ये मेरा बेटा विक्रम है। इसकी उम्र दो साल है। जब ये चार महीने का था, तब से हम अपने गांव और जंगल को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। मैं अपने बेटे के लिए लड़ रही हूं, आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़ रही हूं। हम आदिवासियों को इस जंगल ने बहुत कुछ दिया है। सरकार बंदूक की नोंक पर जंगल कटवा रही है। ये कहते हुए सिंगरौली जिले के बासी बेरदह गांव की सोनमति खैरवार की आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों नजर आता है। वह आगे कहती है- हम हार नहीं मानेंगे। जब तक हम लोगों के प्राण रहेंगे, तब तक इस लड़ाई को लड़ेंगे। अपने हक के लिए लड़ेंगे। खदान नहीं खुलने देंगे। दरअसल, सोनमति अकेले ये लड़ाई नहीं लड़ रही, बल्कि सिंगरौली जिले के बासी बेरदह गांव और आसपास के उन 4 गांवों के हर उस परिवार की कहानी है, जिनकी जमीन, जंगल और पहचान घिरौली कोल ब्लॉक की भेंट चढ़ने वाली है। यह कोल ब्लॉक अहमदाबाद की मेसर्स स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित हुआ है। पिछले दो सालों से शांतिपूर्ण विरोध कर रहे इन आदिवासियों की आवाज को अब कथित तौर पर कुचलने की तैयारी हो चुकी है। 18 नवंबर से, हजारों की संख्या में पुलिस बल की तैनाती के बीच, इस घने जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन उन पर झूठे मुकदमे बना रहा है, जबकि कंपनी की तरफ से दी जा रही प्रताड़ना की शिकायतों को अनसुना किया जा रहा है। इस पूरे मामले की तह तक जाने के लिए दैनिक भास्कर की टीम सिंगरौली पहुंची। हमने गांव के लोगों से बात की। प्रशासन के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की। उस कटाई क्षेत्र तक पहुंचे, जहां मीडिया को भी एंट्री नहीं है। पुलिस का पहरा और जंगल का रास्ता
सिंगरौली जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर, सरई मार्ग पर घिरौली से ठीक पहले सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग थी। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था, जो केवल चुनिंदा वाहनों और स्थानीय लोगों को ही अंदर जाने दे रहा था। हमने जब खुद को मीडियाकर्मी बताकर अंदर जाने की अनुमति मांगी, तो साफ इनकार कर दिया गया। एक पुलिसकर्मी ने बताया, यहां मीडिया और बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है। सिर्फ गांव के लोग ही अंदर जा सकते हैं। हमने गांव वालों से मिलने और कटाई क्षेत्र देखने की बात कही, लेकिन पुलिसवाले ने जाने नहीं दिया। जिले के एसपी और कलेक्टर से भी संपर्क करने की कोशिशें नाकाम रहीं। जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए रास्ते बंद कर दिए गए, तो हमने जंगल का रास्ता अपनाने का फैसला किया। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर मुख्य सड़क पर चलने के बाद हमने जंगल की ओर एक कच्चा रास्ता पकड़ा। दोपहर के करीब 3 बज रहे थे। कुछ दूर बाइक से चलने के बाद रास्ता इतना दुर्गम हो गया कि हमें पैदल ही आगे बढ़ना पड़ा। लगभग 15 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा के बाद, रात के अंधेरे में हम बासी बेरदह गांव पहुंचे। गांव में रात भर अजीब सी खामोशी और डर का माहौल था। रात के अंधेरे में विनाश का मंजर
