जिंदगी और मौत के बीच की डोर थामने वाले हाथ अव्यवस्था के कारण कमजोर हो रहे हैं। कहने को प्रदेश में 19 मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन सिर्फ 7 मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं जिनमें पर्याप्त संख्या में पढ़ाने और इलाज से जुड़ी बारीकियां सिखाने वाली फैकल्टी पदस्थ है। वहीं, अन्य 12 मेडिकल कॉलेजों में इनकी भारी कमी है। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सागर और छिंदवाड़ा जैसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में ही आधे पद खाली हैं। वहीं, नए मेडिकल कॉलेज जैसे श्योपुर और सिंगरौली में तो 90% फैकल्टी की नियुक्ति तक नहीं हो सकी है। आंकड़ों से नजर आने वाली चिकित्सा शिक्षा की इस स्थिति की पड़ताल के लिए भास्कर रिपोर्टर ग्राउंड जीरो पर गए। सागर, सतना, सिंगरौली और श्योपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों का दौरा किया गया। जिसमें मेडिकल की पढ़ाई की चिंताजनक तस्वीर सामने आई। कॉलेजों में लेक्चर हॉल तो हैं, लेकिन पढ़ाने वाले गायब हैं। भविष्य के डॉक्टर ऑनलाइन ज्ञान बटोरने को मजबूर हैं। केवल फैकल्टी की कमी नहीं बल्कि क्लेरिकल वर्क का बोझ और ट्रेनिंग के लिए मेडिकल कॉलेजों में पर्याप्त व्यवस्थाएं न होने जैसी समस्याओं का सामने करना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट में आगे 4 मेडिकल कॉलेजों की ग्राउंड रिपोर्ट, देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) का सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में मिल रही सुविधाओं का सर्वे और डायरेक्टोरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन से सामने आई चौंकाने वाली स्थिति… मेडिकल कॉलेजों की चिंताजनक तस्वीर 1. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर सागर की तीली रोड पर स्थित बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करना ही एक चैलेंज है। कैंपस में तीन गेट हैं, लेकिन सिर्फ अशोक विहार कॉलोनी रोड के सामने वाला मेन एंट्रेंस ही खुला रहता है। भारी ट्रैफिक के कारण कैंपस में आने और यहां से जाने में एम्बुलेंस तक फंस जाती है। अंदर पहुंचने पर राइट साइड जा रही रोड पर मेडिकल कॉलेज बिल्डिंग है, जिसमें कुल 270 पद में से सिर्फ 136 पर ही स्टाफ मौजूद है। 9 प्रोफेसर, 30 एसोसिएट प्रोफेसर, 60 से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसर समेत अन्य जरूरी पदों पर लोग ही नहीं है। जो बाकी हैं वे क्लेरिकल वर्क, मरीजों के इलाज और अन्य कार्यों में व्यस्त हैं। यही कारण था कि अंदर जाने पर यहां हर गलियारा सूना और खाली नजर आया। अधिकांश कमरों में ताला लटका हुआ मिला। शरीर के टिश्यु और कोशिकाओं जैसी सूक्ष्म शरीर रचना का ज्ञान देने वाली हिस्टोलॉजी लैब के दरवाजे पर तो धूल चढ़ी हुई मिली। इसी तरह कई अन्य लैब भी बंद मिलीं। हालांकि, एक लैब खुली थी, लेकिन उसपर नाम नहीं लिखा नजर आया। अंदर लाखों की कीमत के 8 से ज्यादा माइक्रोस्कोप समेत अन्य उपकरण बिना किसी सुरक्षा के रखे हुए थे। यह भी धूल की चादर से ढंके हुए थे। इस रास्ते से गुजरते हुए वो क्षेत्र आया जहां बीच में एक गोल आकार का बरामदा था और चारों ओर ग्राउंड और पहली मंजिल पर लेक्चर हॉल थे। जिम था लेकिन बंद, लेक्चर हॉल थे लेकिन वो भी खाली। इसी बीच दो मेडिकल स्टूडेंट्स दो लेक्चर हॉल के बीच मौजूद गलियारे में कुर्सी मेज डाले ऑनलाइन शिक्षा लेते नजर आए। उनसे बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है। अंत में सिर्फ एक लेक्चर हॉल 3 में क्लास चल रही थी और कक्ष अंदर से बंद था। 