
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति ने मां सुधा मूर्ति अपने बचपन और परवरिश को लेकर बातचीत की। फ्रंट लॉन में हुए माई मदर माई लाइफ सेशन में अक्षता ने मां से पूछा कि उन्होंने हमें बचपन में पार्टी क्यों नहीं करने दी, इसका मुझे तब बुरा भी लगा था। सेशन में सुधा मूर्ति ने एक सवाल के जवाब में कहा कि – उनके पिता नास्तिक थे, वे केवल सेवा में विश्वास करते थे। मां-बेटी के इस इंटरेस्टिंग सेशन के दौरान पूर्व ब्रिटिश पीएम और सुधा मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक भी मौजूद थे। इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति भी पत्नी व बेटी के सेशन को सुनने पहुंचे थे। राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत भी दर्शकों के बीच बैठे नजर आए। जेएलएफ का आज तीसरा दिन है। सर्वे का दावा- जयपुर में हर दूसरी महिला यौन उत्पीड़न की शिकार
जेएलएफ में ‘द सिटी थ्रू हर आईज़: वॉइस ऑन सेक्सुअल हरासमेंट इन इंडिया” विषय पर चर्चा की गई। सेशन में जे-पाल एशिया की ओर से यौन उत्पीड़न पर एक सर्वे पेश किया। सर्वे में बताया गया कि जयपुर में हर 2 महिलाओं में से एक महिला ने यौन उत्पीड़न का सामना किया है। वहीं, दिल्ली में 3 महिलाओं में से 2 महिलाएं इसकी शिकार हुई हैं। सेशन के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय से इन आकड़ों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा- मुझे इस पद्धति से ही संकोच है। क्योंकि ये रेडम जांच करते हैं। महिला कितना सच बोल रही है या नहीं। हमे डेटा चाहिए। सर्वे भी चाहिए, लेकिन रेंडम ट्रायल के साथ परेशानी होती है। अब पढ़िए- बेटी अक्षता मूर्ति के सवालों पर मां सुधा मूर्ति के जवाब.. अक्षता मूर्ति:- हमने सीखा कि अगर आप 20 की उम्र में आदर्शवादी नहीं हैं। आपके पास दिल नहीं है, अगर आप 40 के बाद भी आदर्शवादी हैं तो इसका मतलब है। यू डोंट हैव अ ब्रेन। क्या आदर्शवादी होना सिर्फ बचपन तक सीमित है? सुधा मूर्ति:- मैं 74 साल की उम्र में भी आदर्शवादी हूं। मैंने बच्चों को सिखाया, आपको सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना है। दिल साफ रखना है। जैसा सोचो, वैसा ही बोलो, वैसा करो। ऐसा नहीं कि कुछ सोच रहे, कुछ कर रहे और बोल कुछ और रहे। तभी अच्छी जिंदगी जी पाओगे। अक्षता मूर्ति:- अम्मा, मैं सब कुछ जानना चाहती हूं। यह रिश्ता मेरे लिए बेहद खास है, लेकिन हम घंटों बैठकर बात नहीं कर सकते। आज 45 मिनट मिले हैं तो मुझे काफी फोकस रखना होगा। इसलिए मैं तुम्हारे सबसे पसंदीदा विषय किताब पर बात करना चाहती हूं, तुम किताबों को कैसे पढ़ती हो और उससे कैसे सीखते हो? सुधा मूर्ति: -यह सेशन मां – बेटी का डिस्कशन क्लब नहीं होगा, उससे कहीं आगे की बातें होंगी। हम किताबों पर बात करेंगे, कैसे किताबें अज्ञान दूर करती हैं, ज्ञान देती। सभी माएं बेटी से प्यार करती हैं और सभी पिता बेटों से। अक्षता मूर्ति: – तुमने अपनी कहानियों के जरिए