कुछ घंटे आराम करने के बाद, हम रात 3 बजे जंगल के उस हिस्से की ओर बढ़े, जहां कटाई चल रही थी। 5 किलोमीटर तक एक छोटी पहाड़ी को पार करने के बाद हम घने जंगल के बीच उस जगह पहुंचे, जहां हजारों की संख्या में हरे-भरे, विशाल पेड़ कटे हुए जमीन पर पड़े थे। सुबह की पहली किरण जब इन कटे हुए पेड़ों पर पड़ी, तो ऐसा लगा कि यहां पिछले 10-12 दिन से अंधाधुंध कटाई चल रही है। जो पेड़ अभी खड़े थे, उन पर कटाई के लिए नंबर लिखे हुए थे, एक तरह से वे अपनी मौत का इंतजार कर रहे हो। यह घना जंगल साल, सरई, साजा, महुआ और जामुन जैसे अनगिनत बेशकीमती पेड़ों का घर था। अब यहां बड़ी-बड़ी मशीनों के पहियों के निशान और कांक्रीट की कच्ची सड़कें बन चुकी थीं। चारों तरफ प्लास्टिक की प्लेटें और पन्नियां बिखरी पड़ी थीं, जो कटाई करने वालों की मौजूदगी का सबूत दे रही थीं। हमने लगभग 4 घंटे में 8 किलोमीटर का इलाका छाना, और यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि यह विनाश अभी 10% से भी कम है। ग्रामीण बोले-ये विकास हमारे नहीं, उद्योगों के लिए
जंगल से उतरकर हम बासी बेरदह गांव पहुंचे। गांव के समारु सिंह से पूछा कि ये लड़ाई कैसे शुरू हुई? तो उसने बताया कि 2 साल पहले गांव में एक बड़ा सा घर बन रहा था। पूछने पर पता चला कि कोई कंपनी खुल रही है। बाद में काम करने वालों ने बताया कि यह जगह किसी कंपनी ने ले ली है और यहां खदान खुलेगी। यह सुनते ही हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। हमने मीटिंग की और तय किया कि हम अपनी पुरखों की जमीन और जंगल किसी को नहीं देंगे। यह छिन गया तो हम जी नहीं पाएंगे। इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए गांव वालों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया। समारु सिंह हमें एक रजिस्टर दिखाते हैं, जिसमें गांव के लोगों द्वारा दिए गए 10-10 रुपए के चंदे और खर्च का पूरा हिसाब लिखा है। वह कहते हैं, ‘शुरू में सब साथ थे, लेकिन कंपनी और पुलिस के डर से कई लोग अब चुप हो गए हैं।’ गांव के राजपाल सिंह कहते हैं, “कुछ साल पहले जब हमारे गांव में पक्की सड़क और बिजली आई, तो हम बहुत खुश हुए थे। लगा था कि सरकार हमारे लिए विकास कर रही है।’ 18 लोगों पर शांति भंग करने के आरोप में मामला दर्ज
ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन का रवैया पूरी तरह से ग्रामीणों के खिलाफ और कंपनी के पक्ष में नजर आता है। गांव के 18 लोगों पर शांति भंग करने की आशंका में BNS की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर 25,000 रुपए का बॉन्ड भरवाया गया है। अखिलेश शाह, जिन पर प्रशासन ने सबसे ज़्यादा शिकंजा कसा है, कहते हैं कि पुलिस मुझे शुरू से ही टारगेट कर रही है। मुझ पर तीन FIR और दो प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की गई हैं। थाने ने मेरे जिलाबदर का प्रस्ताव भी भेजा है। मुझे तीन दिन के लिए जेल भेजा गया, जहां एक कैदी ने मुझे धमकाया कि बाहर जाकर कंपनी का विरोध मत करना। यह सब पुलिस के कहने पर हो रहा था। हमने कंपनी के खिलाफ कई शिकायतें कीं, लेकिन एक पर भी FIR दर्ज नहीं हुई। अखिलेश ने बताया कि पुलिस 29 नवंबर को अचानक मेरे घर आई मुझे उठा कर ले गई। वहां उन्होंने मुझसे मारपीट की। और मुझसे किसी कागज में पर साइन ले किया गया। मुझे छोड़ते समय उन्होंने मुझे एक नोटिस हाथ में दे दिया। ग्रामीणों का आरोप- कलेक्टर ने धोखे से साइन लिए
