
भाजपा में जल्द ही संगठन स्तर पर बड़ा फेरबदल होने वाला है। नए साल में जनवरी के आखिरी या फरवरी के पहले हफ्ते में पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है। हालांकि पार्टी के संविधान के मुताबिक इससे पहले 50 प्रतिशत राज्यों में संगठन के चुनाव पूरे कराने हैं। इसके अलावा 15 जनवरी तक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जाएंगे। संगठन चुनाव को लेकर रविवार को दिल्ली में पार्टी की बैठक हुई। बैठक के बाद लद्दाख भाजपा महासचिव पीटी कुंजांग ने बताया- 15 जनवरी, 2025 तक राज्य और जिला अध्यक्षों के चुनाव पूरे होने हैं। इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी और जनवरी अंत तक भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा की जाएगी। इसके अलावा, इस साल 25 दिसंबर को अटल जी की 100 जयंती के उपलक्ष्य में, बैठक में 25 दिसंबर 2025 तक पूरे साल सुशासन और संविधान पर्व मनाने का फैसला लिया गया है। लोकसभा-विधानसभा चुनाव के चलते नड्डा का कार्यकाल बढ़ा
जेपी नड्डा को जून, 2019 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष और जनवरी, 2020 में पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया गया था। पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है। इस लिहाज से नड्डा का कार्यकाल 2023 में खत्म हो चुका है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था। भाजपा के संविधान के मुताबिक कोई व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक लगातार अध्यक्ष रह सकता है। नड्डा के केंद्रीय मंत्रिमंडल में जाने के बाद उनके दोबारा अध्यक्ष बनने की संभावना खत्म हो चुकी है। इसकी वजह भाजपा का एक व्यक्ति-एक पद नियम है। पद के लिए आयु सीमा तय, युवाओं को अहमियत
भाजपा अपने संगठन में युवाओं को महत्व देने के लिए पहले ही आयु सीमा तय कर चुकी है। इसके लिए जिलों के भीतर बनाए जाने वाले मंडल अध्यक्ष की उम्र 35 से 45 साल के बीच निर्धारित की गई है। वहीं, जिलाध्यक्ष की उम्र 45 से 60 साल के बीच होगी। जिलाध्यक्ष के लिए संगठन में 7 से 8 साल तक काम करने का अनुभव भी जरूरी किया गया है। इनका चुनाव 15 जनवरी तक पूरा कराए जाने का लक्ष्य है। लगातार दो बार मंडल अध्यक्ष या जिलाध्यक्ष रह चुके व्यक्ति को तीसरी बार मौका नहीं मिलेगा। साथ ही तय हुआ है कि संगठन के किसी पद पर काम कर रहे व्यक्ति को ही जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा। अब राज्यवार प्रदेश अध्यक्षों की स्थिति समझिए… मध्य प्रदेश मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो चुका है। उन्हें 2020 में प्रदेश की कमान मिली थी, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शर्मा का कार्यकाल बढ़ाया गया था। वीडी शर्मा खजुराहो से सांसद हैं और उन्हें दूसरा कार्यकाल मिलने की उम्मीद कम ही है। इस वजह से जातिगत और क्षेत्रगत राजनीति को देखते हुए कई नाम प्रदेश अध्यक्ष की रेस में चल रहे हैं। इनमें नरोत्तम मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, सुमेर सिंह सोलंकी, लाल सिंह आर्य अहम हैं। पूरी खबर पढ़ें… उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल पूरा होने में अभी छह महीने बाकी हैं, लेकिन संगठन चुनाव के बाद किसी अन्य को राज्य संगठन की कमान सौंपी जाएगी। चर्चा है कि अखिलेश यादव के PDA फार्मूले (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की काट के लिए भाजपा पिछड़े या दलित समाज के नेता को प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी दे सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस पर सैद्धांतिक सहमति भी बन चुकी है। हालांकि कुछ ब्राह्मण चेहरे भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में हैं। पूरी खबर पढ़ें… महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद राज्य भाजपा को नया मुखिया मिलना तय है। उन्हें अगस्त, 2022 में अध्यक्ष बनाया गया था। नए अध्यक्ष की रेस में रविंद्र चव्हाण का नाम सबसे आगे है। चव्हाण डोंबिवली सीट से चौथी बार विधायक हैं और CM देवेंद्र फडणवीस के करीबी हैं। वे शिंदे सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 2014 में देवेंद्र मंत्रिमंडल का भी हिस्सा थे, लेकिन इस बार उन्हें सरकार में जगह नहीं मिली। ऐसे में रविंद्र चव्हाण का प्रदेश अध्यक्ष बनना लगभग तय है। झारखंड विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव हो सकता है। आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने भाजपा अपने आदिवासी नेता और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना सकती है। वहीं, रघुवर दास के ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफे के बाद उन्हें प्रदेश भाजपा की कमान सौंपने की चर्चा तेज है। वे राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। PM मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से करीबी के चलते उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा हो रही है। गुजरात मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल केंद्र में मंत्री हैं। ऐसे में एक व्यक्ति-एक पद फॉर्मूले के चलते राज्य संगठन को नया अध्यक्ष मिलना तय है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल पाटीदार वर्ग से आते हैं, इस लिहाज से किसी गैर पाटीदार नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में तीन बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवूसिंह चौहान, जामनगर से तीसरी बार की सांसद पूनम माडम और पूर्व सांसद डॉ. किरीट सोलंकी का नाम सबसे आगे है। पश्चिम बंगाल मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद राज्य भाजपा को नया अध्यक्ष मिलेगा। इसके लिए अग्निमित्रा पॉल का नाम सबसे आगे चल रही हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने महिला चेहरा होने की उन्हें फायदा मिल सकता है। पॉल आसनसोल दक्षिण से विधायक के साथ ही प्रदेश महासचिव हैं। इनके अलावा OBC नेता और पुरुलिया सांसद ज्योतिर्मय महतो और राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य के नाम की भी चर्चा है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ने इस्तीफा दे दिया था। रैना अपनी विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाए थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के सुरिंदर चौधरी ने उन्हें करीब साढ़े सात हजार वोट से हराया था। चौधरी इस समय डिप्टी CM हैं। अब राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर राजनीतिक समीकरण समझिए… अंबेडकर विवाद के बीच दलित अध्यक्ष की अटकलें
अमित शाह के अंबेडकर पर दिए बयान के बीच भाजपा को दूसरी बार दलित अध्यक्ष मिल सकता है। भाजपा के पांचवे अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण दलित समुदाय से थे। हालिया विवाद से पहले कांग्रेस, भाजपा पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे आरोप लगा चुकी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इससे बड़ा नुकसान हुआ है। पार्टी 303 से 240 लोकसभा सीटों पर आ चुकी है। विपक्ष भाजपा के मातृ संगठन RSS पर भी लगातार दलित विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है। इसके पीछे आज तक किसी दलित के संघ प्रमुख न बनने का तर्क दिया जाता है। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी दलित समुदाय से आते हैं। इस लिहाज से दलितों को साधने के लिए भाजपा किसी दलित चेहरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है। ऐसे में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम, उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य का नाम सबसे आगे है। उत्तर प्रदेश में मायावती के कमजोर होने से दलित वोटों में बिखराव हुआ है। इसका फायदा उठाने के लिए भाजपा यूपी से किसी दलित चेहरे को पार्टी के शीर्ष पद पर बैठा सकती है। ऐसे में बेबी रानी मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं। दक्षिण भारतीय चेहरे पर भी चल रहा है मंथन
भाजपा के भीतर किसी दक्षिण भारतीय को अध्यक्ष बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। इससे पहले तीन दक्षिण भारतीय नेता पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं। बंगारू लक्ष्मण दलित के साथ ही पहले दक्षिण भारतीय अध्यक्ष भी थे। उनके बाद के जना कृष्णमूर्ति और वेंकैया नायडू भी पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा दक्षिणी राज्यों में विस्तार की लगातार कोशिश कर रही है। हालिया चुनावों में पार्टी को इसका फायदा भी मिला है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार केरल में एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। इसके अलावा तेलंगाना में भाजपा के विधायकों की संख्या 5 से बढ़कर 8 हुई है। दक्षिणी राज्यों में पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ रहा है। इसके अलावा क्षेत्रीय समीकरण की बात करें तो मौजूदा राष्ट्रपति पूर्वी भारत, उप राष्ट्रपति पश्चिम भारत से और प्रधानमंत्री उत्तर भारत (वाराणसी के सांसद) से आते हैं। ऐसे में दक्षिण भारतीय नेता को जिम्मेदारी मिलने की संभावना है। अब तक निर्विरोध होता आया है चुनाव
