लोग जंगलों में घूमने के लिए जाते हैं। क्या कहते हैं उसे, सफारी कहते हैं। पूरा बिहार जंगल है। उस जंगल में हथियार बंद लोग जा रहे हैं। उस जंगल में रहने वालों के लिए कितना हथियार जा रहा है। क्या ये बिहार का सम्मान है? बिहार को जंगल कहना और वहां की हुकूमत को जंगलराज कहना। बिहार में रहने वालों को जंगल के बाशिंदे कहना, या वो कहना जो मैं नहीं कहना चाहता। क्या ये अच्छी बात है? जम्हूरियत में, तहजीब याफ्ता समाज में इस लफ्ज के लिए कोई गुंजाइश है? ये कहना है समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता, रामपुर से 10 बार विधायक और 2 बार सांसद रहे मोहम्मद आजम खान का। दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत में उन्होंने कहा- हमारे यहां इस वक्त सियासत में ऐसे लोग कामयाब हैं, जिनके पूर्वज तमंचे बेचा करते थे, रामपुर मेड पिस्टल। 1975 में ट्रेन में एक बक्से में तमंचों के साथ पकड़े गए थे और जेल गए थे। वही बाद में विधायक हुए, कई बार विधायक हुए। आगे भी उनकी विधायकी का सिलसिला जारी है, हम तो उनसे भी गए-गुजरे हैं। मोहम्मद आजम खान ने और क्या-क्या कहा? दैनिक भास्कर के इस खास इंटरव्यू में पढ़िए… सवाल: बिहार में पहले फेज का चुनाव हुआ है। आपको क्या उम्मीद है? आजम खान: अंधे को क्या चाहिए, दो नहीं सिर्फ एक आंख। भूखे को क्या चाहिए? बिरयानी नहीं, सूखी रोटी। हो सकता है सूखी रोटी मिल जाए। बिरयानी तो लोग खा ही रहे हैं। जंगलराज है, तो कुछ भी मुमकिन है। ये कितनी अजीब बात है कि वहां सत्ता में बैठे हुए लोग 20 साल में जंगलराज को मंगलराज नहीं कर सके। आज भी जंगलराज है। आज के बाद जो तकरीरें होंगी, वे जंगलराज के लिए होंगी। ऐसे लोगों को तो सैल्यूट करना चाहिए। सवाल: आप इनकार करते रहे हैं कि कहीं नहीं जाऊंगा, लेकिन ये भी नहीं कहते कि सपा में ही हूं, सपा में ही रहूंगा। तंज भी कसते रहते हैं, ऐसा क्यों? आजम खान: अरे साहब मैं चोर आदमी, मुर्गी चोर, बकरी चोर, मैं चौथी बार का कैबिनेट मिनिस्टर, जेड सिक्योरिटी की सुरक्षा मेरी। पत्नी मेरी एसोसिएट प्रोफेसर थीं उस वक्त, हम दोनों ने मिलकर शराब की दुकान लूटी थी। 16,900 रुपए गल्ले से लूट लिया। हम लोगों की हैसियत हो सकती है, भला। हम तो समाज के सबसे गंदे व्यक्ति हैं। अब आपका ये बड़प्पन है कि हम जैसे घटिया लोगों का भी इंटरव्यू लेने आए हैं। हमारे शहर में तो आज वही MLA है, जिसने पूरे शहर की राजनीति को लूट लिया, जम्हूरियत को लूट लिया। हमारे यहां इस वक्त सियासत में ऐसे लोग कामयाब हैं, जिनके पूर्वज रामपुर मेड पिस्टल बेचा करते थे। 