उत्तराखंड के कई इलाके आज भी ऐसे हैं जहां चिकित्सा की सुविधा नही है, जहां एक महिला प्रसव के लिए डोली में बैठ कर आती है, कई किमी चलने के बाद उसकी डेथ हो जाती है, राज्य बनने से क्या मिला। राज्य बनने के 25 साल बाद क्या स्थिति है यह बड़ा सवाल है। जो नेता प्रधान बनने के लायक नही थे वो मुख्यमंत्री बन गए। ये कहना है कि उत्तराखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के संस्थापक सदस्य काशी सिंह ऐरी का, जिन्होंने उत्तरप्रदेश विधानसभा में लगातार उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग रखी। तीन बार विधायक भी बने, लेकिन जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया तो सिर्फ एक ही बार विधायकी हाथ लगी। अब जब उत्तराखंड अपनी रजत जयंती मना रहा है तो दैनिक भास्कर एप ने ऐरी से बातचीत की, जिसमें उन्होंने अतीत के पन्नों से कई किस्से सामने रखे। उन्होंने बताया कि कैसे उत्तराखंड के गठन में उनकी पार्टी का योगदान रहा और कैसे उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर उत्तरप्रदेश की सरकार पर दबाव बनाया। इसके साथ ही 72 वर्षीय ऐरी ने आज की धामी सरकार पर भी कई सवाल खड़े किए, हालांकि उन्होंने सरकार को कुछ एडवाइज भी दी है। सावल-जवाब में पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: उत्तराखंड क्रांति दल बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जवाब: उत्तराखंड, सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से उत्तर प्रदेश से अलग है। इसके लिए 1979 में सारे बुद्धिजीवियों ने मसूरी में सम्मेलन किया, जिसमें सभी को लगा की एक दल बनाने की जरूरत है। क्योंकि अलग राज्य के गठन के लिए सतत आंदोलन की जरूरत थी। इस सम्मेलन के बाद ही उत्तराखंड क्रांति दल बना। स्थापना सम्मेलन की अध्यक्षता कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.देवी दत्त पंत ने की थी। सवाल: उस समय आपके पास कोई विकास का रोडमैप था?
जवाब: बिल्कुल था, स्वर्गीय विपिनचंद्र त्रिपाठी ने 1992 में उत्तराखंड के विकास का एक ब्लू प्रिंट जारी कर दिया था, जिसमें बताया गया था कि उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण होगी, किस तरह राज्य का विकास होगा, लेकिन आज कोई सुनने वाला नही है। कोई करने वाला नही है। हमारे लोगों ने आंदोलन के साथ तमाम बातें कहीं थी। चाहे डीडी पंत हों, इंद्रमणि बडोनी हों या फिर जसवंत सिंह बिष्ट। उस ब्लू प्रिंट में भौगोलिक परिस्थिति, संस्कृति व संसाधन के हिसाब से पूरा खाका तैयार किया गया था। सवाल: उत्तराखंड को उत्तरप्रदेश से अलग करने में आप अपनी भूमिका को कैसे देखते हैं?
जवाब: 1985 में मैं विधानसभा चुनाव जीता, 1986 में यूकेडी की पूरी कमान मेरे हाथ में आई। मै लंबे समय तक अध्यक्ष रहा, इस दौरान आंदोलन की श्रृंखला शुरू की गई। हमारी मांग थी कि पूरे उत्तराखंड को ओबीसी का दर्जा दिया जाए। इससे छात्र, सरकारी कर्मचारी सहित तमाम लोग आंदोलन से जुड़े। इसके बाद कई लोगों ने मांग उठाई की वह उत्तराखंड क्रांति दल के झंडे के नीचे नहीं आ सकते। इसके लिए फिर एक नई समिति बनाई गई और नाम दिया गया उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति। जिसका नेतृत्व भी खुद मैंने और स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने किया। वह आंदोलन जन आंदोलन बना। सवाल: क्या आपको लगता है कि उत्तराखंड बनने के बाद उत्तराखंडियों का विकास हुआ है?
जवाब: 25 साल में 5 मुख्यमंत्री होने चाहिए थे, लेकिन 13 या 14 मुख्यमंत्री बन गए। सिर्फ कर्मचारियों को अच्छा फायदा हुआ। एक कानूनगो जो था वो कमिश्नर व सेक्रेटरी बन कर रिटायर हुआ। आम आदमी को तो कोई फायदा नहीं हुआ। पिथौरागढ़ में 60 गांव घोस्ट विलेज हो गए हैं। वीरान गांवों से लोग पलायन कर गए हैं। 132 प्राइमरी स्कूल बंद हो गए हैं। पहाड़ की मुश्किलें आज भी पहले जैसी ही हैं। सवाल: आपके नजरिए से आखिर पलायन हुआ क्यों, उत्तराखंड की मांग भी तो लोगों ने ही की थी?
