मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति और जनजाति (SC-ST) के गरीब छात्रों को मिलने वाला स्कॉलरशिप का पैसा शिक्षा माफिया, प्राइवेट कॉलेज प्रबंधन और दलालों के एक संगठित रैकेट की जेब में जा रहा है। यह एक ऐसा महाघोटाला है, जिसमें छात्रों को मुफ्त डिग्री का सपना दिखाकर उनके भविष्य और सरकारी खजाने, दोनों पर एक साथ डाका डाला जा रहा है। यह रैकेट इतना बेखौफ है कि इसके सरगना अपने साथ पीओएस (पॉइंट ऑफ सेल) मशीनें लेकर घूमते हैं। जैसे ही किसी छात्र के खाते में स्कॉलरशिप का पैसा आता है, वे रास्ते में कहीं भी गाड़ी रोककर उसे स्वैप कर लेते हैं। हमारे खुफिया कैमरे पर एक कॉलेज प्रबंधक ने बेशर्मी से कबूल किया, ‘शिक्षा में रुपए कमाना है तो यही करना पड़ेगा।’ उसने न केवल ओरिजिनल दिखने वाली फर्जी मार्कशीट दिखाई, बल्कि छात्रों के नाम पर जब्त किए गए एटीएम कार्ड की गड्डियां भी दिखाईं। इस घोटाले को उजागर करने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने 12 दिन तक मध्य प्रदेश के इंदौर, उज्जैन, भोपाल और सागर में इन्वेस्टिगेशन की। हमारे रिपोर्टर फर्जी दलाल बनकर इस रैकेट के किरदारों से मिले और जो खुलासा हुआ, वह चौंकाने वाला और सिस्टम पर सवाल उठाने वाला है। पढ़िए, रिपोर्ट… कैसे काम करता है ‘स्कॉलरशिप लूट’ का यह सिस्टम?
यह रैकेट एक सुनियोजित तरीके से कई स्तरों पर काम करता है… 1. दलाल-कॉलेज कनेक्शन: दलाल गांवों और कस्बों में जाकर गरीब SC-ST परिवारों को निशाना बनाते हैं। उन्हें मुफ्त एडमिशन, बिना पढ़े-लिखे डिग्री और उज्ज्वल भविष्य का सपना दिखाया जाता है। 2. फर्जी एडमिशन: छात्रों से आधार कार्ड, अंकसूची और अन्य दस्तावेज लेकर उनका नाम निजी कॉलेजों में दर्ज कर दिया जाता है। इन छात्रों को कभी कॉलेज आने या क्लास करने की जरूरत नहीं पड़ती। 3. बैंक खातों पर कब्जा: सबसे बड़ा खेल यहीं से शुरू होता है। कॉलेज प्रबंधन या दलाल इन छात्रों के नाम पर नए बैंक खाते खुलवाते हैं। चालाकी से इन खातों से जुड़ा मोबाइल नंबर दलाल का अपना होता है। पासबुक और एटीएम कार्ड भी वे अपने पास रख लेते हैं। 4. स्कॉलरशिप का इंतजार और तत्काल निकासी: जैसे ही सरकार छात्रवृत्ति की राशि छात्र के खाते में ट्रांसफर करती है, दलाल के मोबाइल पर मैसेज आ जाता है। इसके तुरंत बाद, पीओएस मशीन या एटीएम से सारा पैसा निकाल लिया जाता है। 