देहरादून के चर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पति राजेश गुलाटी को हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। नैनीताल स्थित हाई कोर्ट की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए उसकी अपील खारिज कर दी है। यह मामला साल 2010 में सामने आया था, जिसने देहरादून ही नहीं, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था। पत्नी की हत्या कर शव के 72 टुकड़े करने और उन्हें डीप फ्रीजर में छिपाने की वारदात को अदालत ने जघन्य अपराध माना था। राजेश गुलाटी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 2017 में हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील पर फैसला सुनाते हुए आज कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले में किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि नहीं है। खंडपीठ ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को ठोस सबूतों के आधार पर साबित किया है, ऐसे में सजा में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता। अब पढ़िए अनुपमा मर्डर केस की पूरी कहानी…
शादी, अमेरिका और देहरादून वापसी राजेश गुलाटी और अनुपमा की शादी 1999 में हुई थी। शादी के कुछ साल बाद दोनों 6 साल के लिए अमेरिका चले गए। राजेश वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करता था, जबकि अनुपमा हाउस वाइफ थीं। इसी दौरान उनके जुड़वां बच्चे हुए, जिनकी उम्र इस समय 19 साल की है। अमेरिका से लौटने के बाद परिवार देहरादून के प्रकाश नगर इलाके में दो कमरे के किराए के मकान में रहने लगा। रिश्तों में तनाव और रोज के झगड़े देहरादून आने के बाद पति-पत्नी के रिश्तों में खटास बढ़ने लगी। छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों के बीच अक्सर झगड़े होते थे। घरेलू तनाव इतना बढ़ चुका था कि बहस रोजमर्रा की बात बन गई थी। बच्चों की मौजूदगी के बावजूद हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। 17 अक्टूबर 2010 की रात भी राजेश और अनुपमा के बीच कहासुनी हुई। मामूली बात से शुरू हुआ झगड़ा देखते-देखते हिंसक हो गया। गुस्से में राजेश ने अनुपमा को थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ लगते ही अनुपमा का सिर दीवार से टकराया और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। डर से जन्मा हत्या का फैसला अनुपमा के बेहोश होने के बाद राजेश घबरा गया। उसके मन में डर बैठ गया कि अगर अनुपमा को होश आ गया तो वह पुलिस में शिकायत कर देगी। इसी डर ने उसे अपराध की ओर धकेल दिया। उसने रुई निकाली और अनुपमा के नाक व मुंह में ठूंस दी, फिर तकिए से उसका गला दबा दिया। कुछ ही देर में अनुपमा की सांसें बंद हो गईं। अनुपमा की मौत के बाद भी राजेश का अपराध यहीं नहीं रुका। अगले दिन वह बाजार गया और एक इलेक्ट्रिक आरी खरीद कर लाया। उसने अपने ही घर में अनुपमा के शव को काटना शुरू किया। शव के कुल 72 टुकड़े किए गए। डीप फ्रीजर में शव के टुकड़े शव के हर टुकड़े को राजेश ने अलग-अलग पॉलीथीन बैग में पैक किया। इन बैग्स को उसने घर में रखे डीप फ्रीजर में छिपा दिया। कुछ समय तक शव के टुकड़े वहीं रखे रहे, ताकि उसे ठिकाने लगाने का मौका मिल सके। पुलिस से बचने के लिए राजेश एक-एक करके पॉलीथीन बैग शहर के बाहरी इलाकों में फेंकता रहा। मसूरी-देहरादून मार्ग और आसपास के इलाकों में उसने शव के कई हिस्से अलग-अलग जगहों पर ठिकाने लगाए। बच्चों और पड़ोसियों से झूठ बोला घर में मौजूद मासूम जुड़वां बच्चों से राजेश ने कहा कि उनकी मां दिल्ली चली गई हैं। पड़ोसियों से वह सामान्य तरीके से बातचीत करता रहा और किसी को भी शक न हो, इसका पूरा ध्यान