भाजपा में अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध होता आया है। यानी सिर्फ एक ही व्यक्ति नामांकन करता है और बिना वोटिंग अध्यक्ष चुन लिया जाता है। इस बार भी यही परंपरा रहने की उम्मीद है। हालांकि, 2013 में जब नितिन गडकरी को दोबारा अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब यशवंत सिन्हा ने नामांकन पर्चा लिया था। इससे बवाल मच गया था, लेकिन जब गडकरी ने अनिच्छा दिखाई, तब सिन्हा ने पर्चा वापस लिया था और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष चुना गया था। अब भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया समझिए…
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए पार्टी के संविधान में स्पष्ट निर्देश हैं। अध्यक्ष का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा। इसमें राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषदों के सदस्य होंगे। अध्यक्ष चुने जाने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति कम से कम 15 साल तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहा हो। धारा-19 में कहा गया है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी 20 सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव रख सकते हैं। यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम 5 ऐसे प्रदेशों से भी आना जरूरी है, जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों। इसके अलावा इस तरह के चुनाव के लिए नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति भी जरूरी है। भाजपा के संविधान के मुताबिक कम से कम 50% राज्यों में संगठन चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जा सकता है। इस लिहाज से देश के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में संगठन के चुनाव के बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। क्या है राष्ट्रीय परिषद
इसमें पार्टी के संसद सदस्यों में से 10 प्रतिशत सदस्य चुने जाते हैं, जिनकी संख्या दस से कम न हो। यदि संसद सदस्यों की कुल संख्या दस से कम हो तो सभी चुने जाएंगे। परिषद में पार्टी के सभी भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेशों के अध्यक्ष, लोकसभा, राज्यसभा में पार्टी के नेता, सभी प्रदेशों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में पार्टी नेता सदस्य होंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से अधिक से अधिक 40 सदस्य नामांकित किए जा सकते हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी सदस्य भी इसमें शामिल होते हैं। विभिन्न मोर्चों और प्रकोष्ठों के अध्यक्ष और संयोजक भी सदस्य होते हैं। सभी को 100 रुपए का सदस्यता शुल्क देना पड़ता है। भाजपा का संगठनात्मक ढांचा
भाजपा का पूरा संगठन राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर तक तकरीबन सात भागों में बंटा है। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी, प्रदेश स्तर पर प्रदेश परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी होती हैं। इसके बाद क्षेत्रीय समितियां, जिला समितियां, मंडल समितियां होती हैं। फिर ग्राम और शहरी केंद्र होते हैं और स्थानीय समितियों का भी गठन होता है। स्थानीय समिति पांच हजार से कम की जनसंख्या पर गठित होती है। ———————————————– भाजपा संगठन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… UP भाजपा को मिलेगा नया प्रदेश अध्यक्ष, अखिलेश के PDA की काट के साथ वोट बैंक पर नजर उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति जनवरी में हो सकती है। नए अध्यक्ष ही संगठन के मोर्चे पर विधानसभा चुनाव 2027 में कमान संभालेंगे। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार लखनऊ में समीकरण बैठाने के साथ दिल्ली में भाजपा मुख्यालय से लेकर नागपुर में RSS मुख्यालय तक को साधने में जुटे हैं। पूरी खबर पढ़ें…