5. कागजी हेराफेरी: सरकारी जांच से बचने के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग के पोर्टल पर इन छात्रों की फर्जी उपस्थिति और फर्जी परीक्षा परिणाम अपलोड कर दिए जाते हैं, ताकि सब कुछ सामान्य दिखे। हमारी टीम फर्जी दलाल बनकर बैरसिया स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के संचालक आलोक दांगी से मिली। जब हम पहुंचे, तो वह पहले से ही बिहार के एक छात्र का मध्य प्रदेश की एक निजी यूनिवर्सिटी में फर्जी एडमिशन फॉर्म भर रहा था। बातचीत शुरू हुई… आलोक दांगी: आप बताइए, हमारे पास बहुत दूर-दूर के बच्चे बैठते हैं। यह बिहार का बच्चा है। रिपोर्टर: राजस्थान के चलेंगे? आलोक दांगी: हमारे पास राजस्थान के भी बहुत बच्चे हैं। रिपोर्टर: आपसे खुलकर बात कर सकते हैं? आलोक दांगी: हां बिल्कुल, अपने यहां कोई गोपनीय काम नहीं रहता है। सब खुल्ला काम है। रिपोर्टर: कोई दिक्कत तो नहीं आएगी? आलोक दांगी: (आत्मविश्वास से) अपनी पहचान सभी कॉलेजों में है। छात्र जहां बोलता है, वहां एडमिशन करवा देता हूं। मेरी सभी जगह डायरेक्ट पहचान है। इंदौर और छत्तीसगढ़ के प्राइवेट कॉलेजों में भी पहचान है। रिपोर्टर: बैक डेट में भी हो जाएगा? आलोक दांगी: हां, हो जाएगा। ‘मैं पीओएस मशीन रखता हूं, रास्ते में कहीं भी पैसा निकालता हूं’
आलोक दांगी ने बाकायदा पैसों के बंटवारे का गणित भी बताया। उसने भास्कर रिपोर्टर को ये भी भरोसा दिया कि केवल स्टूडेंट लाकर देना है। बैंक खाता खुलवाने से लेकर स्कॉलरशिप निकालने की जिम्मेदारी उसी की रहेगी। इसी बातचीत के दौरान दांगी ने दराज से एटीएम कार्ड की गड्डी निकालकर भास्कर रिपोर्टर के सामने रखी और कहा- मैं पीओएस मशीन तक रखता हूं। जैसे ही स्कॉलरशिप का पैसा खाते में आता है। मैं रास्ते में कहीं भी खड़ा होकर कार्ड स्वैप कर लेता हूं। पढ़िए, बातचीत… रिपोर्टर: रुपए का बंटवारा कैसे होगा? आलोक दांगी: (एक कागज पर हिसाब लिखते हुए) मान लो 60 हजार रुपए स्कॉलरशिप आई। इसमें से 25% आपके, 25% मेरे, बाकी 50% कॉलेज के। रिपोर्टर: हमें क्या करना होगा? आलोक दांगी: आपको सिर्फ स्टूडेंट लाकर देना है और उसके डॉक्यूमेंट देने हैं। खाते मैं खुलवाऊंगा। स्कॉलरशिप का मैं देखूंगा। स्कॉलरशिप निकालना भी मेरी जिम्मेदारी रहेगी। रिपोर्टर: अभी मेरे पास 15 स्टूडेंट हैं। उन्हें कितनी बार आना पड़ेगा? आलोक दांगी: एक या दो बार। बस। एक बार में ही सारी फॉर्मेलिटीज पूरी कर दूंगा। दांगी दराज से एटीएम कार्ड की गड्डियां निकालकर भास्कर रिपोर्ट को दिखाता है… आलोक दांगी: ये रहे सभी के एटीएम। खाते मैं ही खुलवाऊंगा। मैं तो पीओएस मशीन तक रखता हूं। रुपए जैसे ही खाते में आते हैं, रास्ते में खड़े होकर स्वैप कर लेता हूं। बैकडेट में डिप्लोमा से लेकर डिग्री तक दिलाने का दावा
