मैं दुबई में थी। मां बहन के पास पुणे में थीं। इस बीच भोपाल के तीन बैंकों में हमारे नाम से खाते खुल गए। इसके बाद हमारे असली खातों से करोड़ों रुपए इन फर्जी खातों में ट्रांसफर हो गए। जब आईटी कोर्ट में सुनवाई हुई तो बैंक अधिकारियों ने कहा कि ये खाते हमने ही खुलवाए हैं, जबकि इसमें बैंक कर्मचारियों की पूरी मिलीभगत थी। जब अर्चना शर्मा यह कहती हैं तो उनके चेहरे पर दर्द साफ दिखता है। वह कहती हैं कि हमें यह साबित करने में 5 साल लग गए कि बैंक कर्मचारियों ने ही मिलीभगत कर हमारे फर्जी खाते खोले थे। अब आईटी कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया तो मान सकते हैं कि यह न्याय की शुरुआत है, लेकिन इस दिन का इंतजार करते-करते मेरे पिताजी गुजर गए और मां की उम्र 85 साल की हो गई । अर्चना शर्मा का परिवार एक ऐसे बैंकिंग फ्रॉड का शिकार हुआ, जिसे बैंक के ही कर्मचारियों ने एक गिरोह की तरह अंजाम दिया। अब एक लंबी और थका देने वाली कानूनी लड़ाई के बाद मध्य प्रदेश की आईटी कोर्ट ने 7 बैंक और एक वित्तीय कंपनी को दोषी ठहराते हुए शर्मा परिवार को 2.5 करोड़ रुपए का हर्जाना देने का आदेश दिया है। यह प्रदेश के किसी भी आईटी कोर्ट की ओर से दिया गया अब तक का सबसे बड़ा हर्जाना है। आखिर कैसे की गई ठगी, परिवार ने न्याय के लिए क्या कीमत चुकाई और बैंकों को इस ऐतिहासिक हर्जाने का आदेश क्यों दिया गया? पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट… एक भरोसे की शुरुआत और धोखे का जाल
कहानी की शुरुआत होती है भोपाल की अरेरा कॉलोनी से। अर्चना शर्मा के पिता केदारनाथ शर्मा एक प्रतिष्ठित इंजीनियर थे। साल 1990 में रिटायरमेंट के बाद वे परिवार के साथ भोपाल में बस गए। उन्होंने अपनी सुविधा के लिए एचडीएफसी बैंक की चूना भट्टी ब्रांच में खाता खुलवाया। अर्चना बताती हैं, ‘पिताजी ने सोचा कि रिटायरमेंट के बाद एक ही ब्रांच में खाते रहने से सुविधा होगी, इसलिए मेरे और मां इंदिरा शर्मा का अकाउंट भी वहीं खुलवा दिया।’ 2006 में एक दुर्घटना के बाद केदारनाथ शर्मा की याददाश्त कमजोर हो गई। अर्चना 1997 में शादी के बाद दुबई शिफ्ट हो चुकी थीं। भोपाल में उनके बुजुर्ग माता-पिता रहते थे। रिलेशनशिप मैनेजर ने दिया धोखा
यहीं उनके जीवन में रिलेशनशिप मैनेजर (आरएम) संजय ठाकुर की एंट्री हुई। ठाकुर बैंक की सीनियर सिटिजन सर्विस के तहत घर आकर अपनी सेवाएं देता था। पिताजी की कमजोर याददाश्त के कारण मां ही उससे बात करती थीं और कभी-कभी दुबई से अर्चना भी फोन पर संपर्क में रहती थीं। ठाकुर ने जल्द ही परिवार का भरोसा जीत लिया। एक दिन उसने सलाह दी कि आपके सेविंग अकाउंट में 2 करोड़ से ज्यादा रुपए हैं। आप इन्हें म्यूचुअल फंड में डाल दीजिए। इससे आपको बैंक के सामान्य ब्याज से कहीं ज्यादा फायदा होगा और एक रेगुलर इनकम भी आएगी। परिवार को यह सलाह अच्छी लगी। उन्होंने निवेश का फैसला कर लिया। जब बंद हो गए मैसेज और खाली हो गए खाते
कुछ महीनों बाद अर्चना ने गौर किया कि बैंक से आने वाले मैसेज बंद हो गए हैं। उन्होंने मैनेजर ठाकुर से संपर्क किया तो उसने टाल दिया। बोला-कई बार टेक्निकल कारणों से मैसेज नहीं आते। आपका बैलेंस हमें सिस्टम में दिख रहा है। चिंता की कोई बात नहीं है। इसके बाद परिवार ने एक पेमेंट के लिए चेक लगाया तो वह बाउंस हो गया। यह एक बड़ा खतरा था, लेकिन ठाकुर ने फिर से अपनी बातों से उन्हें बहला दिया। 2022 में जब परिवार को रुपयों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने फिर ठाकुर से संपर्क किया। इस बार भी उसने ‘प्रोसेस में टाइम लग रहा है…कहकर टालमटोल की। जब महीनों तक न कोई मैसेज आया और न ही खातों का बैलेंस पता चला तो जनवरी 2023 में अर्चना दुबई से भारत आईं। एक लंबी लड़ाई: क्रिमिनल केस से आईटी कोर्ट तक
