
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब कोई शख्स भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के लिए मर्जी से तैयार होता है, तो शादी के बाद से ही वह व्यक्ति ईसाई माना जाएग। यानी यह माना जाएगा कि उसने अपना मूल धर्म त्याग दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म अपना लेता है, तो वह अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा नहीं रख सकता और आरक्षण के लाभों का दावा नहीं कर सकता। जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी ने कन्याकुमारी के थेरूर नगर पंचायत के वर्तमान अध्यक्ष को अयोग्य घोषित करते हुए यह बात कही। दरअसल, अमुथा रानी, जो मूल रूप से अनुसूचित जाति से थीं, उन्होंने ने 2005 में ईसाई व्यक्ति से शादी की थी।इसके बावजूद उन्होंने 2022 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थेरूर नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीतीं। डीएमके के सदस्य वी. अय्यप्पन ने अमुथा की योग्यता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि धर्म परिवर्तन के बाद वह अनुसूचित जाति के आरक्षण की पात्र नहीं रहीं। कोर्ट बोला- शादी के बाद मूल धर्म अपने आप बदल जाता है मद्रास हाईकोर्ट की जस्टिस एल. विक्टोरिया गोवरी ने पाया कि अमुथा रानी ने 2005 में ईसाई धर्म अपनाया था। उनकी शादी भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 के तहत हुई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति का दर्जा केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही मिलता है। इसलिए, ईसाई धर्म अपनाने के बाद, अमुथा रानी अनुसूचित जाति के आरक्षण की पात्र नहीं रहीं। जस्टिस गौरी ने कहा- अगर कोई व्यक्ति अपनी जातीय पहचान को बनाए रखते हुए किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह करना चाहता है, तो उसे ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ के तहत विवाह करना चाहिए, न कि किसी धर्म-विशिष्ट विवाह अधिनियम जैसे भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत। आंध्र प्रदेश में भी आया था धर्म बदलने के बाद आरक्षण से जुड़ा मामला गुंटूर जिले के कोथापलेम में रहने वाले अक्कला रामी रेड्डी नाम के शख्स ने ऐसे ही एक मामले में आंध्र हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। अक्कला पर हिंदू से ईसाई बने एक शख्स चिंतादा ने आरोप लगाया था कि उसने जातिसूचक गालियां दी हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस एन हरिनाथ ने कहा था कि जब चिंतादा ने खुद ही बताया था कि वह पिछले 10 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, तो पुलिस को आरोपियों पर एससी/एसटी अधिनियम नहीं लगाना चाहिए था। बेंच ने यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता चिंतादा ने एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया है, आरोपी बनाए गए रेड्डी और अन्य के खिलाफ मामला रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC) समुदाय का है, और धर्म बदल लेता है तो उसका SC का दर्जा खत्म हो जाता है। संविधान में क्या प्रावधान है संविधान (अनुसूचित जातियों) आदेश, 1950 के अनुसार केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के अनुसूचित जाति समुदायों को एससी का दर्जा प्राप्त है। अगर कोई ईसाई या मुस्लिम धर्म अपना लेता है तो उनका यह दर्जा समाप्त हो जाता है। आंध्र प्रदेश विधानसभा ने भी मार्च 2023 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया कि ईसाई धर्म अपना चुके दलितों को भी एससी दर्जा प्रदान किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आरक्षण का लाभ लेने धर्म बदलना, संविधान से धोखा कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में स्पष्ट किया था कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाने के बाद दोबारा हिंदू धर्म में लौटता है, तो उसे एससी दर्जा प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय प्रमाण और समुदाय की स्वीकृति की जरूरत होगी। केवल लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के साथ धोखा करार दिया।
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब कोई शख्स भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत शादी करने के लिए मर्जी से तैयार होता है, तो शादी के बाद से ही वह व्यक्ति ईसाई माना जाएग। यानी यह माना जाएगा कि उसने अपना मूल धर्म त्याग दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म अपना लेता है, तो वह अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा नहीं रख सकता और आरक्षण के लाभों का दावा नहीं कर सकता। जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी ने कन्याकुमारी के थेरूर नगर पंचायत के वर्तमान अध्यक्ष को अयोग्य घोषित करते हुए यह बात कही। दरअसल, अमुथा रानी, जो मूल रूप से अनुसूचित जाति से थीं, उन्होंने ने 2005 में ईसाई व्यक्ति से शादी की थी।इसके बावजूद उन्होंने 2022 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थेरूर नगर पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीतीं। डीएमके के सदस्य वी. अय्यप्पन ने अमुथा की योग्यता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि धर्म परिवर्तन के बाद वह अनुसूचित जाति के आरक्षण की पात्र नहीं रहीं। कोर्ट बोला- शादी के बाद मूल धर्म अपने आप बदल जाता है मद्रास हाईकोर्ट की जस्टिस एल. विक्टोरिया गोवरी ने पाया कि अमुथा रानी ने 2005 में ईसाई धर्म अपनाया था। उनकी शादी भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 के तहत हुई थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति का दर्जा केवल हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही मिलता है। इसलिए, ईसाई धर्म अपनाने के बाद, अमुथा रानी अनुसूचित जाति के आरक्षण की पात्र नहीं रहीं। जस्टिस गौरी ने कहा- अगर कोई व्यक्ति अपनी जातीय पहचान को बनाए रखते हुए किसी अन्य धर्म के व्यक्ति से विवाह करना चाहता है, तो उसे ‘विशेष विवाह अधिनियम, 1954’ के तहत विवाह करना चाहिए, न कि किसी धर्म-विशिष्ट विवाह अधिनियम जैसे भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम के तहत। आंध्र प्रदेश में भी आया था धर्म बदलने के बाद आरक्षण से जुड़ा मामला गुंटूर जिले के कोथापलेम में रहने वाले अक्कला रामी रेड्डी नाम के शख्स ने ऐसे ही एक मामले में आंध्र हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। अक्कला पर हिंदू से ईसाई बने एक शख्स चिंतादा ने आरोप लगाया था कि उसने जातिसूचक गालियां दी हैं। सुनवाई के दौरान जस्टिस एन हरिनाथ ने कहा था कि जब चिंतादा ने खुद ही बताया था कि वह पिछले 10 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, तो पुलिस को आरोपियों पर एससी/एसटी अधिनियम नहीं लगाना चाहिए था। बेंच ने यह देखते हुए कि शिकायतकर्ता चिंतादा ने एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया है, आरोपी बनाए गए रेड्डी और अन्य के खिलाफ मामला रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC) समुदाय का है, और धर्म बदल लेता है तो उसका SC का दर्जा खत्म हो जाता है। संविधान में क्या प्रावधान है संविधान (अनुसूचित जातियों) आदेश, 1950 के अनुसार केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के अनुसूचित जाति समुदायों को एससी का दर्जा प्राप्त है। अगर कोई ईसाई या मुस्लिम धर्म अपना लेता है तो उनका यह दर्जा समाप्त हो जाता है। आंध्र प्रदेश विधानसभा ने भी मार्च 2023 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार से अनुरोध किया गया कि ईसाई धर्म अपना चुके दलितों को भी एससी दर्जा प्रदान किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- आरक्षण का लाभ लेने धर्म बदलना, संविधान से धोखा कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में स्पष्ट किया था कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाने के बाद दोबारा हिंदू धर्म में लौटता है, तो उसे एससी दर्जा प्राप्त करने के लिए विश्वसनीय प्रमाण और समुदाय की स्वीकृति की जरूरत होगी। केवल लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करने को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के साथ धोखा करार दिया।