दांगी ने ये भी दावा किया कि वह बच्चों को बिना एग्जाम दिए ही पास करवा सकता है। उसने बैकडेट में डिप्लोमा और डिग्री तक देने का दावा किया। बातचीत में उसने इसके रेट तक बताए। ये भी कहा कि हर बात का पैसा लगता है। ज्यादा पैसा दोगे तो काम अच्छा करके देंगे। रिपोर्टर: बच्चों को पेपर देने भी नहीं आना पड़े, ऐसा हो सकता है? आलोक दांगी: मैं पास करवा सकता हूं, लेकिन बच्चा बाद में कहता है कि मैं तो गया भी नहीं और मार्कशीट आ गई। मैं जितने एग्जाम होते हैं, सभी के आंसर तक बता देता हूं और पास करवा देता हूं। क्या करना है, कैसे करना है, सब बता देता हूं। पॉलिटेक्निक का बैक डेट में 1 लाख 60-70 हजार रुपए लगेगा। बीई का खर्चा 2 लाख 80 हजार तक पहुंचेगा। अभी बीसीए करवाया था,एक बिल्डर के बेटे को। भोपाल की प्राइवेट यूनिवर्सिटी से। उनकी खुद की लॉगिन है। उसकी डील सीधी चेयरमैन से होगी। काम पूरा होगा। बच्चा डेढ़ महीने बाद गया तो मार्कशीट खुद ही लेकर आ गया। अभी बच्चा एमसीए कर रहा है, किसी गवर्नमेंट कॉलेज से। रुपया जरूर लगता है लेकिन काम पूरा करके देते हैं। एडमिशन हेड बोला- एक साल का आप रख लो, एक का हम
इसके बाद भास्कर की टीम ने एक प्राइवेट कॉलेज के एडमिशन हेड वासुदेव यादव से बात की। यादव ने बताया कि उसके कॉलेज में डिग्री मिल जाएगी, बस परीक्षा देने आना होगा। साथ ही स्कॉलरशिप को लेकर 50-50 के समझौते पर हामी भर दी। यादव से ये भी पूछा कि उसके कॉलेज में 900 सीटें हैं, उसमें से रिजर्व कैटेगरी की कितनी सीटें दे सकते हैं? पढ़िए, बातचीत… वासुदेव यादव: हमारे यहां तो एमबीए होता है। रिपोर्टर: छात्र रोज न आए तो चलेगा? वासुदेव यादव: परीक्षा तो देनी ही होगी। पास तो सब हो जाते हैं। रिपोर्टर: स्कॉलरशिप कितनी आती है? वासुदेव यादव: हर साल 45 से 50 हजार रुपए। रिपोर्टर: हमारा हिस्सा कैसे मिलेगा? वासुदेव यादव: स्कॉलरशिप आने के बाद ही मिलेगा। रिपोर्टर: एक साल का आप रख लें, एक का हम? वासुदेव यादव: हां, यह कर सकते हैं। आधा आप ले लो, आधा हम ले लें। उज्जैन के दलाल का ऑडियो- खाते अपन खुलवाएंगे, बच्चे पैसा रख लेते हैं
इसके बाद भास्कर ने उज्जैन के एक दलाल से मोबाइल पर बात की। इस दलाल से कॉलेज में एडमिशन के बारे में पूछा तो उसने कुछ प्राइवेट कॉलेजों के नाम बताए। उसने ये शर्त रखी कि बच्चों के खाते वह खुद ओपन कराएगा, क्योंकि बच्चों के खाते में स्कॉलरशिप आती है तो पैसा वे रख लेते हैं… दलाल: इंदौर में कुछ कॉलेज फुल हो गए तो कुछ में एडमिशन चल रहा है। रिपोर्टर: एग्जाम का क्या होगा? दलाल: वो सब मैनेज करा देंगे। रिपोर्टर: हिसाब-किताब कैसा रहेगा? दलाल: मेरे पास पेमेंट का लोचा नहीं रहता है। भरोसा ही है। रिपोर्टर: खाते कौन खुलवाएगा? दलाल: कॉलेज या अपन अलग से अकाउंट खुलवाएंगे, क्योंकि बच्चों के खाते में रुपए जाने के बाद वे खुद ही रख लेते हैं। छात्र बोले- हमारे खाते से पैसा कब निकला, पता ही नहीं चला