हताश और स्तब्ध अर्चना अपनी मां के साथ साइबर सेल पहुंचीं और एफआईआर दर्ज कराई। जांच में सामने आया कि रिलेशनशिप मैनेजर संजय ठाकुर ने ही सारे रुपए निकाले थे। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में मामला शुरू हो गया। अर्चना बताती हैं कि मार्च 2023 में मैं बयान देने के लिए फिर भारत आई। पुलिस से पता चला कि क्रिमिनल केस में तो ठाकुर जेल चला जाएगा, लेकिन उससे पैसे वापस मिलने की उम्मीद न के बराबर है। उन्होंने सलाह दी कि आईटी कोर्ट में केस करने से शायद कुछ हो सकता है।आखिरी उम्मीद के साथ वह वल्लभ भवन स्थित आईटी डिपार्टमेंट पहुंचीं, जहां उन्हें ‘कोर्ट ऑफ एड्जुडिकेटिंग ऑफिसर’ (आईटी कोर्ट) के बारे में पता चला। उन्होंने तुरंत साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी से संपर्क किया। उन्हें अपना वकील नियुक्त कर आईटी कोर्ट में केस दायर किया। एक्सपर्ट की जांच में हुआ बड़ा खुलासा: यह एक ‘बैंकर गैंग’ था
साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी बताते हैं कि यह मामला बेहद उलझा हुआ था। मैंने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) के साथ बैठकर महीनों तक सारे बैंक खातों और ट्रांजैक्शन की जांच की। जांच में जो सामने आया वह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था, बल्कि एक संगठित गिरोह की करतूत थी, जिसमें कई बैंकों के कर्मचारी शामिल थे। आईटी एक्ट की धारा 43(ए) के तहत जिम्मेदार ठहराए गए 7 बैंक
इस केस में पुलिस केवल आरोपी संजय ठाकुर की जिम्मेदारी तय कर रही थी, लेकिन आईटी कोर्ट ने उन सभी संस्थाओं को जवाबदेह ठहराया, जिनकी लापरवाही से यह धोखाधड़ी संभव हुई। एडवोकेट चतुर्वेदी ने आईटी एक्ट- 2000 की धारा 43 (ए) को अपना मुख्य आधार बनाया। साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी के अनुसार, यह धारा कहती है कि यदि कोई कंपनी या संस्था (जैसे बैंक) किसी सेवा को देने के लिए आपकी संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी (जैसे आधार, पैन, मोबाइल नंबर) को हैंडल करती है और उसे सुरक्षित रखने में लापरवाही बरतती है तो इससे होने वाले किसी भी आर्थिक नुकसान की भरपाई उस संस्था को करनी होगी। केवाईसी का उल्लंघन: फर्जी खाते खोलना आरबीआई और आईटी एक्ट के तहत केवाईसी नियमों का सीधा उल्लंघन है। दोनों बैंकों की जिम्मेदारी: यह धारा सिर्फ पीड़ित के बैंक को ही नहीं, बल्कि उस बैंक को भी जवाबदेह बनाती है, जिसके खाते में धोखाधड़ी का पैसा ट्रांसफर हुआ है, क्योंकि फर्जी खाताधारक की जानकारी को वेरिफाई करना उसकी भी जिम्मेदारी थी। एक मां का इंतजार और एक बेटी का संघर्ष
अर्चना शर्मा कहती हैं, इस फैसले से खुशी तो है, लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इस न्याय का इंतजार करते-करते मेरे पिताजी जुलाई 2025 में चल बसे। आज मेरी 85 साल की मां सिर्फ इसी इंतजार में हैं कि उनकी जीवन भर की पूंजी वापस आएगी, जिसके सहारे वह बैठी थीं। इस लड़ाई का आर्थिक बोझ भी कम नहीं था।