मुझे सारी नॉलेज दी। साइंस की, हिस्ट्री की फिलोसॉफी की सबकी बातें बताई। लेकिन सबसे जरूरी बात जो तुमने सिखाई कि स्कूल के लिए नहीं बल्कि लाइफ के लिए पढ़ो। यह सोच कैसे आई? सुधा मूर्ति:- मैं शिक्षकों के परिवार से आई। सिर्फ नारायण मूर्ति ऐसे थे जो व्यापार की तरफ चले गए। हर ओकेजन पर किताबें दी जाती थी। कहा जाता था कि नॉलेज सबसे महत्वपूर्ण है। मैं किताबों के साथ बड़ी हुई, पैसों के साथ नहीं। इसीलिए मैंने तुम्हें और रोहन को किताबें दी। इसी के साथ बड़ा किया। अक्षता मूर्ति: – तुम्हारे पास लिटरेचर की किताबें थीं। पापा के साइंस एंड टेक्नोलॉजी। हमने दोनों को मिलाकर अपनी लाइब्रेरी बनाई। मैं जानना चाहती हूं कि तुम्हारी इतनी किताबों में कौन सी ऐसी किताब हैं जो तुम्हारे ‘लव फॉर लर्निंग’ की वैल्यू को प्रमोट करती हैं? सुधा मूर्ति: – ‘हाउ आई टॉट माय ग्रैंड मदर’ यह मेरी ऐसी किताब है। जो मुझे बेहद पसंद है। मेरी दादी 62 साल की थी, मैं 12 साल की थी। वे कन्नड़ सीखना चाहती थीं। मैंने पूछा इतनी उम्र में कैसे सीखोगे। उन्होंने कहा सीखने की कोई उम्र नहीं होती। लेकिन जब मैंने अपनी दादी को सिखाया तो उन्होंने एक बार मेरे पांव छू लिए। उन्होंने कहा कि जिसने मुझे एक भी अक्षर सिखाया वह गुरु है। अक्षता मूर्ति – आपने मुझे जन्मदिन पर पार्टी करने नहीं दी, उन पैसों का अपने चैरिटी करना सिखाया। तब मुझे बुरा लगा, लेकिन वह नींव थी। आपने CSR तब किया और सिखाया, जब यह फैशनेबल नहीं था और न ही मैंडेटरी। आपने सिखाया कि ड्यूटी करो, रिजल्ट की चिंता मत करो। इसकी नींव कैसे पड़ी। सुधा मूर्ति – लेकिन मैंने तुम्हें फ्रूटी और समोसा दिया। मेरी दादी विधवा थी। वह कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन वह बच्चों की डिलीवरी की एक्सपर्ट थी। पूरे गांव में यह काम करती थी। वह जाती थी डिलीवरी करती थी। वापस आती थी, कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की। मेरे पिता नास्तिक थे। वे भगवान में नहीं मानते थे। उनके लिए सेवा ही ईश्वर जैसा था। इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैंने कुछ खास किया है। मैं सोचती हूं कि जब मैं ईश्वर से मिलूंगी तो कहूंगी- मैंने बच्चों की सेवा की, वैसे ही जैसे तुम्हारी भक्ति करती। अक्षता मूर्ति:- हम सबने गीता में पढ़ा कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…आपके पास इससे जुड़ा एक किस्सा है, मैं जानती हूं। आप वह बताइए? सुधा मूर्ति:- ‘थ्री थाउजेंड स्टिचेस’ इस किताब में मैंने उसका जिक्र किया है। 