
भारत के इतिहास में 21 मई 1991 का दिन काले अक्षरों में लिखा गया है। क्योंकि, इस दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या जिस तरह से की गई, उसके बारे में सुनकर लोग आज भी सिहर उठते हैं। बहुत कम भारतीय जानते हैं कि इस मामले की जांच कैसे हुई और सीबीआई ने कैसे काम किया। आज राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि पर दिव्य भास्कर ने इस मामले की जांच करने वाले पूर्व सीबीआई अधिकारी आमोद कंठ से खास बातचीत की। आमोद कंठ ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत के हाई-प्रोफाइल सिख विरोधी दंगों, जेसिका लाल मामला, ट्रांजिस्टर विस्फोट, ललित माकन हत्याकांड, अर्जुन दास हत्या, हवाला घोटाला, हर्षद मेहता घोटाला, उपहार सिनेमा आग कांड, जनरल एएस वैद्य हत्याकांड और दिल्ली बीएमडब्ल्यू मामले सहित कई मामलों की जांच की है। हत्या 21 मई को हुई, मैं 23 मई को मद्रास में था
पूर्व सीबीआई अधिकारी आमोद कंठ कहते हैं- 1991 में मैं सीबीआई में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में डीआईजी था। इससे पहले मैं गृह मंत्रालय में ओएसडी (विशेष कार्य अधिकारी) था। 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई की रात को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। अगली सुबह फैसला किया गया कि मामला तमिलनाडु पुलिस को नहीं, बल्कि सीधे सीबीआई को सौंपा जाएगा। उस समय हमारे सीबीआई निदेशक राजा विजय किरण थे। वे पहले दिल्ली में पुलिस कमिश्नर थे और मैंने उनके साथ मिलकर क्राइम के कई बड़े मामले सुलझाए थे। इसलिए उन्हें पता था कि मैं कितना काम कर सकता हूं। अगली शाम, जब मैं एक काम के सिलसिले में दिल्ली एयरपोर्ट पर था तो मुझे राजा विजय किरणसर का फोन आया। उन्होंने कहा- आमोद, आपको राजीव गांधी हत्याकांड की जांच के लिए सीबीआई की एक टीम को दिल्ली से मद्रास (वर्तमान चेन्नई) ले जाना है। तीसरे दिन मैं मद्रास में था। उस समय हमारे आईजी कार्तिकेय की नियुक्ति नहीं हुई थी, इसलिए मैंने टीमको लीड किया। राजीव गांधी हत्याकांड के पीछे कई गलतियां थीं
इससे पहले कि मैं इस बारे में आगे बात करूं कि मामले की जांच कैसे की गई। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि राजीव गांधी हत्याकांड के लिए कई गलतियां जिम्मेदार थीं। जहां तक मुझे पता है, इसमें खुफिया विफलता भी थी। एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के लोग तमिलनाडु में खुलेआम घूम रहे थे। राजीव गांधी की हत्या से भी पहले जून 1990 में ईपीआरएलएफ (ईलम पीपुल्स रिवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट) के प्रमुख पद्मनाभ की निर्मम हत्या कर दी गई थी। लिट्टे ने जिस तरह पद्मनाभ की हत्या की वह भयावह थी। उस दौरान लिट्टे के अलावा ईपीआरएलएफ भी एक मजबूत संगठन था। भारतीय सरकार द्वारा पद्मनाभ के सुरक्षा मुहैया कराए जाने के बावजूद भी लिट्टे ने उनकी नृशंस हत्या कर दी थी। तमिलनाडु पुलिस जानती थी लिट्टे कैसे काम करता था
तमिलनाडु में पुलिस-जांच अधिकारी जानते थे कि लिट्टे के लोग कैसे काम करते हैं। इसके बावजदू सावधानी नहीं बरती गई। उस दौरान सरकार को पता भी था कि राजीव गांधी निशाने पर हैं। लिट्टे का प्रमुख व्यक्ति और राजीव गांधी हत्याकांड का मास्टरमाइंड शिवरासन उर्फ रघु एक खतरनाक आतंकवादी था। वह राजीव गांधी की हत्या करने के लिए श्रीलंका से ही तमिलनाडु के नौ लोगों को लेकर नाव से भारत आया था। बेशक, उस समय लिट्टे सुप्रीमो प्रभाकरण बहुत लोकप्रिय थे और तमिल लोग उन्हें खास मानते थे। उनकी एक अलग छवि थी। लेकिन, खुफिया इनपुट के बावजूद भी सुरक्षा एजेंसियों ने लापरवाही की और राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। 