इस घोटाले के असली शिकार वे गरीब छात्र हैं, जिनके नाम और दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- मुझे कहा गया कि कॉलेज में नाम लग जाएगा तो अगली बार एडमिशन में काम आएगा। बाद में पता चला कि मेरे नाम से दो साल की स्कॉलरशिप निकल चुकी है। ऐसे ही इंदौर के एक छात्र ने बताया- हमसे सिर्फ दस्तावेज लिए और कहा कि कॉलेज में नाम डाल देंगे। बैंक खाता उन्होंने खुद खुलवाया, हमें आज तक एटीएम या पासबुक नहीं मिली। घोटाले के पीछे सिस्टम की 5 बड़ी खामियां 1.बायोमेट्रिक सत्यापन का अभाव: छात्रवृत्ति पोर्टल पर छात्रों की उपस्थिति के लिए कोई बायोमेट्रिक सिस्टम नहीं है, जिससे फर्जी हाजिरी आसानी से लग जाती है। 2.बैंक खातों पर नियंत्रण: कॉलेजों और दलालों को छात्रों के बैंक खाते खुलवाने और उनके एटीएम-पासबुक रखने की खुली छूट है। 3.कमजोर निगरानी तंत्र: जिला स्तर पर कोई रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं है। जांच समितियां केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं। 4.ऑडिट की अनदेखी: राज्य आदिम जाति कल्याण विभाग की 2023-24 की ऑडिट रिपोर्ट में 12.6 करोड़ की राशि गैर-प्रमाणित खातों में जाने और 1,800 छात्रों के नाम दो-दो संस्थानों में पंजीकृत होने का खुलासा हुआ, लेकिन आज तक केवल 4 कॉलेजों की मान्यता रद्द की गई। 5.जवाबदेही की कमी: बैंक स्तर पर भी एक ही व्यक्ति द्वारा दर्जनों खातों को ऑपरेट करने पर कोई अलर्ट सिस्टम नहीं है। अफसर बोले- पूरा प्लेटफॉर्म ऑनलाइन है
इस मामले को लेकर भास्कर ने जब निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के तत्कालीन सेक्रेटरी केपी साहू से पूछा कि छात्रों को स्कॉलरशिप कैसे जारी होती है? उन्हें इस गड़बड़ी के बारे में भी बताया तो उन्होंने कहा- एससी-एसटी और ओबीसी छात्रों को उनसे संबंधित विभाग अपने स्तर पर जारी करते हैं। हमारे स्तर पर छात्रवृत्ति जारी नहीं होती है, हालांकि छात्रवृत्ति वितरण में अभी तो कोई कमी नहीं मिली है। उन्होंने कहा- करीब 10 साल पहले कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। अब तो पूरा प्लेटफॉर्म ही ऑनलाइन है, इसलिए गड़बड़ी की संभावना कम हो गई है। जहां तक बैंक खातों का सवाल है तो उनमें भी गड़बड़ी की संभावना नहीं है। खाते आधार कार्ड से लिंक होते हैं। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… भास्कर इन्वेस्टिगेशन सीरीज की ये खबर भी पढ़ें… 52 नाबालिग दुल्हनों ने जन्मे 53 कुपोषित बच्चे मध्य प्रदेश में बाल विवाह कुप्रथा अब भी गहरी जड़ें जमाए है। भास्कर की 23 दिन की पड़ताल में ये चौंकाने वाली सच्चाई उजागर हुई है। पड़ताल में खुलासा हुआ कि मार्च से अगस्त-2025 के बीच 6 माह में राजगढ़ जिला अस्पताल में 75 नाबालिग वधुएं प्रसव के लिए पहुंचीं। इनमें से 52 नाबालिग माताओं ने 53 कुपोषित बच्चों को जन्म दिया। पढे़ं पूरी खबर…
मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति और जनजाति (SC-ST) के गरीब छात्रों को मिलने वाला स्कॉलरशिप का पैसा शिक्षा माफिया, प्राइवेट कॉलेज प्रबंधन और दलालों के एक संगठित रैकेट की जेब में जा रहा है। यह एक ऐसा महाघोटाला है, जिसमें छात्रों को मुफ्त डिग्री का सपना दिखाकर उनके भविष्य और सरकारी खजाने, दोनों पर एक साथ डाका डाला जा रहा है। यह रैकेट इतना बेखौफ है कि इसके सरगना अपने साथ पीओएस (पॉइंट ऑफ सेल) मशीनें लेकर घूमते हैं। जैसे ही किसी छात्र के खाते में स्कॉलरशिप का पैसा आता है, वे रास्ते में कहीं भी गाड़ी रोककर उसे स्वैप कर लेते हैं। हमारे खुफिया कैमरे पर एक कॉलेज प्रबंधक ने बेशर्मी से कबूल किया, ‘शिक्षा में रुपए कमाना है तो यही करना पड़ेगा।’ उसने न केवल ओरिजिनल दिखने वाली फर्जी मार्कशीट दिखाई, बल्कि छात्रों के नाम पर जब्त किए गए एटीएम कार्ड की गड्डियां भी दिखाईं। इस घोटाले को उजागर करने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने 12 दिन तक मध्य प्रदेश के इंदौर, उज्जैन, भोपाल और सागर में इन्वेस्टिगेशन की। हमारे रिपोर्टर फर्जी दलाल बनकर इस रैकेट के किरदारों से मिले और जो खुलासा हुआ, वह चौंकाने वाला और सिस्टम पर सवाल उठाने वाला है। पढ़िए, रिपोर्ट… कैसे काम करता है ‘स्कॉलरशिप लूट’ का यह सिस्टम?
यह रैकेट एक सुनियोजित तरीके से कई स्तरों पर काम करता है… 1. दलाल-कॉलेज कनेक्शन: दलाल गांवों और कस्बों में जाकर गरीब SC-ST परिवारों को निशाना बनाते हैं। उन्हें मुफ्त एडमिशन, बिना पढ़े-लिखे डिग्री और उज्ज्वल भविष्य का सपना दिखाया जाता है। 2. फर्जी एडमिशन: छात्रों से आधार कार्ड, अंकसूची और अन्य दस्तावेज लेकर उनका नाम निजी कॉलेजों में दर्ज कर दिया जाता है। इन छात्रों को कभी कॉलेज आने या क्लास करने की जरूरत नहीं पड़ती। 3. बैंक खातों पर कब्जा: सबसे बड़ा खेल यहीं से शुरू होता है। कॉलेज प्रबंधन या दलाल इन छात्रों के नाम पर नए बैंक खाते खुलवाते हैं। चालाकी से इन खातों से जुड़ा मोबाइल नंबर दलाल का अपना होता है। पासबुक और एटीएम कार्ड भी वे अपने पास रख लेते हैं। 4. स्कॉलरशिप का इंतजार और तत्काल निकासी: जैसे ही सरकार छात्रवृत्ति की राशि छात्र के खाते में ट्रांसफर करती है, दलाल के मोबाइल पर मैसेज आ जाता है। इसके तुरंत बाद, पीओएस मशीन या एटीएम से सारा पैसा निकाल लिया जाता है। 