1975 में ट्रेन में एक बक्से में तमंचों के साथ पकड़े गए थे। जेल भी गए। उनको आज सेंट्रल गर्वमेंट से जेड सिक्योरिटी मिली है, कमांडोज मिले हैं। ये अलग बात कि नकल में वे पकड़े गए थे, बहुत से लोग पकड़े जाते हैं। वे भी पकड़े गए थे, मगर नेता हैं। सवाल: आपने विधायक की चर्चा की, सांसद हैं आपके मौलाना मोहिबुल्ला नदवी साहब, उनसे क्या नाराजगी है? आजम खान: मैं चोर, उचक्का, मुर्गी चोर, बकरी चोर, किताब चोर, भैंस चोर, शराब की दुकान लूटने वाला और वो इमाम मस्जिद के इमाम। मेरी भला ये हैसियत कि मैं उनसे अपना मुकाबला करूं। मुझे जहन्नुम के दरवाजे पर थोड़े जाना है। मुझे तो उनसे इजाजत लेनी होगी, जन्नत में दाखिल होने के लिए भी। मैं कहां, वो कहां… फिर वैसे भी उनकी दुआएं हमेशा मेरे साथ रही हैं। उनकी बुजुर्गाना हैसियत को मैंने हमेशा तस्लीम किया है। उन्होंने तो यहां तक फरमाया कि मैं सुधार गृह में हूं। इससे बड़प्पन उनका और क्या हो सकता है। उन्होंने मुझे कैदी, मुजरिम नहीं कहा। अपराधी नहीं कहा। सुधार गृह। कितनी अच्छी बात कही। मेरा उनसे क्या विरोध हो सकता है और क्यों होगा? उन्हें मैं जानता भी नहीं था, भला उनसे मेरा क्या विरोध होगा। मैं क्या पूरा रामपुर नहीं जानता था उन्हें। सवाल: वो मिलने भी नहीं आए आपसे, या उन्होंने मिलने की कोशिश की? आजम खान: अरे साहब मेरी हैसियत, मैं फरिश्तों से मिलने से मना कर सकता हूं। बताइए मस्जिद के इमाम से, नमाज पढ़ाने वाले से। मैं तो कहीं पीछे की सफ में खड़ा होने वाला व्यक्ति हूं। मैं तो सिर-आंखों पर बैठाता। मैं उनके जूते अपने सिर रखता, आज रख लूंगा। सवाल: आप समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में थे, आप एक बार भी गए नहीं? आजम खान: जा नहीं सका। पैर नहीं हैं। वो सामने सरे मंजिल चराग जलते हैं… जवाब पांव न देते तो मैं कहां होता? मैने थोड़ा सा बदला है इसे… वो सामने सरे मंजिल चराग जलते हैं.. जवाब पांव न देते तो मैं यहां होता? कैसे चला जाऊं जंगलराज में निहत्था, अकेला। कैसे चला जाऊं? जिस मुल्क में जस्टिस लोया नहीं बच सके, मैं क्या चीज हूं? (जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे। 1 दिसंबर 2014 को वे नागपुर में अपने साथी जज की बेटी की शादी में जा रहे थे, तभी हार्ट अटैक से उनकी संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी।) सवाल: खतरा खुद भी महसूस कर रहे हैं, लेकिन सिक्योरिटी ले नहीं रहे? आजम खान: कहां है? कहां है सिक्योरिटी, कोई खत तो होगा मेरे नाम। आप ला दीजिए? सवाल: अफसरों का कहना है जिसे सिक्योरिटी मिलती है और वह जेल जाता है तो सिक्योरिटी को सस्पेंड कर दिया जाता है। वापस आने पर ऑटोमैटिक बहाल हो जाती है, आप के साथ भी ऐसा ही हुआ है। आजम खान: सिक्योरिटी तो शरीफ लोगों को मिलती है न, सिक्योरिटी तो उनको मिलती है जिनकी हिफाजत की जरूरत हो, शरीफ हों। मुर्गी चोरों को, बकरी चोरों को, शराब की दुकान लूटने वालों को, धोखा देने वालों, चीटर्स को, हर केस में चार सौ बीसी करने वालों को सिक्योरिटी थोड़ी मिलती है। अगर मिली है तो इसका मतलब मैं चार सौ बीस नहीं हूं, मैं चीटर नहीं हूं, मैं मुर्गी चोर नहीं हूं। तभी तो मिली है मुझे। मैं तो चाहता हूं कि वो सर्टिफिकेट मिले, वो सबूत मिले ताकि मैं अपने माथे पर चिपका कर चला करूं। सवाल: सिक्योरिटी तो आपको भी मिली थी, वापस कर दी ऐसा क्यों? आजम