
मध्यप्रदेश की इस पंचायत के वोटर हैं 2174, लेकिन मजदूरों की संख्या 3709 है। इनमें 36 के सरनेम शर्मा और 12 गुप्ता हैं। इनके अलावा अग्रवाल, बंसल, उपाध्याय और पाठक भी सरकारी रिकॉर्ड में मजदूरी कर रहे हैं, जबकि पंचायत में इन सरनेम वाले लोग ही नहीं हैं। मुरैना में केंद्र सरकार की फ्लैगशिप स्कीम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में यह घोटाला दैनिक भास्कर ने अपनी पड़ताल में पकड़ा है। जिन सात पंचायतों में भास्कर ने गड़बड़ी पकड़ी, वहां दो साल में 20 करोड़ रुपए मजदूरी का भुगतान हो चुका है। पढ़िए, पूरी रिपोर्ट… सिलसिलेवार जानिए, किस तरह की गड़बड़ियां मिलीं… बहरारा जागीर: 34 साल के हरिओम की 53 साल की पत्नी भी मजदूर
बहरारा जागीर ग्राम पंचायत के बहरारा जागीर-देवीपुरा, बूढ़ा बहरारा, नयागांव और नवलपुरा गांव में 2174 वोटर हैं। यहां 3709 मनरेगा जॉब कार्ड जारी हुए हैं। इनमें से सिर्फ 52 जॉब कार्ड में फोटो हैं। किसी भी कार्ड में पता नहीं लिखा है। पते की जगह बहरारा जागीर लिखा है। जॉब कार्ड में एक नाम 34 वर्षीय हरिओम का भी है, जिनके पिता का नाम माखन शर्मा लिखा है। हरिओम का नाम 30 साल की नेहा शर्मा के पिता/पति के रूप में लिखा है। वहीं, 53 साल की अर्चना शर्मा के पति का नाम भी हरिओम दर्ज है। 40 साल की खुशी शर्मा, 53 साल के केतन शर्मा और 18 साल के नितेश शर्मा के जॉब कार्ड में पिता के तौर पर हरिओम का नाम दर्ज है। हरिओम कौन है, गांव में किसी को नहीं पता
हरिओम कौन है, ये ग्राम पंचायत में कोई नहीं जानता। बहरारा जागीर के लोगों ने बताया कि उनके जॉब कार्ड नहीं बने हैं। बने होंगे तो सरपंच जानता होगा, उसके पास होंगे। दैनिक भास्कर ने नवलपुरा गांव में रहने वाले सरपंच का चुनाव लड़ चुके रामसिंह जाटव से पूछा कि पंचायत में कितने ब्राह्मणों के मकान हैं? उन्होंने कहा- मंदिर के पुजारी को छोड़कर कोई ब्राह्मण नहीं है। मतदाता सूची में भी खोजने पर ब्राह्मण-वैश्य सरनेम वाले नाम नहीं मिलते हैं। जॉब कार्ड परिवार का बनता है, मगर ब्राह्मण-वैश्य वर्ग के किसी भी कार्ड में परिवार के सदस्यों के नाम नहीं हैं। जॉब कार्ड में न गांव का नाम, न मजदूर का पता
मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक, बहरारा जागीर ग्राम पंचायत के 3709 जॉब कार्ड में से 2574 तो मई 2023 में मतदाता सूची जारी होने के बाद बने हैं, जबकि 1135 जॉब कार्ड इससे पहले के हैं। इनमें से ब्राह्मण वर्ग के 42 कार्ड में से 36 पर ‘शर्मा’ सरनेम दर्ज है। दो कार्ड पर ‘दंडोतिया’ और एक-एक पर उपाध्याय, पाठक, पाराशर और शुक्ला है। इन सभी को अब तक कुल 10 लाख, 09 हजार 740 रुपए का भुगतान हुआ है। वहीं, 16 जॉब कार्ड वैश्य समाज के सरनेम वाले हैं। इनमें 12 पर गुप्ता, दो पर अग्रवाल, एक पर बंसल और एक पर सिंघल सरनेम दर्ज है। इनके बैंक खातों में 4 लाख 27 हजार 831 रुपए की मजदूरी ट्रांसफर की गई है। 58 में से 55 खाते एयरटेल पेमेंट बैंक या फिनो बैंक में खोले गए हैं। इन दोनों बैंक में सिर्फ मोबाइल नंबर के जरिए बिना फिजिकल वैरिफिकेशन या केवाईसी के खाते खोले जा सकते हैं। सरपंच का कामकाज देखने वाला बोला- सरपंच जी का पैसा है, खाते हमारे लगे हैं
