राजस्थान का एक ऐसा शाही कॉलेज, जिसमें एक जमाने में स्टूडेंट भी राजशाही होते थे। अब यह कॉलेज 150 साल का हो गया है। इस कॉलेज का पहला स्टूडेंट तो अपने साथ हाथी, घोड़े, ऊंट, पालकी और टाइगर तक लेकर आया था। कॉलेज के कई किस्से चर्चित हैं। जैसे- ये कॉलेज विश्व में प्रसिद्ध अजमेर का ‘मेयो कॉलेज’ है। पहले बैच में 9 और दूसरे बैच में 27 स्टूडेंट थे। भास्कर रिपोर्ट में आज पढ़िए मेयो कॉलेज के रोचक किस्से… किस्सा-1 इंडियन टीचर्स और स्टूडेंट्स को चप्पल पहनने की नहीं थी इजाजत
मेयो कॉलेज की स्थापना के बाद से अंग्रेजों ने इंडियन टीचर्स और स्टूडेंट्स को चप्पल-जूते पहनने की इजाजत नहीं दी थी। उन्हें नंगे पैर ही रहना पड़ता था। इसका प्रमाण उस समय की फोटो में भी देखने को मिलता है। म्यूजियम की हेड डॉ. कनिका मंडल भी इसकी पुष्टि करती हैं। वह कहती हैं- सिर्फ बडे़ राजघरानों के राजकुमार व महाराज को चप्पल पहनने की इजाजत थी। किस्सा-2 अंग्रेजों ने नहीं बनाने दिया था मंदिर बात 1893 की है। उस समय अजमेर के महंत देवदास ने मेयो कॉलेज परिसर में मंदिर बनाने के लिए 8000 रुपए का डोनेशन दिया था लेकिन मेयो कॉलेज की जनरल कौंसिल ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव नहीं माना। इसके बाद परिसर के बाहर मंदिर बनाया गया, जो अब भी है। करीब 43 साल बाद जनवरी 1936 में किशनगढ़ के महाराजा ने कॉलेज परिसर में मंदिर बनवाया था। किस्सा-3 प्रिंसिपल ने रात को निरीक्षण करना कर दिया था बंद मेयो कॉलेज के पहले प्रिंसिपल सर ओलिवर सेंट जॉन थे। साल 1878 में दूसरे प्रिंसिपल कर्नल विलियम लॉज बने। एक दिन उन्होंने रात के समय कॉलेज के अलग-अलग हाउस का निरीक्षण किया था। इस दौरान चौकीदार ने उन्हें देखा और चोर समझकर चिल्लाने लगा था। इसके बाद से विलियम लॉज ने रात के समय निरीक्षण करना और हाउस में जाना छोड़ दिया था। केवल दिन के समय वे नियमित निरीक्षण करने लगे थे। इस वाकया के करीब 2 साल बाद 1890 में ठाकुर उदयसिंह भद्रा के बीमार होने पर रात के समय उनके हालचाल पूछने हाउस में पहुंचे थे। किस्सा-4 पहले स्टूडेंट थे अलवर के राजकुमार मंगल सिंह मेयो कॉलेज के प्रिंसिपल सौरव सिन्हा ने बताया- मेयो कॉलेज के पहले स्टूडेंट अलवर के राजकुमार मंगल सिंह थे। जब वे आए तो पूरा एक गांव बस गया था। उनके साथ शाही लवाजमा भी साथ था। 300 नौकर उनकी सेवा के लिए साथ आए थे। हाथी, घोड़े, ऊंट, पालकी के अलावा पिंजरे में टाइगर सहित अन्य जानवर भी थे। राजकुमार मंगल सिंह करीब एक डेढ़ साल यहां रहे और पढ़ाई की। स्वागत के लिए अलवर गेट के नाम से पक्का गेट बनाया अलवर के राजकुमार के स्वागत के लिए पक्के गेट का निर्माण करवाया गया था। वो गेट आज भी बना हुआ है और अलवर गेट के नाम से जाना जाता है। इसे पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। राजस्थान स्मारक, पुरातत्व स्थल और पुरावशेष अधिनियम, 1961 की धारा 3 के तहत इसे संरक्षित घोषित किया गया। इसे नुकसान पहुंचाने की स्थिति में धारा 17 के तहत एक लाख जुर्माना और तीन साल की सजा या दोनों से दंडित किया