20 साल पहले मैं सेक्स वर्कर्स के पास गई? मुझे लगा कि मैं अगर 10 को भी बदल पाई तो बड़ी बात होगी, लेकिन मैंने 3000 सेक्स वर्कर्स की जिंदगी बदली। मैंने किताब में यही लिखा। पहले उन्होंने मुझ पर टमाटर फेंके मुझे जलील किया। मैंने सोचा कि मैं यह क्यों कर रही हूं, लेकिन फिर मुझे लगा कि यह करना बेहद जरूरी है। इसलिए मैंने फल की चिंता किए बगैर काम किया। इसमें नारायण मूर्ति का काफी सपोर्ट था। मैं अपने पति को अपना दोस्त मानती हूं, पति नहीं। अक्षता मूर्ति:- मुझे एक किताब पसंद है। इस किताब में कॉलेज में मिले एक प्रेमी युगल की कहानी है। जैसे मैं और ऋषि मिले। हालांकि मुझे हैप्पी एंडिंग पसंद है, लेकिन इस किताब में हैप्पी एंडिंग नहीं है। यह किताब मुझे बहुत पसंद है। आपको ऐसी कौन सी किताब पसंद है जो आदर्शवाद के विचार से मिलती हो? सुधा मूर्ति:- मेरी एक किताब का चैप्टर है। अ वेडिंग टू रिमेंबर वह मेरे लिए काफी खास है। एक बार मुझे किसी शादी का न्योता आया। मैं पंडित नहीं हूं, लेकिन मुझे कहा गया कि आप नहीं आओगे तो शादी पूरी नहीं होगी। मैंने सोचा कि मेरे स्टूडेंट होंगे, लेकिन नहीं थे। जब मैं वहां गई तो मुझे दूल्हे के पिता ने बताया कि मेरे बेटे ने आपकी किताब पढ़ी और एक इकोडर्मा से पीड़ित लड़की से शादी की। इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया। अक्षता मूर्ति:- शेक्सपीयर की हैमलेट और एलिसन वे की सिक्स ट्यूटर क्वीन। क्योंकि इनमें स्टोरी ऑफ रेजिलिएंस है। क्रिएटिव थ्रू रेजिलिएंस एंड डिटरमिनेशन मिलता है। क्या आपको भी किसी किताब ने सिखाया? सुधा मूर्ति: – कई किताबों ने मुझे ऐसा सिखाया। जब मैं बच्ची थी मेरे दादा मेरे हीरो थे, जब बड़ी हुई तो पिता हुए, फिर मुझे लगा कि आप अपने अनुभव से सीखते हो। टेन थाउसेंट माइल्स विदआउट क्लाउड और किंगडम ऑफ इंडस दो किताबें हैं जिसने मुझे काफी कुछ सिखाया। सुधा मूर्ति से ऑडियंस ने भी सवाल किए… ऑडियंस- मैं एक वर्किंग विमेन हूं। कई बार गिल्टी महसूस करती हूं कि मैं बच्चे को समय नहीं दे पाती हूं। करियर पर ध्यान नहीं दे पाती हूं।। सुधा मूर्ति:- मैं और बेटी, दोनों ने अपना करियर छोड़ दिया। बच्चों को आपकी जरूरत होती है। 14 साल तक तो आपकी जरूरत होती है, उसके बाद वे टेलीफोन पर लग जाते हैं। एक ब्रेक ले कर आप वापस लौट सकती है। हर सक्सेसफुल महिला के पीछे पुरुष होता है। जब पुरुष सक्सेसफुल होता है तो महिला पीछे नहीं होतीं। साथ होती हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन की PHOTOS… ……… पढ़िए, जेएलएफ के पहले दो दिन क्या हुआ… 1. मोहिंदर अमरनाथ बोले- BCCI को मेरे सरनेम से दिक्कत थी:अगरकर का नाम लिए बिना कहा- मजबूत सिलेक्टर ही रोहित-विराट पर फैसला लेगा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) की गुरुवार से शुरुआत हो गई है। 5 दिवसीय इस फेस्टिवल में दुनिया भर से 600 से अधिक स्पीकर्स हिस्सा लेंगे। फेस्टिवल में पहले दिन सुधा मूर्ति, जावेद अख्तर, कैलाश सत्यार्थी समेत कई लोगों के सेशन हुए। (पूरी खबर पढ़ें) 2. कैलाश खेर बोले-MBA टाइप के लोग कन्फ्यूज होते हैं:जो ज्यादा कन्फ्यूज, वे सीईओ बन जाते हैं; JLF के मंच पर दो एक्टर में विवाद जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन सिंगर कैलाश खेर का ‘तेरी दीवानी शब्दों के पार’ सेशन हुआ। इस दौरान उन्होंने कहा- एमबीए टाइप के लोग कन्फ्यूज होते हैं, जो ज्यादा कन्फ्यूज होते हैं, वे सीईओ बन जाते हैं। (पूरी खबर पढ़ें)
