पंजाब के लुधियाना के शुभम सिंगला राजस्थान में जज बनेंगे। उन्होंने 19 दिसंबर को राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विसेज का एग्जाम पास किया है। जिसमें उन्हें 43वीं रैंक मिली। यह उनका दूसरा अटेंप्ट था। शुभम की कामयाबी इसलिए अहम है क्योंकि वह लिम्ब-गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (LGMD) जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से वह व्हीलचेयर पर आ गए लेकिन मजबूत इरादे नहीं छोड़े। उन्होंने हरियाणा के हिसार से LLB की पढ़ाई की। अब वह लुधियाना से लॉ में मास्टर डिग्री कर रहे हैं। शुभम ने कहा कि जल्द ही उन्हें राजस्थान में नियुक्ति मिल जाएगी। बीमारी से लड़ते शुभम सिंगला की जज बनने की कहानी… लोग कमेंट करते, परिवार ने साथ दिया
शुभम ने बताया कि सोसाइटी में बहुत तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग अगर उन्हें देखकर कमेंट करते भी थे तो कभी उस चीज की परवाह नहीं की। कहना है कि अगर कोई आपके बारे में गलत सोचता है तो वो उसके मानसिक स्तर को दर्शाता है। बताया कि वो जॉइंट फैमिली में रहता था। उसकी मां, पिता, दादी, भाई, बहनें व अन्य सभी सदस्यों ने उसके हर कदम पर साथ दिया। सभी उसे प्रोत्साहित करते रहे, जिसका नतीजा यह हुआ कि वो आज अपना सपना पूरा कर सका है। मस्कुलर-डिस्ट्रॉफी का इलाज नहीं, खुद को कमजोर न समझें
शुभम सिंगला का कहना है कि उसे पता है कि उसको जो मस्कुलर डिस्ट्रॉफी डिजीज है। यह जेनेटिक है और इसका कोई इलाज नहीं है। उसकी यह प्रॉब्लम कभी उसकी मेहनत के आड़े नहीं आई और न ही इसकी वजह से वो अपने लक्ष्य से विचलित हुआ। उसका कहना है कि जो बच्चे किसी भी तरह से शारीरिक तौर पर डिसएबल हैं वो अपने आप को अलग न समझें। वो दूसरे बच्चों के साथ बराबर का कंपीटिशन लड़ें और खुद को उनके साबित करें। ऐसी कोई बाधा नहीं है, जिसे वो पार नहीं कर सकते हैं। अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसके हिसाब से चलें। 15 साल के सभी इंटरनेशनल क्रिकेट मैचों का पल-पल याद
शुभम के पिता राज सिंगला ने बताया कि इसे बचपन से ही क्रिकेट का बहुत शौक था। उनके पिता भी क्रिकेट मैच देखते थे। जब वो बाहर जाते थे और घर आकर शुभम को पूछते थे कि आज मैच में क्या क्या हुआ। वहीं से उसने क्रिकेट के हर मैच को बारीकी से देखा और एक एक पल को अपने माइंड में सेव कर लिया। आज भी उसे हर मैच के एक एक पल की जानकारी है। उसने बताया कि उन्हें क्रिकेट से बहुत प्यार है। क्रिकेट खेलना उनका शौक रहा है। विराट कोहली उनके फेवरेट प्लेयर हैं और आज भी जब विराट खेलते हैं तो उनका मैच जरूर देखता हूं। उस बीमारी के बारे में जानिए, जो शुभम को हुई… जेनेटिक्स एक्सपर्ट के मुताबिक जन्म के समय बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहता है। लेकिन, 2-3 साल की उम्र में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। हाथ-पैर अपने आप मुड़ने लगते हैं। रीढ़ की हड्डी सिकुड़ने लगती है। कंधा झुकना लगता है। चलना-फिरना बंद हो जाता है। 5 से 10 साल की उम्र में जाते-जाते मरीज बेड और व्हील चेयर पर आ जाता है। हालत ऐसी होती है कि अपने हाथ से मुंह पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकते। DMD का पता तब चलता है जब बच्चे को चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। जबकि, ये दिक्कत मां के गर्भ में होती है। ये बीमारी माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर नहीं होती। गर्भ में गैमिटोजेनेसिस या जाइगोट (जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं तो जाइगोट बनता है) बनने के दौरान काेई जीन टूट गया तो ही ये रोग होता है। ज्यादातर केस में डिस्ट्रॉफी जीन के टूटने से ऐसा होता है। डिस्ट्रॉफी जीन में 79 एग्जॉन होते हैं। जब इसके अंदर एक या एक से अधिक एग्जॉन टूट जाते हैं तो डिस्ट्रॉफी प्रोटीन सही से नहीं बनती। इसी से मांस-पेशियों के विकास में दिक्कतें आ जाती हैं।