जा सकता है। किस्सा-5 दो दोस्तों को बुलाया, बड़ी गाड़ी में घुमाते, ताकि अकेलापन महसूस न हो ये किस्सा 1909 का है। उस समय कश्मीर के महाराज हरिसिंह मेयो में पढ़ने आए थे। म्यूजियम की हेड डॉ. कनिका मंडल बताती हैं- उस समय महाराज हरिसिंह के पास बड़ी कार थी। कार में अकेलापन महसूस न हो, इसके लिए दूसरे हाउस से दो दोस्तों को बुला लिया करते थे। उन दोस्तों को अपने पास रखा ताकि कार और रहने के दौरान अकेलापन महसूस न हो। मेयो कॉलेज से जुड़े कुछ अन्य किस्से… पहली बार अपने कॉलेज कलर्स की ड्रेस पहनी थी इतिहास विभाग के एचओडी डॉ. मोहन मोहित माथुर ने बताया- 1- फरवरी 1890 में महारानी विक्टोरिया के पौत्र प्रिंस अल्बर्ट विक्टर ने अजमेर का दौरा किया था। उनके सम्मान में मेयो कॉलेज और जिमखाना के बीच एक क्रिकेट मैच करवाया गया था। इस मौके पर मेयो इलेवन ने पहली बार अपने कॉलेज कलर्स की ड्रेस पहनी थी। उनकी वेशभूषा में शामिल थे- सफेद फ्लैनल का कोट, जो छाती पर फिट व नीचे से ढीला था और आधे घुटने तक पहुंचता था। धोतियां या पतलून और पंचरंगा पगड़ी। उसी रंग का एक प्रतीक चिह्न छाती के बाएं हिस्से पर लगाया जाता था। 2- 1905 भारतीय इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साल था। इसी साल भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया था। इसके परिणामस्वरूप स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय लॉर्ड कर्जन मेयो कॉलेज जनरल काउंसिल के अध्यक्ष भी थे। म्यूजियम हेड डॉ. कनिका मंडल ने बताया मेयो कॉलेज में राजघरानों के नाम पर बने बोर्डिंग हाउस
मेयो कॉलेज के बोर्डिंग हाउसों को बनाने में राजा-महाराजाओं ने दान दिया है। अलवर हाउस के लिए अलवर के महाराजा ने ₹33,841 दिए, तो भरतपुर हाउस के लिए भरतपुर के महाराजा ने ₹19,543 का योगदान दिया। बीकानेर हाउस के लिए बीकानेर के महाराजा ने ₹36,421, जयपुर हाउस के लिए जयपुर के महाराजा ने ₹65,999, झालावाड़ हाउस के लिए झालावाड़ के महाराज राणा ने ₹48,588 दिए। वहीं, जोधपुर हाउस के लिए जोधपुर के महाराजा ने ₹48,588, कोटा हाउस के लिए कोटा के महाराव ने ₹73,485, उदयपुर हाउस के लिए उदयपुर की महारानी ने ₹44,713 और टोंक हाउस के लिए टोंक के नवाब ने ₹15,521 का दान दिया। अजमेर हाउस को बनाने में कुल ₹60,635 लगे, जिसमें से ₹5,462 लोगों ने दिए और ₹55,173 अजमेर के शाही खजाने से आए। 1913 में कोल्विन हाउस बना, जिसमें राजपूताना के राजकुमारों, मुखियाओं और अन्य भारतीय राज्यों ने भी मदद की। PHOTOS में देखिए मेयो की खूबियां… — मेयो कॉलेज के 150 साल…सीरीज का पार्ट-1 भी पढ़िए अजमेर में खोला था राजकुमारों के लिए महल जैसा स्कूल:जिसने सपना देखा, उसका अंडमान निकोबार में मर्डर हुआ; जानिए-क्या है मेयो कॉलेज में खास अजमेर का मेयो कॉलेज भारत का सबसे रॉयल स्कूल माना जाता है। देश के सबसे महंगे स्कूलों में से एक मेयो 150 साल का हो गया है। ये स्कूल एजुकेशन स्टैंडर्ड के साथ यहां से पढ़े फेमस एल्युमिनाई (छात्र) के लिए भी पहचान रखता है।(पूरी खबर पढें)