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति ने मां सुधा मूर्ति अपने बचपन और परवरिश को लेकर बातचीत की। फ्रंट लॉन में हुए माई मदर माई लाइफ सेशन में अक्षता ने मां से पूछा कि उन्होंने हमें बचपन में पार्टी क्यों नहीं करने दी, इसका मुझे तब बुरा भी लगा था। सेशन में सुधा मूर्ति ने एक सवाल के जवाब में कहा कि – उनके पिता नास्तिक थे, वे केवल सेवा में विश्वास करते थे। मां-बेटी के इस इंटरेस्टिंग सेशन के दौरान पूर्व ब्रिटिश पीएम और सुधा मूर्ति के दामाद ऋषि सुनक भी मौजूद थे। इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति भी पत्नी व बेटी के सेशन को सुनने पहुंचे थे। राजस्थान के मुख्य सचिव सुधांश पंत भी दर्शकों के बीच बैठे नजर आए। जेएलएफ का आज तीसरा दिन है। सर्वे का दावा- जयपुर में हर दूसरी महिला यौन उत्पीड़न की शिकार
जेएलएफ में ‘द सिटी थ्रू हर आईज़: वॉइस ऑन सेक्सुअल हरासमेंट इन इंडिया” विषय पर चर्चा की गई। सेशन में जे-पाल एशिया की ओर से यौन उत्पीड़न पर एक सर्वे पेश किया। सर्वे में बताया गया कि जयपुर में हर 2 महिलाओं में से एक महिला ने यौन उत्पीड़न का सामना किया है। वहीं, दिल्ली में 3 महिलाओं में से 2 महिलाएं इसकी शिकार हुई हैं। सेशन के बाद सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय से इन आकड़ों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा- मुझे इस पद्धति से ही संकोच है। क्योंकि ये रेडम जांच करते हैं। महिला कितना सच बोल रही है या नहीं। हमे डेटा चाहिए। सर्वे भी चाहिए, लेकिन रेंडम ट्रायल के साथ परेशानी होती है। अब पढ़िए- बेटी अक्षता मूर्ति के सवालों पर मां सुधा मूर्ति के जवाब.. अक्षता मूर्ति:- हमने सीखा कि अगर आप 20 की उम्र में आदर्शवादी नहीं हैं। आपके पास दिल नहीं है, अगर आप 40 के बाद भी आदर्शवादी हैं तो इसका मतलब है। यू डोंट हैव अ ब्रेन। क्या आदर्शवादी होना सिर्फ बचपन तक सीमित है? सुधा मूर्ति:- मैं 74 साल की उम्र में भी आदर्शवादी हूं। मैंने बच्चों को सिखाया, आपको सबसे पहले एक अच्छा इंसान बनना है। दिल साफ रखना है। जैसा सोचो, वैसा ही बोलो, वैसा करो। ऐसा नहीं कि कुछ सोच रहे, कुछ कर रहे और बोल कुछ और रहे। तभी अच्छी जिंदगी जी पाओगे। अक्षता मूर्ति:- अम्मा, मैं सब कुछ जानना चाहती हूं। यह रिश्ता मेरे लिए बेहद खास है, लेकिन हम घंटों बैठकर बात नहीं कर सकते। आज 45 मिनट मिले हैं तो मुझे काफी फोकस रखना होगा। इसलिए मैं तुम्हारे सबसे पसंदीदा विषय किताब पर बात करना चाहती हूं, तुम किताबों को कैसे पढ़ती हो और उससे कैसे सीखते हो? सुधा मूर्ति: -यह सेशन मां – बेटी का डिस्कशन क्लब नहीं होगा, उससे कहीं आगे की बातें होंगी। हम किताबों पर बात करेंगे, कैसे किताबें अज्ञान दूर करती हैं, ज्ञान देती। सभी माएं बेटी से प्यार करती हैं और सभी पिता बेटों से। अक्षता मूर्ति: – तुमने अपनी कहानियों के जरिए मुझे सारी नॉलेज दी। साइंस