खान: मुझे मिली थी, ये बात मैंने सिर्फ सुनी। मैंने ये चाहा कि अगर मुझे कोई सिक्योरिटी मिली है तो लिखकर मिलना चाहिए न सबूत कि ये फलां-फलां कॉन्स्टेबल या दरोगा आपकी सुरक्षा में हैं। मेरे पास तो आज तक किसी तरह का कोई लिखित आदेश नहीं आया है, तो मैं कैसे मान लूं कि मुझे सिक्योरिटी मिली थी। अखबारों से सुना मैंने, आपसे सुना मैंने। तो मैं कैसे मान लूं। मुझे तो कुछ नहीं मिला। हवा में मिली थी, हवा में वापस कर दी। सवाल: दस बार विधायक, 4 बार कैबिनेट मंत्री, सांसद और राज्यसभा सदस्य रहे, इसके बाद भी लखनऊ आने पर आपको होटल में रुकना पड़ रहा है? आजम खान: गेस्ट हाउस मुझे मिलता नहीं है। एक बार गलती से दे दिया था, वो न जाने कहां था, उसकी बाउंड्री वाल ढाई फीट ऊंची थी। मुझे आखिरी कमरा दिया था, जिसमें शीशे की खिड़कियां थीं। रातभर मैं कोने में कुर्सी पर बैठा रहा था, सोया नहीं था। मैं तकरीबन ढाई साल एमपी रहा, लेकिन मुझे रहने को घर नहीं मिला। यहां मैं लीडर ऑफ अपोजिशन था, तब भी मुझे आवास नहीं मिला था। बेघर तो रहा ही हूं, 50 साल की सियासत में लखनऊ में एक कोठरी तक नहीं बना सका। ये कमी तो मेरी है, किसी से शिकवा नहीं कर सकता। सवाल: लोग एक बार विधायक रहते हैं, कोठियां बन जाती हैं। आप दस बार रहे उसके बाद भी लखनऊ में एक मकान तक नहीं? आजम खान: मैं लोग नहीं था। मैं एक शख्स था। सवाल: आपके ऊपर जितने भी मुकदमे हुए उसमें ज्यादातर बचकाने आरोप थे? आजम खान: नहीं, ऐसा नहीं है, इल्जाम लगाने वाले ने अपना स्टैंडर्ड तय किया। मुझ पर धाराएं डकैती की लगीं और इल्जाम चोरी का लगा। दुख ये है कि चोरी मैंने खुद नहीं की, करवाई। बकरी, भैंस, पायल, फर्नीचर यहां तक कि किताब। एक ही मुकदमे में मुझे 21 बरस की सजा हुई, 36 लाख का जुर्माना। हम अपने बच्चे की यौम-ए-पैदाइश नहीं साबित कर सके। जब बच्चे का एडमिशन हुआ तो हमारे ही किसी मिलने वाले ने उसका एडमिशन करा दिया। उसकी डेट ऑफ बर्थ भी लिखवा दी। मामूली सा फर्क था, उसके लिए मैंने सीबीएसई बोर्ड को लिखा, डीएम को लिखा, स्कूल के प्रिंसिपल को लिखा। सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कीं। लखनऊ सिविल कोर्ट में मुकदमा भी है। क्वींस मेरी हॉस्पिटल का बर्थ सर्टिफिकेट है। नगर निगम लखनऊ का बर्थ सर्टिफिकेट है। अब्दुल्ला के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ। है ही नहीं। वो आखिरी लीव थी। उससे बड़ा कोई सबूत नहीं होता कानून में। और इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस पर फांसी के तख्त से नीचे उतर आता है। हमने इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस दे दिया। तकरीबन डेढ़ घंटे का वीडियो दे दिया। जिसमें मां की गोद में अब्दुल्ला है, बराबर बड़ा बेटा खड़ा है। साथ में सास, सालियां सब खड़ी हैं, और अब्दुल्लाह कुछ बोलता है, मां कहती हैं कि अब्दुल्लाह बोला। कैसेट पर डेट चल रही है, टाइम चल रहा है। उसका तमाम फोरेंसिक टेस्ट हो गया। फोरेंसिक लैब ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। फैसले में उसका जिक्र भी नहीं किया। सवाल: क्या कई मामलों में आपके साथ निचली अदालतों ने इंसाफ नहीं किया, आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट गए तब राहत मिली? आजम खान: ये बड़े इत्मीनान की बात है। जो लोग कानून का इंतजार करते हैं, इंसाफ का इंतजार करते हैं, उनके चिराग अभी बुझे नहीं हैं। मिसाल के तौर पर 4 नवंबर 2016 को एक कॉलोनी जिस की जमीन पर नाजायज कब्जे थे, सरकार ने खाली कराई। आसरा योजना के तहत वहां मल्टी स्टोरी कॉलोनी बनी। डेढ़ साल इसको बनने में लगा, जिलाधिकारी ने ये कॉलोनी अलॉट कर दी। चार नवंबर 2016 को उस पर सबको कब्जा मिल गया। तीन साल के बाद एक एफआईआर होती है कि 6 नवंबर 2016 को हमारे मकान तुड़वा दिए गए और आजम खान ने हमारी मुर्गी चोरी कर ली। 4 नवंबर को मकान बांट दिए गए डीएम की ओर से और 6 नवंबर को वहां मकानात तोड़ दिए गए और मुझे सजा हो गई। सवाल: क्या आपको लगता है कि निचली अदालतें किसी प्रेशर में काम करती हैं? आजम खान: एक मुकदमा और कायम कराएंगे आप मुझ पर? खामोशी गुफ्तगू है। बेजुबानी है, जुबां मेरी। सवाल: लंबे अरसे बाद लखनऊ आए हैं, काफी लोगों से मुलाकात भी हुई है। क्या पार्टी ऑफिस जाने और पार्टी के नेताओं से मिलने का भी इरादा है? आजम खान: जी हां, यकीनन इरादा है, जैसे ही वक्त मिलेगा मैं जाऊंगा। सवाल: आप लगभग दो साल जेल में रहे, इस दौरान किसी से कोई खतो किताबत की हो, जेल में रह कर कोई किताब लिखी हो? आजम खान: अब वो मामला तो मेरा है नहीं कि… कुछ.. चंद तस्वीरें बुतां, चंद हसीनों के खुतूत, बाद मरने के मेरे घर से ये सामान निकला…वो हालात तो हैं नहीं। इस उम्र में क्या खत लिखूंगा, क्या किताब लिखूंगा। बस हम खुद ही चलती-फिरती किताब हैं। अफसाने लोग सुनाया करेंगे। सवाल: क्या सिर्फ दर-ओ-दीवार से बातें होती थीं? आजम खान: यकीनन…दर-ओ-दीवार के सिवा कुछ था ही नहीं, तन्हाई थी और दीवारें थीं। वो भी बहुत तंग। छोटी सी कोठरी थी। पांच साल रहा हूं। तीन साल एक बार, दो साल एक बार। डेढ़ महीने के लिए छूट कर आया था फिर अंदर हो गया। पता नहीं कल क्या होने वाला है। सवाल: बिहार में 11 नवंबर को आखिरी दौर की वोटिंग हैं, आप क्या अपील करना चाहेंगे वहां के वोटर से? आजम खान: कुछ खुद पर रहम करें, कुछ हम पर रहम करें। और उन लोगों से जो हमारी ही सफों के लोग हैं, उन्हें अल्लाह का वास्ता देकर कहना चाहता हूं कि हमें टुकड़े-टुकड़े न करें। हमें बरबाद होने से बचा लें। अल्लाह के यहां उन्हें हिसाब देना होगा। हमारी बरबादी का इंतजाम न करें, हम पर रहम करें। ——————- ये खबर भी पढ़ें… लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेस-वे इस साल शुरू होना मुश्किल:तार ने 6 महीने रोका काम, नए साल में जाम से मुक्ति मिलेगी लखनऊ-कानपुर के बीच देश का सबसे छोटा एक्सप्रेस-वे बन रहा है। इसकी लंबाई 63 किलोमीटर है और लागत करीब 4700 करोड़ रुपए। जून- 2025 में इसका उद्घाटन प्रस्तावित था। लेकिन, बिजली के एक पोल से लगातार देरी होती चली गई। फाइनली उस बिजली के पोल की टेस्टिंग पूरी हो गई। अब उम्मीद है कि अगले डेढ़ से दो महीने के बीच काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद लखनऊ-कानपुर के बीच की दूरी एक घंटे कम हो जाएगी। पढ़िए पूरी खबर…