22 मई के कई न्यूज पेपर की कटिंग जमा करने के बाद जब मैं दिल्ली से तमिलनाडु आने की तैयारी कर रहा था, तो मैंने समझदारी का काम किया और मीडिया की मदद ली। मुझे इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हमारे साथ एक या दो विशेषज्ञ थे। मैंने अपनी टीम को स्पष्ट निर्देश दिए कि वे 22 मई को दिल्ली और तमिलनाडु के सभी अखबारों में राजीव गांधी की हत्या के बारे में छपी खबरों पर एक रिपोर्ट तैयार करके मुझे दें। हमारा प्लेन शाम को चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरा और इसके बाद हमने श्रीपेरम्बदूर तक दो घंटे की सड़क यात्रा थी। इस दौरान मैंने टीम द्वारा दी गई सारी रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा और पूरी घटना समझने की कोशिश की। मीडिया से काफी जानकारी मिल गई थी
जब हम श्रीपेरंबदूर पहुंचे तो एक अच्छी बात यह थी कि घटनास्थल यानी वह जगह, जहां राजीव गांधी की हत्या हुई थी, बहुत अच्छी तरह से संरक्षित था। उस क्षेत्र के आईजी आरके राघवन बाद में सीबीआई के निदेशक बने। जब मैं मौके पर पहुंचा तो मीडिया की बदौलत मुझे काफी जानकारी मिली। उस समय मेरी बातें सुनकर स्थानीय पुलिस को भी आश्चर्य हुआ कि मुझ जैसे बाहरी व्यक्ति को इतनी सारी जानकारी कैसे मिल गई। उस समय मैंने किसी को नहीं बताया था कि मुझे काफी डिटेल्स मीडिया के जरिए ही मिली है। इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं कि जब कोई हाई-प्रोफाइल मामला होता है तो मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। मीडियाकर्मी उस मामले के बारे में कुछ न कुछ जानकारी निकाल ही लाते हैं। यह जानकारी जांच टीम के लिए शुरुआती दिनों में उपयोगी साबित होती है। बाद में जांच टीम मीडिया से कहीं आगे निकल जाती है। हरिबाबू ने राजीव गांधी की चुनावी रैली की सभी तस्वीरें खींचीं थीं
राजीव गांधी की हत्या से पहले का दृश्य बताते हुए आमोद कंठ कहते हैं- एलटीटीई की महिला विंग को बाघिन कहा जाता था। उनमें से एक धनु नाम की महिला राजीव गांधी की हत्या के लिए मानव बम बनने तैयार थी और उसने अपनी जान भी दे दी थी। इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए राजीव गांधी की चुनावी रैली में मास्टरमाइंड शिवरासन, मानव हमलावर धनु और शुभा पहुंचे थे। लिट्टे की एक विशेषता यह थी कि वे घटना का दस्तावेजीकरण भी करते थे और उसे अंजाम देने से पहले प्रभाकरण को भेज देते थे। इस बार उन्होंने हरिबाबू नाम के एक युवा फोटोग्राफर को काम पर रखा था। हरिबाबू का काम राजीव गांधी की चुनावी रैली में लिट्टे के लोगों की गतिविधियों को कैमरे में कैद करना था। हालांकि, मेरा मानना है कि फोटोग्राफर हरिबाबू को इस बात का अंदाजा नहीं था कि धनु राजीव गांधी को मारने के लिए बम जैकेट पहनकर आई थी। आज भी मेरी राय यह है कि हरिबाबू को यही लगा था कि वे किसी काम से आए हैं और उन्हें इन सबकी तस्वीरें खींचनी हैं। अगर हरिबाबू को पता होता कि ऐसा धमाका होने वाला है तो वह राजीव गांधी के पास नहीं खड़ा होता। वह खुद को बचाने की कोशिश करता। यह अलग बात है कि मेरे बयान पर कई मतभेद हुए। धनु राजीव गांधी के पैर छूने झुकी और धमाका हुआ