इन्वेस्टिगेशन के दौरान भास्कर रिपोर्टर को पता लगा कि पुलिस में एक मामला दर्ज होने के कारण ऐसे कुछ खातों पर रोक लग गई है, जिनमें ‘सरपंच का पैसा’ फंसा है। मुरैना की ग्राम पंचायतों में ‘सरपंच के पैसे’ का मतलब ‘मनरेगा मजदूरी का पैसा’ होता है। पैसा निकलवाने में मदद करने की पेशकश करते हुए रिपोर्टर सरपंच अंकिता गुर्जर के पति जगन्नाथ गुर्जर के करीबी गौरीशंकर गुर्जर के घर पहुंचा। यहां पता चला कि गौरीशंकर गुर्जर ऐसे 30-35 खातों को मैनेज करता है। इनमें से 4 खाते पुलिस मुकदमे के चलते होल्ड कर दिए गए हैं। इन खातों में करीब दो-ढाई लाख रुपए फंसे हैं। जॉब कार्ड पर मजदूर और पिता का नाम एक ही
गुर्जर के पास मौजूद कागजातों से दो जॉब कार्ड के नंबर हाथ लगे 5137-C और 5155-C। दोनों जॉब कार्ड 10 मई 2023 को जारी हुए थे। गुर्जर के मुताबिक, इन दोनों से जुड़े खाते होल्ड हुए हैं। कुकरोली: 1601 वोटर, 2691 जॉब कार्ड, पिता की जगह A, B, C, D
पहाड़गढ़ की कुकरोली ग्राम पंचायत की मनरेगा जॉब कार्ड की सूची में शुरुआती 60 एंट्री के बाद चुनिंदा कार्ड ऐसे मिलते हैं, जिनमें पूरी जानकारी है। पिता के नाम की जगह A, B, C, D, GHQ आदि लिखा है। 3 केस से समझिए, बाकी ग्राम पंचायतों में फर्जी जॉब कार्ड का खेल केस 1: मुस्लिम परिवार का आधार कार्ड नहीं, मगर जॉब कार्ड
जडेरू ग्राम पंचायत के धोबिनी गांव में केवल एक मुस्लिम परिवार रहता है। वह खेती-किसानी कर गुजारा कर रहा है। परिवार के मुखिया का नाम रफीक खान है। परिवार पहले मुरैना जिले की ही पारोली पंचायत में रहता था और कुछ सालों पहले ही धोबिनी आया है। परिवार कई सालों से धोबिनी के पते पर आधार और वोटर कार्ड पाने की कोशिश में है, मगर ये जारी नहीं हुए हैं। रफीक के 4 बेटे हैं, जिनमें 3 का नाम मोमिन, नूर मोहम्मद और साहिल है। मोमिन की पत्नी का नाम बिलकिस और साहिल की पत्नी का नाम सलमा है। मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक, 25 अक्टूबर 2024 को इनके जॉब कार्ड धोबिनी गांव में बने हैं। सभी के खाते ‘फिनो बैंक’ में हैं। रफीक बताते हैं कि उनका या उनके परिवार में किसी का भी मनरेगा में जॉब कार्ड नहीं है और वह कभी मजदूरी करने नहीं गए। जबकि जॉब कार्ड के मुताबिक, उन्होंने 3 से 16 दिसंबर 24 तक राजपुर में तालाब निर्माण कार्य में मजदूरी की थी। वास्तव में रफीक 12 दिसंबर को ग्वालियर और मुरैना में थे। 13 दिसंबर की दोपहर लौटे थे। दैनिक भास्कर रिपोर्टर 13 दिसंबर की सुबह राजपुर में हो रहे निर्माण कार्यों का जायजा लेने भी पहुंचा, जहां एक तालाब का निर्माण कार्य बंद था और दूसरे तालाब पर एक जेसीबी और एक ट्रैक्टर से काम चल रहा था। मौके पर मौजूद सरपंच के करीबी और ठेकेदार टिंकू गुर्जर ने बताया कि ट्रैक्टर भी सरपंच का लड़का चला रहा है। केस 2: जिस हाथ में फ्रैक्चर था, उसी से मजदूरी की