भाजपा में जल्द ही संगठन स्तर पर बड़ा फेरबदल होने वाला है। नए साल में जनवरी के आखिरी या फरवरी के पहले हफ्ते में पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है। हालांकि पार्टी के संविधान के मुताबिक इससे पहले 50 प्रतिशत राज्यों में संगठन के चुनाव पूरे कराने हैं। इसके अलावा 15 जनवरी तक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पश्चिम बंगाल, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष भी बदले जाएंगे। संगठन चुनाव को लेकर रविवार को दिल्ली में पार्टी की बैठक हुई। बैठक के बाद लद्दाख भाजपा महासचिव पीटी कुंजांग ने बताया- 15 जनवरी, 2025 तक राज्य और जिला अध्यक्षों के चुनाव पूरे होने हैं। इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष की चुनाव प्रक्रिया शुरू होगी और जनवरी अंत तक भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा की जाएगी। इसके अलावा, इस साल 25 दिसंबर को अटल जी की 100 जयंती के उपलक्ष्य में, बैठक में 25 दिसंबर 2025 तक पूरे साल सुशासन और संविधान पर्व मनाने का फैसला लिया गया है। लोकसभा-विधानसभा चुनाव के चलते नड्डा का कार्यकाल बढ़ा
जेपी नड्डा को जून, 2019 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष और जनवरी, 2020 में पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया गया था। पार्टी अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है। इस लिहाज से नड्डा का कार्यकाल 2023 में खत्म हो चुका है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों को देखते हुए उनका कार्यकाल बढ़ाया गया था। भाजपा के संविधान के मुताबिक कोई व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक लगातार अध्यक्ष रह सकता है। नड्डा के केंद्रीय मंत्रिमंडल में जाने के बाद उनके दोबारा अध्यक्ष बनने की संभावना खत्म हो चुकी है। इसकी वजह भाजपा का एक व्यक्ति-एक पद नियम है। पद के लिए आयु सीमा तय, युवाओं को अहमियत
भाजपा अपने संगठन में युवाओं को महत्व देने के लिए पहले ही आयु सीमा तय कर चुकी है। इसके लिए जिलों के भीतर बनाए जाने वाले मंडल अध्यक्ष की उम्र 35 से 45 साल के बीच निर्धारित की गई है। वहीं, जिलाध्यक्ष की उम्र 45 से 60 साल के बीच होगी। जिलाध्यक्ष के लिए संगठन में 7 से 8 साल तक काम करने का अनुभव भी जरूरी किया गया है। इनका चुनाव 15 जनवरी तक पूरा कराए जाने का लक्ष्य है। लगातार दो बार मंडल अध्यक्ष या जिलाध्यक्ष रह चुके व्यक्ति को तीसरी बार मौका नहीं मिलेगा। साथ ही तय हुआ है कि संगठन के किसी पद पर काम कर रहे व्यक्ति को ही जिलाध्यक्ष बनाया जाएगा। अब राज्यवार प्रदेश अध्यक्षों की स्थिति समझिए… मध्य प्रदेश मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो चुका है। उन्हें 2020 में प्रदेश की कमान मिली थी, लेकिन लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर शर्मा का कार्यकाल बढ़ाया गया था। वीडी शर्मा खजुराहो से सांसद हैं और उन्हें दूसरा कार्यकाल मिलने की उम्मीद कम ही है। इस वजह से जातिगत और क्षेत्रगत राजनीति को देखते हुए कई नाम प्रदेश अध्यक्ष की रेस में चल रहे हैं। इनमें नरोत्तम मिश्रा, रामेश्वर शर्मा, सुमेर सिंह सोलंकी, लाल सिंह आर्य अहम हैं। पूरी खबर पढ़ें… उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल पूरा होने में अभी छह महीने बाकी हैं, लेकिन संगठन चुनाव के बाद किसी अन्य को राज्य संगठन की कमान सौंपी जाएगी। चर्चा है कि अखिलेश यादव के PDA फार्मूले (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की काट के लिए भाजपा पिछड़े या दलित समाज के नेता को प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी दे सकती है। सूत्रों के मुताबिक इस पर सैद्धांतिक सहमति भी बन चुकी है। हालांकि कुछ ब्राह्मण चेहरे भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में हैं। पूरी खबर पढ़ें… महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले के महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद राज्य भाजपा को नया मुखिया मिलना तय है। उन्हें अगस्त, 2022 में अध्यक्ष बनाया गया था। नए अध्यक्ष की रेस में रविंद्र चव्हाण का नाम सबसे आगे है। चव्हाण डोंबिवली सीट से चौथी बार विधायक हैं और CM देवेंद्र फडणवीस के करीबी हैं। वे शिंदे सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 2014 में देवेंद्र मंत्रिमंडल का भी हिस्सा थे, लेकिन इस बार उन्हें सरकार में जगह नहीं मिली। ऐसे