इस आरोप पर जब हमने सिंगरौली एसपी मनीष खत्री से जवाब मांगा, तो उन्होंने मामले को देखकर जवाब देने की बात कही, लेकिन फिर कोई जवाब नहीं आया। गांव के रूपनारायण सिंह बताते हैं कि उन्हें धोखे में रखकर कागज पर साइन लिए गए हैं। वे कहते हैं कि 17 नवंबर को आम आदमी पार्टी से जुड़े रतिभान सिंह, जो हमारे आंदोलन से जुड़ गए थे, ने हमें कलेक्टर ऑफिस बुलाया। हमें लगा कि कलेक्टर साहब हमारी समस्या का समाधान करेंगे। लेकिन वहां कलेक्टर और रतिभान ने हम पर दबाव बनाया कि एक कागज पर साइन कर दो, वर्ना झूठे मुकदमों में फंस जाओगे। हमने डरकर साइन कर दिए और अगले ही दिन, 18 नवंबर से, भारी फोर्स लगाकर जंगल की कटाई शुरू हो गई। कोल ब्लॉक के लिए कटेंगे करीब 6 लाख पेड़
सिंगरौली की प्रभारी डीएफओ पूजा अहिरवार के अनुसार, घिरौली कोल माइंस के लिए पहले चरण में 345 हेक्टेयर वन क्षेत्र लिया गया है, जिसमें से 72 हेक्टेयर पर काम चल रहा है और 33,000 पेड़ काटे जाएंगे। परियोजना के दस्तावेज बताते हैं कि कुल 1397.54 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होना है, जिसमें 1335.35 हेक्टेयर घना वन क्षेत्र है। इस जंगल में साल, सागौन, महुआ, आंवला, बेर जैसे विभिन्न प्रजातियों के कुल 5 लाख 70 हजार 666 पेड़ मौजूद हैं। यह आंकड़ा बताता है कि आने वाले समय में ये सभी 5 लाख पेड़ काटे जाने की तैयारी है। विरोध करने पर 47 कांग्रेसी नेताओं पर कार्रवाई
घिरौली कोल माइंस के भीतर करीब 7 गांव आ रहे हैं। बासी बेरदह गांव के लोग सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं। गांव के रंगदेव सिंह बताते हैं कि हम लोगों का संघर्ष देखकर कांग्रेस के नेता आए थे। इसमें पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल, विधायक विक्रांत भूरिया और आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम भी थे। उन्होंने राहुल गांधी तक बात पहुंचाने का भरोसा दिया। प्रशासन ने कांग्रेस के 47 लोगों के खिलाफ धारा 151 की कार्रवाई की। हम लोग 50 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत पर है। ऐसा माहौल बान दिया है जैसे हम लोगों ने आतंक फैला दिया है। आदिवासी अपनी बात कहने के लिए भी आजाद नहीं है। हमें बंदूक और बैरिकेडिंग से जैसे कैद कर लिया है। पेड़ कटेंगे सिंगरौली में लगेंगे आगर-मालवा, सागर और शिवपुरी में
खास बात ये है कि कोल ब्लॉक लेने वाली कंपनी मेसर्स स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्रा.लि. सिंगरौली के 6 लाख पेड़ काटेगी। इस नुकसान की भरपाई के एवज में सरकार ने कंपनी को आगर मालवा, सागर, रायसेन और शिवपुरी के गांवों में पेड़ लगाने के लिए कहा है। इन जिलों के कुल 1397.55 हेक्टेयर रकबे पर पेड़ लगाने का करार हुआ है। इसमें गैर वनभूमि 210.00 हेक्टेयर है। जिन जिलों के गांवों में पेड़ लगाए जाने हैं वहां वन विभाग के अफसरों ने मौका मुआयना कर ओके रिपोर्ट दी है। अफसरों ने साधी चुप्पी, किसका दबाव?
