हरिद्वार में इन दिनों एक नया चलन तेजी से उभरता दिख रहा है। धर्मनगरी की गलियों, घाटों और अखाड़ों के आसपास ऐसे चेहरे बढ़ते जा रहे हैं, जो कुछ समय पहले तक राजनीति, पत्रकारिता या सामाजिक जीवन में सक्रिय थे, लेकिन अब भगवा वस्त्र धारण कर संत की पहचान में सामने आ रहे हैं। यह बदलाव अचानक नहीं है। बीते कुछ महीनों में हरिद्वार में कई ऐसे लोग दिखे हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन, राजनीतिक सक्रियता या सामाजिक पहचान को पीछे छोड़ते हुए खुद को सनातन परंपरा से जोड़ लिया है। कोई इसे आस्था की पुकार बता रहा है, तो कोई इसे नई सामाजिक-राजनीतिक पहचान की तलाश मान रहा है। दैनिक भास्कर एप की इस खास पड़ताल में ऐसे ही कुछ चेहरों से बात की गई, यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर संत बनने की यह होड़ क्यों बढ़ रही है, और क्या यह परंपरा के अनुरूप है या केवल दिखावे का नया दौर। भाजपा और AAP छोड़ संत बने नरेश शर्मा हरिद्वार की राजनीति में सक्रिय रहे नरेश शर्मा (45) आज भगवा कपड़ों में नजर आते हैं और खुद को नरेश आनंद बताते हैं। वह कहते हैं ये सब मां गंगा और भगवान भोलेनाथ की कृपा है। उन्होंने बताया कि वह ब्राह्मण परिवार से हैं और बचपन से संतों के सानिध्य में रहे, हालांकि पहले संन्यासी जीवन में नहीं थे। नरेश शर्मा का कहना है कि आज पूरी दुनिया में सनातन संस्कृति का विस्तार हो रहा है और इसी भावना से उन्होंने परिवार त्याग कर धर्म प्रचार का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि राजनीति, शिक्षा और सामाजिक जीवन के बाद अब संन्यास जीवन का भी अलग आनंद है, जिसे अनुभव करने के बाद कुछ और शेष नहीं रहता। कांग्रेस से दूरी, संत बने राम विशाल देव 37 पूर्व कांग्रेसी नेता राम विशाल देव अब राम विशालदास के नाम से पहचाने जाते हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने बताया कि संत बनने का विचार नया नहीं था। उनका कहना है कि जीवन में कुछ समय भटकाव रहा, लेकिन अंततः उन्हें अपना सही मार्ग समझ आ गया। राम विशालदास ने कहा कि संत बनने के बाद मोह-माया से दूरी बनी है और अब वे पूरी तरह सनातन धर्म के कार्यों में लगे हैं। उनका मानना है कि भगवान ने उन्हें सही समय पर सही रास्ते पर भेज दिया। समाजसेवा से भगवा तक: विश्वास सक्सेना बने विश्वास आनंद हरिद्वार में समाजसेवी के रूप में पहचाने जाने वाले विश्वास सक्सेना (47) अब विश्वास आनंद के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने बताया कि हरिद्वार आने के बाद मां गंगा की कृपा से उनका पूरा जीवन बदल गया। विश्वास आनंद का कहना है कि भगवा वस्त्र धारण करना संत बनना नहीं है, बल्कि यह मंदिर सेवा और संतों के सानिध्य का प्रतीक है। वे लगातार धार्मिक सेवा से जुड़े हुए हैं और समाज के साथ-साथ धर्म के कार्यों में योगदान देना चाहते हैं। विश्वास सक्सेना वर्ष 2009 से सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं। संत बनने की होड़ पर संतों और पत्रकारों की राय महामंडलेश्वर स्वामी रूपेंद्र प्रकाश ने इस प्रवृत्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि संन्यास एक गंभीर परंपरा है और इसे ढोंग में बदलना धर्म के लिए घातक है। उनका कहना है कि बिना गृहस्थ जीवन का त्याग किए संन्यास लेना शास्त्रसम्मत नहीं है। वहीं, हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार नरेश गुप्ता का कहना है कि धर्मनगरी में साधु-संत और संपत्ति को लेकर विवाद कोई नया विषय नहीं है। योगी आदित्यनाथ जैसे संतों के राजनीति में आने के बाद लोगों को लगने लगा है कि भगवा वस्त्र पहनकर राजनीति, सम्मान और प्रभाव आसानी से पाया जा सकता है। यही कारण है कि युवा वर्ग और महिलाएं भी इस राह पर बढ़ रही हैं। अखाड़ा परिषद का स्पष्ट संदेश अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि संन्यास और महामंडलेश्वर बनने की एक तय प्रक्रिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बिना गृहस्थ जीवन त्यागे कोई संन्यासी नहीं बन सकता। उनका कहना है कि अखाड़ों में दीक्षा, नियम और परंपरा का पालन अनिवार्य है। अगर इन परंपराओं को तोड़ा गया, तो यह सनातन धर्म की मूल व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है।
