
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात के चलते कच्छ में लगातार 4 दिनों तक हालात तनावपूर्ण रहे। दिव्य भास्कर के 8 रिपोर्टरों की टीम कच्छ में रिपोर्टिंग कर रही थी। इसी दौरान जानकारी मिली कि कई बड़े सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम भी रद्द कर दिए गए हैं। लेकिन, कच्छ जिले के रावापार गांव में हो रहा एक कार्यक्रम ऐसा था, जिसे एन वक्त पर बंद कराना पड़ा। दरअसल, रावापार गांव में कड़वा पाटीदार समाज के देवता लक्ष्मीनारायण मंदिर के उद्घाटन की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। कार्यक्रम को यादगार बनाने के लिए गांव में तीन दिवसीय सुवर्ण अमृत महोत्सव का आयोजन किया गया था। यह कार्यक्रम 7 से 9 मई तक होना था। पहले दिन पूजा-यज्ञ का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन यानी कि 8 मई को लोक-डायरो (भजन कार्यक्रम) होना था। ड्रोन अटैक के दौरान कार्यक्रम में जमा थे करीब 5 हजार लोग
गुरुवार की रात करीब 9 बजे लोक गायक साईराम दवे का लोक डायरो शुरू हुआ। कार्यक्रम शुरू हुए मुश्किल से 20-25 मिनट ही हुए होंगे की एक नेता के मोबाइल पर कॉल आया। यह कच्छ के कलेक्टर आनंद पटेल का कॉल था। कॉल रिसीव करते ही उन्होंने सीधे कहा- तुरंत कार्यक्रम बंद करवाइए। हालात बहुत गंभीर हैं। कच्छ पर पाकिस्तान से ड्रोन अटैक हो रहे हैं। हालात की गंभीरता को समझते हुए समुदाय के नेताओं ने तुरंत कार्यक्रम रोक दिया और सभी लोगों को तुरंत अपने घर लौट जाने के लिए कह दिया गया। साथ ही अगले दिन भी कोई कार्यक्रम न होने का ऐलान कर दिया गया। कार्यक्रम में कड़वा पटेल समाज के लोग मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, गोवा और तमिलनाडु समेत देश भर से यहां पहुंचे थे। देश के कोने-कोने से लोग पहुंच थे गांव
दरअसल, मुख्य रूप से बिजनेस से जुड़े पाटीदार समाज के लोग कच्छ के बाहर बस गए हैं। लेकिन, वे हरेक धार्मिक अवसरों, त्योहारों और छोटे-बड़े कार्यक्रमों को मनाने के लिए अपने गृहनगर कच्छ जरूर आते हैं। इस महोत्सव में भाग लेने के लिए देश भर से 5 हजार से अधिक लोग कच्छ आए थे। तीन दिन के भव्य कार्यक्रम के आयोजन के लिए 30 से अधिक समितियां भी बनाई गई थीं। तीनों दिनों तक गांव में पूजा-पाठ के साथ विशाल भंडारे का भी आयोजन होना था। पूरे गांव में खुशी का माहौल था, लेकिन तभी भारत-पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बन गए और बाद के सारे कार्यक्रम रद्द करने पड़े। हैदराबाद से कच्छ आए थे कार्यक्रम के आयोजक
इस कार्यक्रम के आयोजक कांतिलाल गोरानी थे। वह फिलहाल हैदराबाद में रहते हैं। कांतिभाई पूरे परिवार के साथ यहां आए थे। उन्होंने दिव्य भास्कर को बताया कि कार्यक्रम में लोकगायक साईंराम दवे का भजन होना था। कार्यक्रम स्थल खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम शुरू ही हुआ था, तभी कलेक्टर का फोन आ गया कि कार्यक्रम तत्काल रोकिए, क्योंकि कच्छ में ब्लैकआउट किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि कार्यक्रम रद्द होने से लोग निराश थे। लेकिन ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता था। ब्लैकआउट के चलते पूरे जिले में बिजली नहीं थी। जबकि कच्छ में भीषण गर्मी होती है और ऐसे में लोगों को पूरी रात गुजारनी पड़ी। हालांकि, इसका किसी को अफसोस नहीं है, क्योंकि देश के लिए यह कष्ट कुछ भी नहीं है। हमने बच्चों को समझाया कि हमारे जवान अपनी जान जोखिम में डालकर रोज ही ऐसे दिन गुजराते हैं। गांव के कई लोगों ने देखे ड्रोन