हरिबाबू ने शिवरासन, धनु और शुभा की कई तस्वीरें खींचीं। उन्होंने विशेष रूप से धनु की तस्वीरें लीं। धनु धीरे-धीरे राजीव गांधी के करीब पहुंच गई। हरिबाबू ने ही यह हार धनु को दिया था और धनु ने यह हार राजीव गांधी को पहनाया था। इसके बाद धनु उनके पैर छूने के लिए नीचे झुकी और नीचे झुकते ही उसने जैकेट में रखे बम को चालू कर विस्फोट कर दिया। धनु की डेनिम जैकेट के अंदर कई विस्फोटक उपकरण थे, जिनमें आरडीएक्स और छोटे छर्रों से बना बम भी शामिल था। विस्फोट में राजीव गांधी का पूरा चेहरा उड़ गया था और उनका शरीर केवल मांस का लोथड़ा रह गया था। धनु का शरीर भी जर्जर हो गया था, लेकिन उसके चेहरे पर एक भी चोट का निशान नहीं था। विस्फोट में हरिबाबू की भी मौत हो गई थी। धनु के राजीव गांधी के पैर छूने के लिए नीचे झुकते ही हरिबाबू ने आखिरी बार कैमरा क्लिक किया था। तभी धमाका हो गया। कैमरे के लैंस पर खून और मांस के टुकड़े चिपके हुए थे। यह कैमरा हरिबाबू के शरीर पर गिरा। हालांकि, कैमरे के कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, जिससे सभी तस्वीरें सुरक्षित रह गईं। यह कैमरा आरके राघवन ने एक निजी फोटोग्राफर को दिया था। उसने ही कैमरे से नेगेटिव निकाले। हालांकि, उसने मौके की अन्य गतिविधियों को काट दिया था। चंद्रशेखर उस समय तमिलनाडु फोरेंसिक लैब के प्रमुख थे और उन्होंने ये सारी तस्वीरें ‘द हिंदू’ अखबार को मुहैया करा दी थीं। हमारे पास दस्तावेज आने से पहले ही द हिन्दू ने ये सभी तस्वीरें छाप दी थीं। यह एक बहुत गंभीर गलती थी,जबिक ऐसा नहीं होना चाहिए था। इसके बाद हमें भी सारी तस्वीरें मिलीं। सिवरासन पूरी तैयारी के साथ आया था
जब मैंने धनु का चेहरा और हरिबाबू द्वारा खींची गई तस्वीरें देखीं, तो मुझे एहसास हुआ कि यह वही महिला थी। धनु के अलावा, हरिबाबू के कैमरे में सिवरासन और शुभा नाम की एक लड़की भी थी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शुभा को इसलिए काम पर रखा गया था, क्योंकि अगर धनु अपने काम में नाकाम रहती तो वह राजीव गांधी की हत्या कर देती। उस समय लेडी इंस्पेक्टर अनुसूया राजीव गांधी की करीबी थीं और उन्होंने इस केस में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने चुनावी रैली की छोटी से छोटी बात भी बताई। जब धनु राजीव गांधी को माला पहनानी आई तो अनुसूया ने उसे धक्का देकर हटाने की कोशिश भी की थी, लेकिन तभी विस्फोट हो गया। धमाके में अनुसूया भी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। हालांकि, फोटोग्राफ्स से हमें इन सभी की पहचान मिल गई थी। राजीव गांधी हत्याकांड का मामला 7 दिनों में सुलझाया गया
आमोद कांत ने कहा- हमने इस मामले को सिर्फ एक हफ्ते के अंदर सुलझा लिया था। पद्मनाभ हत्याकांड ही राजीव गांधी हत्याकांड को सुलझाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ था। दरअसल, पद्मनाभ केस का मास्टरमाइंड सिवरासन उर्फ रघु था। उनकी एक आंख नहीं थी और उसे ‘वन-आइड जैक’ के नाम से जाना जाता था। अब पद्मनाभ हत्याकांड की बात करें तो, सिवरासन पद्मनाभ की हत्या करने के बाद अपनी टीम के साथ भाग गया था। इस दौरान उसने सड़क पर एक व्यक्ति को कार सहित अगवा कर लिया था। वह व्यक्ति एक निजी कंपनी में मैनेजर था। उसकी मां भी कार में थी। थोड़ा आगे जाने पर उस व्यक्ति को उसकी मां के साथ सड़क पर उतार दिया गया था। फिर उसी कार से शिवरासन अपनी टीम के साथ सीमा पर चला गया और वहां से श्रीलंका भाग निकला था। कार का मालिक वही व्यक्ति ही पद्मनाभ मामले में एकमात्र प्रमुख गवाह था। बदकिस्मती से पुलिस अधिकारियों ने इस प्रमुख गवाह के मामले पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और इसी बात से वह नाराज हो गया। वह व्यक्ति अपनी कहानी बताने के लिए तैयार था, लेकिन उस समय पुलिस ने उसकी एक न सुनी। जब हम राजीव गांधी हत्याकांड की तह तक पहुंचे तो हमें पद्मनाभ हत्याकांड के बारे में जानकारी मिली और हमने उस व्यक्ति से संपर्क किया। जब हमने सिवरासन की तस्वीर दिखाई तो उसने स्वीकार किया कि पद्मनाभ की हत्या में यही व्यक्ति शामिल था और इससे हमारा मामला सुलझ गया। सिवरासन सहित 35 लोगों ने सायनाइड आत्महत्या कर ली थी