2007 में सागर में बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई, जहां 2009 से एडमिशन शुरू हुए। वहीं, वर्तमान में यहां डॉ. पीएस ठाकुर डीन हैं। 2. शासकीय मेडिकल कॉलेज, सतना सतना की नई बस्ती एरिया में स्थित शासकीय मेडिकल कॉलेज साल 2023 में शुरू हुआ। यहां पहुंचे तो गेट पर गार्ड मौजूद थे, एंट्री करने पर उन्होंने पहले डीन डॉ. एसपी गर्ग से परमिशन लाने की बात कही। जो जिला अस्पताल में थे। सतना का डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल मेडिकल कॉलेज से 8 किमी दूर रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। जहां जाने के लिए पहले करीब 2 किमी पैदल चलकर ट्रांसपोर्ट नगर पहुंचना पड़ता है। जहां से बस या ऑटो की सुविधा मिलती है। इसी बीच कॉलेज का एक स्टूडेंट अपनी कार से अंदर ले जाने को तैयार हो गया। उसने जानकारी दी कि यहां फर्स्ट, सेंकेंड और थर्ड बैच के एमबीबीएस स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। कॉलेज की बिल्डिंग अभी नई है और कैंपस देखने में बड़े शहरों के मेडिकल कॉलेज से काफी बेहतर नजर आता है। हालांकि, मेडिकल कॉलेज में 450 स्टूडेंट्स होने के बाद भी कैंपस खाली ही नजर आया। इसको लेकर पड़ताल शुरू की। जिस भी बच्चे से बात की उसने कहा कि प्रबंधन के साफ निर्देश हैं कि मीडिया से बात नहीं करनी है। बीते माह एमबीबीएस स्टूडेंट प्रशांत मुदगल ने मीडिया में समस्याएं बताईं तो उसको फैक्लटी ने परेशान किया। कुछ देर बाद कॉलेज के एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने कैमरे पर न आने और नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पुराने कॉलेजों के मुकाबले यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर तो अच्छा है, लेकिन यह हाथी के दांत जैसी स्थिति है। तीन साल पहले कॉलेज शुरू हो चुका है। लेकिन, अब तक मेडिकल कॉलेज के नाम पर अस्पताल सिर्फ एक जगह है। जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज से जोड़ा गया है। जहां जाने के लिए न कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था है और न ही मेडिकल कॉलेज की तरफ से कोई बस या टैक्सी मिलती है। ऐसे में जिनके पास खुद का वाहन नहीं है उनके रोजाना दो से तीन घंटे मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पताल और वापस मेडिकल कॉलेज आने में लग जाते हैं। एमबीबीएस के सेकेंड और थर्ड ईयर के स्टूडेंट्स पर रोजाना ट्रैवल करने के कारण 150 से 200 रुपए का अतिरिक्त आर्थिक भार भी आ रहा है। एनेस्थीसिया विभाग की एक फैकल्टी ने बताया कि भविष्य में एक बेहतर डॉक्टर तैयार हो इसके लिए मेडिकल कॉलेज का खुद का अस्पताल बहुत जरूरी है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मेडिकल स्टूडेंट्स को न वो फैसिलिटी मिलती हैं और न ही फैकल्टी स्टूडेंट्स पर उस लेवल का फोकस कर पाती है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में वार्ड में इतना स्पेस नहीं है कि मरीजों के इलाज के साथ-साथ स्टूडेंट्स को इलाज से जुड़ी बारीकियां सिखाई जा सके। लेक्चर हॉल काफी अच्छे हैं, लेकिन फैकल्टी की कमी है। ऐसे में उनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। सतना मेडिकल कॉलेज में 170 के करीब स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 80 खाली हैं। इनमें 4 प्रोफेसर और 15 असिस्टेंट प्रोफेसर समेत अन्य अहम फैकल्टी तक शामिल हैं। 