जडेरू पंचायत के रकैरा गांव में घुसते ही पहला घर मुकेश सेन का मिला। मुकेश बताते हैं कि वह कोरोना लॉकडाउन के दौरान परिवार के साथ शिवपुरी जिला छोड़कर रकैरा आ बसे थे और नाई का काम करते हैं। साथ में कुछ गाय पाल रखी हैं, जिनका दूध बेचते हैं। जिस मकान में उनका परिवार रहता है, वह मदद के तौर पर किसी ग्रामीण ने उन्हें दिया है। मुकेश बाहरी हैं, लिहाजा उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। मगर, उनका और पत्नी वंदना का जडेरू में मनरेगा जॉब कार्ड बना है। मुकेश और वंदना से हमारी मुलाकात दिसंबर के दूसरे हफ्ते में हुई थी। मुकेश बताते हैं कि जुलाई 2024 में उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया था तो वह मेहनत-मजदूरी नहीं कर पाते हैं। फिर भी, उनके जॉब कार्ड में दर्ज है कि उन्होंने 1 जुलाई से 5 सितंबर 2024 के बीच 45 दिन मनरेगा में मजदूरी की थी। मुकेश ने बताया कि उनकी पत्नी घर संभालती है, क्योंकि बच्ची छोटी है। हालांकि, वंदना के जॉब कार्ड के मुताबिक वह सितंबर-अक्टूबर 2024 तक मजदूरी कर रही थी। केस 3: बैंक कियोस्क एजेंट ने 10 फीसदी कमीशन देने का वादा किया
कैलारस निवासी मेहुल (परिवर्तित नाम) के मुताबिक, करीब 6-7 महीने पहले एक बैंक कियोस्क एजेंट ने फिनो बैंक में उनका खाता खोला था। मेहुल से वादा किया गया था कि उनके खाते में जो भी राशि आएगी, उसका 10 फीसदी उन्हें मिलेगा। भास्कर संवाददाता ने उससे बात की। मजदूरी हड़पने का एक तरीका ये भी
बहरारा जागीर में सर्वाधिक जॉब कार्ड धाकड़ (किरार ठाकुर) सरनेम वाले लोगों के हैं। स्थानीय लोगों ने कहा कि धाकड़ समुदाय की आर्थिक स्थिति अच्छी है और उन्हें मजदूरी करते नहीं देखा है। इसकी पुष्टि के लिए भास्कर संवाददाता पंचायत के धाकड़ बहुल बूढ़ा बहरारा गांव पहुंचा। वहां ग्रामीणों ने बताया कि हम मजदूरी के लिए नहीं जाते हैं, लेकिन हमारे नाम पर मजदूरी चढ़ती रहती है। हमें सरपंच के आदमी अपने साथ ले जाते हैं और फिंगर प्रिंट लगवाकर मजदूरी का पैसा निकाल लेते हैं। फिंगर लगाने के बदले हमें 500 रुपए मिलते हैं। सरपंच खुद ही हमारे जॉब कार्ड बना लेता है, उसे हमारी स्वीकृति की जरूरत नहीं है। जब उनसे पूछा कि आप अगर फिंगर न लगाएं तो? इस पर उन्होंने बताया कि उन्हें पैसा निकालकर नहीं देंगे तो हमारा जॉब कार्ड ही खत्म कर दिया जाएगा और सरपंच किन्हीं नए नामों को मस्टर रोल में घुसा देगा। एयरटेल-फिनो बैंक का मनरेगा कनेक्शन और कैसे तैयार होते हैं फर्जी जॉब कार्ड
रफीक खान के परिवार में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है। बेटे मोमिन बताते हैं, ‘सेक्रेटरी आया था और हमारे कागज मांगे थे। बोला कि तुम्हारे परिवार के यहां (धोबिनी) के आधार कार्ड वगैरह नहीं बने हैं न, वो बन जाएंगे। अब हमें नहीं मालूम कि जॉब कार्ड बनेगा, क्या बनेगा।’ ऐसा सिर्फ रफीक के परिवार के साथ नहीं हुआ। ऑनलाइन सेवा केंद्र और बैंक कियोस्क चलाने वाले आशीष (परिवर्तित नाम) बताते हैं, ‘हम अक्सर आदिवासी इलाकों और ऐसे इलाकों में जाते हैं, जहां लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं। वहां आयुष्मान कार्ड बनाने या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर लोगों के फिंगर प्रिंट, आधार कार्ड और ओटीपी ले लेते हैं। उनकी जानकारी में लाए बिना वहीं उनके बैंक खाते एयरटेल और फिनो बैंक में खोल देते हैं। फिर इन खातों को उस ग्राम पंचायत या अन्य ग्राम पंचायतों के सरपंचों को बेच देते हैं।’ आशीष ने बताया कि पड़ोसी जिले श्योपुर की दो ग्राम पंचायतों में उनके द्वारा बेचे गए सैकड़ों खाते मनरेगा के जॉब कार्डों में लगे हैं। कुछ समय पहले ही 500 रुपए प्रति खाते की दर से उन्होंने 150 खाते बेचे हैं। आशीष ने हमें रबर बैंड से बंधीं कई सिम दिखाईं और बताया कि ये चालू सिम हैं, प्रत्येक सिम पर 50-100 रुपए एक्स्ट्रा देकर 100-100 सिम सरपंच खरीदकर ले जाते हैं। इनका इस्तेमाल बैंक खाते खोलने में होता है। आशीष यह काम करने वाले अकेले नहीं है। वह कहते हैं, ‘मुरैना में बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने वाला हर ऑनलाइन सेवा केंद्र फर्जी खाते तैयार करता है। बदले में हमें निकाली गई कुल राशि का 5 से 10 फीसदी कमीशन मिलता है। मुरैना में मनरेगा के 90 प्रतिशत जॉब कार्ड फर्जी हैं। इनमें फिनो और एयरटेल बैंक के खाते मिलेंगे। ये ऐसी प्राइवेट बैंक हैं, जो तत्काल एटीएम देती हैं। हमसे फर्जी सिम के जरिये फर्जी तरीके से खाते खुलवाकर सरपंच एटीएम अपने पास रख लेते हैं। जिसका खाता खुला है, उसे पता ही नहीं चलता। उसके खाते में मजदूरी आती है और एटीएम से निकाल ली जाती है।” जिम्मेदार बोले- जॉब कार्ड मतदाताओं की संख्या से ज्यादा नहीं हो सकते
भास्कर ने बहरारा जागीर की सरपंच अंकिता गुर्जर के मोबाइल नंबर (913*****10) पर अलग-अलग नंबरों से कॉल किए, लेकिन हर बार किसी पुरुष ने फोन उठाया और दैनिक भास्कर सुनते ही काट दिया। वहीं, जडेरू सरपंच शकुंतला गोस्वामी को जब फोन किया तो उनके पति नारायण गोस्वामी ने फोन उठाया। पंचायत में वोटर से अधिक संख्या में जॉब कार्ड बनने पर उन्होंने कहा, ‘कुछ लोगों के डबल कार्ड बने हैं, लेकिन उनका खाता नहीं लगा है। कुछ लोग मर गए हैं, उनके नाम लिस्ट से हटे नहीं हैं।’ उनकी ग्राम पंचायत में 240 आवास हैं। जब उनसे पूछा कि अगर 240 आवास हैं तो जॉब कार्ड की संख्या 2000 के पार कैसे हो गई? उन्होंने कहा कि आप कुल जॉब कार्ड की संख्या क्यों देख रहे हो, लेबर की जानकारी लो कि वर्तमान में कितने काम कर रहे हैं। जॉब कार्ड जितने भी बने होंगे, अभी तो 150 कार्ड पर मजदूरी चल रही है। भास्कर ने प्रदेश रोजगार गारंटी परिषद के सीईओ अवि प्रसाद से मुलाकात की। उन्होंने इस विषय पर कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया। मतदाताओं और जॉब कार्ड की संख्या में विसंगति को लेकर भास्कर ने मप्र रोजगार गारंटी परिषद के जनसंपर्क अधिकारी अरुण कुशराम से बात की तो उन्होंने कहा- एक परिवार को एक जॉब कार्ड जारी होता है। किसी ग्राम पंचायत में जॉब कार्ड की संख्या मतदाताओं व वयस्कों की संख्या से अधिक नहीं हो सकती। एक ग्राम पंचायत में रहने वाला व्यक्ति किसी दूसरी ग्राम पंचायत में भी अपना जॉब कार्ड नहीं बनवा सकता है। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… ये खबर भी पढ़ें… 1.63 लाख लाड़ली बहनों को इस बार नहीं मिलेगा पैसा मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की 1 लाख 63 हजार महिलाओं को इस बार 1250 रुपए की किस्त नहीं मिलेगी। इन महिलाओं की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है। ऐसे में महिला और बाल विकास विभाग ने इन्हें अपात्र घोषित कर दिया है। अब जनवरी 2025 में 1.26 करोड़ महिलाओं को ही 1250 रुपए की किस्त मिल सकेगी। इससे पहले 11 दिसंबर 2024 को 1.28 करोड़ महिलाओं के खाते में 1572 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए थे। पढे़ं पूरी खबर…