5. कागजी हेराफेरी: सरकारी जांच से बचने के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग के पोर्टल पर इन छात्रों की फर्जी उपस्थिति और फर्जी परीक्षा परिणाम अपलोड कर दिए जाते हैं, ताकि सब कुछ सामान्य दिखे। हमारी टीम फर्जी दलाल बनकर बैरसिया स्थित महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के संचालक आलोक दांगी से मिली। जब हम पहुंचे, तो वह पहले से ही बिहार के एक छात्र का मध्य प्रदेश की एक निजी यूनिवर्सिटी में फर्जी एडमिशन फॉर्म भर रहा था। बातचीत शुरू हुई… आलोक दांगी: आप बताइए, हमारे पास बहुत दूर-दूर के बच्चे बैठते हैं। यह बिहार का बच्चा है। रिपोर्टर: राजस्थान के चलेंगे? आलोक दांगी: हमारे पास राजस्थान के भी बहुत बच्चे हैं। रिपोर्टर: आपसे खुलकर बात कर सकते हैं? आलोक दांगी: हां बिल्कुल, अपने यहां कोई गोपनीय काम नहीं रहता है। सब खुल्ला काम है। रिपोर्टर: कोई दिक्कत तो नहीं आएगी? आलोक दांगी: (आत्मविश्वास से) अपनी पहचान सभी कॉलेजों में है। छात्र जहां बोलता है, वहां एडमिशन करवा देता हूं। मेरी सभी जगह डायरेक्ट पहचान है। इंदौर और छत्तीसगढ़ के प्राइवेट कॉलेजों में भी पहचान है। रिपोर्टर: बैक डेट में भी हो जाएगा? आलोक दांगी: हां, हो जाएगा। ‘मैं पीओएस मशीन रखता हूं, रास्ते में कहीं भी पैसा निकालता हूं’
आलोक दांगी ने बाकायदा पैसों के बंटवारे का गणित भी बताया। उसने भास्कर रिपोर्टर को ये भी भरोसा दिया कि केवल स्टूडेंट लाकर देना है। बैंक खाता खुलवाने से लेकर स्कॉलरशिप निकालने की जिम्मेदारी उसी की रहेगी। इसी बातचीत के दौरान दांगी ने दराज से एटीएम कार्ड की गड्डी निकालकर भास्कर रिपोर्टर के सामने रखी और कहा- मैं पीओएस मशीन तक रखता हूं। जैसे ही स्कॉलरशिप का पैसा खाते में आता है। मैं रास्ते में कहीं भी खड़ा होकर कार्ड स्वैप कर लेता हूं। पढ़िए, बातचीत… रिपोर्टर: रुपए का बंटवारा कैसे होगा? आलोक दांगी: (एक कागज पर हिसाब लिखते हुए) मान लो 60 हजार रुपए स्कॉलरशिप आई। इसमें से 25% आपके, 25% मेरे, बाकी 50% कॉलेज के। रिपोर्टर: हमें क्या करना होगा? आलोक दांगी: आपको सिर्फ स्टूडेंट लाकर देना है और उसके डॉक्यूमेंट देने हैं। खाते मैं खुलवाऊंगा। स्कॉलरशिप का मैं देखूंगा। स्कॉलरशिप निकालना भी मेरी जिम्मेदारी रहेगी। रिपोर्टर: अभी मेरे पास 15 स्टूडेंट हैं। उन्हें कितनी बार आना पड़ेगा? आलोक दांगी: एक या दो बार। बस। एक बार में ही सारी फॉर्मेलिटीज पूरी कर दूंगा। दांगी दराज से एटीएम कार्ड की गड्डियां निकालकर भास्कर रिपोर्ट को दिखाता है… आलोक दांगी: ये रहे सभी के एटीएम। खाते मैं ही खुलवाऊंगा। मैं तो पीओएस मशीन तक रखता हूं। रुपए जैसे ही खाते में आते हैं, रास्ते में खड़े होकर स्वैप कर लेता हूं। बैकडेट में डिप्लोमा से लेकर डिग्री तक दिलाने का दावा
