संगम नोज के पास तक पहुंचे थे, तभी भगदड़ हुई और पत्नी का हाथ छूट गया। पत्नी कंकाई बतातीं हैं… पति की गंजी हाथ में थी। ताकि भीड़ में खो नहीं जाए। सामने से जुलूस की तरह लोग आ रहे थे। धक्का लगा तो गंजी छूट गई और वो आगे निकल गए। किसी तरह बचकर बाहर निकले। जब फोन की तो फोन नहीं लगा। पूरा दिन भटकने के बाद कंकाई को पुलिसकर्मियों ने सलाह दी कि मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज जाएं। वहां रात करीब 9 बजे उन्हें पति की लाश मिली। वो कहती हैं… हम कह रहे थे कि देखने दो तो गेट पर ही रोक दिया। खूब चिल्ला कर बोले तो भीतर जाने दिया। वहां पर एक नंबर में मेरे पति का ही शव पड़ा था। उन्हें भी 15 हजार रुपए और एक गार्ड के साथ एंबुलेंस से सीधे गांव भेज दिया गया। आखिरी कहानीः झूसी की दूसरी भगदड़ में दरभंगा के कारी मंडल की जान गई दरभंगा के 75 साल के कारी मंडल की सेक्टर 21 के पास हुई भगदड़ में मौत हो गई। उनके साथ पत्नी और बेटा भी थे। बेटे शंकर ने बताया, ‘हम लोग 5 बजे भोर में पहुंचे और 15 किलोमीटर तक चलते रहे। गांव से एक बस लोग गए थे। सब साथ चल रहे थे। उजाला हो गया था, धूप भी लग रही थी लेकिन भीड़ आगे नहीं बढ़ रही थी। हम लोग सेक्टर 21 के पास पहुंचे तब तक हल्ला होने लगा। सामने से भीड़ ने हम लोगों को पीछे ठेल दिया। इसके बाद पापा का हाथ छूट गया। जब हल्ला रुका तो हम पापा को खोजने लगे। फिर हमको कुछ लोगों ने बताया कि प्रयागराज मेडिकल कॉलेज, सिविल रोड जाइए।’ हम शाम पांच बजे वहां गए। वहां हमको भीतर ले जाकर बॉडी पहचनवाया। मेरे पापा की बॉडी पर 38 नंबर लिखा था। उनका स्वेटर देख कर हम उनको पहचाने। वहां हमारा फोटो खींचा, नाम-नंबर नोट किया। पांच जगह साइन कराया। फिर रात को 11 बजे एंबुलेंस से 15 हजार रुपया देकर गांव भेज दिया। यहां भी स्थानीय प्रशासन ऑन रिकॉर्ड बात करने को तैयार नहीं है। ——————————— ये भी पढ़ें… रात को चौंक कर उठती हैं कुंभ से लौटी महिलाएं:लाशों के बीच फंसी थी जेठानी, परिवार मान चुका था मर गई, 5 दिन बाद लौटी मौनी अमावस्या यानी 29 जनवरी को प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ में बिहार के 15 लोगों की मौत हो गई। हालांकि, UP सरकार ने 30 लोगों के मरने और 60 लोगों के घायल होने का दावा किया है। मरने वालों में पटना से सटे मनेर की सिया देवी भी थीं। वह अपने गांव जीरखान टोले की 14 महिलाओं के साथ महाकुंभ नहाने गईं थी, मगर लौट नहीं पाईं। जो महिलाएं लौट कर आई हैं, उनके चेहरे पर अभी भी मौत का खौफ साफ दिख रहा है। पूरी खबर पढ़िए