हरिद्वार में इन दिनों एक नया चलन तेजी से उभरता दिख रहा है। धर्मनगरी की गलियों, घाटों और अखाड़ों के आसपास ऐसे चेहरे बढ़ते जा रहे हैं, जो कुछ समय पहले तक राजनीति, पत्रकारिता या सामाजिक जीवन में सक्रिय थे, लेकिन अब भगवा वस्त्र धारण कर संत की पहचान में सामने आ रहे हैं। यह बदलाव अचानक नहीं है। बीते कुछ महीनों में हरिद्वार में कई ऐसे लोग दिखे हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन, राजनीतिक सक्रियता या सामाजिक पहचान को पीछे छोड़ते हुए खुद को सनातन परंपरा से जोड़ लिया है। कोई इसे आस्था की पुकार बता रहा है, तो कोई इसे नई सामाजिक-राजनीतिक पहचान की तलाश मान रहा है। दैनिक भास्कर एप की इस खास पड़ताल में ऐसे ही कुछ चेहरों से बात की गई, यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर संत बनने की यह होड़ क्यों बढ़ रही है, और क्या यह परंपरा के अनुरूप है या केवल दिखावे का नया दौर। भाजपा और AAP छोड़ संत बने नरेश शर्मा हरिद्वार की राजनीति में सक्रिय रहे नरेश शर्मा (45) आज भगवा कपड़ों में नजर आते हैं और खुद को नरेश आनंद बताते हैं। वह कहते हैं ये सब मां गंगा और भगवान भोलेनाथ की कृपा है। उन्होंने बताया कि वह ब्राह्मण परिवार से हैं और बचपन से संतों के सानिध्य में रहे, हालांकि पहले संन्यासी जीवन में नहीं थे। नरेश शर्मा का कहना है कि आज पूरी दुनिया में सनातन संस्कृति का विस्तार हो रहा है और इसी भावना से उन्होंने परिवार त्याग कर धर्म प्रचार का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि राजनीति, शिक्षा और सामाजिक जीवन के बाद अब संन्यास जीवन का भी अलग आनंद है, जिसे अनुभव करने के बाद कुछ और शेष नहीं रहता। कांग्रेस से दूरी, संत बने राम विशाल देव 37 पूर्व कांग्रेसी नेता राम विशाल देव अब राम विशालदास के नाम से पहचाने जाते हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने बताया कि संत बनने का विचार नया नहीं था। उनका कहना है कि जीवन में कुछ समय भटकाव रहा, लेकिन अंततः उन्हें अपना सही मार्ग समझ आ गया। राम विशालदास ने कहा कि संत बनने के बाद मोह-माया से दूरी बनी है और अब वे पूरी तरह सनातन धर्म के कार्यों में लगे हैं। उनका मानना है कि भगवान ने उन्हें सही समय पर सही रास्ते पर भेज दिया। समाजसेवा से भगवा तक: विश्वास सक्सेना बने विश्वास आनंद हरिद्वार में समाजसेवी के रूप में पहचाने जाने वाले विश्वास सक्सेना (47) अब विश्वास आनंद के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने बताया कि हरिद्वार आने के बाद मां गंगा की कृपा से उनका पूरा जीवन बदल गया। विश्वास आनंद का कहना है कि भगवा वस्त्र धारण करना संत बनना नहीं है, बल्कि यह मंदिर सेवा और संतों के सानिध्य का प्रतीक है। वे लगातार धार्मिक सेवा से जुड़े हुए हैं और समाज के साथ-साथ धर्म के कार्यों में योगदान देना चाहते हैं। विश्वास सक्सेना वर्ष 2009 से सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं। संत बनने की होड़ पर संतों और पत्रकारों की राय महामंडलेश्वर स्वामी रूपेंद्र प्रकाश ने इस प्रवृत्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि संन्यास एक गंभीर परंपरा है और इसे ढोंग में बदलना धर्म के लिए घातक है। उनका कहना है कि बिना गृहस्थ जीवन का त्याग किए संन्यास लेना शास्त्रसम्मत नहीं है। वहीं, हरिद्वार के वरिष्ठ पत्रकार नरेश गुप्ता का कहना है कि धर्मनगरी में साधु-संत और संपत्ति को लेकर विवाद कोई नया विषय नहीं है। योगी आदित्यनाथ जैसे संतों के राजनीति में आने के बाद लोगों को लगने लगा है कि भगवा वस्त्र पहनकर राजनीति, सम्मान और प्रभाव आसानी से पाया जा सकता है। यही कारण है कि युवा वर्ग और महिलाएं भी इस राह पर बढ़ रही हैं। अखाड़ा परिषद का स्पष्ट संदेश अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि संन्यास और महामंडलेश्वर बनने की एक तय प्रक्रिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि बिना गृहस्थ जीवन त्यागे कोई संन्यासी नहीं बन सकता। उनका कहना है कि अखाड़ों में दीक्षा, नियम और परंपरा का पालन अनिवार्य है। अगर इन परंपराओं को तोड़ा गया, तो यह सनातन धर्म की मूल व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है।