मध्यप्रदेश की इस पंचायत के वोटर हैं 2174, लेकिन मजदूरों की संख्या 3709 है। इनमें 36 के सरनेम शर्मा और 12 गुप्ता हैं। इनके अलावा अग्रवाल, बंसल, उपाध्याय और पाठक भी सरकारी रिकॉर्ड में मजदूरी कर रहे हैं, जबकि पंचायत में इन सरनेम वाले लोग ही नहीं हैं। मुरैना में केंद्र सरकार की फ्लैगशिप स्कीम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में यह घोटाला दैनिक भास्कर ने अपनी पड़ताल में पकड़ा है। जिन सात पंचायतों में भास्कर ने गड़बड़ी पकड़ी, वहां दो साल में 20 करोड़ रुपए मजदूरी का भुगतान हो चुका है। पढ़िए, पूरी रिपोर्ट… सिलसिलेवार जानिए, किस तरह की गड़बड़ियां मिलीं… बहरारा जागीर: 34 साल के हरिओम की 53 साल की पत्नी भी मजदूर
बहरारा जागीर ग्राम पंचायत के बहरारा जागीर-देवीपुरा, बूढ़ा बहरारा, नयागांव और नवलपुरा गांव में 2174 वोटर हैं। यहां 3709 मनरेगा जॉब कार्ड जारी हुए हैं। इनमें से सिर्फ 52 जॉब कार्ड में फोटो हैं। किसी भी कार्ड में पता नहीं लिखा है। पते की जगह बहरारा जागीर लिखा है। जॉब कार्ड में एक नाम 34 वर्षीय हरिओम का भी है, जिनके पिता का नाम माखन शर्मा लिखा है। हरिओम का नाम 30 साल की नेहा शर्मा के पिता/पति के रूप में लिखा है। वहीं, 53 साल की अर्चना शर्मा के पति का नाम भी हरिओम दर्ज है। 40 साल की खुशी शर्मा, 53 साल के केतन शर्मा और 18 साल के नितेश शर्मा के जॉब कार्ड में पिता के तौर पर हरिओम का नाम दर्ज है। हरिओम कौन है, गांव में किसी को नहीं पता
हरिओम कौन है, ये ग्राम पंचायत में कोई नहीं जानता। बहरारा जागीर के लोगों ने बताया कि उनके जॉब कार्ड नहीं बने हैं। बने होंगे तो सरपंच जानता होगा, उसके पास होंगे। दैनिक भास्कर ने नवलपुरा गांव में रहने वाले सरपंच का चुनाव लड़ चुके रामसिंह जाटव से पूछा कि पंचायत में कितने ब्राह्मणों के मकान हैं? उन्होंने कहा- मंदिर के पुजारी को छोड़कर कोई ब्राह्मण नहीं है। मतदाता सूची में भी खोजने पर ब्राह्मण-वैश्य सरनेम वाले नाम नहीं मिलते हैं। जॉब कार्ड परिवार का बनता है, मगर ब्राह्मण-वैश्य वर्ग के किसी भी कार्ड में परिवार के सदस्यों के नाम नहीं हैं। जॉब कार्ड में न गांव का नाम, न मजदूर का पता
मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक, बहरारा जागीर ग्राम पंचायत के 3709 जॉब कार्ड में से 2574 तो मई 2023 में मतदाता सूची जारी होने के बाद बने हैं, जबकि 1135 जॉब कार्ड इससे पहले के हैं। इनमें से ब्राह्मण वर्ग के 42 कार्ड में से 36 पर ‘शर्मा’ सरनेम दर्ज है। दो कार्ड पर ‘दंडोतिया’ और एक-एक पर उपाध्याय, पाठक, पाराशर और शुक्ला है। इन सभी को अब तक कुल 10 लाख, 09 हजार 740 रुपए का भुगतान हुआ है। वहीं, 16 जॉब कार्ड वैश्य समाज के सरनेम वाले हैं। इनमें 12 पर गुप्ता, दो पर अग्रवाल, एक पर बंसल और एक पर सिंघल सरनेम दर्ज है। इनके बैंक खातों में 4 लाख 27 हजार 831 रुपए की मजदूरी ट्रांसफर की गई है। 58 में से 55 खाते एयरटेल पेमेंट बैंक या फिनो बैंक में खोले गए हैं। इन दोनों बैंक में सिर्फ मोबाइल नंबर के जरिए बिना फिजिकल वैरिफिकेशन या केवाईसी के खाते खोले जा सकते हैं। सरपंच का कामकाज देखने वाला बोला- सरपंच जी का पैसा है, खाते हमारे लगे हैं