अब मुद्दा उन सभी को पकड़ना था। राजीव गांधी की हत्या के बाद सिवरासन अपनी टीम के साथ फरार हो गया था। वह श्रीलंका जाना चाहता था, लेकिन पुलिस बल की मौजूदगी के कारण वह भाग नहीं पा रहा था। हालांकि, लिट्टे के साथियों ने सिवरासन को छिपाने में बहुत मदद की। सिवरासन अपनी टीम के साथ बेंगलुरु के पास कोनानाकुंटे गांव के एक घर में छिपा हुआ था। इससे पहले कि हम वहां पहुंचकर उसे गिरफ्तार कर पाते, सिवरासन-शुभा सहित अन्य लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। उस समय ये सभी लोग अपने साथ सायनाइड कैप्सूल रखते थे। लिट्टे के आतंकी सायनाइड का कैप्सूल दांतों से तोड़ने से पहले जीभ में छेद करके खून निकाल लेते थे, जिससे साइनाइड सीधे खून में मिल जाए। इससे तुरंत ही मौत हो जाती थी। राजीव गांधी हत्याकांड में शामिल 30-35 लिट्टे सदस्यों ने इसी तरह आत्महत्या कर ली थी। इससे ही आप कल्पना कर सकते हैं कि यह समूह कितना घातक और प्रतिबद्ध था। उल्लेखनीय है कि इन लोगों ने शिकायत की थी कि भारत सरकार ने श्रीलंका में चल रहे गृहयुद्ध में आईपीकेएफ (भारतीय शांति सेना) को भेजा था। लिट्टे का मुख्य उद्देश्य इसका बदला लेना था और इसीलिए उन्होंने राजीव गांधी की हत्या करवा दी थी। राजीव गांधी हत्याकांड सबसे चुनौतीपूर्ण था
मैं स्पष्ट रूप से मानता हूं कि मेरे लिए राजीव गांधी हत्याकांड से ज्यादा चुनौतीपूर्ण कोई मामला नहीं रहा है। भारत में राजीव गांधी हत्याकांड से बड़ा कोई मामला शायद ही कभी हुआ हो। महात्मा गांधी हत्या मामले में गोडसे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था। मैं इस मामले को खुला और बंद मामला कहता हूं। इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों ने की थी और वे भी पकड़े गए। यह भी एक खुला और बंद मामला था। तीसरे गांधी, राजीव गांधी की हत्या बहुत जटिल थी। इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी बातचीत हुई। राजीव गांधी के हत्यारों को स्थानीय लोगों से समर्थन मिला। ये लोग लगातार चेन्नई में घूम रहे थे। इन्होंने बड़े पैमाने पर अपनी तैयारी कर राजीव गांधी को निशाना बनाया था। मेरी राय में इससे बड़ा या जटिल मामला कोई और नहीं हो सकता। अब पूर्व सीबीआई ऑफिसर आमोद कांत के बारे में…
आमोद कांत ने अपना कैरियर पुडुचेरी में एएसपी के रूप में शुरू किया था। यहां जब उन्होंने एक विधायक के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो मुख्यमंत्री नाराज हो गए और उनका तबादला करवा दिया था। आमोद जब गोवा पुलिस के महानिदेशक बने। तब वहां दो मंत्रियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। इस दौरान भी इनका तबादला करवा दिया गया था। आमोद जब अरुणाचल प्रदेश में डीजीपी थे और उन्होंने पुलिस में सुधार लाने की कोशिश की, तब भी उनका तबादला कर दिया गया था। हालांकि, इस बारे में आमोद कंठ कहते हैं- मुझे इस सब पर कोई आपत्ति नहीं थी। मैं कहूंगा कि राजनेताओं को भी विशेषाधिकार प्राप्त हैं और उन्हें पुलिस को प्रभावित करने का अधिकार है। लेकिन पुलिस के अपने मूल्य हैं। पुलिस कानून प्रवर्तन अधिकारी है। यह सुनिश्चित करना पुलिस का काम है कि सभी परिस्थितियों में कानून का पालन हो। पुलिस के लिए संविधान किसी धार्मिक ग्रंथ से अधिक महत्वपूर्ण है। मैंने कई हाई-प्रोफाइल केस सुलझाए हैं और मैं भी निशाना बना और इसीलिए मुझे छह-सात साल तक सुरक्षा दी गई, लेकिन मुझे सुरक्षा कभी पसंद नहीं आई। मुझे पुलिस सुरक्षा में रहना पसंद नहीं है। वर्तमान में मैं सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और अपनी समाज सेवी संस्था ‘प्रयास’ में काम कर रहा हूं।