लोग जंगलों में घूमने के लिए जाते हैं। क्या कहते हैं उसे, सफारी कहते हैं। पूरा बिहार जंगल है। उस जंगल में हथियार बंद लोग जा रहे हैं। उस जंगल में रहने वालों के लिए कितना हथियार जा रहा है। क्या ये बिहार का सम्मान है? बिहार को जंगल कहना और वहां की हुकूमत को जंगलराज कहना। बिहार में रहने वालों को जंगल के बाशिंदे कहना, या वो कहना जो मैं नहीं कहना चाहता। क्या ये अच्छी बात है? जम्हूरियत में, तहजीब याफ्ता समाज में इस लफ्ज के लिए कोई गुंजाइश है? ये कहना है समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता, रामपुर से 10 बार विधायक और 2 बार सांसद रहे मोहम्मद आजम खान का। दैनिक भास्कर के साथ खास बातचीत में उन्होंने कहा- हमारे यहां इस वक्त सियासत में ऐसे लोग कामयाब हैं, जिनके पूर्वज तमंचे बेचा करते थे, रामपुर मेड पिस्टल। 1975 में ट्रेन में एक बक्से में तमंचों के साथ पकड़े गए थे और जेल गए थे। वही बाद में विधायक हुए, कई बार विधायक हुए। आगे भी उनकी विधायकी का सिलसिला जारी है, हम तो उनसे भी गए-गुजरे हैं। मोहम्मद आजम खान ने और क्या-क्या कहा? दैनिक भास्कर के इस खास इंटरव्यू में पढ़िए… सवाल: बिहार में पहले फेज का चुनाव हुआ है। आपको क्या उम्मीद है? आजम खान: अंधे को क्या चाहिए, दो नहीं सिर्फ एक आंख। भूखे को क्या चाहिए? बिरयानी नहीं, सूखी रोटी। हो सकता है सूखी रोटी मिल जाए। बिरयानी तो लोग खा ही रहे हैं। जंगलराज है, तो कुछ भी मुमकिन है। ये कितनी अजीब बात है कि वहां सत्ता में बैठे हुए लोग 20 साल में जंगलराज को मंगलराज नहीं कर सके। आज भी जंगलराज है। आज के बाद जो तकरीरें होंगी, वे जंगलराज के लिए होंगी। ऐसे लोगों को तो सैल्यूट करना चाहिए। सवाल: आप इनकार करते रहे हैं कि कहीं नहीं जाऊंगा, लेकिन ये भी नहीं कहते कि सपा में ही हूं, सपा में ही रहूंगा। तंज भी कसते रहते हैं, ऐसा क्यों? आजम खान: अरे साहब मैं चोर आदमी, मुर्गी चोर, बकरी चोर, मैं चौथी बार का कैबिनेट मिनिस्टर, जेड सिक्योरिटी की सुरक्षा मेरी। पत्नी मेरी एसोसिएट प्रोफेसर थीं उस वक्त, हम दोनों ने मिलकर शराब की दुकान लूटी थी। 16,900 रुपए गल्ले से लूट लिया। हम लोगों की हैसियत हो सकती है, भला। हम तो समाज के सबसे गंदे व्यक्ति हैं। अब आपका ये बड़प्पन है कि हम जैसे घटिया लोगों का भी इंटरव्यू लेने आए हैं। हमारे शहर में तो आज वही MLA है, जिसने पूरे शहर की राजनीति को लूट लिया, जम्हूरियत को लूट लिया। हमारे यहां इस वक्त सियासत में ऐसे लोग कामयाब हैं, जिनके पूर्वज रामपुर मेड पिस्टल बेचा करते थे। 