में रविंद्र चव्हाण का प्रदेश अध्यक्ष बनना लगभग तय है। झारखंड विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश संगठन में बदलाव हो सकता है। आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने भाजपा अपने आदिवासी नेता और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बना सकती है। वहीं, रघुवर दास के ओडिशा के राज्यपाल पद से इस्तीफे के बाद उन्हें प्रदेश भाजपा की कमान सौंपने की चर्चा तेज है। वे राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। PM मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से करीबी के चलते उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की भी चर्चा हो रही है। गुजरात मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल केंद्र में मंत्री हैं। ऐसे में एक व्यक्ति-एक पद फॉर्मूले के चलते राज्य संगठन को नया अध्यक्ष मिलना तय है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल पाटीदार वर्ग से आते हैं, इस लिहाज से किसी गैर पाटीदार नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में तीन बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री देवूसिंह चौहान, जामनगर से तीसरी बार की सांसद पूनम माडम और पूर्व सांसद डॉ. किरीट सोलंकी का नाम सबसे आगे है। पश्चिम बंगाल मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद राज्य भाजपा को नया अध्यक्ष मिलेगा। इसके लिए अग्निमित्रा पॉल का नाम सबसे आगे चल रही हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने महिला चेहरा होने की उन्हें फायदा मिल सकता है। पॉल आसनसोल दक्षिण से विधायक के साथ ही प्रदेश महासचिव हैं। इनके अलावा OBC नेता और पुरुलिया सांसद ज्योतिर्मय महतो और राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य के नाम की भी चर्चा है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ने इस्तीफा दे दिया था। रैना अपनी विधानसभा सीट भी नहीं बचा पाए थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के सुरिंदर चौधरी ने उन्हें करीब साढ़े सात हजार वोट से हराया था। चौधरी इस समय डिप्टी CM हैं। अब राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर राजनीतिक समीकरण समझिए… अंबेडकर विवाद के बीच दलित अध्यक्ष की अटकलें
अमित शाह के अंबेडकर पर दिए बयान के बीच भाजपा को दूसरी बार दलित अध्यक्ष मिल सकता है। भाजपा के पांचवे अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण दलित समुदाय से थे। हालिया विवाद से पहले कांग्रेस, भाजपा पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने जैसे आरोप लगा चुकी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इससे बड़ा नुकसान हुआ है। पार्टी 303 से 240 लोकसभा सीटों पर आ चुकी है। विपक्ष भाजपा के मातृ संगठन RSS पर भी लगातार दलित विरोधी होने का आरोप लगाता रहा है। इसके पीछे आज तक किसी दलित के संघ प्रमुख न बनने का तर्क दिया जाता है। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी दलित समुदाय से आते हैं। इस लिहाज से दलितों को साधने के लिए भाजपा किसी दलित चेहरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकती है। ऐसे में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम, उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बेबी रानी मौर्य का नाम सबसे आगे है। उत्तर प्रदेश में मायावती के कमजोर होने से दलित वोटों में बिखराव हुआ है। इसका फायदा उठाने के लिए भाजपा यूपी से किसी दलित चेहरे को पार्टी के शीर्ष पद पर बैठा सकती है। ऐसे में बेबी रानी मजबूत दावेदार मानी जा रही हैं। दक्षिण भारतीय चेहरे पर भी चल रहा है मंथन
भाजपा के भीतर किसी दक्षिण भारतीय को अध्यक्ष बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। इससे पहले तीन दक्षिण भारतीय नेता पार्टी के अध्यक्ष बन चुके हैं। बंगारू लक्ष्मण दलित के साथ ही पहले दक्षिण भारतीय अध्यक्ष भी थे। उनके बाद के जना कृष्णमूर्ति और वेंकैया नायडू भी पार्टी अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजपा दक्षिणी राज्यों में विस्तार की लगातार कोशिश कर रही है। हालिया चुनावों में पार्टी को इसका फायदा भी मिला है। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार केरल में एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। इसके अलावा तेलंगाना में भाजपा के विधायकों की संख्या 5 से बढ़कर 8 हुई है। दक्षिणी राज्यों में पार्टी का वोट प्रतिशत भी बढ़ रहा है। इसके अलावा क्षेत्रीय समीकरण की बात करें तो मौजूदा राष्ट्रपति पूर्वी भारत, उप राष्ट्रपति पश्चिम भारत से और प्रधानमंत्री उत्तर भारत (वाराणसी के सांसद) से आते हैं। ऐसे में दक्षिण भारतीय नेता को जिम्मेदारी मिलने की संभावना है। अब तक निर्विरोध होता आया है चुनाव