राजस्थान का एक ऐसा शाही कॉलेज, जिसमें एक जमाने में स्टूडेंट भी राजशाही होते थे। अब यह कॉलेज 150 साल का हो गया है। इस कॉलेज का पहला स्टूडेंट तो अपने साथ हाथी, घोड़े, ऊंट, पालकी और टाइगर तक लेकर आया था। कॉलेज के कई किस्से चर्चित हैं। जैसे- ये कॉलेज विश्व में प्रसिद्ध अजमेर का ‘मेयो कॉलेज’ है। पहले बैच में 9 और दूसरे बैच में 27 स्टूडेंट थे। भास्कर रिपोर्ट में आज पढ़िए मेयो कॉलेज के रोचक किस्से… किस्सा-1 इंडियन टीचर्स और स्टूडेंट्स को चप्पल पहनने की नहीं थी इजाजत
मेयो कॉलेज की स्थापना के बाद से अंग्रेजों ने इंडियन टीचर्स और स्टूडेंट्स को चप्पल-जूते पहनने की इजाजत नहीं दी थी। उन्हें नंगे पैर ही रहना पड़ता था। इसका प्रमाण उस समय की फोटो में भी देखने को मिलता है। म्यूजियम की हेड डॉ. कनिका मंडल भी इसकी पुष्टि करती हैं। वह कहती हैं- सिर्फ बडे़ राजघरानों के राजकुमार व महाराज को चप्पल पहनने की इजाजत थी। किस्सा-2 अंग्रेजों ने नहीं बनाने दिया था मंदिर बात 1893 की है। उस समय अजमेर के महंत देवदास ने मेयो कॉलेज परिसर में मंदिर बनाने के लिए 8000 रुपए का डोनेशन दिया था लेकिन मेयो कॉलेज की जनरल कौंसिल ने मंदिर बनाने का प्रस्ताव नहीं माना। इसके बाद परिसर के बाहर मंदिर बनाया गया, जो अब भी है। करीब 43 साल बाद जनवरी 1936 में किशनगढ़ के महाराजा ने कॉलेज परिसर में मंदिर बनवाया था। किस्सा-3 प्रिंसिपल ने रात को निरीक्षण करना कर दिया था बंद मेयो कॉलेज के पहले प्रिंसिपल सर ओलिवर सेंट जॉन थे। साल 1878 में दूसरे प्रिंसिपल कर्नल विलियम लॉज बने। एक दिन उन्होंने रात के समय कॉलेज के अलग-अलग हाउस का निरीक्षण किया था। इस दौरान चौकीदार ने उन्हें देखा और चोर समझकर चिल्लाने लगा था। इसके बाद से विलियम लॉज ने रात के समय निरीक्षण करना और हाउस में जाना छोड़ दिया था। केवल दिन के समय वे नियमित निरीक्षण करने लगे थे। इस वाकया के करीब 2 साल बाद 1890 में ठाकुर उदयसिंह भद्रा के बीमार होने पर रात के समय उनके हालचाल पूछने हाउस में पहुंचे थे। किस्सा-4 पहले स्टूडेंट थे अलवर के राजकुमार मंगल सिंह मेयो कॉलेज के प्रिंसिपल सौरव सिन्हा ने बताया- मेयो कॉलेज के पहले स्टूडेंट अलवर के राजकुमार मंगल सिंह थे। जब वे आए तो पूरा एक गांव बस गया था। उनके साथ शाही लवाजमा भी साथ था। 300 नौकर उनकी सेवा के लिए साथ आए थे। हाथी, घोड़े, ऊंट, पालकी के अलावा पिंजरे में टाइगर सहित अन्य जानवर भी थे। राजकुमार मंगल सिंह करीब एक डेढ़ साल यहां रहे और पढ़ाई की। स्वागत के लिए अलवर गेट के नाम से पक्का गेट बनाया अलवर के राजकुमार के स्वागत के लिए पक्के गेट का निर्माण करवाया गया था। वो गेट आज भी बना हुआ है और अलवर गेट के नाम से जाना जाता है। इसे पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग ने संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। राजस्थान स्मारक, पुरातत्व स्थल और पुरावशेष अधिनियम, 1961 की धारा 3 के तहत इसे संरक्षित घोषित किया गया। इसे नुकसान पहुंचाने की स्थिति में धारा 17 के तहत एक लाख जुर्माना और तीन साल की सजा या