उत्तराखंड में सफर करना अब महंगा होने वाला है। राज्य सरकार बाहर से आने वाली गाड़ियों से ग्रीन टैक्स वसूल करने की तैयारी में है। अब तक यह शुल्क सिर्फ कॉमर्शियल गाड़ियों पर लागू था, लेकिन जल्द ही सरकार निजी कार, जीप और अन्य चार पहिया गाड़ी को इसके दायरे में लाने वाली है। इससे सरकार को सालाना 150 करोड़ रुपए आय होने की उम्मीद है। इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और आधुनिक बनाने के लिए परिवहन विभाग ने एक निजी कंपनी से करार किया है, जो राज्य की सीमाओं पर लगे 15 ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) कैमरों के जरिए बाहर से आने वाले गाड़ियों की पहचान करेगीं। अब ग्रीन टैक्स के बारे में जानिए… पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना- ग्रीन टैक्स एक ऐसा कर है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर लगाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है। भारत में यह कर पुराने वाहनों पर लगाया जाता है। उत्तराखंड में यह कर पर्यावरण की रक्षा और सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगाया जाता है। ग्रीन टैक्स की मुख्य बातें- यह कर 15 साल से पुराने वाहनों पर लागू होता है, क्योंकि ये अधिक प्रदूषण करते हैं। कर की दरें वाहन के प्रकार, ईंधन (पेट्रोल/डीजल) और शहर के प्रदूषण स्तर के आधार पर भिन्न हो सकती हैं। इलेक्ट्रिक वाहन और सीएनजी/इथेनॉल से चलने वाले वाहन आमतौर पर इस टैक्स से मुक्त होते हैं। राजस्व का उपयोग- ग्रीन टैक्स से एकत्र किए गए धन का उपयोग उत्सर्जन निगरानी केंद्र स्थापित करने जैसे पर्यावरण-संबंधी पहलों में किया जाता है। इसे प्रदूषण कर भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार को बढ़ावा देना और प्रदूषण को कम करना है। इन जगहों पर लगे हैं कैमरे
गाड़ियों की निगरानी के लिए कैमरे गढ़वाल और कुमाऊं की सीमाओं पर स्थापित किए गए हैं। देहरादून जिले की बात करें तो कुल्हाल, तिमली रेंज, आशारोड़ी, नारसन, गोवर्धनपुर, चिड़ियापुर सीमाओं पर ये कैमरे लगाएं गए हैं। ऐसे ही कुमाऊं के प्रवेश सीमाएं काशीपुर, जसपुर, रुद्रपुर, पुल भट्टा (बरेली रोड) पर कैमरे लगे हैं। अगर कोई वाहन एक दिन के भीतर दोबारा राज्य में प्रवेश करता है, तो उसे दोबारा शुल्क नहीं देना होगा। ये सेस 24 घंटों के लिए मान्य होगा। इसके लिए संबंधित कंपनी को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) से पेमेंट गेटवे की अनुमति भी मिल चुकी है।
कौन-कौन से वाहन को मिलेगी छूट
सेस वसूली से दो पहिया, इलेक्ट्रिक और सीएनजी वाहन को पूरी तरह छूट दी जाएगी। इसके अलावा सरकारी वाहन, एम्बुलेंस और अग्निशमन वाहन को भी इस शुल्क से अलग रखा गया है। आरटीओ देहरादून संदीप सैनी ने बताया- नवंबर में जल्द ही इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा। ये प्रवेश शुल्क (ग्रीन सेस) फास्टैग के जरिए वसूला जाएगा। अगर किसी गाड़ी के फास्टैग में पैसे नहीं है या गाड़ी में टैग नहीं लगा है तो कैमरे द्वारा नंबर को कैप्चर कर प्रवर्तन टीम को मैसेज भेज दिया जाएगा, जिसके बाद उससे वसूला जाएगा। इतनी होगी ग्रीन सेस की दर
परिवहन विभाग ने वाहनों की श्रेणी के अनुसार सेस दरें तय की हैं। सरकार का कहना है कि इस ग्रीन सेस से जुटाई गई राशि का इस्तेमाल एयर पॉल्यूशन कंट्रोल, सड़क सुरक्षा और शहरी परिवहन सुधार में किया जाएगा। यह कदम राज्य की स्वच्छ और सुरक्षित यातायात नीति को मजबूती देगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड से पहले हिमाचल प्रदेश में भी निजी वाहनों से एंट्री टैक्स के रूप में ऐसा शुल्क लिया जा रहा है। अब देवभूमि भी उसी राह पर आगे बढ़ रही है।