रखा। बाहर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था। अनुपमा के अचानक गायब होने पर उसके भाई सूरज कुमार प्रधान को शक हुआ। जब वह घटना के करीब 2 महीने बाद 12 दिसंबर 2010 को देहरादून पहुंचा और राजेश से बहन के बारे में पूछा, तो उसे कोई साफ जवाब नहीं मिला। राजेश ने उसे घर के अंदर जाने से भी रोकने की कोशिश की। इसी के बाद सुजान को पक्का शक हो गया और उसने कैंटोनमेंट पुलिस स्टेशन में अनुपमा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस जांच और डीप फ्रीजर का खुलासा गुमशुदगी की शिकायत के बाद पुलिस ने राजेश के घर की तलाशी ली। जब डीप फ्रीजर खोला गया, तो अंदर का दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला था। फ्रीजर में अनुपमा के शरीर के टुकड़े और उसका सिर बरामद हुआ। पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई और राजेश की निशानदेही पर मसूरी-देहरादून मार्ग से कई पॉलीथीन बैग बरामद किए। इन बैग्स में अनुपमा के शरीर के बाकी हिस्से थे। इसके साथ ही पूरा अपराध पुलिस के सामने उजागर हो गया। पूछताछ करने पर राजेश ने भी साफ-साफ पूरी बात पुलिस को बता दी। उसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के समय भी गुलाटी के चेहरे पर डर का भाव नहीं था। वह पूरी तरह से सामान्य था। कोर्ट का फैसला और सजा घटना के करीब 7 साल बाद यानि 2017 में देहरादून की स्थानीय अदालत ने राजेश गुलाटी को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने उस पर 15 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। बाद में उसके स्वास्थ्य खराब होने पर हाई कोर्ट ने सर्जरी के चलते 45 दिन की जमानत दी थी। हालांकि बाद में वह वापस जेल पहुंच गया था। इस बार उसने दोबारा से निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती दी थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया है।
देहरादून के चर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पति राजेश गुलाटी को हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। नैनीताल स्थित हाई कोर्ट की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए उसकी अपील खारिज कर दी है। यह मामला साल 2010 में सामने आया था, जिसने देहरादून ही नहीं, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया था। पत्नी की हत्या कर शव के 72 टुकड़े करने और उन्हें डीप फ्रीजर में छिपाने की वारदात को अदालत ने जघन्य अपराध माना था। राजेश गुलाटी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ 2017 में हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील पर फैसला सुनाते हुए आज कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले में किसी प्रकार की कानूनी त्रुटि नहीं है। खंडपीठ ने यह भी माना कि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को ठोस सबूतों के आधार पर साबित किया है, ऐसे में सजा में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता। अब पढ़िए अनुपमा मर्डर केस की पूरी कहानी…
शादी, अमेरिका और देहरादून वापसी राजेश गुलाटी और अनुपमा की शादी 1999 में हुई थी। शादी के कुछ साल बाद दोनों 6 साल के लिए अमेरिका चले गए। राजेश वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम करता था, जबकि अनुपमा हाउस वाइफ थीं। इसी दौरान उनके जुड़वां बच्चे हुए, जिनकी उम्र इस समय 19 साल की है। अमेरिका से लौटने के बाद परिवार देहरादून के प्रकाश नगर इलाके में दो कमरे के किराए के मकान में रहने लगा। रिश्तों में तनाव और रोज के झगड़े देहरादून आने के बाद पति-पत्नी के रिश्तों में खटास बढ़ने लगी। छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों के बीच अक्सर झगड़े होते थे। घरेलू तनाव इतना बढ़ चुका था कि बहस रोजमर्रा की बात बन गई थी। बच्चों की मौजूदगी के बावजूद हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। 