मैं दुबई में थी। मां बहन के पास पुणे में थीं। इस बीच भोपाल के तीन बैंकों में हमारे नाम से खाते खुल गए। इसके बाद हमारे असली खातों से करोड़ों रुपए इन फर्जी खातों में ट्रांसफर हो गए। जब आईटी कोर्ट में सुनवाई हुई तो बैंक अधिकारियों ने कहा कि ये खाते हमने ही खुलवाए हैं, जबकि इसमें बैंक कर्मचारियों की पूरी मिलीभगत थी। जब अर्चना शर्मा यह कहती हैं तो उनके चेहरे पर दर्द साफ दिखता है। वह कहती हैं कि हमें यह साबित करने में 5 साल लग गए कि बैंक कर्मचारियों ने ही मिलीभगत कर हमारे फर्जी खाते खोले थे। अब आईटी कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया तो मान सकते हैं कि यह न्याय की शुरुआत है, लेकिन इस दिन का इंतजार करते-करते मेरे पिताजी गुजर गए और मां की उम्र 85 साल की हो गई । अर्चना शर्मा का परिवार एक ऐसे बैंकिंग फ्रॉड का शिकार हुआ, जिसे बैंक के ही कर्मचारियों ने एक गिरोह की तरह अंजाम दिया। अब एक लंबी और थका देने वाली कानूनी लड़ाई के बाद मध्य प्रदेश की आईटी कोर्ट ने 7 बैंक और एक वित्तीय कंपनी को दोषी ठहराते हुए शर्मा परिवार को 2.5 करोड़ रुपए का हर्जाना देने का आदेश दिया है। यह प्रदेश के किसी भी आईटी कोर्ट की ओर से दिया गया अब तक का सबसे बड़ा हर्जाना है। आखिर कैसे की गई ठगी, परिवार ने न्याय के लिए क्या कीमत चुकाई और बैंकों को इस ऐतिहासिक हर्जाने का आदेश क्यों दिया गया? पढ़िए यह विशेष रिपोर्ट… एक भरोसे की शुरुआत और धोखे का जाल
कहानी की शुरुआत होती है भोपाल की अरेरा कॉलोनी से। अर्चना शर्मा के पिता केदारनाथ शर्मा एक प्रतिष्ठित इंजीनियर थे। साल 1990 में रिटायरमेंट के बाद वे परिवार के साथ भोपाल में बस गए। उन्होंने अपनी सुविधा के लिए एचडीएफसी बैंक की चूना भट्टी ब्रांच में खाता खुलवाया। अर्चना बताती हैं, ‘पिताजी ने सोचा कि रिटायरमेंट के बाद एक ही ब्रांच में खाते रहने से सुविधा होगी, इसलिए मेरे और मां इंदिरा शर्मा का अकाउंट भी वहीं खुलवा दिया।’ 2006 में एक दुर्घटना के बाद केदारनाथ शर्मा की याददाश्त कमजोर हो गई। अर्चना 1997 में शादी के बाद दुबई शिफ्ट हो चुकी थीं। भोपाल में उनके बुजुर्ग माता-पिता रहते थे। रिलेशनशिप मैनेजर ने दिया धोखा
यहीं उनके जीवन में रिलेशनशिप मैनेजर (आरएम) संजय ठाकुर की एंट्री हुई। ठाकुर बैंक की सीनियर सिटिजन सर्विस के तहत घर आकर अपनी सेवाएं देता था। पिताजी की कमजोर याददाश्त के कारण मां ही उससे बात करती थीं और कभी-कभी दुबई से अर्चना भी फोन पर संपर्क में रहती थीं। ठाकुर ने जल्द ही परिवार का भरोसा जीत लिया। एक दिन उसने सलाह दी कि आपके सेविंग अकाउंट में 2 करोड़ से ज्यादा रुपए हैं। आप इन्हें म्यूचुअल फंड में डाल दीजिए। इससे आपको बैंक के सामान्य ब्याज से कहीं ज्यादा फायदा होगा और एक रेगुलर इनकम भी आएगी। परिवार को यह सलाह अच्छी लगी। उन्होंने निवेश का फैसला कर लिया। जब बंद हो गए मैसेज और खाली हो गए खाते
कुछ महीनों बाद अर्चना ने गौर किया कि बैंक से आने वाले मैसेज बंद हो गए हैं। उन्होंने मैनेजर ठाकुर से संपर्क किया तो उसने टाल दिया। बोला-कई बार टेक्निकल कारणों से मैसेज नहीं आते। आपका बैलेंस हमें सिस्टम में दिख रहा है। चिंता की कोई बात नहीं है। इसके बाद परिवार ने एक पेमेंट के लिए चेक लगाया तो वह बाउंस हो गया। यह एक बड़ा खतरा था, लेकिन ठाकुर ने फिर से अपनी बातों से उन्हें बहला दिया। 2022 में जब परिवार को रुपयों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने फिर ठाकुर से संपर्क किया। इस बार भी उसने ‘प्रोसेस में टाइम लग रहा है…कहकर टालमटोल की। जब महीनों तक न कोई मैसेज आया और न ही खातों का बैलेंस पता चला तो जनवरी 2023 में अर्चना दुबई से भारत आईं। एक लंबी लड़ाई: क्रिमिनल केस से आईटी कोर्ट तक