भारत के इतिहास में 21 मई 1991 का दिन काले अक्षरों में लिखा गया है। क्योंकि, इस दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या जिस तरह से की गई, उसके बारे में सुनकर लोग आज भी सिहर उठते हैं। बहुत कम भारतीय जानते हैं कि इस मामले की जांच कैसे हुई और सीबीआई ने कैसे काम किया। आज राजीव गांधी की 34वीं पुण्यतिथि पर दिव्य भास्कर ने इस मामले की जांच करने वाले पूर्व सीबीआई अधिकारी आमोद कंठ से खास बातचीत की। आमोद कंठ ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भारत के हाई-प्रोफाइल सिख विरोधी दंगों, जेसिका लाल मामला, ट्रांजिस्टर विस्फोट, ललित माकन हत्याकांड, अर्जुन दास हत्या, हवाला घोटाला, हर्षद मेहता घोटाला, उपहार सिनेमा आग कांड, जनरल एएस वैद्य हत्याकांड और दिल्ली बीएमडब्ल्यू मामले सहित कई मामलों की जांच की है। हत्या 21 मई को हुई, मैं 23 मई को मद्रास में था
पूर्व सीबीआई अधिकारी आमोद कंठ कहते हैं- 1991 में मैं सीबीआई में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में डीआईजी था। इससे पहले मैं गृह मंत्रालय में ओएसडी (विशेष कार्य अधिकारी) था। 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई की रात को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। अगली सुबह फैसला किया गया कि मामला तमिलनाडु पुलिस को नहीं, बल्कि सीधे सीबीआई को सौंपा जाएगा। उस समय हमारे सीबीआई निदेशक राजा विजय किरण थे। वे पहले दिल्ली में पुलिस कमिश्नर थे और मैंने उनके साथ मिलकर क्राइम के कई बड़े मामले सुलझाए थे। इसलिए उन्हें पता था कि मैं कितना काम कर सकता हूं। अगली शाम, जब मैं एक काम के सिलसिले में दिल्ली एयरपोर्ट पर था तो मुझे राजा विजय किरणसर का फोन आया। उन्होंने कहा- आमोद, आपको राजीव गांधी हत्याकांड की जांच के लिए सीबीआई की एक टीम को दिल्ली से मद्रास (वर्तमान चेन्नई) ले जाना है। तीसरे दिन मैं मद्रास में था। उस समय हमारे आईजी कार्तिकेय की नियुक्ति नहीं हुई थी, इसलिए मैंने टीमको लीड किया। राजीव गांधी हत्याकांड के पीछे कई गलतियां थीं
इससे पहले कि मैं इस बारे में आगे बात करूं कि मामले की जांच कैसे की गई। मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहूंगा कि राजीव गांधी हत्याकांड के लिए कई गलतियां जिम्मेदार थीं। जहां तक मुझे पता है, इसमें खुफिया विफलता भी थी। एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के लोग तमिलनाडु में खुलेआम घूम रहे थे। राजीव गांधी की हत्या से भी पहले जून 1990 में ईपीआरएलएफ (ईलम पीपुल्स रिवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट) के प्रमुख पद्मनाभ की निर्मम हत्या कर दी गई थी। लिट्टे ने जिस तरह पद्मनाभ की हत्या की वह भयावह थी। उस दौरान लिट्टे के अलावा ईपीआरएलएफ भी एक मजबूत संगठन था। भारतीय सरकार द्वारा पद्मनाभ के सुरक्षा मुहैया कराए जाने के बावजूद भी लिट्टे ने उनकी नृशंस हत्या कर दी थी। तमिलनाडु पुलिस जानती थी लिट्टे कैसे काम करता था
तमिलनाडु में पुलिस-जांच अधिकारी जानते थे कि लिट्टे के लोग कैसे काम करते हैं। इसके बावजदू सावधानी नहीं बरती गई। उस दौरान सरकार को पता भी था कि राजीव गांधी निशाने पर हैं। लिट्टे का प्रमुख व्यक्ति और राजीव गांधी हत्याकांड का मास्टरमाइंड शिवरासन उर्फ रघु एक खतरनाक आतंकवादी था। वह राजीव गांधी की हत्या करने के लिए श्रीलंका से ही तमिलनाडु के नौ लोगों को लेकर नाव से भारत आया था। बेशक, उस समय लिट्टे सुप्रीमो प्रभाकरण बहुत लोकप्रिय थे और तमिल लोग उन्हें खास मानते थे। उनकी एक अलग छवि थी। लेकिन, खुफिया इनपुट के बावजूद भी सुरक्षा एजेंसियों ने लापरवाही की और राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। 