इन्वेस्टिगेशन के दौरान भास्कर रिपोर्टर को पता लगा कि पुलिस में एक मामला दर्ज होने के कारण ऐसे कुछ खातों पर रोक लग गई है, जिनमें ‘सरपंच का पैसा’ फंसा है। मुरैना की ग्राम पंचायतों में ‘सरपंच के पैसे’ का मतलब ‘मनरेगा मजदूरी का पैसा’ होता है। पैसा निकलवाने में मदद करने की पेशकश करते हुए रिपोर्टर सरपंच अंकिता गुर्जर के पति जगन्नाथ गुर्जर के करीबी गौरीशंकर गुर्जर के घर पहुंचा। यहां पता चला कि गौरीशंकर गुर्जर ऐसे 30-35 खातों को मैनेज करता है। इनमें से 4 खाते पुलिस मुकदमे के चलते होल्ड कर दिए गए हैं। इन खातों में करीब दो-ढाई लाख रुपए फंसे हैं। जॉब कार्ड पर मजदूर और पिता का नाम एक ही
गुर्जर के पास मौजूद कागजातों से दो जॉब कार्ड के नंबर हाथ लगे 5137-C और 5155-C। दोनों जॉब कार्ड 10 मई 2023 को जारी हुए थे। गुर्जर के मुताबिक, इन दोनों से जुड़े खाते होल्ड हुए हैं। कुकरोली: 1601 वोटर, 2691 जॉब कार्ड, पिता की जगह A, B, C, D
पहाड़गढ़ की कुकरोली ग्राम पंचायत की मनरेगा जॉब कार्ड की सूची में शुरुआती 60 एंट्री के बाद चुनिंदा कार्ड ऐसे मिलते हैं, जिनमें पूरी जानकारी है। पिता के नाम की जगह A, B, C, D, GHQ आदि लिखा है। 3 केस से समझिए, बाकी ग्राम पंचायतों में फर्जी जॉब कार्ड का खेल केस 1: मुस्लिम परिवार का आधार कार्ड नहीं, मगर जॉब कार्ड
जडेरू ग्राम पंचायत के धोबिनी गांव में केवल एक मुस्लिम परिवार रहता है। वह खेती-किसानी कर गुजारा कर रहा है। परिवार के मुखिया का नाम रफीक खान है। परिवार पहले मुरैना जिले की ही पारोली पंचायत में रहता था और कुछ सालों पहले ही धोबिनी आया है। परिवार कई सालों से धोबिनी के पते पर आधार और वोटर कार्ड पाने की कोशिश में है, मगर ये जारी नहीं हुए हैं। रफीक के 4 बेटे हैं, जिनमें 3 का नाम मोमिन, नूर मोहम्मद और साहिल है। मोमिन की पत्नी का नाम बिलकिस और साहिल की पत्नी का नाम सलमा है। मनरेगा की वेबसाइट के मुताबिक, 25 अक्टूबर 2024 को इनके जॉब कार्ड धोबिनी गांव में बने हैं। सभी के खाते ‘फिनो बैंक’ में हैं। रफीक बताते हैं कि उनका या उनके परिवार में किसी का भी मनरेगा में जॉब कार्ड नहीं है और वह कभी मजदूरी करने नहीं गए। जबकि जॉब कार्ड के मुताबिक, उन्होंने 3 से 16 दिसंबर 24 तक राजपुर में तालाब निर्माण कार्य में मजदूरी की थी। वास्तव में रफीक 12 दिसंबर को ग्वालियर और मुरैना में थे। 13 दिसंबर की दोपहर लौटे थे। दैनिक भास्कर रिपोर्टर 13 दिसंबर की सुबह राजपुर में हो रहे निर्माण कार्यों का जायजा लेने भी पहुंचा, जहां एक तालाब का निर्माण कार्य बंद था और दूसरे तालाब पर एक जेसीबी और एक ट्रैक्टर से काम चल रहा था। मौके पर मौजूद सरपंच के करीबी और ठेकेदार टिंकू गुर्जर ने बताया कि ट्रैक्टर भी सरपंच का लड़का चला रहा है। केस 2: जिस हाथ में फ्रैक्चर था, उसी से मजदूरी की