दिव्य भास्कर से बात करते हुए कार्यक्रम के एक अन्य आयोजक जीवराजभाई पोकर ने कहा कि कच्छ में पाकिस्तान के कई ड्रोन दिखाई दिए। लेकिन हमारी आर्मी ने सभी ड्रोन हवा में ही उड़ा दिए। 1971 के बाद कच्छ में ऐसा माहौल पहली बार दिखाई दिया। रावापार गांव के दौरे के दौरान दिव्य भास्कर की टीम की मुलाकात 64 वर्षीय वजीर रमजा से हुई। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के समय उनकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी। उन्होंने कहा- मेरा जन्म कच्छ में ही हुआ है। 1971 के जंग के वक्त मैं 10 साल का था। उस समय सोशल मीडिया या मोबाइल नहीं थे। इसीलिए ब्लैकआउट की जानकारी देने पुलिस गांव में आकर और गांव के लोगों की मदद से दूसरे गांवों तक मैसेज पहुंचाती थी। मुझे आज भी याद है कि 1971 में एक बम से हमारे गांव में बड़ा गड्ढा हो गया था। उसके निशान आज भी मौजूद हैं। रावापर गांव का दौरा करने के बाद भास्कर की टीम करीब 55 किलोमीटर दूर गुजरात के आखिरी गांव नारायण सरोवर पहुंची। गांव की पूर्व सरपंच सुरुभा जडेजा ने बताया कि हमारा गांव बिल्कुल बॉर्डर पर है। यहां कई पाकिस्तानी ड्रोन पहुंचे थे, लेकिन हमारी सेना ने उन्हें मार गिराया। हम लोगों को घर छोड़कर पास के ही दूसरे गांव जाना पड़ा था। जब युद्ध विराम की खबर आई तो हम लौटे। कोटेश्वर महादेव मंदिर में किया गया अभिषेक
स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद दिव्य भास्कर की टीम 2 किलोमीटर दूर समुद्र तट पर स्थित पौराणिक कोटेश्वर महादेव मंदिर पहुंची। मंदिर के पुजारी हिरेनगिरी गोस्वामी ने हमें बताया कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनी तो हमने राष्ट्र और अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए मंदिर में अभिषेक किया। इस मौके पर आसपास के गांव को लोग भी यहां पहुंचे थे। इस युद्ध के दौरान ही नहीं, बल्कि इससे पहले भी चाहे वह कोरोना हो या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं। कोटेश्वर महादेव का अभिषेक किया जाता है, जिससे संकट टल जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना त्रेता युग में दशानंद रावण ने की थी।
भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात के चलते कच्छ में लगातार 4 दिनों तक हालात तनावपूर्ण रहे। दिव्य भास्कर के 8 रिपोर्टरों की टीम कच्छ में रिपोर्टिंग कर रही थी। इसी दौरान जानकारी मिली कि कई बड़े सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम भी रद्द कर दिए गए हैं। लेकिन, कच्छ जिले के रावापार गांव में हो रहा एक कार्यक्रम ऐसा था, जिसे एन वक्त पर बंद कराना पड़ा। दरअसल, रावापार गांव में कड़वा पाटीदार समाज के देवता लक्ष्मीनारायण मंदिर के उद्घाटन की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी। कार्यक्रम को यादगार बनाने के लिए गांव में तीन दिवसीय सुवर्ण अमृत महोत्सव का आयोजन किया गया था। यह कार्यक्रम 7 से 9 मई तक होना था। पहले दिन पूजा-यज्ञ का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन यानी कि 8 मई को लोक-डायरो (भजन कार्यक्रम) होना था। ड्रोन अटैक के दौरान कार्यक्रम में जमा थे करीब 5 हजार लोग
गुरुवार की रात करीब 9 बजे लोक गायक साईराम दवे का लोक डायरो शुरू हुआ। कार्यक्रम शुरू हुए मुश्किल से 20-25 मिनट ही हुए होंगे की एक नेता के मोबाइल पर कॉल आया। यह कच्छ के कलेक्टर आनंद पटेल का कॉल था। कॉल रिसीव करते ही उन्होंने सीधे कहा- तुरंत कार्यक्रम बंद करवाइए। हालात बहुत गंभीर हैं। कच्छ पर पाकिस्तान से ड्रोन अटैक हो रहे हैं। हालात की गंभीरता को समझते हुए समुदाय के नेताओं ने तुरंत कार्यक्रम रोक दिया और सभी लोगों को तुरंत अपने घर लौट जाने के लिए कह दिया गया। साथ ही अगले दिन भी कोई कार्यक्रम न होने का ऐलान कर दिया गया। कार्यक्रम में कड़वा पटेल समाज के लोग मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, गोवा और तमिलनाडु समेत देश भर से यहां पहुंचे थे। देश के कोने-कोने से लोग पहुंच थे गांव