17 अक्टूबर 2010 की रात भी राजेश और अनुपमा के बीच कहासुनी हुई। मामूली बात से शुरू हुआ झगड़ा देखते-देखते हिंसक हो गया। गुस्से में राजेश ने अनुपमा को थप्पड़ मार दिया। थप्पड़ लगते ही अनुपमा का सिर दीवार से टकराया और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ी। डर से जन्मा हत्या का फैसला अनुपमा के बेहोश होने के बाद राजेश घबरा गया। उसके मन में डर बैठ गया कि अगर अनुपमा को होश आ गया तो वह पुलिस में शिकायत कर देगी। इसी डर ने उसे अपराध की ओर धकेल दिया। उसने रुई निकाली और अनुपमा के नाक व मुंह में ठूंस दी, फिर तकिए से उसका गला दबा दिया। कुछ ही देर में अनुपमा की सांसें बंद हो गईं। अनुपमा की मौत के बाद भी राजेश का अपराध यहीं नहीं रुका। अगले दिन वह बाजार गया और एक इलेक्ट्रिक आरी खरीद कर लाया। उसने अपने ही घर में अनुपमा के शव को काटना शुरू किया। शव के कुल 72 टुकड़े किए गए। डीप फ्रीजर में शव के टुकड़े शव के हर टुकड़े को राजेश ने अलग-अलग पॉलीथीन बैग में पैक किया। इन बैग्स को उसने घर में रखे डीप फ्रीजर में छिपा दिया। कुछ समय तक शव के टुकड़े वहीं रखे रहे, ताकि उसे ठिकाने लगाने का मौका मिल सके। पुलिस से बचने के लिए राजेश एक-एक करके पॉलीथीन बैग शहर के बाहरी इलाकों में फेंकता रहा। मसूरी-देहरादून मार्ग और आसपास के इलाकों में उसने शव के कई हिस्से अलग-अलग जगहों पर ठिकाने लगाए। बच्चों और पड़ोसियों से झूठ बोला घर में मौजूद मासूम जुड़वां बच्चों से राजेश ने कहा कि उनकी मां दिल्ली चली गई हैं। पड़ोसियों से वह सामान्य तरीके से बातचीत करता रहा और किसी को भी शक न हो, इसका पूरा ध्यान रखा। बाहर से सब कुछ सामान्य दिख रहा था। अनुपमा के अचानक गायब होने पर उसके भाई सूरज कुमार प्रधान को शक हुआ। जब वह घटना के करीब 2 महीने बाद 12 दिसंबर 2010 को देहरादून पहुंचा और राजेश से बहन के बारे में पूछा, तो उसे कोई साफ जवाब नहीं मिला। राजेश ने उसे घर के अंदर जाने से भी रोकने की कोशिश की। इसी के बाद सुजान को पक्का शक हो गया और उसने कैंटोनमेंट पुलिस स्टेशन में अनुपमा की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस जांच और डीप फ्रीजर का खुलासा गुमशुदगी की शिकायत के बाद पुलिस ने राजेश के घर की तलाशी ली। जब डीप फ्रीजर खोला गया, तो अंदर का दृश्य रोंगटे खड़े कर देने वाला था। फ्रीजर में अनुपमा के शरीर के टुकड़े और उसका सिर बरामद हुआ। पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई और राजेश की निशानदेही पर मसूरी-देहरादून मार्ग से कई पॉलीथीन बैग बरामद किए। इन बैग्स में अनुपमा के शरीर के बाकी हिस्से थे। इसके साथ ही पूरा अपराध पुलिस के सामने उजागर हो गया। पूछताछ करने पर राजेश ने भी साफ-साफ पूरी बात पुलिस को बता दी। उसके बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के समय भी गुलाटी के चेहरे पर डर का भाव नहीं था। वह पूरी तरह से सामान्य था। कोर्ट का फैसला और सजा घटना के करीब 7 साल बाद यानि 2017 में देहरादून की स्थानीय अदालत ने राजेश गुलाटी को दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने उस पर 15 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। बाद में उसके स्वास्थ्य खराब होने पर हाई कोर्ट ने सर्जरी के चलते 45 दिन की जमानत दी थी। हालांकि बाद में वह वापस जेल पहुंच गया था। इस बार उसने दोबारा से निचली अदालत के इस फैसले को चुनौती दी थी लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया है।