महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 899 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से 537 किसानों ने सिर्फ छह महीनों में (1 मई से 31 अक्टूबर) अपनी जान दी, जब बाढ़ और भारी बारिश से फसलों को भारी नुकसान हुआ। इसपर कृषि राज्य मंत्री आशीष जायसवाल ने कहा कि सरकार इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान दे रही है। किसानों के लिए चलने वाली योजनाओं और प्रोत्साहनों पर खर्च बढ़ाकर 1 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। किसान नेता बोले- मुआवजा कम मिला किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि बेमौसम बारिश, बाढ़ और मानसून ने फल बागानों और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। किसानों को फसल के नुकसान के लिए बहुत कम मुआवजा मिला है। उदाहरण के लिए, एक किसान को ₹25,000 प्रति टन के हिसाब से 100 टन केले की फसल गंवाने पर केवल ₹25,000 का मुआवजा मिला। किसान आत्महत्या के मामले 2021 में महाराष्ट्र में देश में सबसे ज्यादा साल 2021 में किसान आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र सबसे आगे था। NCRB की रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1424 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या कर ली। कर्नाटक में 999 और आंध्र प्रदेश 584 किसानों ने आत्महत्या की थी। NCRB की रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूरे देश में साल 2021 में 5563 किसानों की मौत के मामले दर्ज हुए थे। अक्टूबर में कर्ज माफी पर किसानों का प्रदर्शन किया था अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में महाराष्ट्र के नागपुर में कर्ज माफी की मांग को लेकर किसानों ने प्रदर्शन किया था। किसानों की मांग थी कि सरकार ने चुनावों के दौरान कर्ज माफी और फसल बोनस का वादा किया था, लेकिन अब तक किसी को राहत नहीं मिली। अब जानिए क्यों हुआ आंदोलन किसानों का आरोप है कि राज्य सरकार ने चुनाव से पहले कर्ज माफी और बोनस देने का वादा किया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। बच्चू कडू ने कहा कि ‘सरकार ने हर फसल पर 20% बोनस और सोयाबीन पर ₹6000 देने की बात कही थी, पर अब तक किसानों को कुछ नहीं मिला। मुख्यमंत्री के पास किसानों से मिलने का समय तक नहीं है।’ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पिछले एक साल में सूखा और ओलावृष्टि से फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। इसके बावजूद, सरकार ने मुआवजे की प्रक्रिया में ढिलाई दिखाई है। कडू ने कहा, ‘कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। जब तक पूरा कर्ज माफ नहीं किया जाता, हम यहां से नहीं हटेंगे।’ स्वाभिमानी पक्ष के नेता रवीकांत तुपकर ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि “सरकार के पास हाईवे और मेट्रो प्रोजेक्ट्स के लिए पैसा है, लेकिन किसानों के लिए नहीं।
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 899 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से 537 किसानों ने सिर्फ छह महीनों में (1 मई से 31 अक्टूबर) अपनी जान दी, जब बाढ़ और भारी बारिश से फसलों को भारी नुकसान हुआ। इसपर कृषि राज्य मंत्री आशीष जायसवाल ने कहा कि सरकार इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान दे रही है। किसानों के लिए चलने वाली योजनाओं और प्रोत्साहनों पर खर्च बढ़ाकर 1 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। किसान नेता बोले- मुआवजा कम मिला किसान नेता राजू शेट्टी ने कहा कि बेमौसम बारिश, बाढ़ और मानसून ने फल बागानों और फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। किसानों को फसल के नुकसान के लिए बहुत कम मुआवजा मिला है। उदाहरण के लिए, एक किसान को ₹25,000 प्रति टन के हिसाब से 100 टन केले की फसल गंवाने पर केवल ₹25,000 का मुआवजा मिला। किसान आत्महत्या के मामले 2021 में महाराष्ट्र में देश में सबसे ज्यादा साल 2021 में किसान आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र सबसे आगे था। NCRB की रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1424 किसानों और खेती से जुड़े मजदूरों ने आत्महत्या कर ली। कर्नाटक में 999 और आंध्र प्रदेश 584 किसानों ने आत्महत्या की थी। NCRB की रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूरे देश में साल 2021 में 5563 किसानों की मौत के मामले दर्ज हुए थे। अक्टूबर में कर्ज माफी पर किसानों का प्रदर्शन किया था अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में महाराष्ट्र के नागपुर में कर्ज माफी की मांग को लेकर किसानों ने प्रदर्शन किया था। किसानों की मांग थी कि सरकार ने चुनावों के दौरान कर्ज माफी और फसल बोनस का वादा किया था, लेकिन अब तक किसी को राहत नहीं मिली। अब जानिए क्यों हुआ आंदोलन किसानों का आरोप है कि राज्य सरकार ने चुनाव से पहले कर्ज माफी और बोनस देने का वादा किया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। बच्चू कडू ने कहा कि ‘सरकार ने हर फसल पर 20% बोनस और सोयाबीन पर ₹6000 देने की बात कही थी, पर अब तक किसानों को कुछ नहीं मिला। मुख्यमंत्री के पास किसानों से मिलने का समय तक नहीं है।’ प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पिछले एक साल में सूखा और ओलावृष्टि से फसलें बर्बाद हो चुकी हैं। इसके बावजूद, सरकार ने मुआवजे की प्रक्रिया में ढिलाई दिखाई है। कडू ने कहा, ‘कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। जब तक पूरा कर्ज माफ नहीं किया जाता, हम यहां से नहीं हटेंगे।’ स्वाभिमानी पक्ष के नेता रवीकांत तुपकर ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि “सरकार के पास हाईवे और मेट्रो प्रोजेक्ट्स के लिए पैसा है, लेकिन किसानों के लिए नहीं।