जवाब: राज्य में 85 प्रतिशत भूभाग पर पहाड़ हैं। जिसमें भी जनसंख्या कम है। देहरादून, उधमसिंहनगर व हरिद्वार उत्तर प्रदेश में रहते हुए भी विकसित थे। कोई दिक्कत नही थी। लेकिन उत्तराखंड की सरकारों ने इन्ही जगहों पर नए संस्थान खोले, इन्ही का विकास हुआ। पहाड़ के गांव खाली होते चले गए। सवाल: मौजूदा धामी सरकार को आप क्या एडवाइज देना चाहेंगे?
जवाब: उत्तराखंड सरकार राज्य के विकास के लिए मेडिकल, टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, जल जमीन जंगल से जुड़ी योजनाओं पर ध्यान दे, इससे लोगों का रोजगार और सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। राज्य सरकार सभी वर्गों को साथ लेकर चले। किसी में यह भावना न आये कि उनकी उपेक्षा हो रही है। सरकार को संभल जाना चाहिए, कामकाज सुधारना चाहिए। सवाल: उत्तराखंड के लोगों को आज क्या संदेश देंगे और आखिर यूकेडी की परफॉर्मेंस खराब क्यों हुई?
जवाब: क्षेत्रीय दल घोर क्षेत्रीयता पर आधारित होते हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमारे बहुत से नेता राष्ट्रीय रहे हैं। जनता भी राष्ट्रीय सोच की है, आवश्यकता इसी बात की है। लेकिन जरूरत है थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली की। अपने आसपास कैसे सुधार करेंगे। यह भी सोच रखनी चाहिए। रही बात यूकेडी की तो उत्तराखंड क्रांति दल के राजनीतिक रूप से सफल न होने की पीछे संसाधनों की कमी है, भाजपा व कांग्रेस के चुनाव लड़ने के तौर तरीके भी कारण हैं। हम लोगों के बीच जा रहे हैं। लोग अब हमें समर्थन देने को तैयार हैं।
उत्तराखंड के कई इलाके आज भी ऐसे हैं जहां चिकित्सा की सुविधा नही है, जहां एक महिला प्रसव के लिए डोली में बैठ कर आती है, कई किमी चलने के बाद उसकी डेथ हो जाती है, राज्य बनने से क्या मिला। राज्य बनने के 25 साल बाद क्या स्थिति है यह बड़ा सवाल है। जो नेता प्रधान बनने के लायक नही थे वो मुख्यमंत्री बन गए। ये कहना है कि उत्तराखंड आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और उत्तराखंड क्रांति दल (UKD) के संस्थापक सदस्य काशी सिंह ऐरी का, जिन्होंने उत्तरप्रदेश विधानसभा में लगातार उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग रखी। तीन बार विधायक भी बने, लेकिन जब उत्तराखंड अस्तित्व में आया तो सिर्फ एक ही बार विधायकी हाथ लगी। अब जब उत्तराखंड अपनी रजत जयंती मना रहा है तो दैनिक भास्कर एप ने ऐरी से बातचीत की, जिसमें उन्होंने अतीत के पन्नों से कई किस्से सामने रखे। उन्होंने बताया कि कैसे उत्तराखंड के गठन में उनकी पार्टी का योगदान रहा और कैसे उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा देकर उत्तरप्रदेश की सरकार पर दबाव बनाया। इसके साथ ही 72 वर्षीय ऐरी ने आज की धामी सरकार पर भी कई सवाल खड़े किए, हालांकि उन्होंने सरकार को कुछ एडवाइज भी दी है। सावल-जवाब में पढ़िए पूरा इंटरव्यू… सवाल: उत्तराखंड क्रांति दल बनाने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
जवाब: उत्तराखंड, सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से उत्तर प्रदेश से अलग है। इसके लिए 1979 में सारे बुद्धिजीवियों ने मसूरी में सम्मेलन किया, जिसमें सभी को लगा की एक दल बनाने की जरूरत है। क्योंकि अलग राज्य के गठन के लिए सतत आंदोलन की जरूरत थी। इस सम्मेलन के बाद ही उत्तराखंड क्रांति दल बना। स्थापना सम्मेलन की अध्यक्षता कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.देवी दत्त पंत ने की थी। सवाल: उस समय आपके पास कोई विकास का रोडमैप था?