हताश और स्तब्ध अर्चना अपनी मां के साथ साइबर सेल पहुंचीं और एफआईआर दर्ज कराई। जांच में सामने आया कि रिलेशनशिप मैनेजर संजय ठाकुर ने ही सारे रुपए निकाले थे। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और कोर्ट में मामला शुरू हो गया। अर्चना बताती हैं कि मार्च 2023 में मैं बयान देने के लिए फिर भारत आई। पुलिस से पता चला कि क्रिमिनल केस में तो ठाकुर जेल चला जाएगा, लेकिन उससे पैसे वापस मिलने की उम्मीद न के बराबर है। उन्होंने सलाह दी कि आईटी कोर्ट में केस करने से शायद कुछ हो सकता है।आखिरी उम्मीद के साथ वह वल्लभ भवन स्थित आईटी डिपार्टमेंट पहुंचीं, जहां उन्हें ‘कोर्ट ऑफ एड्जुडिकेटिंग ऑफिसर’ (आईटी कोर्ट) के बारे में पता चला। उन्होंने तुरंत साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी से संपर्क किया। उन्हें अपना वकील नियुक्त कर आईटी कोर्ट में केस दायर किया। एक्सपर्ट की जांच में हुआ बड़ा खुलासा: यह एक ‘बैंकर गैंग’ था
साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी बताते हैं कि यह मामला बेहद उलझा हुआ था। मैंने एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) के साथ बैठकर महीनों तक सारे बैंक खातों और ट्रांजैक्शन की जांच की। जांच में जो सामने आया वह किसी एक व्यक्ति का काम नहीं था, बल्कि एक संगठित गिरोह की करतूत थी, जिसमें कई बैंकों के कर्मचारी शामिल थे। आईटी एक्ट की धारा 43(ए) के तहत जिम्मेदार ठहराए गए 7 बैंक
इस केस में पुलिस केवल आरोपी संजय ठाकुर की जिम्मेदारी तय कर रही थी, लेकिन आईटी कोर्ट ने उन सभी संस्थाओं को जवाबदेह ठहराया, जिनकी लापरवाही से यह धोखाधड़ी संभव हुई। एडवोकेट चतुर्वेदी ने आईटी एक्ट- 2000 की धारा 43 (ए) को अपना मुख्य आधार बनाया। साइबर लॉ एक्सपर्ट यशदीप चतुर्वेदी के अनुसार, यह धारा कहती है कि यदि कोई कंपनी या संस्था (जैसे बैंक) किसी सेवा को देने के लिए आपकी संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी (जैसे आधार, पैन, मोबाइल नंबर) को हैंडल करती है और उसे सुरक्षित रखने में लापरवाही बरतती है तो इससे होने वाले किसी भी आर्थिक नुकसान की भरपाई उस संस्था को करनी होगी। केवाईसी का उल्लंघन: फर्जी खाते खोलना आरबीआई और आईटी एक्ट के तहत केवाईसी नियमों का सीधा उल्लंघन है। दोनों बैंकों की जिम्मेदारी: यह धारा सिर्फ पीड़ित के बैंक को ही नहीं, बल्कि उस बैंक को भी जवाबदेह बनाती है, जिसके खाते में धोखाधड़ी का पैसा ट्रांसफर हुआ है, क्योंकि फर्जी खाताधारक की जानकारी को वेरिफाई करना उसकी भी जिम्मेदारी थी। एक मां का इंतजार और एक बेटी का संघर्ष
अर्चना शर्मा कहती हैं, इस फैसले से खुशी तो है, लेकिन इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इस न्याय का इंतजार करते-करते मेरे पिताजी जुलाई 2025 में चल बसे। आज मेरी 85 साल की मां सिर्फ इसी इंतजार में हैं कि उनकी जीवन भर की पूंजी वापस आएगी, जिसके सहारे वह बैठी थीं। इस लड़ाई का आर्थिक बोझ भी कम नहीं था।