दांगी ने ये भी दावा किया कि वह बच्चों को बिना एग्जाम दिए ही पास करवा सकता है। उसने बैकडेट में डिप्लोमा और डिग्री तक देने का दावा किया। बातचीत में उसने इसके रेट तक बताए। ये भी कहा कि हर बात का पैसा लगता है। ज्यादा पैसा दोगे तो काम अच्छा करके देंगे। रिपोर्टर: बच्चों को पेपर देने भी नहीं आना पड़े, ऐसा हो सकता है? आलोक दांगी: मैं पास करवा सकता हूं, लेकिन बच्चा बाद में कहता है कि मैं तो गया भी नहीं और मार्कशीट आ गई। मैं जितने एग्जाम होते हैं, सभी के आंसर तक बता देता हूं और पास करवा देता हूं। क्या करना है, कैसे करना है, सब बता देता हूं। पॉलिटेक्निक का बैक डेट में 1 लाख 60-70 हजार रुपए लगेगा। बीई का खर्चा 2 लाख 80 हजार तक पहुंचेगा। अभी बीसीए करवाया था,एक बिल्डर के बेटे को। भोपाल की प्राइवेट यूनिवर्सिटी से। उनकी खुद की लॉगिन है। उसकी डील सीधी चेयरमैन से होगी। काम पूरा होगा। बच्चा डेढ़ महीने बाद गया तो मार्कशीट खुद ही लेकर आ गया। अभी बच्चा एमसीए कर रहा है, किसी गवर्नमेंट कॉलेज से। रुपया जरूर लगता है लेकिन काम पूरा करके देते हैं। एडमिशन हेड बोला- एक साल का आप रख लो, एक का हम
इसके बाद भास्कर की टीम ने एक प्राइवेट कॉलेज के एडमिशन हेड वासुदेव यादव से बात की। यादव ने बताया कि उसके कॉलेज में डिग्री मिल जाएगी, बस परीक्षा देने आना होगा। साथ ही स्कॉलरशिप को लेकर 50-50 के समझौते पर हामी भर दी। यादव से ये भी पूछा कि उसके कॉलेज में 900 सीटें हैं, उसमें से रिजर्व कैटेगरी की कितनी सीटें दे सकते हैं? पढ़िए, बातचीत… वासुदेव यादव: हमारे यहां तो एमबीए होता है। रिपोर्टर: छात्र रोज न आए तो चलेगा? वासुदेव यादव: परीक्षा तो देनी ही होगी। पास तो सब हो जाते हैं। रिपोर्टर: स्कॉलरशिप कितनी आती है? वासुदेव यादव: हर साल 45 से 50 हजार रुपए। रिपोर्टर: हमारा हिस्सा कैसे मिलेगा? वासुदेव यादव: स्कॉलरशिप आने के बाद ही मिलेगा। रिपोर्टर: एक साल का आप रख लें, एक का हम? वासुदेव यादव: हां, यह कर सकते हैं। आधा आप ले लो, आधा हम ले लें। उज्जैन के दलाल का ऑडियो- खाते अपन खुलवाएंगे, बच्चे पैसा रख लेते हैं
इसके बाद भास्कर ने उज्जैन के एक दलाल से मोबाइल पर बात की। इस दलाल से कॉलेज में एडमिशन के बारे में पूछा तो उसने कुछ प्राइवेट कॉलेजों के नाम बताए। उसने ये शर्त रखी कि बच्चों के खाते वह खुद ओपन कराएगा, क्योंकि बच्चों के खाते में स्कॉलरशिप आती है तो पैसा वे रख लेते हैं… दलाल: इंदौर में कुछ कॉलेज फुल हो गए तो कुछ में एडमिशन चल रहा है। रिपोर्टर: एग्जाम का क्या होगा? दलाल: वो सब मैनेज करा देंगे। रिपोर्टर: हिसाब-किताब कैसा रहेगा? दलाल: मेरे पास पेमेंट का लोचा नहीं रहता है। भरोसा ही है। रिपोर्टर: खाते कौन खुलवाएगा? दलाल: कॉलेज या अपन अलग से अकाउंट खुलवाएंगे, क्योंकि बच्चों के खाते में रुपए जाने के बाद वे खुद ही रख लेते हैं। छात्र बोले- हमारे खाते से पैसा कब निकला, पता ही नहीं चला