22 मई के कई न्यूज पेपर की कटिंग जमा करने के बाद जब मैं दिल्ली से तमिलनाडु आने की तैयारी कर रहा था, तो मैंने समझदारी का काम किया और मीडिया की मदद ली। मुझे इस मामले के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हमारे साथ एक या दो विशेषज्ञ थे। मैंने अपनी टीम को स्पष्ट निर्देश दिए कि वे 22 मई को दिल्ली और तमिलनाडु के सभी अखबारों में राजीव गांधी की हत्या के बारे में छपी खबरों पर एक रिपोर्ट तैयार करके मुझे दें। हमारा प्लेन शाम को चेन्नई एयरपोर्ट पर उतरा और इसके बाद हमने श्रीपेरम्बदूर तक दो घंटे की सड़क यात्रा थी। इस दौरान मैंने टीम द्वारा दी गई सारी रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा और पूरी घटना समझने की कोशिश की। मीडिया से काफी जानकारी मिल गई थी
जब हम श्रीपेरंबदूर पहुंचे तो एक अच्छी बात यह थी कि घटनास्थल यानी वह जगह, जहां राजीव गांधी की हत्या हुई थी, बहुत अच्छी तरह से संरक्षित था। उस क्षेत्र के आईजी आरके राघवन बाद में सीबीआई के निदेशक बने। जब मैं मौके पर पहुंचा तो मीडिया की बदौलत मुझे काफी जानकारी मिली। उस समय मेरी बातें सुनकर स्थानीय पुलिस को भी आश्चर्य हुआ कि मुझ जैसे बाहरी व्यक्ति को इतनी सारी जानकारी कैसे मिल गई। उस समय मैंने किसी को नहीं बताया था कि मुझे काफी डिटेल्स मीडिया के जरिए ही मिली है। इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं कि जब कोई हाई-प्रोफाइल मामला होता है तो मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। मीडियाकर्मी उस मामले के बारे में कुछ न कुछ जानकारी निकाल ही लाते हैं। यह जानकारी जांच टीम के लिए शुरुआती दिनों में उपयोगी साबित होती है। बाद में जांच टीम मीडिया से कहीं आगे निकल जाती है। हरिबाबू ने राजीव गांधी की चुनावी रैली की सभी तस्वीरें खींचीं थीं
राजीव गांधी की हत्या से पहले का दृश्य बताते हुए आमोद कंठ कहते हैं- एलटीटीई की महिला विंग को बाघिन कहा जाता था। उनमें से एक धनु नाम की महिला राजीव गांधी की हत्या के लिए मानव बम बनने तैयार थी और उसने अपनी जान भी दे दी थी। इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए राजीव गांधी की चुनावी रैली में मास्टरमाइंड शिवरासन, मानव हमलावर धनु और शुभा पहुंचे थे। लिट्टे की एक विशेषता यह थी कि वे घटना का दस्तावेजीकरण भी करते थे और उसे अंजाम देने से पहले प्रभाकरण को भेज देते थे। इस बार उन्होंने हरिबाबू नाम के एक युवा फोटोग्राफर को काम पर रखा था। हरिबाबू का काम राजीव गांधी की चुनावी रैली में लिट्टे के लोगों की गतिविधियों को कैमरे में कैद करना था। हालांकि, मेरा मानना है कि फोटोग्राफर हरिबाबू को इस बात का अंदाजा नहीं था कि धनु राजीव गांधी को मारने के लिए बम जैकेट पहनकर आई थी। आज भी मेरी राय यह है कि हरिबाबू को यही लगा था कि वे किसी काम से आए हैं और उन्हें इन सबकी तस्वीरें खींचनी हैं। अगर हरिबाबू को पता होता कि ऐसा धमाका होने वाला है तो वह राजीव गांधी के पास नहीं खड़ा होता। वह खुद को बचाने की कोशिश करता। यह अलग बात है कि मेरे बयान पर कई मतभेद हुए। धनु राजीव गांधी के पैर छूने झुकी और धमाका हुआ
