
आतंकवाद से 1990 के दशक में प्रभावित रही चिनाब घाटी में एक बार फिर दहशतगर्दों की मौजूदगी बढ़ रही है। बीते दो वर्षों में इस क्षेत्र में आतंकी हमले बढ़े हैं। पहलगाम हमले से पहले ही भद्रवाह, डोडा और किश्तवाड़ के जंगलों में आतंकियों के सक्रिय होने की सूचना सुरक्षा एजेंसियों को मिली है।
ग्रामीणों की ओर से लगातार संदिग्धों को देखा जाना इसे और पुष्ट करता है। इसके बाद इलाके की न सिर्फ ड्रोन से निगरानी की जा रही है, बल्कि सेना के साथ ग्राम सुरक्षा गार्ड (वीडीजी) भी मुस्तैद हो गए हैं।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, चिनाब घाटी बीते कुछ वर्षों से शांत थी। लेकिन, आतंकी अब उन पारंपरिक रास्तों को अपना रहे हैं, जिन्हें दहशतगर्दी के लिए 1990 के दशक में इस्तेमाल किया जाता रहा है।
भद्रवाह, डोडा, किश्तवाड़ में हुए आतंकी हमले इस बात का संकेत दे रहे हैं कि चिनाब घाटी में आतंकी दोबारा पैर पसारने की कोशिश कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियां इसे गंभीरता से ले रही हैं। डोडा के तरवन इलाके के जंगलों में अप्रैल में ही स्थानीय लोगों ने तीन से चार संदिग्ध देखने की बात कही थी। इसके बाद सुरक्षाबलाें ने इलाके की घेराबंदी कड़ी कर दी है।
रणनीति बनाने में जुटे
डोडा, किश्तवाड़ के जंगलों में आतंकियों की मौजूदगी से इन्कार नहीं किया जा सकता। इन जिलों में सेना की मौजूदगी ठीक-ठाक है, जिसका अपने इलाके पर अच्छा नियंत्रण है। एजेंसियां आतंकियों को इन जंगलों से होते हुए कश्मीर घाटी की तरफ जाने से रोकने के लिए अपनी रणनीति पर काम कर रही हैं। -विजय सागर, ब्रिगेडियर, सेवानिवृत्त
पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के घर डोडा-किश्तवाड़ में
डोडा और किश्तवाड़ जिले में उन आतंकियों के परिवार रहते हैं, जो पाकिस्तान से सक्रिय हैं। ये आतंकी 1990 के दशक में आतंकवाद के दौरान सीमा पार भा गए थे। उसके बाद वहां बैठकर चिनाब घाटी में वारदात को अंजाम देने के लिए स्थानीय स्तर पर आतंकी मददगारों के संपर्क में हैं।