3. शासकीय मेडिकल कॉलेज, सिंगरौली सिंगरौली जिले में इस साल से मेडिकल कॉलेज शुरू कर दिया गया है। पहले साल में करीब 90 से अधिक बच्चों ने एमबीबीएस के लिए दाखिला लिया है। लेकिन, अभी तक यहां पर क्लासेस शुरू करने की व्यवस्था नहीं हो पाई है। अब तक जो फाउंडेशन कोर्स चले वह भी ऑनलाइन ही थे। जब तक यहां फैकल्टी नहीं आती तब तक क्लास शुरू होना मुश्किल है। एक्सपर्ट बताते हैं कि नए मेडिकल कॉलेजों में पुराने मेडिकल कॉलेजों से फैकल्टी को भेज कर नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) से एमबीबीएस की अनुमति ले ली जाती है। इसके बाद फैकल्टी पुराने मेडिकल कॉलेजों में वापस लौट जाती है। जिससे मेडिकल कॉलेज के नाम पर सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नजर आता है। यही स्थिति सिंगरौली मेडिकल कॉलेज में नजर आती है। सिंगरौली के सरकारी मेडिकल कॉलेज में 116 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से सिर्फ 12 पर ही नियुक्ति हुई है। यानी 90% से अधिक पदों पर फैकल्टी ही नहीं है। कॉलेज के एक बड़े हिस्से में अभी भी निर्माण कार्य चल रहे हैं। एमबीबीएस स्टूडेंट की मां रेखा ने बताया कि बच्चों के फाउंडेशन कोर्स तो ऑनलाइन हुए। वहीं, क्लासेस 10 दिन में शुरू करने की बात कही गई है। 4. शासकीय मेडिकल कॉलेज, श्योपुर श्योपुर के बाहरी इलाके में मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग तैयार की गई है, जिसमें इस साल से ही एनएमसी से अनुमति मिलने के बाद एडमिशन प्रक्रिया शुरू कर दी गई। कॉलेज में फर्नीचर के नाम पर सिर्फ दो दर्जन कुर्सियां और मेज मौजूद हैं। फैकल्टी की बात करें तो प्रदेश में सबसे बुरी स्थिति सिंगरौली के बाद श्योपुर मेडिकल कॉलेज की ही सामने आई। यहां फेकल्टी के कुल 116 पद हैं, जिनमें से सिर्फ 13 पर ही स्टाफ मौजूद है। कैंपस खाली पड़े हुए हैं। जिन बच्चों ने एडमिशन लिया वे क्लास न शुरू होने के कारण घर लौट गए हैं। हॉस्टल बंद पड़े हैं। स्थिति यह है कि यहां मौजूद लोगों से ज्यादा संख्या कमरों की है। एमबीबीएस की पढ़ाई का सबसे पहला पार्ट होता है शरीर विज्ञान, इसके लिए कैडेबर (देह दान में मिली बॉडी) की जरूरत पड़ती है। लेकिन, यहां अब तक एनाटमी लैब ही स्टेब्लिश नहीं हुई है। इस तरह से यदि मेडिकल स्टूडेंट्स एमबीबीएस की पढ़ाई करेंगे तो उन्हें क्या और कितना सीखने को मिलेगा यह बेहद चिंताजनक है। मेडिकल कॉलेज खस्ताहाल उजागर करती फाइमा की रिपोर्ट
देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) का सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में मिल रही सुविधाओं का सर्वे किया। इसमें सामने आया कि सरकार भले ही मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की बात कर रही हो, लेकिन देश में 89.4 फीसदी मेडिकल कॉलेजों का बुनियादी ढांचा खराब है। यहां से आधे ज्ञान वाले डॉक्टर होंगे तैयार