हरिबाबू ने शिवरासन, धनु और शुभा की कई तस्वीरें खींचीं। उन्होंने विशेष रूप से धनु की तस्वीरें लीं। धनु धीरे-धीरे राजीव गांधी के करीब पहुंच गई। हरिबाबू ने ही यह हार धनु को दिया था और धनु ने यह हार राजीव गांधी को पहनाया था। इसके बाद धनु उनके पैर छूने के लिए नीचे झुकी और नीचे झुकते ही उसने जैकेट में रखे बम को चालू कर विस्फोट कर दिया। धनु की डेनिम जैकेट के अंदर कई विस्फोटक उपकरण थे, जिनमें आरडीएक्स और छोटे छर्रों से बना बम भी शामिल था। विस्फोट में राजीव गांधी का पूरा चेहरा उड़ गया था और उनका शरीर केवल मांस का लोथड़ा रह गया था। धनु का शरीर भी जर्जर हो गया था, लेकिन उसके चेहरे पर एक भी चोट का निशान नहीं था। विस्फोट में हरिबाबू की भी मौत हो गई थी। धनु के राजीव गांधी के पैर छूने के लिए नीचे झुकते ही हरिबाबू ने आखिरी बार कैमरा क्लिक किया था। तभी धमाका हो गया। कैमरे के लैंस पर खून और मांस के टुकड़े चिपके हुए थे। यह कैमरा हरिबाबू के शरीर पर गिरा। हालांकि, कैमरे के कोई नुकसान नहीं पहुंचा था, जिससे सभी तस्वीरें सुरक्षित रह गईं। यह कैमरा आरके राघवन ने एक निजी फोटोग्राफर को दिया था। उसने ही कैमरे से नेगेटिव निकाले। हालांकि, उसने मौके की अन्य गतिविधियों को काट दिया था। चंद्रशेखर उस समय तमिलनाडु फोरेंसिक लैब के प्रमुख थे और उन्होंने ये सारी तस्वीरें ‘द हिंदू’ अखबार को मुहैया करा दी थीं। हमारे पास दस्तावेज आने से पहले ही द हिन्दू ने ये सभी तस्वीरें छाप दी थीं। यह एक बहुत गंभीर गलती थी,जबिक ऐसा नहीं होना चाहिए था। इसके बाद हमें भी सारी तस्वीरें मिलीं। सिवरासन पूरी तैयारी के साथ आया था
जब मैंने धनु का चेहरा और हरिबाबू द्वारा खींची गई तस्वीरें देखीं, तो मुझे एहसास हुआ कि यह वही महिला थी। धनु के अलावा, हरिबाबू के कैमरे में सिवरासन और शुभा नाम की एक लड़की भी थी। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शुभा को इसलिए काम पर रखा गया था, क्योंकि अगर धनु अपने काम में नाकाम रहती तो वह राजीव गांधी की हत्या कर देती। उस समय लेडी इंस्पेक्टर अनुसूया राजीव गांधी की करीबी थीं और उन्होंने इस केस में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने चुनावी रैली की छोटी से छोटी बात भी बताई। जब धनु राजीव गांधी को माला पहनानी आई तो अनुसूया ने उसे धक्का देकर हटाने की कोशिश भी की थी, लेकिन तभी विस्फोट हो गया। धमाके में अनुसूया भी गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। हालांकि, फोटोग्राफ्स से हमें इन सभी की पहचान मिल गई थी। राजीव गांधी हत्याकांड का मामला 7 दिनों में सुलझाया गया
आमोद कांत ने कहा- हमने इस मामले को सिर्फ एक हफ्ते के अंदर सुलझा लिया था। पद्मनाभ हत्याकांड ही राजीव गांधी हत्याकांड को सुलझाने में महत्वपूर्ण साबित हुआ था। दरअसल, पद्मनाभ केस का मास्टरमाइंड सिवरासन उर्फ रघु था। उनकी एक आंख नहीं थी और उसे ‘वन-आइड जैक’ के नाम से जाना जाता था। अब पद्मनाभ हत्याकांड की बात करें तो, सिवरासन पद्मनाभ की हत्या करने के बाद अपनी टीम के साथ भाग गया था। इस दौरान उसने सड़क पर एक व्यक्ति को कार सहित अगवा कर लिया था। वह व्यक्ति एक निजी कंपनी में मैनेजर था। उसकी मां भी कार में थी। थोड़ा आगे जाने पर उस व्यक्ति को उसकी मां के साथ सड़क पर उतार दिया गया था। फिर उसी कार से शिवरासन अपनी टीम के साथ सीमा पर चला गया और वहां से श्रीलंका भाग निकला था। कार का मालिक वही व्यक्ति ही पद्मनाभ मामले में एकमात्र प्रमुख गवाह था। बदकिस्मती से पुलिस अधिकारियों ने इस प्रमुख गवाह के मामले पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और इसी बात से वह नाराज हो गया। वह व्यक्ति अपनी कहानी बताने के लिए तैयार था, लेकिन उस समय पुलिस ने उसकी एक न सुनी। जब हम राजीव गांधी हत्याकांड की तह तक पहुंचे तो हमें पद्मनाभ हत्याकांड के बारे में जानकारी मिली और हमने उस व्यक्ति से संपर्क किया। जब हमने सिवरासन की तस्वीर दिखाई तो उसने स्वीकार किया कि पद्मनाभ की हत्या में यही व्यक्ति शामिल था और इससे हमारा मामला सुलझ गया। सिवरासन सहित 35 लोगों ने सायनाइड आत्महत्या कर ली थी