1975 में ट्रेन में एक बक्से में तमंचों के साथ पकड़े गए थे। जेल भी गए। उनको आज सेंट्रल गर्वमेंट से जेड सिक्योरिटी मिली है, कमांडोज मिले हैं। ये अलग बात कि नकल में वे पकड़े गए थे, बहुत से लोग पकड़े जाते हैं। वे भी पकड़े गए थे, मगर नेता हैं। सवाल: आपने विधायक की चर्चा की, सांसद हैं आपके मौलाना मोहिबुल्ला नदवी साहब, उनसे क्या नाराजगी है? आजम खान: मैं चोर, उचक्का, मुर्गी चोर, बकरी चोर, किताब चोर, भैंस चोर, शराब की दुकान लूटने वाला और वो इमाम मस्जिद के इमाम। मेरी भला ये हैसियत कि मैं उनसे अपना मुकाबला करूं। मुझे जहन्नुम के दरवाजे पर थोड़े जाना है। मुझे तो उनसे इजाजत लेनी होगी, जन्नत में दाखिल होने के लिए भी। मैं कहां, वो कहां… फिर वैसे भी उनकी दुआएं हमेशा मेरे साथ रही हैं। उनकी बुजुर्गाना हैसियत को मैंने हमेशा तस्लीम किया है। उन्होंने तो यहां तक फरमाया कि मैं सुधार गृह में हूं। इससे बड़प्पन उनका और क्या हो सकता है। उन्होंने मुझे कैदी, मुजरिम नहीं कहा। अपराधी नहीं कहा। सुधार गृह। कितनी अच्छी बात कही। मेरा उनसे क्या विरोध हो सकता है और क्यों होगा? उन्हें मैं जानता भी नहीं था, भला उनसे मेरा क्या विरोध होगा। मैं क्या पूरा रामपुर नहीं जानता था उन्हें। सवाल: वो मिलने भी नहीं आए आपसे, या उन्होंने मिलने की कोशिश की? आजम खान: अरे साहब मेरी हैसियत, मैं फरिश्तों से मिलने से मना कर सकता हूं। बताइए मस्जिद के इमाम से, नमाज पढ़ाने वाले से। मैं तो कहीं पीछे की सफ में खड़ा होने वाला व्यक्ति हूं। मैं तो सिर-आंखों पर बैठाता। मैं उनके जूते अपने सिर रखता, आज रख लूंगा। सवाल: आप समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में थे, आप एक बार भी गए नहीं? आजम खान: जा नहीं सका। पैर नहीं हैं। वो सामने सरे मंजिल चराग जलते हैं… जवाब पांव न देते तो मैं कहां होता? मैने थोड़ा सा बदला है इसे… वो सामने सरे मंजिल चराग जलते हैं.. जवाब पांव न देते तो मैं यहां होता? कैसे चला जाऊं जंगलराज में निहत्था, अकेला। कैसे चला जाऊं? जिस मुल्क में जस्टिस लोया नहीं बच सके, मैं क्या चीज हूं? (जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे। 1 दिसंबर 2014 को वे नागपुर में अपने साथी जज की बेटी की शादी में जा रहे थे, तभी हार्ट अटैक से उनकी संदिग्ध हालात में मौत हो गई थी।) सवाल: खतरा खुद भी महसूस कर रहे हैं, लेकिन सिक्योरिटी ले नहीं रहे? आजम खान: कहां है? कहां है सिक्योरिटी, कोई खत तो होगा मेरे नाम। आप ला दीजिए? सवाल: अफसरों का कहना है जिसे सिक्योरिटी मिलती है और वह जेल जाता है तो सिक्योरिटी को सस्पेंड कर दिया जाता है। वापस आने पर ऑटोमैटिक बहाल हो जाती है, आप के साथ भी ऐसा ही हुआ है। आजम खान: सिक्योरिटी तो शरीफ लोगों को मिलती है न, सिक्योरिटी तो उनको मिलती है जिनकी हिफाजत की जरूरत हो, शरीफ हों। मुर्गी चोरों को, बकरी चोरों को, शराब की दुकान लूटने वालों को, धोखा देने वालों, चीटर्स को, हर केस में चार सौ बीसी करने वालों को सिक्योरिटी थोड़ी मिलती है। अगर मिली है तो इसका मतलब मैं चार