की, हिस्ट्री की फिलोसॉफी की सबकी बातें बताई। लेकिन सबसे जरूरी बात जो तुमने सिखाई कि स्कूल के लिए नहीं बल्कि लाइफ के लिए पढ़ो। यह सोच कैसे आई? सुधा मूर्ति:- मैं शिक्षकों के परिवार से आई। सिर्फ नारायण मूर्ति ऐसे थे जो व्यापार की तरफ चले गए। हर ओकेजन पर किताबें दी जाती थी। कहा जाता था कि नॉलेज सबसे महत्वपूर्ण है। मैं किताबों के साथ बड़ी हुई, पैसों के साथ नहीं। इसीलिए मैंने तुम्हें और रोहन को किताबें दी। इसी के साथ बड़ा किया। अक्षता मूर्ति: – तुम्हारे पास लिटरेचर की किताबें थीं। पापा के साइंस एंड टेक्नोलॉजी। हमने दोनों को मिलाकर अपनी लाइब्रेरी बनाई। मैं जानना चाहती हूं कि तुम्हारी इतनी किताबों में कौन सी ऐसी किताब हैं जो तुम्हारे ‘लव फॉर लर्निंग’ की वैल्यू को प्रमोट करती हैं? सुधा मूर्ति: – ‘हाउ आई टॉट माय ग्रैंड मदर’ यह मेरी ऐसी किताब है। जो मुझे बेहद पसंद है। मेरी दादी 62 साल की थी, मैं 12 साल की थी। वे कन्नड़ सीखना चाहती थीं। मैंने पूछा इतनी उम्र में कैसे सीखोगे। उन्होंने कहा सीखने की कोई उम्र नहीं होती। लेकिन जब मैंने अपनी दादी को सिखाया तो उन्होंने एक बार मेरे पांव छू लिए। उन्होंने कहा कि जिसने मुझे एक भी अक्षर सिखाया वह गुरु है। अक्षता मूर्ति – आपने मुझे जन्मदिन पर पार्टी करने नहीं दी, उन पैसों का अपने चैरिटी करना सिखाया। तब मुझे बुरा लगा, लेकिन वह नींव थी। आपने CSR तब किया और सिखाया, जब यह फैशनेबल नहीं था और न ही मैंडेटरी। आपने सिखाया कि ड्यूटी करो, रिजल्ट की चिंता मत करो। इसकी नींव कैसे पड़ी। सुधा मूर्ति – लेकिन मैंने तुम्हें फ्रूटी और समोसा दिया। मेरी दादी विधवा थी। वह कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन वह बच्चों की डिलीवरी की एक्सपर्ट थी। पूरे गांव में यह काम करती थी। वह जाती थी डिलीवरी करती थी। वापस आती थी, कभी किसी से कोई उम्मीद नहीं की। मेरे पिता नास्तिक थे। वे भगवान में नहीं मानते थे। उनके लिए सेवा ही ईश्वर जैसा था। इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैंने कुछ खास किया है। मैं सोचती हूं कि जब मैं ईश्वर से मिलूंगी तो कहूंगी- मैंने बच्चों की सेवा की, वैसे ही जैसे तुम्हारी भक्ति करती। अक्षता मूर्ति:- हम सबने गीता में पढ़ा कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…आपके पास इससे जुड़ा एक किस्सा है, मैं जानती हूं। आप वह बताइए? सुधा मूर्ति:- ‘थ्री थाउजेंड स्टिचेस’ इस किताब में मैंने उसका जिक्र किया है। 20 साल पहले मैं सेक्स वर्कर्स के पास गई? मुझे लगा कि मैं अगर 10 को भी बदल पाई तो बड़ी बात होगी, लेकिन मैंने 3000 सेक्स वर्कर्स की जिंदगी बदली। मैंने किताब में यही लिखा। पहले उन्होंने मुझ पर टमाटर फेंके मुझे जलील किया। मैंने सोचा कि मैं यह क्यों कर रही हूं, लेकिन फिर मुझे लगा कि यह करना बेहद जरूरी है। इसलिए मैंने फल की चिंता किए बगैर काम किया। इसमें नारायण मूर्ति का काफी सपोर्ट था। मैं अपने पति को अपना दोस्त मानती