ग्रामीणों के आरोप और पुलिस के साए में पेड़ों की कटाई…इन दो सवालों को लेकर जब भास्कर ने अफसरों से बात की तो किसी ने भी इस मामले में बात नहीं की। सिंगरौली कलेक्टर गौरव बेनल ने साफ कहा कि वे इस बारे में कुछ नहीं बता सकते। उन्होंने ये भी कहा कि इसे उनका आधिकारिक बयान माना जाए। वहीं सिंगरौली एसपी मनीष खत्री से पूछा कि घिरौली ब्लॉक के आसपास कहां-कहां और कितने संख्या में पुलिस बल तैनात किया है, तो उन्होंने कहा कि सुरक्षा कारण से वह इसकी जानकारी नहीं दे सकते। इसके अलावा पुलिस पर गांव वालों के आरोप और कंपनी के पक्ष में काम करने के आरोपों पर उन्होंने कहा- मैं कुछ नहीं कहूंगा। खबर में पोल पर अपनी राय दे सकते हैं।
ये मेरा बेटा विक्रम है। इसकी उम्र दो साल है। जब ये चार महीने का था, तब से हम अपने गांव और जंगल को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। मैं अपने बेटे के लिए लड़ रही हूं, आने वाली पीढ़ियों के लिए लड़ रही हूं। हम आदिवासियों को इस जंगल ने बहुत कुछ दिया है। सरकार बंदूक की नोंक पर जंगल कटवा रही है। ये कहते हुए सिंगरौली जिले के बासी बेरदह गांव की सोनमति खैरवार की आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों नजर आता है। वह आगे कहती है- हम हार नहीं मानेंगे। जब तक हम लोगों के प्राण रहेंगे, तब तक इस लड़ाई को लड़ेंगे। अपने हक के लिए लड़ेंगे। खदान नहीं खुलने देंगे। दरअसल, सोनमति अकेले ये लड़ाई नहीं लड़ रही, बल्कि सिंगरौली जिले के बासी बेरदह गांव और आसपास के उन 4 गांवों के हर उस परिवार की कहानी है, जिनकी जमीन, जंगल और पहचान घिरौली कोल ब्लॉक की भेंट चढ़ने वाली है। यह कोल ब्लॉक अहमदाबाद की मेसर्स स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित हुआ है। पिछले दो सालों से शांतिपूर्ण विरोध कर रहे इन आदिवासियों की आवाज को अब कथित तौर पर कुचलने की तैयारी हो चुकी है। 18 नवंबर से, हजारों की संख्या में पुलिस बल की तैनाती के बीच, इस घने जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी गई है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन उन पर झूठे मुकदमे बना रहा है, जबकि कंपनी की तरफ से दी जा रही प्रताड़ना की शिकायतों को अनसुना किया जा रहा है। इस पूरे मामले की तह तक जाने के लिए दैनिक भास्कर की टीम सिंगरौली पहुंची। हमने गांव के लोगों से बात की। प्रशासन के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की। उस कटाई क्षेत्र तक पहुंचे, जहां मीडिया को भी एंट्री नहीं है। पुलिस का पहरा और जंगल का रास्ता
सिंगरौली जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर, सरई मार्ग पर घिरौली से ठीक पहले सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग थी। बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था, जो केवल चुनिंदा वाहनों और स्थानीय लोगों को ही अंदर जाने दे रहा था। हमने जब खुद को मीडियाकर्मी बताकर अंदर जाने की अनुमति मांगी, तो साफ इनकार कर दिया गया। एक पुलिसकर्मी ने बताया, यहां मीडिया और बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है। सिर्फ गांव के लोग ही अंदर जा सकते हैं। हमने गांव वालों से मिलने और कटाई क्षेत्र देखने की बात कही, लेकिन पुलिसवाले ने जाने नहीं दिया। जिले के एसपी और कलेक्टर से भी संपर्क करने की कोशिशें नाकाम रहीं। जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के लिए रास्ते बंद कर दिए गए, तो हमने जंगल का रास्ता अपनाने का फैसला किया। जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर मुख्य सड़क पर चलने के बाद हमने जंगल की ओर एक कच्चा रास्ता पकड़ा। दोपहर के करीब 3 बज रहे थे। कुछ दूर बाइक से चलने के बाद रास्ता इतना दुर्गम हो गया कि हमें पैदल ही आगे बढ़ना पड़ा। लगभग 15 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा के बाद, रात के अंधेरे में हम बासी बेरदह गांव पहुंचे। गांव में रात भर अजीब सी खामोशी और डर का माहौल था। रात के अंधेरे में विनाश का मंजर