दरअसल, मुख्य रूप से बिजनेस से जुड़े पाटीदार समाज के लोग कच्छ के बाहर बस गए हैं। लेकिन, वे हरेक धार्मिक अवसरों, त्योहारों और छोटे-बड़े कार्यक्रमों को मनाने के लिए अपने गृहनगर कच्छ जरूर आते हैं। इस महोत्सव में भाग लेने के लिए देश भर से 5 हजार से अधिक लोग कच्छ आए थे। तीन दिन के भव्य कार्यक्रम के आयोजन के लिए 30 से अधिक समितियां भी बनाई गई थीं। तीनों दिनों तक गांव में पूजा-पाठ के साथ विशाल भंडारे का भी आयोजन होना था। पूरे गांव में खुशी का माहौल था, लेकिन तभी भारत-पाकिस्तान के बीच जंग के हालात बन गए और बाद के सारे कार्यक्रम रद्द करने पड़े। हैदराबाद से कच्छ आए थे कार्यक्रम के आयोजक
इस कार्यक्रम के आयोजक कांतिलाल गोरानी थे। वह फिलहाल हैदराबाद में रहते हैं। कांतिभाई पूरे परिवार के साथ यहां आए थे। उन्होंने दिव्य भास्कर को बताया कि कार्यक्रम में लोकगायक साईंराम दवे का भजन होना था। कार्यक्रम स्थल खचाखच भरा हुआ था। कार्यक्रम शुरू ही हुआ था, तभी कलेक्टर का फोन आ गया कि कार्यक्रम तत्काल रोकिए, क्योंकि कच्छ में ब्लैकआउट किया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि कार्यक्रम रद्द होने से लोग निराश थे। लेकिन ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता था। ब्लैकआउट के चलते पूरे जिले में बिजली नहीं थी। जबकि कच्छ में भीषण गर्मी होती है और ऐसे में लोगों को पूरी रात गुजारनी पड़ी। हालांकि, इसका किसी को अफसोस नहीं है, क्योंकि देश के लिए यह कष्ट कुछ भी नहीं है। हमने बच्चों को समझाया कि हमारे जवान अपनी जान जोखिम में डालकर रोज ही ऐसे दिन गुजराते हैं। गांव के कई लोगों ने देखे ड्रोन
दिव्य भास्कर से बात करते हुए कार्यक्रम के एक अन्य आयोजक जीवराजभाई पोकर ने कहा कि कच्छ में पाकिस्तान के कई ड्रोन दिखाई दिए। लेकिन हमारी आर्मी ने सभी ड्रोन हवा में ही उड़ा दिए। 1971 के बाद कच्छ में ऐसा माहौल पहली बार दिखाई दिया। रावापार गांव के दौरे के दौरान दिव्य भास्कर की टीम की मुलाकात 64 वर्षीय वजीर रमजा से हुई। 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के समय उनकी उम्र मात्र 10 वर्ष थी। उन्होंने कहा- मेरा जन्म कच्छ में ही हुआ है। 1971 के जंग के वक्त मैं 10 साल का था। उस समय सोशल मीडिया या मोबाइल नहीं थे। इसीलिए ब्लैकआउट की जानकारी देने पुलिस गांव में आकर और गांव के लोगों की मदद से दूसरे गांवों तक मैसेज पहुंचाती थी। मुझे आज भी याद है कि 1971 में एक बम से हमारे गांव में बड़ा गड्ढा हो गया था। उसके निशान आज भी मौजूद हैं। रावापर गांव का दौरा करने के बाद भास्कर की टीम करीब 55 किलोमीटर दूर गुजरात के आखिरी गांव नारायण सरोवर पहुंची। गांव की पूर्व सरपंच सुरुभा जडेजा ने बताया कि हमारा गांव बिल्कुल बॉर्डर पर है। यहां कई पाकिस्तानी ड्रोन पहुंचे थे, लेकिन हमारी सेना ने उन्हें मार गिराया। हम लोगों को घर छोड़कर पास के ही दूसरे गांव जाना पड़ा था। जब युद्ध विराम की खबर आई तो हम लौटे। कोटेश्वर महादेव मंदिर में किया गया अभिषेक
स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद दिव्य भास्कर की टीम 2 किलोमीटर दूर समुद्र तट पर स्थित पौराणिक कोटेश्वर महादेव मंदिर पहुंची। मंदिर के पुजारी हिरेनगिरी गोस्वामी ने हमें बताया कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बनी तो हमने राष्ट्र और अपने सैनिकों की सुरक्षा के लिए मंदिर में अभिषेक किया। इस मौके पर आसपास के गांव को लोग भी यहां पहुंचे थे। इस युद्ध के दौरान ही नहीं, बल्कि इससे पहले भी चाहे वह कोरोना हो या तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं। कोटेश्वर महादेव का अभिषेक किया जाता है, जिससे संकट टल जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना त्रेता युग में दशानंद रावण ने की थी।