अब मुद्दा उन सभी को पकड़ना था। राजीव गांधी की हत्या के बाद सिवरासन अपनी टीम के साथ फरार हो गया था। वह श्रीलंका जाना चाहता था, लेकिन पुलिस बल की मौजूदगी के कारण वह भाग नहीं पा रहा था। हालांकि, लिट्टे के साथियों ने सिवरासन को छिपाने में बहुत मदद की। सिवरासन अपनी टीम के साथ बेंगलुरु के पास कोनानाकुंटे गांव के एक घर में छिपा हुआ था। इससे पहले कि हम वहां पहुंचकर उसे गिरफ्तार कर पाते, सिवरासन-शुभा सहित अन्य लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। उस समय ये सभी लोग अपने साथ सायनाइड कैप्सूल रखते थे। लिट्टे के आतंकी सायनाइड का कैप्सूल दांतों से तोड़ने से पहले जीभ में छेद करके खून निकाल लेते थे, जिससे साइनाइड सीधे खून में मिल जाए। इससे तुरंत ही मौत हो जाती थी। राजीव गांधी हत्याकांड में शामिल 30-35 लिट्टे सदस्यों ने इसी तरह आत्महत्या कर ली थी। इससे ही आप कल्पना कर सकते हैं कि यह समूह कितना घातक और प्रतिबद्ध था। उल्लेखनीय है कि इन लोगों ने शिकायत की थी कि भारत सरकार ने श्रीलंका में चल रहे गृहयुद्ध में आईपीकेएफ (भारतीय शांति सेना) को भेजा था। लिट्टे का मुख्य उद्देश्य इसका बदला लेना था और इसीलिए उन्होंने राजीव गांधी की हत्या करवा दी थी। राजीव गांधी हत्याकांड सबसे चुनौतीपूर्ण था
मैं स्पष्ट रूप से मानता हूं कि मेरे लिए राजीव गांधी हत्याकांड से ज्यादा चुनौतीपूर्ण कोई मामला नहीं रहा है। भारत में राजीव गांधी हत्याकांड से बड़ा कोई मामला शायद ही कभी हुआ हो। महात्मा गांधी हत्या मामले में गोडसे को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था। मैं इस मामले को खुला और बंद मामला कहता हूं। इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही दो अंगरक्षकों ने की थी और वे भी पकड़े गए। यह भी एक खुला और बंद मामला था। तीसरे गांधी, राजीव गांधी की हत्या बहुत जटिल थी। इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी बातचीत हुई। राजीव गांधी के हत्यारों को स्थानीय लोगों से समर्थन मिला। ये लोग लगातार चेन्नई में घूम रहे थे। इन्होंने बड़े पैमाने पर अपनी तैयारी कर राजीव गांधी को निशाना बनाया था। मेरी राय में इससे बड़ा या जटिल मामला कोई और नहीं हो सकता। अब पूर्व सीबीआई ऑफिसर आमोद कांत के बारे में…
आमोद कांत ने अपना कैरियर पुडुचेरी में एएसपी के रूप में शुरू किया था। यहां जब उन्होंने एक विधायक के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो मुख्यमंत्री नाराज हो गए और उनका तबादला करवा दिया था। आमोद जब गोवा पुलिस के महानिदेशक बने। तब वहां दो मंत्रियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। इस दौरान भी इनका तबादला करवा दिया गया था। आमोद जब अरुणाचल प्रदेश में डीजीपी थे और उन्होंने पुलिस में सुधार लाने की कोशिश की, तब भी उनका तबादला कर दिया गया था। हालांकि, इस बारे में आमोद कंठ कहते हैं- मुझे इस सब पर कोई आपत्ति नहीं थी। मैं कहूंगा कि राजनेताओं को भी विशेषाधिकार प्राप्त हैं और उन्हें पुलिस को प्रभावित करने का अधिकार है। लेकिन पुलिस के अपने मूल्य हैं। पुलिस कानून प्रवर्तन अधिकारी है। यह सुनिश्चित करना पुलिस का काम है कि सभी परिस्थितियों में कानून का पालन हो। पुलिस के लिए संविधान किसी धार्मिक ग्रंथ से अधिक महत्वपूर्ण है। मैंने कई हाई-प्रोफाइल केस सुलझाए हैं और मैं भी निशाना बना और इसीलिए मुझे छह-सात साल तक सुरक्षा दी गई, लेकिन मुझे सुरक्षा कभी पसंद नहीं आई। मुझे पुलिस सुरक्षा में रहना पसंद नहीं है। वर्तमान में मैं सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और अपनी समाज सेवी संस्था ‘प्रयास’ में काम कर रहा हूं।