हिमाचल सरकार अब मंदिरों में चढ़ावे का पैसा सरकारी योजनाओं पर खर्च नहीं कर पाएगी। हाईकोर्ट ने दान की गई धनराशि का दुरुपयोग रोकने के लिए मंगलवार को एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कहा- दान की राशि सड़कों, पुलों, सार्वजनिक भवनों के निर्माण पर खर्च नहीं होगी। जो काम सरकारों द्वारा कराए जाते हैं और मंदिर से जुड़े नहीं है, उन पर मंदिरों का बजट खर्च नहीं होगा। कोर्ट ने आगे कहा- दान की रकम से मंदिर कमिश्नर व मंदिर अधिकारी को वाहन भी नहीं खरीदे जा सकेंगे। मंदिरों में आने वाले VIP के लिए उपहार खरीदने (स्मृति चिन्ह, तस्वीरें, मंदिर की तस्वीर) पर भी कोर्ट ने रोक लगाई है। इसी तरह किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना, निजी व्यवसायों या उद्योगों में निवेश, दुकानें, मॉल या होटल चलाने के लिए इस राशि का उपयोग वर्जित किया है। 4 प्वाइंट में समझे क्या है पूरा मामला जनहित याचिका क्यों डाली गई प्रदेश की मौजूदा और पूर्व दोनों सरकार ने मंदिरों का पैसा लिया है। कांग्रेस सरकार ने फरवरी 2025 में ‘सुख शिक्षा योजना’ और ‘मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना’ के लिए मंदिरों को अंशदान देने को कहा था। यह पैसा सरकार के अधीन चल रहे मंदिरों व ट्रस्ट से मांगा गया था। पूर्व भाजपा सरकार खुद भी 29 अगस्त 2018 को मंदिरों का 15 प्रतिशत बजट एनजीओ द्वारा संचालित गोशालाओं को देने की बात कही थी। इस फैसले का क्या असर होगा हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार अब मनमर्जी से मंदिरों का पैसा खर्च नहीं कर पाएगी। चढ़ावे की राशि का उपयोग हाईकोर्ट के आदेशानुसार चुनिंदा कार्य पर ही किया जा सकेगा। इससे मंदिरों के पैसे की बंटरबांट रुकेगी। मंदिर अधिकारियों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा। सरकारी नियंत्रण में 36 मंदिर प्रदेश में सरकारी नियंत्रण में 36 मंदिर हैं। इनमें देशभर से हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन को पहुंचते हैं और करोड़ों रुपए चढ़ावे के तौर पर देते हैं। भाषा कला एवं संस्कृति विभाग के अनुसार, इन मंदिरों में 4 अरब से भी ज्यादा की राशि चढ़ावे के रूप में है।
हिमाचल सरकार अब मंदिरों में चढ़ावे का पैसा सरकारी योजनाओं पर खर्च नहीं कर पाएगी। हाईकोर्ट ने दान की गई धनराशि का दुरुपयोग रोकने के लिए मंगलवार को एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस राकेश कैंथला की खंडपीठ ने कहा- दान की राशि सड़कों, पुलों, सार्वजनिक भवनों के निर्माण पर खर्च नहीं होगी। जो काम सरकारों द्वारा कराए जाते हैं और मंदिर से जुड़े नहीं है, उन पर मंदिरों का बजट खर्च नहीं होगा। कोर्ट ने आगे कहा- दान की रकम से मंदिर कमिश्नर व मंदिर अधिकारी को वाहन भी नहीं खरीदे जा सकेंगे। मंदिरों में आने वाले VIP के लिए उपहार खरीदने (स्मृति चिन्ह, तस्वीरें, मंदिर की तस्वीर) पर भी कोर्ट ने रोक लगाई है। इसी तरह किसी भी सरकारी कल्याणकारी योजना, निजी व्यवसायों या उद्योगों में निवेश, दुकानें, मॉल या होटल चलाने के लिए इस राशि का उपयोग वर्जित किया है। 4 प्वाइंट में समझे क्या है पूरा मामला जनहित याचिका क्यों डाली गई प्रदेश की मौजूदा और पूर्व दोनों सरकार ने मंदिरों का पैसा लिया है। कांग्रेस सरकार ने फरवरी 2025 में ‘सुख शिक्षा योजना’ और ‘मुख्यमंत्री सुखाश्रय योजना’ के लिए मंदिरों को अंशदान देने को कहा था। यह पैसा सरकार के अधीन चल रहे मंदिरों व ट्रस्ट से मांगा गया था। पूर्व भाजपा सरकार खुद भी 29 अगस्त 2018 को मंदिरों का 15 प्रतिशत बजट एनजीओ द्वारा संचालित गोशालाओं को देने की बात कही थी। इस फैसले का क्या असर होगा हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार अब मनमर्जी से मंदिरों का पैसा खर्च नहीं कर पाएगी। चढ़ावे की राशि का उपयोग हाईकोर्ट के आदेशानुसार चुनिंदा कार्य पर ही किया जा सकेगा। इससे मंदिरों के पैसे की बंटरबांट रुकेगी। मंदिर अधिकारियों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा। सरकारी नियंत्रण में 36 मंदिर प्रदेश में सरकारी नियंत्रण में 36 मंदिर हैं। इनमें देशभर से हर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन को पहुंचते हैं और करोड़ों रुपए चढ़ावे के तौर पर देते हैं। भाषा कला एवं संस्कृति विभाग के अनुसार, इन मंदिरों में 4 अरब से भी ज्यादा की राशि चढ़ावे के रूप में है।