उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में अब 9 दिसंबर को सुनवाई होगी। इससे पहले मामले में आज सुनवाई होनी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे टाल दिया। मामला रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण से जुड़ा है और 5 हजार परिवार व 50 हजार लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। बनभूलपुरा में 400 से ज्यादा जवान तैनात आज सुनवाई से पहले सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जिला और पुलिस प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट दिखा। संवेदनशील क्षेत्र बनभूलपुरा में भारी फोर्स को तैनात है। ड्रोन से इलाके में नजर रखी जा रही है। साथ ही ITBP और CRPF को रिजर्व पर रखा गया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बाहरी लोगों और गाड़ियों की चेकिंग कर रही है। प्रशासन ने पूरे जिले में सुरक्षा बढ़ा दी है। जिला प्रशासन ने मामले में 121 उपद्रवी लोगों के खिलाफ 126/135 BNS के तहत कार्रवाई की है। जबकि 21 लोगों को धारा 170 BNS के तहत हिरासत में लिया गया है, जिनमें से अधिकांश बनभूलपुरा हिंसा प्रकरण में भी शामिल थे। SSP मंजूनाथ टीसी ने बताया कि पूरे इलाके में 400 से ज्यादा जवान तैनात है। पहले जानिए क्या है मामला… 2007 से मामला कोर्ट में इस मामले की शुरुआत बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर 2007 में हाईकोर्ट के आदेश से हुई थी। तब प्रशासन ने 0.59 एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त किया था। 2013 में उन्होंने गौला नदी में हो रहे अवैध खनन और गौला पुल के क्षतिग्रस्त होने के मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि के अतिक्रमण का मामला फिर से सामने आ गया। 9 नवंबर 2016 को कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए रेलवे को दस हफ्ते के अंदर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र देकर उक्त जमीन को प्रदेश सरकार की नजूल भूमि (वह सरकारी जमीन है जो ब्रिटिश शासन के दौरान विरोध करने वाले राजाओं या विद्रोहियों से जब्त की गई थी) बताया लेकिन 10 जनवरी 2017 को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। पहली बार 2017 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वह अपने व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें और इनका परीक्षण हाईकोर्ट करेगा। इसके लिए तीन महीने का समय दिया गया। 6 मार्च 2017 को कोर्ट ने रेलवे को अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर याचिकाकर्ता जोशी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट- 50 हजार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता रेलवे और जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। लेकिन कब्जा तब भी नहीं हटा। जोशी ने 21 मार्च 2022 को हाईकोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर कर कहा कि रेलवे अपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने में नाकाम साबित हुआ है। 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने तथ्य कोर्ट में रखने के निर्देश दिए, लेकिन अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। 20 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने फिर से रेलवे को अतिक्रमणकारियों को हफ्ते भर का नोटिस जारी करते हुए अतिक्रमण हटाने संबंधी निर्देश दिए। इस आदेश के खिलाफ स्थानीय निवासियों ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद 5 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50 हजार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता। रेलवे को विकास के साथ-साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे से इस मामले में समाधान निकालने और अपना पक्ष रखने के लिए कहा था। 8 फरवरी 2024 में हिंसा, 6 लोगों की मौत नगरनिगम ने इसी इलाके में 8 फरवरी 2024 को एक अवैध मदरसा ढहा दिया। नमाज पढ़ने के लिए बनाई गई एक इमारत पर भी बुलडोजर चला दिया था। इसके बाद वहां हिंसा फैल गई थी। भीड़ ने पुलिस और निगम के अमले पर हमला कर दिया। बनभूलपुरा थाने को घेरा और पथराव किया था। हिंसा में 6 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। 300 पुलिसकर्मी और निगम कर्मचारी घायल हुए थे। प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया था और दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश थे। एसपी क्राइम बोले- कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान किया जाएगा अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दृष्टिगत रेलवे ने भी सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद बंद कर दिया है। रेलवे स्टेशन और रेल पटरियों की भी सुरक्षा बढ़ाई गई है। मामले को गंभीरता देखते हुए नैनीताल पुलिस ने पैरामिलिट्री फोर्स को भी मंगवाया है। सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस प्रशासन ने बनभूलपुरा क्षेत्र को 4 सेक्टर में बांटा है। एसपी क्राइम डॉक्टर जगदीश चंद्रा ने बताया कि रेलवे अतिक्रमण भूमि मामले में कोर्ट का फैसला आ सकता है। जिसको लेकर पुलिस प्रशासन ने सभी तैयारी कर ली है। आरपीएफ और जिला पुलिस ने क्षेत्र में फ्लैग मार्च कर लोगों को अपील की है कि किसी भी भ्रामक अफवाहों में ध्यान न दें। कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान किया जाएगा। सिटी मजिस्ट्रेट गोपाल सिंह चौहान ने कहा कि प्रशासन पूरे मामले में नजर बनाए हुए है। माहौल खराब करने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटा जाएगा।
उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे भूमि अतिक्रमण मामले में अब 9 दिसंबर को सुनवाई होगी। इससे पहले मामले में आज सुनवाई होनी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे टाल दिया। मामला रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर अतिक्रमण से जुड़ा है और 5 हजार परिवार व 50 हजार लोगों की जिंदगी से जुड़ा है। बनभूलपुरा में 400 से ज्यादा जवान तैनात आज सुनवाई से पहले सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जिला और पुलिस प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट दिखा। संवेदनशील क्षेत्र बनभूलपुरा में भारी फोर्स को तैनात है। ड्रोन से इलाके में नजर रखी जा रही है। साथ ही ITBP और CRPF को रिजर्व पर रखा गया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस बाहरी लोगों और गाड़ियों की चेकिंग कर रही है। प्रशासन ने पूरे जिले में सुरक्षा बढ़ा दी है। जिला प्रशासन ने मामले में 121 उपद्रवी लोगों के खिलाफ 126/135 BNS के तहत कार्रवाई की है। जबकि 21 लोगों को धारा 170 BNS के तहत हिरासत में लिया गया है, जिनमें से अधिकांश बनभूलपुरा हिंसा प्रकरण में भी शामिल थे। SSP मंजूनाथ टीसी ने बताया कि पूरे इलाके में 400 से ज्यादा जवान तैनात है। पहले जानिए क्या है मामला… 2007 से मामला कोर्ट में इस मामले की शुरुआत बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर 2007 में हाईकोर्ट के आदेश से हुई थी। तब प्रशासन ने 0.59 एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त किया था। 2013 में उन्होंने गौला नदी में हो रहे अवैध खनन और गौला पुल के क्षतिग्रस्त होने के मामले में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि के अतिक्रमण का मामला फिर से सामने आ गया। 9 नवंबर 2016 को कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए रेलवे को दस हफ्ते के अंदर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र देकर उक्त जमीन को प्रदेश सरकार की नजूल भूमि (वह सरकारी जमीन है जो ब्रिटिश शासन के दौरान विरोध करने वाले राजाओं या विद्रोहियों से जब्त की गई थी) बताया लेकिन 10 जनवरी 2017 को कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। पहली बार 2017 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार को निर्देश दिए कि वह अपने व्यक्तिगत प्रार्थना पत्र 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें और इनका परीक्षण हाईकोर्ट करेगा। इसके लिए तीन महीने का समय दिया गया। 6 मार्च 2017 को कोर्ट ने रेलवे को अप्राधिकृत अधिभोगियों की बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस पर याचिकाकर्ता जोशी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। सुप्रीम कोर्ट- 50 हजार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता रेलवे और जिला प्रशासन ने हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा। लेकिन कब्जा तब भी नहीं हटा। जोशी ने 21 मार्च 2022 को हाईकोर्ट में एक और जनहित याचिका दायर कर कहा कि रेलवे अपनी भूमि से अतिक्रमण हटाने में नाकाम साबित हुआ है। 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने तथ्य कोर्ट में रखने के निर्देश दिए, लेकिन अतिक्रमणकारी उक्त भूमि पर अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। 20 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने फिर से रेलवे को अतिक्रमणकारियों को हफ्ते भर का नोटिस जारी करते हुए अतिक्रमण हटाने संबंधी निर्देश दिए। इस आदेश के खिलाफ स्थानीय निवासियों ने जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इसके बाद 5 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 50 हजार लोगों को रातों-रात बेघर नहीं किया जा सकता। रेलवे को विकास के साथ-साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार और रेलवे से इस मामले में समाधान निकालने और अपना पक्ष रखने के लिए कहा था। 8 फरवरी 2024 में हिंसा, 6 लोगों की मौत नगरनिगम ने इसी इलाके में 8 फरवरी 2024 को एक अवैध मदरसा ढहा दिया। नमाज पढ़ने के लिए बनाई गई एक इमारत पर भी बुलडोजर चला दिया था। इसके बाद वहां हिंसा फैल गई थी। भीड़ ने पुलिस और निगम के अमले पर हमला कर दिया। बनभूलपुरा थाने को घेरा और पथराव किया था। हिंसा में 6 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। 300 पुलिसकर्मी और निगम कर्मचारी घायल हुए थे। प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया था और दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश थे। एसपी क्राइम बोले- कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान किया जाएगा अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दृष्टिगत रेलवे ने भी सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद बंद कर दिया है। रेलवे स्टेशन और रेल पटरियों की भी सुरक्षा बढ़ाई गई है। मामले को गंभीरता देखते हुए नैनीताल पुलिस ने पैरामिलिट्री फोर्स को भी मंगवाया है। सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस प्रशासन ने बनभूलपुरा क्षेत्र को 4 सेक्टर में बांटा है। एसपी क्राइम डॉक्टर जगदीश चंद्रा ने बताया कि रेलवे अतिक्रमण भूमि मामले में कोर्ट का फैसला आ सकता है। जिसको लेकर पुलिस प्रशासन ने सभी तैयारी कर ली है। आरपीएफ और जिला पुलिस ने क्षेत्र में फ्लैग मार्च कर लोगों को अपील की है कि किसी भी भ्रामक अफवाहों में ध्यान न दें। कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, उसका सम्मान किया जाएगा। सिटी मजिस्ट्रेट गोपाल सिंह चौहान ने कहा कि प्रशासन पूरे मामले में नजर बनाए हुए है। माहौल खराब करने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटा जाएगा।