सौ बीस नहीं हूं, मैं चीटर नहीं हूं, मैं मुर्गी चोर नहीं हूं। तभी तो मिली है मुझे। मैं तो चाहता हूं कि वो सर्टिफिकेट मिले, वो सबूत मिले ताकि मैं अपने माथे पर चिपका कर चला करूं। सवाल: सिक्योरिटी तो आपको भी मिली थी, वापस कर दी ऐसा क्यों? आजम खान: मुझे मिली थी, ये बात मैंने सिर्फ सुनी। मैंने ये चाहा कि अगर मुझे कोई सिक्योरिटी मिली है तो लिखकर मिलना चाहिए न सबूत कि ये फलां-फलां कॉन्स्टेबल या दरोगा आपकी सुरक्षा में हैं। मेरे पास तो आज तक किसी तरह का कोई लिखित आदेश नहीं आया है, तो मैं कैसे मान लूं कि मुझे सिक्योरिटी मिली थी। अखबारों से सुना मैंने, आपसे सुना मैंने। तो मैं कैसे मान लूं। मुझे तो कुछ नहीं मिला। हवा में मिली थी, हवा में वापस कर दी। सवाल: दस बार विधायक, 4 बार कैबिनेट मंत्री, सांसद और राज्यसभा सदस्य रहे, इसके बाद भी लखनऊ आने पर आपको होटल में रुकना पड़ रहा है? आजम खान: गेस्ट हाउस मुझे मिलता नहीं है। एक बार गलती से दे दिया था, वो न जाने कहां था, उसकी बाउंड्री वाल ढाई फीट ऊंची थी। मुझे आखिरी कमरा दिया था, जिसमें शीशे की खिड़कियां थीं। रातभर मैं कोने में कुर्सी पर बैठा रहा था, सोया नहीं था। मैं तकरीबन ढाई साल एमपी रहा, लेकिन मुझे रहने को घर नहीं मिला। यहां मैं लीडर ऑफ अपोजिशन था, तब भी मुझे आवास नहीं मिला था। बेघर तो रहा ही हूं, 50 साल की सियासत में लखनऊ में एक कोठरी तक नहीं बना सका। ये कमी तो मेरी है, किसी से शिकवा नहीं कर सकता। सवाल: लोग एक बार विधायक रहते हैं, कोठियां बन जाती हैं। आप दस बार रहे उसके बाद भी लखनऊ में एक मकान तक नहीं? आजम खान: मैं लोग नहीं था। मैं एक शख्स था। सवाल: आपके ऊपर जितने भी मुकदमे हुए उसमें ज्यादातर बचकाने आरोप थे? आजम खान: नहीं, ऐसा नहीं है, इल्जाम लगाने वाले ने अपना स्टैंडर्ड तय किया। मुझ पर धाराएं डकैती की लगीं और इल्जाम चोरी का लगा। दुख ये है कि चोरी मैंने खुद नहीं की, करवाई। बकरी, भैंस, पायल, फर्नीचर यहां तक कि किताब। एक ही मुकदमे में मुझे 21 बरस की सजा हुई, 36 लाख का जुर्माना। हम अपने बच्चे की यौम-ए-पैदाइश नहीं साबित कर सके। जब बच्चे का एडमिशन हुआ तो हमारे ही किसी मिलने वाले ने उसका एडमिशन करा दिया। उसकी डेट ऑफ बर्थ भी लिखवा दी। मामूली सा फर्क था, उसके लिए मैंने सीबीएसई बोर्ड को लिखा, डीएम को लिखा, स्कूल के प्रिंसिपल को लिखा। सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कीं। लखनऊ सिविल कोर्ट में मुकदमा भी है। क्वींस मेरी हॉस्पिटल का बर्थ सर्टिफिकेट है। नगर निगम लखनऊ का बर्थ सर्टिफिकेट है। अब्दुल्ला के बाद कोई बच्चा नहीं हुआ। है ही नहीं। वो आखिरी लीव थी। उससे बड़ा कोई सबूत नहीं होता कानून में। और इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस पर फांसी के तख्त से नीचे उतर आता है। हमने इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस दे दिया। तकरीबन डेढ़ घंटे का वीडियो दे दिया। जिसमें मां की गोद में अब्दुल्ला