इस घोटाले के असली शिकार वे गरीब छात्र हैं, जिनके नाम और दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। एक छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- मुझे कहा गया कि कॉलेज में नाम लग जाएगा तो अगली बार एडमिशन में काम आएगा। बाद में पता चला कि मेरे नाम से दो साल की स्कॉलरशिप निकल चुकी है। ऐसे ही इंदौर के एक छात्र ने बताया- हमसे सिर्फ दस्तावेज लिए और कहा कि कॉलेज में नाम डाल देंगे। बैंक खाता उन्होंने खुद खुलवाया, हमें आज तक एटीएम या पासबुक नहीं मिली। घोटाले के पीछे सिस्टम की 5 बड़ी खामियां 1.बायोमेट्रिक सत्यापन का अभाव: छात्रवृत्ति पोर्टल पर छात्रों की उपस्थिति के लिए कोई बायोमेट्रिक सिस्टम नहीं है, जिससे फर्जी हाजिरी आसानी से लग जाती है। 2.बैंक खातों पर नियंत्रण: कॉलेजों और दलालों को छात्रों के बैंक खाते खुलवाने और उनके एटीएम-पासबुक रखने की खुली छूट है। 3.कमजोर निगरानी तंत्र: जिला स्तर पर कोई रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम नहीं है। जांच समितियां केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं। 4.ऑडिट की अनदेखी: राज्य आदिम जाति कल्याण विभाग की 2023-24 की ऑडिट रिपोर्ट में 12.6 करोड़ की राशि गैर-प्रमाणित खातों में जाने और 1,800 छात्रों के नाम दो-दो संस्थानों में पंजीकृत होने का खुलासा हुआ, लेकिन आज तक केवल 4 कॉलेजों की मान्यता रद्द की गई। 5.जवाबदेही की कमी: बैंक स्तर पर भी एक ही व्यक्ति द्वारा दर्जनों खातों को ऑपरेट करने पर कोई अलर्ट सिस्टम नहीं है। अफसर बोले- पूरा प्लेटफॉर्म ऑनलाइन है
इस मामले को लेकर भास्कर ने जब निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के तत्कालीन सेक्रेटरी केपी साहू से पूछा कि छात्रों को स्कॉलरशिप कैसे जारी होती है? उन्हें इस गड़बड़ी के बारे में भी बताया तो उन्होंने कहा- एससी-एसटी और ओबीसी छात्रों को उनसे संबंधित विभाग अपने स्तर पर जारी करते हैं। हमारे स्तर पर छात्रवृत्ति जारी नहीं होती है, हालांकि छात्रवृत्ति वितरण में अभी तो कोई कमी नहीं मिली है। उन्होंने कहा- करीब 10 साल पहले कॉलेजों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। अब तो पूरा प्लेटफॉर्म ही ऑनलाइन है, इसलिए गड़बड़ी की संभावना कम हो गई है। जहां तक बैंक खातों का सवाल है तो उनमें भी गड़बड़ी की संभावना नहीं है। खाते आधार कार्ड से लिंक होते हैं। खबर पर आप अपनी राय यहां दे सकते हैं… भास्कर इन्वेस्टिगेशन सीरीज की ये खबर भी पढ़ें… 52 नाबालिग दुल्हनों ने जन्मे 53 कुपोषित बच्चे मध्य प्रदेश में बाल विवाह कुप्रथा अब भी गहरी जड़ें जमाए है। भास्कर की 23 दिन की पड़ताल में ये चौंकाने वाली सच्चाई उजागर हुई है। पड़ताल में खुलासा हुआ कि मार्च से अगस्त-2025 के बीच 6 माह में राजगढ़ जिला अस्पताल में 75 नाबालिग वधुएं प्रसव के लिए पहुंचीं। इनमें से 52 नाबालिग माताओं ने 53 कुपोषित बच्चों को जन्म दिया। पढे़ं पूरी खबर…