फाइमा द्वारा सर्वे कर मेडिकल कॉलेजों की स्थिति को सामने लाया है। सरकार यूजी और पीजी सीटों को बढ़ाने की बात कर रही है, लेकिन चिकित्सकों की कमी और अन्य समस्याओं के चलते एजुकेशन क्वालिटी खराब हो रही है। अभी पुराने मेडिकल कॉलेजों में ही स्टाफ, इन्फ्रास्ट्रक्चर और फेकल्टी की कमी है। लेकिन जो नए मेडिकल कॉलेज हैं, उसमें तो स्थिति बेहद खराब है। मध्यप्रदेश के सिवनी, सतना, श्योपुर, सिंगरौली जैसे नए मेडिकल कॉलेजों में अस्पताल जैसे इंफ्रास्ट्रचर नहीं है। ऐसे मेडिकल कॉलेज संख्या तो बढ़ा रहे हैं लेकिन इनसे पूरी एक व्यवस्था प्रभावित हो रही है। नए कॉलेज खोलने से पहले पुराने को मजबूत करना जरूरी
प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राकेश मालवीय ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा को बेहतर बनाने के नाम पर मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई जा रही है। लेकिन मौजूदा मेडिकल कॉलेज इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी की कमी जैसी बुनियादी कमी से जूझ रहे हैं। स्थापित मेडिकल कॉलेजों की क्वालिटी को बेहतर कर लिया जाए तो मेडिकल एजुकेशन का स्तर खुद ही सुधर जाएगा। अधिकारी जवाब देने से बचते रहे
शुक्रवार को डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एजुकेशन डॉ. अरुणा कुमार से बात करने का प्रयास किया गया तो फोन रिसीव नहीं हुआ। इसके बाद सोमवार को डॉ. कुमार से वॉट्सएप कॉल पर बात हो सकी। जब उनसे इस मामले को लेकर वीडियो बाइट के लिए समय मांगा तो उन्होंने व्यस्त होने की बात कहते हुए फोन काट दिया। ये खबर भी पढ़ें… MP में 30 नहीं 29 मेडिकल कॉलेजों में मिलेगा प्रवेश मध्यप्रदेश (MP) में सोमवार से एलिजिबल कैंडिडेट्स के लिए डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन (DME) पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए हैं। इस कड़ी में DME द्वारा नीट यूजी 2025 में शामिल कॉलेजों की लिस्ट भी जारी की गई है। पूरी खबर पढ़ें
जिंदगी और मौत के बीच की डोर थामने वाले हाथ अव्यवस्था के कारण कमजोर हो रहे हैं। कहने को प्रदेश में 19 मेडिकल कॉलेज हैं, लेकिन सिर्फ 7 मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं जिनमें पर्याप्त संख्या में पढ़ाने और इलाज से जुड़ी बारीकियां सिखाने वाली फैकल्टी पदस्थ है। वहीं, अन्य 12 मेडिकल कॉलेजों में इनकी भारी कमी है। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सागर और छिंदवाड़ा जैसे पुराने मेडिकल कॉलेजों में ही आधे पद खाली हैं। वहीं, नए मेडिकल कॉलेज जैसे श्योपुर और सिंगरौली में तो 90% फैकल्टी की नियुक्ति तक नहीं हो सकी है। आंकड़ों से नजर आने वाली चिकित्सा शिक्षा की इस स्थिति की पड़ताल के लिए भास्कर रिपोर्टर ग्राउंड जीरो पर गए। सागर, सतना, सिंगरौली और श्योपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों का दौरा किया गया। जिसमें मेडिकल की पढ़ाई की चिंताजनक तस्वीर सामने आई। कॉलेजों में लेक्चर हॉल तो हैं, लेकिन पढ़ाने वाले गायब हैं। भविष्य के डॉक्टर ऑनलाइन ज्ञान बटोरने को मजबूर हैं। केवल फैकल्टी की कमी नहीं बल्कि क्लेरिकल वर्क का बोझ और ट्रेनिंग के लिए मेडिकल कॉलेजों में पर्याप्त व्यवस्थाएं न होने जैसी समस्याओं का सामने करना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट में आगे 4 मेडिकल कॉलेजों की ग्राउंड रिपोर्ट, देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) का सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में मिल रही सुविधाओं का सर्वे और डायरेक्टोरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन से सामने आई चौंकाने वाली स्थिति… मेडिकल कॉलेजों की चिंताजनक