भाजपा में अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव निर्विरोध होता आया है। यानी सिर्फ एक ही व्यक्ति नामांकन करता है और बिना वोटिंग अध्यक्ष चुन लिया जाता है। इस बार भी यही परंपरा रहने की उम्मीद है। हालांकि, 2013 में जब नितिन गडकरी को दोबारा अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तब यशवंत सिन्हा ने नामांकन पर्चा लिया था। इससे बवाल मच गया था, लेकिन जब गडकरी ने अनिच्छा दिखाई, तब सिन्हा ने पर्चा वापस लिया था और राजनाथ सिंह को अध्यक्ष चुना गया था। अब भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया समझिए…
भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के लिए पार्टी के संविधान में स्पष्ट निर्देश हैं। अध्यक्ष का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाएगा। इसमें राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषदों के सदस्य होंगे। अध्यक्ष चुने जाने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति कम से कम 15 साल तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहा हो। धारा-19 में कहा गया है कि निर्वाचक मंडल में से कोई भी 20 सदस्य राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की योग्यता रखने वाले व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव रख सकते हैं। यह संयुक्त प्रस्ताव कम से कम 5 ऐसे प्रदेशों से भी आना जरूरी है, जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव संपन्न हो चुके हों। इसके अलावा इस तरह के चुनाव के लिए नामांकन पत्र पर उम्मीदवार की स्वीकृति भी जरूरी है। भाजपा के संविधान के मुताबिक कम से कम 50% राज्यों में संगठन चुनाव के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जा सकता है। इस लिहाज से देश के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में संगठन के चुनाव के बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता है। क्या है राष्ट्रीय परिषद
इसमें पार्टी के संसद सदस्यों में से 10 प्रतिशत सदस्य चुने जाते हैं, जिनकी संख्या दस से कम न हो। यदि संसद सदस्यों की कुल संख्या दस से कम हो तो सभी चुने जाएंगे। परिषद में पार्टी के सभी भूतपूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेशों के अध्यक्ष, लोकसभा, राज्यसभा में पार्टी के नेता, सभी प्रदेशों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में पार्टी नेता सदस्य होंगे। इसके अलावा राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से अधिक से अधिक 40 सदस्य नामांकित किए जा सकते हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सभी सदस्य भी इसमें शामिल होते हैं। विभिन्न मोर्चों और प्रकोष्ठों के अध्यक्ष और संयोजक भी सदस्य होते हैं। सभी को 100 रुपए का सदस्यता शुल्क देना पड़ता है। भाजपा का संगठनात्मक ढांचा
भाजपा का पूरा संगठन राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर तक तकरीबन सात भागों में बंटा है। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय परिषद और राष्ट्रीय कार्यकारिणी, प्रदेश स्तर पर प्रदेश परिषद और प्रदेश कार्यकारिणी होती हैं। इसके बाद क्षेत्रीय समितियां, जिला समितियां, मंडल समितियां होती हैं। फिर ग्राम और शहरी केंद्र होते हैं और स्थानीय समितियों का भी गठन होता है। स्थानीय समिति पांच हजार से कम की जनसंख्या पर गठित होती है। ———————————————– भाजपा संगठन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… UP भाजपा को मिलेगा नया प्रदेश अध्यक्ष, अखिलेश के PDA की काट के साथ वोट बैंक पर नजर उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति जनवरी में हो सकती है। नए अध्यक्ष ही संगठन के मोर्चे पर विधानसभा चुनाव 2027 में कमान संभालेंगे। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार लखनऊ में समीकरण बैठाने के साथ दिल्ली में भाजपा मुख्यालय से लेकर नागपुर में RSS मुख्यालय तक को साधने में जुटे हैं। पूरी खबर पढ़ें…