हूं, पति नहीं। अक्षता मूर्ति:- मुझे एक किताब पसंद है। इस किताब में कॉलेज में मिले एक प्रेमी युगल की कहानी है। जैसे मैं और ऋषि मिले। हालांकि मुझे हैप्पी एंडिंग पसंद है, लेकिन इस किताब में हैप्पी एंडिंग नहीं है। यह किताब मुझे बहुत पसंद है। आपको ऐसी कौन सी किताब पसंद है जो आदर्शवाद के विचार से मिलती हो? सुधा मूर्ति:- मेरी एक किताब का चैप्टर है। अ वेडिंग टू रिमेंबर वह मेरे लिए काफी खास है। एक बार मुझे किसी शादी का न्योता आया। मैं पंडित नहीं हूं, लेकिन मुझे कहा गया कि आप नहीं आओगे तो शादी पूरी नहीं होगी। मैंने सोचा कि मेरे स्टूडेंट होंगे, लेकिन नहीं थे। जब मैं वहां गई तो मुझे दूल्हे के पिता ने बताया कि मेरे बेटे ने आपकी किताब पढ़ी और एक इकोडर्मा से पीड़ित लड़की से शादी की। इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया। अक्षता मूर्ति:- शेक्सपीयर की हैमलेट और एलिसन वे की सिक्स ट्यूटर क्वीन। क्योंकि इनमें स्टोरी ऑफ रेजिलिएंस है। क्रिएटिव थ्रू रेजिलिएंस एंड डिटरमिनेशन मिलता है। क्या आपको भी किसी किताब ने सिखाया? सुधा मूर्ति: – कई किताबों ने मुझे ऐसा सिखाया। जब मैं बच्ची थी मेरे दादा मेरे हीरो थे, जब बड़ी हुई तो पिता हुए, फिर मुझे लगा कि आप अपने अनुभव से सीखते हो। टेन थाउसेंट माइल्स विदआउट क्लाउड और किंगडम ऑफ इंडस दो किताबें हैं जिसने मुझे काफी कुछ सिखाया। सुधा मूर्ति से ऑडियंस ने भी सवाल किए… ऑडियंस- मैं एक वर्किंग विमेन हूं। कई बार गिल्टी महसूस करती हूं कि मैं बच्चे को समय नहीं दे पाती हूं। करियर पर ध्यान नहीं दे पाती हूं।। सुधा मूर्ति:- मैं और बेटी, दोनों ने अपना करियर छोड़ दिया। बच्चों को आपकी जरूरत होती है। 14 साल तक तो आपकी जरूरत होती है, उसके बाद वे टेलीफोन पर लग जाते हैं। एक ब्रेक ले कर आप वापस लौट सकती है। हर सक्सेसफुल महिला के पीछे पुरुष होता है। जब पुरुष सक्सेसफुल होता है तो महिला पीछे नहीं होतीं। साथ होती हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन की PHOTOS… ……… पढ़िए, जेएलएफ के पहले दो दिन क्या हुआ… 1. मोहिंदर अमरनाथ बोले- BCCI को मेरे सरनेम से दिक्कत थी:अगरकर का नाम लिए बिना कहा- मजबूत सिलेक्टर ही रोहित-विराट पर फैसला लेगा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) की गुरुवार से शुरुआत हो गई है। 5 दिवसीय इस फेस्टिवल में दुनिया भर से 600 से अधिक स्पीकर्स हिस्सा लेंगे। फेस्टिवल में पहले दिन सुधा मूर्ति, जावेद अख्तर, कैलाश सत्यार्थी समेत कई लोगों के सेशन हुए। (पूरी खबर पढ़ें) 2. कैलाश खेर बोले-MBA टाइप के लोग कन्फ्यूज होते हैं:जो ज्यादा कन्फ्यूज, वे सीईओ बन जाते हैं; JLF के मंच पर दो एक्टर में विवाद जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन सिंगर कैलाश खेर का ‘तेरी दीवानी शब्दों के पार’ सेशन हुआ। इस दौरान उन्होंने कहा- एमबीए टाइप के लोग कन्फ्यूज होते हैं, जो ज्यादा कन्फ्यूज होते हैं, वे सीईओ बन जाते हैं। (पूरी खबर पढ़ें)