कुछ घंटे आराम करने के बाद, हम रात 3 बजे जंगल के उस हिस्से की ओर बढ़े, जहां कटाई चल रही थी। 5 किलोमीटर तक एक छोटी पहाड़ी को पार करने के बाद हम घने जंगल के बीच उस जगह पहुंचे, जहां हजारों की संख्या में हरे-भरे, विशाल पेड़ कटे हुए जमीन पर पड़े थे। सुबह की पहली किरण जब इन कटे हुए पेड़ों पर पड़ी, तो ऐसा लगा कि यहां पिछले 10-12 दिन से अंधाधुंध कटाई चल रही है। जो पेड़ अभी खड़े थे, उन पर कटाई के लिए नंबर लिखे हुए थे, एक तरह से वे अपनी मौत का इंतजार कर रहे हो। यह घना जंगल साल, सरई, साजा, महुआ और जामुन जैसे अनगिनत बेशकीमती पेड़ों का घर था। अब यहां बड़ी-बड़ी मशीनों के पहियों के निशान और कांक्रीट की कच्ची सड़कें बन चुकी थीं। चारों तरफ प्लास्टिक की प्लेटें और पन्नियां बिखरी पड़ी थीं, जो कटाई करने वालों की मौजूदगी का सबूत दे रही थीं। हमने लगभग 4 घंटे में 8 किलोमीटर का इलाका छाना, और यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था कि यह विनाश अभी 10% से भी कम है। ग्रामीण बोले-ये विकास हमारे नहीं, उद्योगों के लिए
जंगल से उतरकर हम बासी बेरदह गांव पहुंचे। गांव के समारु सिंह से पूछा कि ये लड़ाई कैसे शुरू हुई? तो उसने बताया कि 2 साल पहले गांव में एक बड़ा सा घर बन रहा था। पूछने पर पता चला कि कोई कंपनी खुल रही है। बाद में काम करने वालों ने बताया कि यह जगह किसी कंपनी ने ले ली है और यहां खदान खुलेगी। यह सुनते ही हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई। हमने मीटिंग की और तय किया कि हम अपनी पुरखों की जमीन और जंगल किसी को नहीं देंगे। यह छिन गया तो हम जी नहीं पाएंगे। इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए गांव वालों ने आपस में चंदा इकट्ठा किया। समारु सिंह हमें एक रजिस्टर दिखाते हैं, जिसमें गांव के लोगों द्वारा दिए गए 10-10 रुपए के चंदे और खर्च का पूरा हिसाब लिखा है। वह कहते हैं, ‘शुरू में सब साथ थे, लेकिन कंपनी और पुलिस के डर से कई लोग अब चुप हो गए हैं।’ गांव के राजपाल सिंह कहते हैं, “कुछ साल पहले जब हमारे गांव में पक्की सड़क और बिजली आई, तो हम बहुत खुश हुए थे। लगा था कि सरकार हमारे लिए विकास कर रही है।’ 18 लोगों पर शांति भंग करने के आरोप में मामला दर्ज
ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन का रवैया पूरी तरह से ग्रामीणों के खिलाफ और कंपनी के पक्ष में नजर आता है। गांव के 18 लोगों पर शांति भंग करने की आशंका में BNS की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर 25,000 रुपए का बॉन्ड भरवाया गया है। अखिलेश शाह, जिन पर प्रशासन ने सबसे ज़्यादा शिकंजा कसा है, कहते हैं कि पुलिस मुझे शुरू से ही टारगेट कर रही है। मुझ पर तीन FIR और दो प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की गई हैं। थाने ने मेरे जिलाबदर का प्रस्ताव भी भेजा है। मुझे तीन दिन के लिए जेल भेजा गया, जहां एक कैदी ने मुझे धमकाया कि बाहर जाकर कंपनी का विरोध मत करना। यह सब पुलिस के कहने पर हो रहा था। हमने कंपनी के खिलाफ कई शिकायतें कीं, लेकिन एक पर भी FIR दर्ज नहीं हुई। अखिलेश ने बताया कि पुलिस 29 नवंबर को अचानक मेरे घर आई मुझे उठा कर ले गई। वहां उन्होंने मुझसे मारपीट की। और मुझसे किसी कागज में पर साइन ले किया गया। मुझे छोड़ते समय उन्होंने मुझे एक नोटिस हाथ में दे दिया। ग्रामीणों का आरोप- कलेक्टर ने धोखे से साइन लिए