तस्वीर 1. बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज, सागर सागर की तीली रोड पर स्थित बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करना ही एक चैलेंज है। कैंपस में तीन गेट हैं, लेकिन सिर्फ अशोक विहार कॉलोनी रोड के सामने वाला मेन एंट्रेंस ही खुला रहता है। भारी ट्रैफिक के कारण कैंपस में आने और यहां से जाने में एम्बुलेंस तक फंस जाती है। अंदर पहुंचने पर राइट साइड जा रही रोड पर मेडिकल कॉलेज बिल्डिंग है, जिसमें कुल 270 पद में से सिर्फ 136 पर ही स्टाफ मौजूद है। 9 प्रोफेसर, 30 एसोसिएट प्रोफेसर, 60 से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसर समेत अन्य जरूरी पदों पर लोग ही नहीं है। जो बाकी हैं वे क्लेरिकल वर्क, मरीजों के इलाज और अन्य कार्यों में व्यस्त हैं। यही कारण था कि अंदर जाने पर यहां हर गलियारा सूना और खाली नजर आया। अधिकांश कमरों में ताला लटका हुआ मिला। शरीर के टिश्यु और कोशिकाओं जैसी सूक्ष्म शरीर रचना का ज्ञान देने वाली हिस्टोलॉजी लैब के दरवाजे पर तो धूल चढ़ी हुई मिली। इसी तरह कई अन्य लैब भी बंद मिलीं। हालांकि, एक लैब खुली थी, लेकिन उसपर नाम नहीं लिखा नजर आया। अंदर लाखों की कीमत के 8 से ज्यादा माइक्रोस्कोप समेत अन्य उपकरण बिना किसी सुरक्षा के रखे हुए थे। यह भी धूल की चादर से ढंके हुए थे। इस रास्ते से गुजरते हुए वो क्षेत्र आया जहां बीच में एक गोल आकार का बरामदा था और चारों ओर ग्राउंड और पहली मंजिल पर लेक्चर हॉल थे। जिम था लेकिन बंद, लेक्चर हॉल थे लेकिन वो भी खाली। इसी बीच दो मेडिकल स्टूडेंट्स दो लेक्चर हॉल के बीच मौजूद गलियारे में कुर्सी मेज डाले ऑनलाइन शिक्षा लेते नजर आए। उनसे बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने कहा कि मीडिया से बात करने की अनुमति नहीं है। अंत में सिर्फ एक लेक्चर हॉल 3 में क्लास चल रही थी और कक्ष अंदर से बंद था। 2007 में सागर में बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज की स्थापना हुई, जहां 2009 से एडमिशन शुरू हुए। वहीं, वर्तमान में यहां डॉ. पीएस ठाकुर डीन हैं। 2. शासकीय मेडिकल कॉलेज, सतना सतना की नई बस्ती एरिया में स्थित शासकीय मेडिकल कॉलेज साल 2023 में शुरू हुआ। यहां पहुंचे तो गेट पर गार्ड मौजूद थे, एंट्री करने पर उन्होंने पहले डीन डॉ. एसपी गर्ग से परमिशन लाने की बात कही। जो जिला अस्पताल में थे। सतना का डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल मेडिकल कॉलेज से 8 किमी दूर रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। जहां जाने के लिए पहले करीब 2 किमी पैदल चलकर ट्रांसपोर्ट नगर पहुंचना पड़ता है। जहां से बस या ऑटो की सुविधा मिलती है। इसी बीच कॉलेज का एक स्टूडेंट अपनी कार से अंदर ले जाने को तैयार हो गया। उसने जानकारी दी कि यहां फर्स्ट, सेंकेंड और थर्ड बैच के एमबीबीएस स्टूडेंट मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। कॉलेज की बिल्डिंग अभी नई है और कैंपस देखने में बड़े शहरों के मेडिकल कॉलेज से काफी बेहतर नजर आता है। हालांकि, मेडिकल कॉलेज में 450 स्टूडेंट्स होने के बाद भी कैंपस खाली ही नजर आया। इसको लेकर पड़ताल शुरू की। जिस भी बच्चे से बात की उसने कहा कि प्रबंधन के साफ निर्देश हैं कि मीडिया से बात नहीं करनी है। बीते माह एमबीबीएस स्टूडेंट प्रशांत मुदगल ने मीडिया में समस्याएं बताईं तो उसको फैक्लटी ने परेशान