दोनों से दंडित किया जा सकता है। किस्सा-5 दो दोस्तों को बुलाया, बड़ी गाड़ी में घुमाते, ताकि अकेलापन महसूस न हो ये किस्सा 1909 का है। उस समय कश्मीर के महाराज हरिसिंह मेयो में पढ़ने आए थे। म्यूजियम की हेड डॉ. कनिका मंडल बताती हैं- उस समय महाराज हरिसिंह के पास बड़ी कार थी। कार में अकेलापन महसूस न हो, इसके लिए दूसरे हाउस से दो दोस्तों को बुला लिया करते थे। उन दोस्तों को अपने पास रखा ताकि कार और रहने के दौरान अकेलापन महसूस न हो। मेयो कॉलेज से जुड़े कुछ अन्य किस्से… पहली बार अपने कॉलेज कलर्स की ड्रेस पहनी थी इतिहास विभाग के एचओडी डॉ. मोहन मोहित माथुर ने बताया- 1- फरवरी 1890 में महारानी विक्टोरिया के पौत्र प्रिंस अल्बर्ट विक्टर ने अजमेर का दौरा किया था। उनके सम्मान में मेयो कॉलेज और जिमखाना के बीच एक क्रिकेट मैच करवाया गया था। इस मौके पर मेयो इलेवन ने पहली बार अपने कॉलेज कलर्स की ड्रेस पहनी थी। उनकी वेशभूषा में शामिल थे- सफेद फ्लैनल का कोट, जो छाती पर फिट व नीचे से ढीला था और आधे घुटने तक पहुंचता था। धोतियां या पतलून और पंचरंगा पगड़ी। उसी रंग का एक प्रतीक चिह्न छाती के बाएं हिस्से पर लगाया जाता था। 2- 1905 भारतीय इतिहास का एक अत्यंत महत्वपूर्ण साल था। इसी साल भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया था। इसके परिणामस्वरूप स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन की शुरुआत हुई थी। उस समय लॉर्ड कर्जन मेयो कॉलेज जनरल काउंसिल के अध्यक्ष भी थे। म्यूजियम हेड डॉ. कनिका मंडल ने बताया मेयो कॉलेज में राजघरानों के नाम पर बने बोर्डिंग हाउस
मेयो कॉलेज के बोर्डिंग हाउसों को बनाने में राजा-महाराजाओं ने दान दिया है। अलवर हाउस के लिए अलवर के महाराजा ने ₹33,841 दिए, तो भरतपुर हाउस के लिए भरतपुर के महाराजा ने ₹19,543 का योगदान दिया। बीकानेर हाउस के लिए बीकानेर के महाराजा ने ₹36,421, जयपुर हाउस के लिए जयपुर के महाराजा ने ₹65,999, झालावाड़ हाउस के लिए झालावाड़ के महाराज राणा ने ₹48,588 दिए। वहीं, जोधपुर हाउस के लिए जोधपुर के महाराजा ने ₹48,588, कोटा हाउस के लिए कोटा के महाराव ने ₹73,485, उदयपुर हाउस के लिए उदयपुर की महारानी ने ₹44,713 और टोंक हाउस के लिए टोंक के नवाब ने ₹15,521 का दान दिया। अजमेर हाउस को बनाने में कुल ₹60,635 लगे, जिसमें से ₹5,462 लोगों ने दिए और ₹55,173 अजमेर के शाही खजाने से आए। 1913 में कोल्विन हाउस बना, जिसमें राजपूताना के राजकुमारों, मुखियाओं और अन्य भारतीय राज्यों ने भी मदद की। PHOTOS में देखिए मेयो की खूबियां… — मेयो कॉलेज के 150 साल…सीरीज का पार्ट-1 भी पढ़िए अजमेर में खोला था राजकुमारों के लिए महल जैसा स्कूल:जिसने सपना देखा, उसका अंडमान निकोबार में मर्डर हुआ; जानिए-क्या है मेयो कॉलेज में खास अजमेर का मेयो कॉलेज भारत का सबसे रॉयल स्कूल माना जाता है। देश के सबसे महंगे स्कूलों में से एक मेयो 150 साल का हो गया है। ये स्कूल एजुकेशन स्टैंडर्ड के साथ यहां से पढ़े फेमस एल्युमिनाई (छात्र) के लिए भी पहचान रखता है।(पूरी खबर पढें)