इस आरोप पर जब हमने सिंगरौली एसपी मनीष खत्री से जवाब मांगा, तो उन्होंने मामले को देखकर जवाब देने की बात कही, लेकिन फिर कोई जवाब नहीं आया। गांव के रूपनारायण सिंह बताते हैं कि उन्हें धोखे में रखकर कागज पर साइन लिए गए हैं। वे कहते हैं कि 17 नवंबर को आम आदमी पार्टी से जुड़े रतिभान सिंह, जो हमारे आंदोलन से जुड़ गए थे, ने हमें कलेक्टर ऑफिस बुलाया। हमें लगा कि कलेक्टर साहब हमारी समस्या का समाधान करेंगे। लेकिन वहां कलेक्टर और रतिभान ने हम पर दबाव बनाया कि एक कागज पर साइन कर दो, वर्ना झूठे मुकदमों में फंस जाओगे। हमने डरकर साइन कर दिए और अगले ही दिन, 18 नवंबर से, भारी फोर्स लगाकर जंगल की कटाई शुरू हो गई। कोल ब्लॉक के लिए कटेंगे करीब 6 लाख पेड़
सिंगरौली की प्रभारी डीएफओ पूजा अहिरवार के अनुसार, घिरौली कोल माइंस के लिए पहले चरण में 345 हेक्टेयर वन क्षेत्र लिया गया है, जिसमें से 72 हेक्टेयर पर काम चल रहा है और 33,000 पेड़ काटे जाएंगे। परियोजना के दस्तावेज बताते हैं कि कुल 1397.54 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण होना है, जिसमें 1335.35 हेक्टेयर घना वन क्षेत्र है। इस जंगल में साल, सागौन, महुआ, आंवला, बेर जैसे विभिन्न प्रजातियों के कुल 5 लाख 70 हजार 666 पेड़ मौजूद हैं। यह आंकड़ा बताता है कि आने वाले समय में ये सभी 5 लाख पेड़ काटे जाने की तैयारी है। विरोध करने पर 47 कांग्रेसी नेताओं पर कार्रवाई
घिरौली कोल माइंस के भीतर करीब 7 गांव आ रहे हैं। बासी बेरदह गांव के लोग सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं। गांव के रंगदेव सिंह बताते हैं कि हम लोगों का संघर्ष देखकर कांग्रेस के नेता आए थे। इसमें पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल, विधायक विक्रांत भूरिया और आदिवासी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रामू टेकाम भी थे। उन्होंने राहुल गांधी तक बात पहुंचाने का भरोसा दिया। प्रशासन ने कांग्रेस के 47 लोगों के खिलाफ धारा 151 की कार्रवाई की। हम लोग 50 हजार रुपए के मुचलके पर जमानत पर है। ऐसा माहौल बान दिया है जैसे हम लोगों ने आतंक फैला दिया है। आदिवासी अपनी बात कहने के लिए भी आजाद नहीं है। हमें बंदूक और बैरिकेडिंग से जैसे कैद कर लिया है। पेड़ कटेंगे सिंगरौली में लगेंगे आगर-मालवा, सागर और शिवपुरी में
खास बात ये है कि कोल ब्लॉक लेने वाली कंपनी मेसर्स स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्रा.लि. सिंगरौली के 6 लाख पेड़ काटेगी। इस नुकसान की भरपाई के एवज में सरकार ने कंपनी को आगर मालवा, सागर, रायसेन और शिवपुरी के गांवों में पेड़ लगाने के लिए कहा है। इन जिलों के कुल 1397.55 हेक्टेयर रकबे पर पेड़ लगाने का करार हुआ है। इसमें गैर वनभूमि 210.00 हेक्टेयर है। जिन जिलों के गांवों में पेड़ लगाए जाने हैं वहां वन विभाग के अफसरों ने मौका मुआयना कर ओके रिपोर्ट दी है। अफसरों ने साधी चुप्पी, किसका दबाव?
ग्रामीणों के आरोप और पुलिस के साए में पेड़ों की कटाई…इन दो सवालों को लेकर जब भास्कर ने अफसरों से बात की तो किसी ने भी इस मामले में बात नहीं की। सिंगरौली कलेक्टर गौरव बेनल ने साफ कहा कि वे इस बारे में कुछ नहीं बता सकते। उन्होंने ये भी कहा कि इसे उनका आधिकारिक बयान माना जाए। वहीं सिंगरौली एसपी मनीष खत्री से पूछा कि घिरौली ब्लॉक के आसपास कहां-कहां और कितने संख्या में पुलिस बल तैनात किया है, तो उन्होंने कहा कि सुरक्षा कारण से वह इसकी जानकारी नहीं दे सकते। इसके अलावा पुलिस पर गांव वालों के आरोप और कंपनी के पक्ष में काम करने के आरोपों पर उन्होंने कहा- मैं कुछ नहीं कहूंगा। खबर में पोल पर अपनी राय दे सकते हैं।