किया। कुछ देर बाद कॉलेज के एक सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर ने कैमरे पर न आने और नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पुराने कॉलेजों के मुकाबले यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर तो अच्छा है, लेकिन यह हाथी के दांत जैसी स्थिति है। तीन साल पहले कॉलेज शुरू हो चुका है। लेकिन, अब तक मेडिकल कॉलेज के नाम पर अस्पताल सिर्फ एक जगह है। जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज से जोड़ा गया है। जहां जाने के लिए न कोई पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था है और न ही मेडिकल कॉलेज की तरफ से कोई बस या टैक्सी मिलती है। ऐसे में जिनके पास खुद का वाहन नहीं है उनके रोजाना दो से तीन घंटे मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पताल और वापस मेडिकल कॉलेज आने में लग जाते हैं। एमबीबीएस के सेकेंड और थर्ड ईयर के स्टूडेंट्स पर रोजाना ट्रैवल करने के कारण 150 से 200 रुपए का अतिरिक्त आर्थिक भार भी आ रहा है। एनेस्थीसिया विभाग की एक फैकल्टी ने बताया कि भविष्य में एक बेहतर डॉक्टर तैयार हो इसके लिए मेडिकल कॉलेज का खुद का अस्पताल बहुत जरूरी है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में मेडिकल स्टूडेंट्स को न वो फैसिलिटी मिलती हैं और न ही फैकल्टी स्टूडेंट्स पर उस लेवल का फोकस कर पाती है। डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में वार्ड में इतना स्पेस नहीं है कि मरीजों के इलाज के साथ-साथ स्टूडेंट्स को इलाज से जुड़ी बारीकियां सिखाई जा सके। लेक्चर हॉल काफी अच्छे हैं, लेकिन फैकल्टी की कमी है। ऐसे में उनका सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। सतना मेडिकल कॉलेज में 170 के करीब स्वीकृत पद हैं, जिनमें से 80 खाली हैं। इनमें 4 प्रोफेसर और 15 असिस्टेंट प्रोफेसर समेत अन्य अहम फैकल्टी तक शामिल हैं। 3. शासकीय मेडिकल कॉलेज, सिंगरौली सिंगरौली जिले में इस साल से मेडिकल कॉलेज शुरू कर दिया गया है। पहले साल में करीब 90 से अधिक बच्चों ने एमबीबीएस के लिए दाखिला लिया है। लेकिन, अभी तक यहां पर क्लासेस शुरू करने की व्यवस्था नहीं हो पाई है। अब तक जो फाउंडेशन कोर्स चले वह भी ऑनलाइन ही थे। जब तक यहां फैकल्टी नहीं आती तब तक क्लास शुरू होना मुश्किल है। एक्सपर्ट बताते हैं कि नए मेडिकल कॉलेजों में पुराने मेडिकल कॉलेजों से फैकल्टी को भेज कर नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) से एमबीबीएस की अनुमति ले ली जाती है। इसके बाद फैकल्टी पुराने मेडिकल कॉलेजों में वापस लौट जाती है। जिससे मेडिकल कॉलेज के नाम पर सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नजर आता है। यही स्थिति सिंगरौली मेडिकल कॉलेज में नजर आती है। सिंगरौली के सरकारी मेडिकल कॉलेज में 116 स्वीकृत पद हैं। जिनमें से सिर्फ 12 पर ही नियुक्ति हुई है। यानी 90% से अधिक पदों पर फैकल्टी ही नहीं है। कॉलेज के एक बड़े हिस्से में अभी भी निर्माण कार्य चल रहे हैं। एमबीबीएस स्टूडेंट की मां रेखा ने बताया कि बच्चों के फाउंडेशन कोर्स तो ऑनलाइन हुए। वहीं, क्लासेस 10 दिन में शुरू करने की बात कही गई है। 