जवाब: बिल्कुल था, स्वर्गीय विपिनचंद्र त्रिपाठी ने 1992 में उत्तराखंड के विकास का एक ब्लू प्रिंट जारी कर दिया था, जिसमें बताया गया था कि उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण होगी, किस तरह राज्य का विकास होगा, लेकिन आज कोई सुनने वाला नही है। कोई करने वाला नही है। हमारे लोगों ने आंदोलन के साथ तमाम बातें कहीं थी। चाहे डीडी पंत हों, इंद्रमणि बडोनी हों या फिर जसवंत सिंह बिष्ट। उस ब्लू प्रिंट में भौगोलिक परिस्थिति, संस्कृति व संसाधन के हिसाब से पूरा खाका तैयार किया गया था। सवाल: उत्तराखंड को उत्तरप्रदेश से अलग करने में आप अपनी भूमिका को कैसे देखते हैं?
जवाब: 1985 में मैं विधानसभा चुनाव जीता, 1986 में यूकेडी की पूरी कमान मेरे हाथ में आई। मै लंबे समय तक अध्यक्ष रहा, इस दौरान आंदोलन की श्रृंखला शुरू की गई। हमारी मांग थी कि पूरे उत्तराखंड को ओबीसी का दर्जा दिया जाए। इससे छात्र, सरकारी कर्मचारी सहित तमाम लोग आंदोलन से जुड़े। इसके बाद कई लोगों ने मांग उठाई की वह उत्तराखंड क्रांति दल के झंडे के नीचे नहीं आ सकते। इसके लिए फिर एक नई समिति बनाई गई और नाम दिया गया उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति। जिसका नेतृत्व भी खुद मैंने और स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी ने किया। वह आंदोलन जन आंदोलन बना। सवाल: क्या आपको लगता है कि उत्तराखंड बनने के बाद उत्तराखंडियों का विकास हुआ है?
जवाब: 25 साल में 5 मुख्यमंत्री होने चाहिए थे, लेकिन 13 या 14 मुख्यमंत्री बन गए। सिर्फ कर्मचारियों को अच्छा फायदा हुआ। एक कानूनगो जो था वो कमिश्नर व सेक्रेटरी बन कर रिटायर हुआ। आम आदमी को तो कोई फायदा नहीं हुआ। पिथौरागढ़ में 60 गांव घोस्ट विलेज हो गए हैं। वीरान गांवों से लोग पलायन कर गए हैं। 132 प्राइमरी स्कूल बंद हो गए हैं। पहाड़ की मुश्किलें आज भी पहले जैसी ही हैं। सवाल: आपके नजरिए से आखिर पलायन हुआ क्यों, उत्तराखंड की मांग भी तो लोगों ने ही की थी?
जवाब: राज्य में 85 प्रतिशत भूभाग पर पहाड़ हैं। जिसमें भी जनसंख्या कम है। देहरादून, उधमसिंहनगर व हरिद्वार उत्तर प्रदेश में रहते हुए भी विकसित थे। कोई दिक्कत नही थी। लेकिन उत्तराखंड की सरकारों ने इन्ही जगहों पर नए संस्थान खोले, इन्ही का विकास हुआ। पहाड़ के गांव खाली होते चले गए। सवाल: मौजूदा धामी सरकार को आप क्या एडवाइज देना चाहेंगे?
जवाब: उत्तराखंड सरकार राज्य के विकास के लिए मेडिकल, टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, जल जमीन जंगल से जुड़ी योजनाओं पर ध्यान दे, इससे लोगों का रोजगार और सरकार का राजस्व भी बढ़ेगा। राज्य सरकार सभी वर्गों को साथ लेकर चले। किसी में यह भावना न आये कि उनकी उपेक्षा हो रही है। सरकार को संभल जाना चाहिए, कामकाज सुधारना चाहिए। सवाल: उत्तराखंड के लोगों को आज क्या संदेश देंगे और आखिर यूकेडी की परफॉर्मेंस खराब क्यों हुई?
जवाब: क्षेत्रीय दल घोर क्षेत्रीयता पर आधारित होते हैं। हमारा सौभाग्य है कि हमारे बहुत से नेता राष्ट्रीय रहे हैं। जनता भी राष्ट्रीय सोच की है, आवश्यकता इसी बात की है। लेकिन जरूरत है थिंक ग्लोबली एक्ट लोकली की। अपने आसपास कैसे सुधार करेंगे। यह भी सोच रखनी चाहिए। रही बात यूकेडी की तो उत्तराखंड क्रांति दल के राजनीतिक रूप से सफल न होने की पीछे संसाधनों की कमी है, भाजपा व कांग्रेस के चुनाव लड़ने के तौर तरीके भी कारण हैं। हम लोगों के बीच जा रहे हैं। लोग अब हमें समर्थन देने को तैयार हैं।