उत्तराखंड में सफर करना अब महंगा होने वाला है। राज्य सरकार बाहर से आने वाली गाड़ियों से ग्रीन टैक्स वसूल करने की तैयारी में है। अब तक यह शुल्क सिर्फ कॉमर्शियल गाड़ियों पर लागू था, लेकिन जल्द ही सरकार निजी कार, जीप और अन्य चार पहिया गाड़ी को इसके दायरे में लाने वाली है। इससे सरकार को सालाना 150 करोड़ रुपए आय होने की उम्मीद है। इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी और आधुनिक बनाने के लिए परिवहन विभाग ने एक निजी कंपनी से करार किया है, जो राज्य की सीमाओं पर लगे 15 ऑटोमेटेड नंबर प्लेट रिकग्निशन (ANPR) कैमरों के जरिए बाहर से आने वाले गाड़ियों की पहचान करेगीं। अब ग्रीन टैक्स के बारे में जानिए… पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना- ग्रीन टैक्स एक ऐसा कर है जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों पर लगाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना है। भारत में यह कर पुराने वाहनों पर लगाया जाता है। उत्तराखंड में यह कर पर्यावरण की रक्षा और सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगाया जाता है। ग्रीन टैक्स की मुख्य बातें- यह कर 15 साल से पुराने वाहनों पर लागू होता है, क्योंकि ये अधिक प्रदूषण करते हैं। कर की दरें वाहन के प्रकार, ईंधन (पेट्रोल/डीजल) और शहर के प्रदूषण स्तर के आधार पर भिन्न हो सकती हैं। इलेक्ट्रिक वाहन और सीएनजी/इथेनॉल से चलने वाले वाहन आमतौर पर इस टैक्स से मुक्त होते हैं। राजस्व का उपयोग- ग्रीन टैक्स से एकत्र किए गए धन का उपयोग उत्सर्जन निगरानी केंद्र स्थापित करने जैसे पर्यावरण-संबंधी पहलों में किया जाता है। इसे प्रदूषण कर भी कहा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार को बढ़ावा देना और प्रदूषण को कम करना है। इन जगहों पर लगे हैं कैमरे
गाड़ियों की निगरानी के लिए कैमरे गढ़वाल और कुमाऊं की सीमाओं पर स्थापित किए गए हैं। देहरादून जिले की बात करें तो कुल्हाल, तिमली रेंज, आशारोड़ी, नारसन, गोवर्धनपुर, चिड़ियापुर सीमाओं पर ये कैमरे लगाएं गए हैं। ऐसे ही कुमाऊं के प्रवेश सीमाएं काशीपुर, जसपुर, रुद्रपुर, पुल भट्टा (बरेली रोड) पर कैमरे लगे हैं। अगर कोई वाहन एक दिन के भीतर दोबारा राज्य में प्रवेश करता है, तो उसे दोबारा शुल्क नहीं देना होगा। ये सेस 24 घंटों के लिए मान्य होगा। इसके लिए संबंधित कंपनी को नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) से पेमेंट गेटवे की अनुमति भी मिल चुकी है।
कौन-कौन से वाहन को मिलेगी छूट
सेस वसूली से दो पहिया, इलेक्ट्रिक और सीएनजी वाहन को पूरी तरह छूट दी जाएगी। इसके अलावा सरकारी वाहन, एम्बुलेंस और अग्निशमन वाहन को भी इस शुल्क से अलग रखा गया है। आरटीओ देहरादून संदीप सैनी ने बताया- नवंबर में जल्द ही इस व्यवस्था को लागू किया जाएगा। ये प्रवेश शुल्क (ग्रीन सेस) फास्टैग के जरिए वसूला जाएगा। अगर किसी गाड़ी के फास्टैग में पैसे नहीं है या गाड़ी में टैग नहीं लगा है तो कैमरे द्वारा नंबर को कैप्चर कर प्रवर्तन टीम को मैसेज भेज दिया जाएगा, जिसके बाद उससे वसूला जाएगा। इतनी होगी ग्रीन सेस की दर
परिवहन विभाग ने वाहनों की श्रेणी के अनुसार सेस दरें तय की हैं। सरकार का कहना है कि इस ग्रीन सेस से जुटाई गई राशि का इस्तेमाल एयर पॉल्यूशन कंट्रोल, सड़क सुरक्षा और शहरी परिवहन सुधार में किया जाएगा। यह कदम राज्य की स्वच्छ और सुरक्षित यातायात नीति को मजबूती देगा। गौरतलब है कि उत्तराखंड से पहले हिमाचल प्रदेश में भी निजी वाहनों से एंट्री टैक्स के रूप में ऐसा शुल्क लिया जा रहा है। अब देवभूमि भी उसी राह पर आगे बढ़ रही है।