पंजाब के लुधियाना के शुभम सिंगला राजस्थान में जज बनेंगे। उन्होंने 19 दिसंबर को राजस्थान ज्यूडिशियल सर्विसेज का एग्जाम पास किया है। जिसमें उन्हें 43वीं रैंक मिली। यह उनका दूसरा अटेंप्ट था। शुभम की कामयाबी इसलिए अहम है क्योंकि वह लिम्ब-गर्डल मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (LGMD) जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से वह व्हीलचेयर पर आ गए लेकिन मजबूत इरादे नहीं छोड़े। उन्होंने हरियाणा के हिसार से LLB की पढ़ाई की। अब वह लुधियाना से लॉ में मास्टर डिग्री कर रहे हैं। शुभम ने कहा कि जल्द ही उन्हें राजस्थान में नियुक्ति मिल जाएगी। बीमारी से लड़ते शुभम सिंगला की जज बनने की कहानी… लोग कमेंट करते, परिवार ने साथ दिया
शुभम ने बताया कि सोसाइटी में बहुत तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग अगर उन्हें देखकर कमेंट करते भी थे तो कभी उस चीज की परवाह नहीं की। कहना है कि अगर कोई आपके बारे में गलत सोचता है तो वो उसके मानसिक स्तर को दर्शाता है। बताया कि वो जॉइंट फैमिली में रहता था। उसकी मां, पिता, दादी, भाई, बहनें व अन्य सभी सदस्यों ने उसके हर कदम पर साथ दिया। सभी उसे प्रोत्साहित करते रहे, जिसका नतीजा यह हुआ कि वो आज अपना सपना पूरा कर सका है। मस्कुलर-डिस्ट्रॉफी का इलाज नहीं, खुद को कमजोर न समझें
शुभम सिंगला का कहना है कि उसे पता है कि उसको जो मस्कुलर डिस्ट्रॉफी डिजीज है। यह जेनेटिक है और इसका कोई इलाज नहीं है। उसकी यह प्रॉब्लम कभी उसकी मेहनत के आड़े नहीं आई और न ही इसकी वजह से वो अपने लक्ष्य से विचलित हुआ। उसका कहना है कि जो बच्चे किसी भी तरह से शारीरिक तौर पर डिसएबल हैं वो अपने आप को अलग न समझें। वो दूसरे बच्चों के साथ बराबर का कंपीटिशन लड़ें और खुद को उनके साबित करें। ऐसी कोई बाधा नहीं है, जिसे वो पार नहीं कर सकते हैं। अपना लक्ष्य निर्धारित करें और उसके हिसाब से चलें। 15 साल के सभी इंटरनेशनल क्रिकेट मैचों का पल-पल याद
शुभम के पिता राज सिंगला ने बताया कि इसे बचपन से ही क्रिकेट का बहुत शौक था। उनके पिता भी क्रिकेट मैच देखते थे। जब वो बाहर जाते थे और घर आकर शुभम को पूछते थे कि आज मैच में क्या क्या हुआ। वहीं से उसने क्रिकेट के हर मैच को बारीकी से देखा और एक एक पल को अपने माइंड में सेव कर लिया। आज भी उसे हर मैच के एक एक पल की जानकारी है। उसने बताया कि उन्हें क्रिकेट से बहुत प्यार है। क्रिकेट खेलना उनका शौक रहा है। विराट कोहली उनके फेवरेट प्लेयर हैं और आज भी जब विराट खेलते हैं तो उनका मैच जरूर देखता हूं। उस बीमारी के बारे में जानिए, जो शुभम को हुई… जेनेटिक्स एक्सपर्ट के मुताबिक जन्म के समय बच्चा बिल्कुल स्वस्थ रहता है। लेकिन, 2-3 साल की उम्र में लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। हाथ-पैर अपने आप मुड़ने लगते हैं। रीढ़ की हड्डी सिकुड़ने लगती है। कंधा झुकना लगता है। चलना-फिरना बंद हो जाता है। 5 से 10 साल की उम्र में जाते-जाते मरीज बेड और व्हील चेयर पर आ जाता है। हालत ऐसी होती है कि अपने हाथ से मुंह पर बैठी मक्खी भी नहीं उड़ा सकते। DMD का पता तब चलता है जब बच्चे को चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। जबकि, ये दिक्कत मां के गर्भ में होती है। ये बीमारी माता-पिता से बच्चे में ट्रांसफर नहीं होती। गर्भ में गैमिटोजेनेसिस या जाइगोट (जब शुक्राणु और अंडाणु मिलते हैं तो जाइगोट बनता है) बनने के दौरान काेई जीन टूट गया तो ही ये रोग होता है। ज्यादातर केस में डिस्ट्रॉफी जीन के टूटने से ऐसा होता है। डिस्ट्रॉफी जीन में 79 एग्जॉन होते हैं। जब इसके अंदर एक या एक से अधिक एग्जॉन टूट जाते हैं तो डिस्ट्रॉफी प्रोटीन सही से नहीं बनती। इसी से मांस-पेशियों के विकास में दिक्कतें आ जाती हैं।