4. शासकीय मेडिकल कॉलेज, श्योपुर श्योपुर के बाहरी इलाके में मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग तैयार की गई है, जिसमें इस साल से ही एनएमसी से अनुमति मिलने के बाद एडमिशन प्रक्रिया शुरू कर दी गई। कॉलेज में फर्नीचर के नाम पर सिर्फ दो दर्जन कुर्सियां और मेज मौजूद हैं। फैकल्टी की बात करें तो प्रदेश में सबसे बुरी स्थिति सिंगरौली के बाद श्योपुर मेडिकल कॉलेज की ही सामने आई। यहां फेकल्टी के कुल 116 पद हैं, जिनमें से सिर्फ 13 पर ही स्टाफ मौजूद है। कैंपस खाली पड़े हुए हैं। जिन बच्चों ने एडमिशन लिया वे क्लास न शुरू होने के कारण घर लौट गए हैं। हॉस्टल बंद पड़े हैं। स्थिति यह है कि यहां मौजूद लोगों से ज्यादा संख्या कमरों की है। एमबीबीएस की पढ़ाई का सबसे पहला पार्ट होता है शरीर विज्ञान, इसके लिए कैडेबर (देह दान में मिली बॉडी) की जरूरत पड़ती है। लेकिन, यहां अब तक एनाटमी लैब ही स्टेब्लिश नहीं हुई है। इस तरह से यदि मेडिकल स्टूडेंट्स एमबीबीएस की पढ़ाई करेंगे तो उन्हें क्या और कितना सीखने को मिलेगा यह बेहद चिंताजनक है। मेडिकल कॉलेज खस्ताहाल उजागर करती फाइमा की रिपोर्ट
देश के सबसे बड़े संगठनों में से एक फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फाइमा) का सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों में मिल रही सुविधाओं का सर्वे किया। इसमें सामने आया कि सरकार भले ही मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाने की बात कर रही हो, लेकिन देश में 89.4 फीसदी मेडिकल कॉलेजों का बुनियादी ढांचा खराब है। यहां से आधे ज्ञान वाले डॉक्टर होंगे तैयार
फाइमा द्वारा सर्वे कर मेडिकल कॉलेजों की स्थिति को सामने लाया है। सरकार यूजी और पीजी सीटों को बढ़ाने की बात कर रही है, लेकिन चिकित्सकों की कमी और अन्य समस्याओं के चलते एजुकेशन क्वालिटी खराब हो रही है। अभी पुराने मेडिकल कॉलेजों में ही स्टाफ, इन्फ्रास्ट्रक्चर और फेकल्टी की कमी है। लेकिन जो नए मेडिकल कॉलेज हैं, उसमें तो स्थिति बेहद खराब है। मध्यप्रदेश के सिवनी, सतना, श्योपुर, सिंगरौली जैसे नए मेडिकल कॉलेजों में अस्पताल जैसे इंफ्रास्ट्रचर नहीं है। ऐसे मेडिकल कॉलेज संख्या तो बढ़ा रहे हैं लेकिन इनसे पूरी एक व्यवस्था प्रभावित हो रही है। नए कॉलेज खोलने से पहले पुराने को मजबूत करना जरूरी
प्रोग्रेसिव मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राकेश मालवीय ने कहा कि चिकित्सा शिक्षा को बेहतर बनाने के नाम पर मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाई जा रही है। लेकिन मौजूदा मेडिकल कॉलेज इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी की कमी जैसी बुनियादी कमी से जूझ रहे हैं। स्थापित मेडिकल कॉलेजों की क्वालिटी को बेहतर कर लिया जाए तो मेडिकल एजुकेशन का स्तर खुद ही सुधर जाएगा। अधिकारी जवाब देने से बचते रहे
शुक्रवार को डायरेक्टर ऑफ मेडिकल एजुकेशन डॉ. अरुणा कुमार से बात करने का प्रयास किया गया तो फोन रिसीव नहीं हुआ। इसके बाद सोमवार को डॉ. कुमार से वॉट्सएप कॉल पर बात हो सकी। जब उनसे इस मामले को लेकर वीडियो बाइट के लिए समय मांगा तो उन्होंने व्यस्त होने की बात कहते हुए फोन काट दिया। ये खबर भी पढ़ें… MP में 30 नहीं 29 मेडिकल कॉलेजों में मिलेगा प्रवेश मध्यप्रदेश (MP) में सोमवार से एलिजिबल कैंडिडेट्स के लिए डायरेक्टरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन (DME) पोर्टल पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए हैं। इस कड़ी में DME द्वारा नीट यूजी 2025 में शामिल कॉलेजों की लिस्ट भी जारी की गई है। पूरी खबर पढ़ें