रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार की पंचमुखी चल उत्सव डोली रामपुर पहुंच गई है। यहां भक्तों ने “हर-हर महादेव” के जयकारों के बीच बाबा केदार का स्वागत किया। गुरुवार को सुबह साढ़े 8 बजे मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए थे। इसके बाद शिव के 5 स्वरूपों को दिखाने वाली बाबा की पंचमुखी डोली 26 किमी की कठिन पैदल यात्रा के बाद शाम 4 बजे रामपुर पहुंची, जहां भक्तों ने बाबा के लिए पारंपरिक भोजन तैयार किया। यहीं बाबा की डोली का रात्रि विश्राम हुआ। क्या आप जानते हैं इस डोली में दिखने वाले शिव के पांच स्वरूप भक्तों को अलग अलग रंग में नजर आते हैं। अब डोली आज गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर पहुंचेगी और 25 अक्टूबर को डोली अपने अंतिम पड़ाव उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में पहुंचेगी। बाबा यहां 6 महीने की शीतकालीन गद्दी पर विराजमान होंगे। अब पढ़िए पंचमुखी डोली का आध्यात्मिक अर्थ भगवान केदारनाथ की पंचमुखी उत्सव मूर्ति शिव के पांच स्वरूपों- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात का प्रतीक है। ये पांच रूप मानव जीवन की पांच क्रियाओं- क्रीड़ा, तपस्या, लोकसंहार, अहंकार और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। वरिष्ठ तीर्थपुरोहित उमेश चंद्र पोस्ती कहते हैं, पंचमुखी मूर्ति भगवान शिव की सृष्टि से लेकर संहार तक की शक्ति को दर्शाती है। भूतल में सृष्टि, जल में स्थिति, अग्नि में संहार, वायु में तिरोभाव और आकाश में अनुग्रह ये पांचों भाव शिव के स्वरूप में समाहित हैं। पांच दिशाओं में दिखते हैं शिव के रंग और वर्ण पंचमुखी मूर्ति में भगवान शिव के पांच दिशाओं में अलग-अलग वर्ण दिखाई देते हैं। सिर की दिशा श्वेत वर्ण में, पूर्व दिशा सुवर्ण में, दक्षिण दिशा नीलवर्ण में, पश्चिम दिशा शुभ स्फटिक उज्ज्वल में और उत्तर दिशा जपापुष्प या प्रवाल स्वरूप में है। ये पांचों रंग संसार के सभी वर्णों और भावों के प्रतीक हैं। पंचाक्षर ‘ॐ नमः शिवाय’ से जुड़ी मूर्ति पंचमुखी डोली पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ से भी जुड़ी मानी जाती है। इसमें उत्तर दिशा में ‘अकार’, पश्चिम में ‘उकार’, दक्षिण में ‘मकार’, पूर्व में ‘बिंदु’ और मध्य में ‘नाद’ का प्रतीकात्मक निवास बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि त्रिपदा गायत्री का प्रकाट्य भी इसी पंचमुखी मूर्ति से हुआ है। तीन दिन में 55 किलोमीटर की यात्रा 23 अक्टूबर को कपाट बंद होने के बाद बाबा की पंचमुखी डोली 55 किमी लंबी यात्रा पर निकली। तीन दिन की इस यात्रा के बाद बाबा केदार 25 अक्टूबर को उखीमठ में शीतकालीन गद्दी पर विराजमान होंगे। इस वर्ष 17 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार, इस बार यात्रा अवधि में 17 लाख 68 हजार 795 श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए। यह संख्या 2013 की आपदा के बाद दूसरी बार इतनी बड़ी दर्ज हुई है।
रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार की पंचमुखी चल उत्सव डोली रामपुर पहुंच गई है। यहां भक्तों ने “हर-हर महादेव” के जयकारों के बीच बाबा केदार का स्वागत किया। गुरुवार को सुबह साढ़े 8 बजे मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए थे। इसके बाद शिव के 5 स्वरूपों को दिखाने वाली बाबा की पंचमुखी डोली 26 किमी की कठिन पैदल यात्रा के बाद शाम 4 बजे रामपुर पहुंची, जहां भक्तों ने बाबा के लिए पारंपरिक भोजन तैयार किया। यहीं बाबा की डोली का रात्रि विश्राम हुआ। क्या आप जानते हैं इस डोली में दिखने वाले शिव के पांच स्वरूप भक्तों को अलग अलग रंग में नजर आते हैं। अब डोली आज गुप्तकाशी के विश्वनाथ मंदिर पहुंचेगी और 25 अक्टूबर को डोली अपने अंतिम पड़ाव उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में पहुंचेगी। बाबा यहां 6 महीने की शीतकालीन गद्दी पर विराजमान होंगे। अब पढ़िए पंचमुखी डोली का आध्यात्मिक अर्थ भगवान केदारनाथ की पंचमुखी उत्सव मूर्ति शिव के पांच स्वरूपों- ईशान, तत्पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात का प्रतीक है। ये पांच रूप मानव जीवन की पांच क्रियाओं- क्रीड़ा, तपस्या, लोकसंहार, अहंकार और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करते हैं। वरिष्ठ तीर्थपुरोहित उमेश चंद्र पोस्ती कहते हैं, पंचमुखी मूर्ति भगवान शिव की सृष्टि से लेकर संहार तक की शक्ति को दर्शाती है। भूतल में सृष्टि, जल में स्थिति, अग्नि में संहार, वायु में तिरोभाव और आकाश में अनुग्रह ये पांचों भाव शिव के स्वरूप में समाहित हैं। पांच दिशाओं में दिखते हैं शिव के रंग और वर्ण पंचमुखी मूर्ति में भगवान शिव के पांच दिशाओं में अलग-अलग वर्ण दिखाई देते हैं। सिर की दिशा श्वेत वर्ण में, पूर्व दिशा सुवर्ण में, दक्षिण दिशा नीलवर्ण में, पश्चिम दिशा शुभ स्फटिक उज्ज्वल में और उत्तर दिशा जपापुष्प या प्रवाल स्वरूप में है। ये पांचों रंग संसार के सभी वर्णों और भावों के प्रतीक हैं। पंचाक्षर ‘ॐ नमः शिवाय’ से जुड़ी मूर्ति पंचमुखी डोली पंचाक्षर मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ से भी जुड़ी मानी जाती है। इसमें उत्तर दिशा में ‘अकार’, पश्चिम में ‘उकार’, दक्षिण में ‘मकार’, पूर्व में ‘बिंदु’ और मध्य में ‘नाद’ का प्रतीकात्मक निवास बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि त्रिपदा गायत्री का प्रकाट्य भी इसी पंचमुखी मूर्ति से हुआ है। तीन दिन में 55 किलोमीटर की यात्रा 23 अक्टूबर को कपाट बंद होने के बाद बाबा की पंचमुखी डोली 55 किमी लंबी यात्रा पर निकली। तीन दिन की इस यात्रा के बाद बाबा केदार 25 अक्टूबर को उखीमठ में शीतकालीन गद्दी पर विराजमान होंगे। इस वर्ष 17 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार, इस बार यात्रा अवधि में 17 लाख 68 हजार 795 श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए। यह संख्या 2013 की आपदा के बाद दूसरी बार इतनी बड़ी दर्ज हुई है।