अनुच्छेद 21 के तहत बिजली को अधिकार बताते हुए नागरिक संगठनों ने प्रीपेड मीटर और ToD टैरिफ को गरीब-विरोधी करार दिया, कई राज्यों में आंदोलन तेज

Author: Amit Mehra Congress Leader
बिजली को लेकर देशभर में प्रीपेड स्मार्ट मीटर के खिलाफ विरोध तेज होता जा रहा है। सामाजिक संगठनों, किसान यूनियनों और उपभोक्ता मंचों का कहना है कि आज के समय में बिजली केवल एक सेवा नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, संचार और दैनिक जीवन पूरी तरह बिजली पर निर्भर हैं, ऐसे में राज्य का दायित्व है कि वह हर नागरिक को सस्ती, निरंतर और सुरक्षित बिजली उपलब्ध कराए।
आंदोलनकारियों का तर्क है कि प्रीपेड मीटर इस मूल भावना के विपरीत है, क्योंकि इसमें पहले भुगतान करना अनिवार्य है और बैलेंस खत्म होते ही बिजली स्वतः कट जाती है, चाहे वह रात का समय हो, त्योहार हो या कोई आपात स्थिति। इसके विपरीत पोस्टपेड व्यवस्था में उपभोक्ता को बिल आने के बाद 15 से 30 दिन की मोहलत मिलती है।
बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा सहित कई राज्यों में गरीब, मजदूर, झुग्गीवासी और ग्रामीण परिवार सबसे अधिक प्रभावित बताए जा रहे हैं। 2025 में भी कई इलाकों में अचानक बिल दोगुना-तिगुना होने और बिना सूचना बिजली कटने के खिलाफ प्रदर्शन जारी हैं।
कई उपभोक्ताओं ने शिकायत दर्ज कराई है कि स्मार्ट या प्रीपेड मीटर लगने के बाद खपत समान रहने के बावजूद बिल असामान्य रूप से बढ़ गया। इसके पीछे गलत रीडिंग, तकनीकी खामियां और टाइम ऑफ डे (ToD) टैरिफ को जिम्मेदार बताया जा रहा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में ऐसे हजारों मामलों में शिकायतें दर्ज हुईं, जिनके बाद सड़कों पर विरोध प्रदर्शन हुए।
ToD टैरिफ के तहत दिन के सोलर आवर्स में बिजली कुछ सस्ती और शाम-रात के पीक आवर्स में 10 से 20 प्रतिशत तक महंगी हो जाती है। विरोध करने वालों का कहना है कि गरीब और मध्यम वर्ग दिन में नहीं, बल्कि शाम और रात में ही खाना पकाने, पढ़ाई और रोशनी जैसे जरूरी कामों के लिए बिजली का उपयोग करता है, जिससे उसका बिल और बढ़ जाता है। अमीर वर्ग और उद्योग जहां अपनी खपत का समय बदल सकते हैं, वहीं आम आदमी के लिए यह संभव नहीं है।
आंदोलनकारी संगठनों ने इस पूरी व्यवस्था को RDSS जैसी योजनाओं के तहत बिजली वितरण को निजी कंपनियों और कॉर्पोरेट हितों के अनुकूल बनाने से भी जोड़ा है। उनका कहना है कि प्रीपेड और ToD से डिस्कॉम को सौ प्रतिशत वसूली सुनिश्चित होती है, जबकि क्रॉस सब्सिडी खत्म होने और भविष्य में टैरिफ बढ़ोतरी का रास्ता आसान हो जाता है।
गौरतलब है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 उपभोक्ता को प्रीपेड या पोस्टपेड मीटर चुनने का अधिकार देता है, इसके बावजूद केंद्र की नीतियों के जरिए इसे लगभग अनिवार्य किया जा रहा है। इसी मुद्दे पर कई हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर हुईं और कुछ राज्यों में विरोध के बाद घरेलू उपभोक्ताओं को विकल्प देने या स्थगन पर विचार करना पड़ा।
इसके साथ ही ऑनलाइन रिचार्ज में धोखाधड़ी, बुजुर्गों और ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए डिजिटल प्रक्रिया की कठिनाई, महंगे मीटर का खर्च उपभोक्ता पर डालना और मीटर रीडिंग से जुड़े रोजगार खत्म होने जैसे मुद्दे भी सामने आए हैं।
निष्कर्षतः संगठनों का कहना है कि प्रीपेड मीटर और ToD टैरिफ का मौजूदा स्वरूप गरीब और मध्यम वर्ग को अंधेरे और महंगाई की ओर धकेल रहा है, जबकि कॉर्पोरेट हितों को मजबूत कर रहा है। अनिवार्यता हटाकर पोस्टपेड विकल्प बनाए रखना और सब्सिडी व्यवस्था की रक्षा करना समय की मांग है।