जडेरू पंचायत के रकैरा गांव में घुसते ही पहला घर मुकेश सेन का मिला। मुकेश बताते हैं कि वह कोरोना लॉकडाउन के दौरान परिवार के साथ शिवपुरी जिला छोड़कर रकैरा आ बसे थे और नाई का काम करते हैं। साथ में कुछ गाय पाल रखी हैं, जिनका दूध बेचते हैं। जिस मकान में उनका परिवार रहता है, वह मदद के तौर पर किसी ग्रामीण ने उन्हें दिया है। मुकेश बाहरी हैं, लिहाजा उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। मगर, उनका और पत्नी वंदना का जडेरू में मनरेगा जॉब कार्ड बना है। मुकेश और वंदना से हमारी मुलाकात दिसंबर के दूसरे हफ्ते में हुई थी। मुकेश बताते हैं कि जुलाई 2024 में उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया था तो वह मेहनत-मजदूरी नहीं कर पाते हैं। फिर भी, उनके जॉब कार्ड में दर्ज है कि उन्होंने 1 जुलाई से 5 सितंबर 2024 के बीच 45 दिन मनरेगा में मजदूरी की थी। मुकेश ने बताया कि उनकी पत्नी घर संभालती है, क्योंकि बच्ची छोटी है। हालांकि, वंदना के जॉब कार्ड के मुताबिक वह सितंबर-अक्टूबर 2024 तक मजदूरी कर रही थी। केस 3: बैंक कियोस्क एजेंट ने 10 फीसदी कमीशन देने का वादा किया
कैलारस निवासी मेहुल (परिवर्तित नाम) के मुताबिक, करीब 6-7 महीने पहले एक बैंक कियोस्क एजेंट ने फिनो बैंक में उनका खाता खोला था। मेहुल से वादा किया गया था कि उनके खाते में जो भी राशि आएगी, उसका 10 फीसदी उन्हें मिलेगा। भास्कर संवाददाता ने उससे बात की। मजदूरी हड़पने का एक तरीका ये भी
बहरारा जागीर में सर्वाधिक जॉब कार्ड धाकड़ (किरार ठाकुर) सरनेम वाले लोगों के हैं। स्थानीय लोगों ने कहा कि धाकड़ समुदाय की आर्थिक स्थिति अच्छी है और उन्हें मजदूरी करते नहीं देखा है। इसकी पुष्टि के लिए भास्कर संवाददाता पंचायत के धाकड़ बहुल बूढ़ा बहरारा गांव पहुंचा। वहां ग्रामीणों ने बताया कि हम मजदूरी के लिए नहीं जाते हैं, लेकिन हमारे नाम पर मजदूरी चढ़ती रहती है। हमें सरपंच के आदमी अपने साथ ले जाते हैं और फिंगर प्रिंट लगवाकर मजदूरी का पैसा निकाल लेते हैं। फिंगर लगाने के बदले हमें 500 रुपए मिलते हैं। सरपंच खुद ही हमारे जॉब कार्ड बना लेता है, उसे हमारी स्वीकृति की जरूरत नहीं है। जब उनसे पूछा कि आप अगर फिंगर न लगाएं तो? इस पर उन्होंने बताया कि उन्हें पैसा निकालकर नहीं देंगे तो हमारा जॉब कार्ड ही खत्म कर दिया जाएगा और सरपंच किन्हीं नए नामों को मस्टर रोल में घुसा देगा। एयरटेल-फिनो बैंक का मनरेगा कनेक्शन और कैसे तैयार होते हैं फर्जी जॉब कार्ड
रफीक खान के परिवार में कोई भी पढ़ा-लिखा नहीं है। बेटे मोमिन बताते हैं, ‘सेक्रेटरी आया था और हमारे कागज मांगे थे। बोला कि तुम्हारे परिवार के यहां (धोबिनी) के आधार कार्ड वगैरह नहीं बने हैं न, वो बन जाएंगे। अब हमें नहीं मालूम कि जॉब कार्ड बनेगा, क्या बनेगा।’ ऐसा सिर्फ रफीक के परिवार के साथ नहीं हुआ। ऑनलाइन सेवा केंद्र और बैंक कियोस्क चलाने वाले आशीष (परिवर्तित नाम) बताते हैं, ‘हम अक्सर आदिवासी इलाकों और ऐसे इलाकों में जाते हैं, जहां लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं। वहां आयुष्मान कार्ड बनाने या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के नाम पर लोगों के फिंगर प्रिंट, आधार कार्ड और ओटीपी ले लेते हैं। उनकी जानकारी में लाए बिना वहीं उनके बैंक खाते एयरटेल और फिनो बैंक में खोल देते हैं। फिर इन खातों को उस ग्राम पंचायत या अन्य ग्राम पंचायतों के सरपंचों को बेच देते हैं।’ आशीष ने बताया कि पड़ोसी जिले श्योपुर की दो ग्राम पंचायतों में उनके द्वारा बेचे गए सैकड़ों खाते मनरेगा के जॉब कार्डों में लगे हैं। कुछ समय पहले ही 500 रुपए प्रति खाते की दर से उन्होंने 150 खाते बेचे हैं। आशीष ने हमें रबर बैंड से बंधीं कई सिम दिखाईं और बताया कि ये चालू सिम हैं, प्रत्येक सिम पर 50-100 रुपए एक्स्ट्रा देकर 100-100 सिम सरपंच खरीदकर ले जाते हैं। इनका इस्तेमाल बैंक खाते खोलने में होता है। आशीष यह काम करने वाले अकेले नहीं है। वह कहते हैं, ‘मुरैना में बैंकिंग सेवा उपलब्ध कराने वाला हर ऑनलाइन सेवा केंद्र फर्जी खाते तैयार करता है। बदले में हमें निकाली गई कुल राशि का 5 से 10 फीसदी कमीशन मिलता है। मुरैना में मनरेगा के 90 प्रतिशत जॉब कार्ड फर्जी हैं। इनमें फिनो और एयरटेल बैंक के खाते मिलेंगे। ये ऐसी प्राइवेट बैंक हैं, जो तत्काल एटीएम देती हैं। हमसे फर्जी सिम के जरिये फर्जी तरीके से खाते खुलवाकर सरपंच एटीएम अपने पास रख लेते हैं। जिसका खाता खुला है, उसे पता ही नहीं चलता। उसके खाते में मजदूरी आती है और एटीएम से निकाल ली जाती है।” जिम्मेदार बोले- जॉब कार्ड मतदाताओं की संख्या से ज्यादा नहीं हो सकते
भास्कर ने बहरारा जागीर की सरपंच अंकिता गुर्जर के मोबाइल नंबर (913*****10) पर अलग-अलग नंबरों से कॉल किए, लेकिन हर बार किसी पुरुष ने फोन उठाया और दैनिक भास्कर सुनते ही काट दिया। वहीं, जडेरू सरपंच शकुंतला गोस्वामी को जब फोन किया तो उनके पति नारायण गोस्वामी ने फोन उठाया। पंचायत में वोटर से अधिक संख्या में जॉब कार्ड बनने पर उन्होंने कहा, ‘कुछ लोगों के डबल कार्ड बने हैं, लेकिन उनका खाता नहीं लगा है। कुछ लोग मर गए हैं, उनके नाम लिस्ट से हटे नहीं हैं।’ उनकी ग्राम पंचायत में 240 आवास हैं। जब उनसे पूछा कि अगर 240 आवास हैं तो जॉब कार्ड की संख्या 2000 के पार कैसे हो गई? उन्होंने कहा कि आप कुल जॉब कार्ड की संख्या क्यों देख रहे हो, लेबर की जानकारी लो कि वर्तमान में कितने काम कर रहे हैं। जॉब कार्ड जितने भी बने होंगे, अभी तो 150 कार्ड पर मजदूरी चल रही है। भास्कर ने प्रदेश रोजगार गारंटी परिषद के सीईओ अवि प्रसाद से मुलाकात की। उन्होंने इस विषय पर कोई भी बयान देने से इनकार कर दिया। मतदाताओं और जॉब कार्ड की संख्या में विसंगति को लेकर भास्कर ने मप्र रोजगार गारंटी परिषद के जनसंपर्क अधिकारी अरुण कुशराम से बात की तो उन्होंने कहा- एक परिवार को एक जॉब कार्ड जारी होता है। किसी ग्राम पंचायत में जॉब कार्ड की संख्या मतदाताओं व वयस्कों की संख्या से अधिक नहीं हो सकती। एक ग्राम पंचायत में रहने वाला व्यक्ति किसी दूसरी ग्राम पंचायत में भी अपना जॉब कार्ड नहीं बनवा सकता है। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… ये खबर भी पढ़ें… 1.63 लाख लाड़ली बहनों को इस बार नहीं मिलेगा पैसा मुख्यमंत्री लाड़ली बहना योजना की 1 लाख 63 हजार महिलाओं को इस बार 1250 रुपए की किस्त नहीं मिलेगी। इन महिलाओं की उम्र 60 साल से अधिक हो चुकी है। ऐसे में महिला और बाल विकास विभाग ने इन्हें अपात्र घोषित कर दिया है। अब जनवरी 2025 में 1.26 करोड़ महिलाओं को ही 1250 रुपए की किस्त मिल सकेगी। इससे पहले 11 दिसंबर 2024 को 1.28 करोड़ महिलाओं के खाते में 1572 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए गए थे। पढे़ं पूरी खबर…