है, बराबर बड़ा बेटा खड़ा है। साथ में सास, सालियां सब खड़ी हैं, और अब्दुल्लाह कुछ बोलता है, मां कहती हैं कि अब्दुल्लाह बोला। कैसेट पर डेट चल रही है, टाइम चल रहा है। उसका तमाम फोरेंसिक टेस्ट हो गया। फोरेंसिक लैब ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। फैसले में उसका जिक्र भी नहीं किया। सवाल: क्या कई मामलों में आपके साथ निचली अदालतों ने इंसाफ नहीं किया, आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट गए तब राहत मिली? आजम खान: ये बड़े इत्मीनान की बात है। जो लोग कानून का इंतजार करते हैं, इंसाफ का इंतजार करते हैं, उनके चिराग अभी बुझे नहीं हैं। मिसाल के तौर पर 4 नवंबर 2016 को एक कॉलोनी जिस की जमीन पर नाजायज कब्जे थे, सरकार ने खाली कराई। आसरा योजना के तहत वहां मल्टी स्टोरी कॉलोनी बनी। डेढ़ साल इसको बनने में लगा, जिलाधिकारी ने ये कॉलोनी अलॉट कर दी। चार नवंबर 2016 को उस पर सबको कब्जा मिल गया। तीन साल के बाद एक एफआईआर होती है कि 6 नवंबर 2016 को हमारे मकान तुड़वा दिए गए और आजम खान ने हमारी मुर्गी चोरी कर ली। 4 नवंबर को मकान बांट दिए गए डीएम की ओर से और 6 नवंबर को वहां मकानात तोड़ दिए गए और मुझे सजा हो गई। सवाल: क्या आपको लगता है कि निचली अदालतें किसी प्रेशर में काम करती हैं? आजम खान: एक मुकदमा और कायम कराएंगे आप मुझ पर? खामोशी गुफ्तगू है। बेजुबानी है, जुबां मेरी। सवाल: लंबे अरसे बाद लखनऊ आए हैं, काफी लोगों से मुलाकात भी हुई है। क्या पार्टी ऑफिस जाने और पार्टी के नेताओं से मिलने का भी इरादा है? आजम खान: जी हां, यकीनन इरादा है, जैसे ही वक्त मिलेगा मैं जाऊंगा। सवाल: आप लगभग दो साल जेल में रहे, इस दौरान किसी से कोई खतो किताबत की हो, जेल में रह कर कोई किताब लिखी हो? आजम खान: अब वो मामला तो मेरा है नहीं कि… कुछ.. चंद तस्वीरें बुतां, चंद हसीनों के खुतूत, बाद मरने के मेरे घर से ये सामान निकला…वो हालात तो हैं नहीं। इस उम्र में क्या खत लिखूंगा, क्या किताब लिखूंगा। बस हम खुद ही चलती-फिरती किताब हैं। अफसाने लोग सुनाया करेंगे। सवाल: क्या सिर्फ दर-ओ-दीवार से बातें होती थीं? आजम खान: यकीनन…दर-ओ-दीवार के सिवा कुछ था ही नहीं, तन्हाई थी और दीवारें थीं। वो भी बहुत तंग। छोटी सी कोठरी थी। पांच साल रहा हूं। तीन साल एक बार, दो साल एक बार। डेढ़ महीने के लिए छूट कर आया था फिर अंदर हो गया। पता नहीं कल क्या होने वाला है। सवाल: बिहार में 11 नवंबर को आखिरी दौर की वोटिंग हैं, आप क्या अपील करना चाहेंगे वहां के वोटर से? आजम खान: कुछ खुद पर रहम करें, कुछ हम पर रहम करें। और उन लोगों से जो हमारी ही सफों के लोग हैं, उन्हें अल्लाह का वास्ता देकर कहना चाहता हूं कि हमें टुकड़े-टुकड़े न करें। हमें बरबाद होने से बचा लें। अल्लाह के यहां उन्हें हिसाब देना होगा। हमारी बरबादी का इंतजाम न करें, हम पर रहम करें। ——————- ये खबर भी पढ़ें… लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेस-वे इस साल शुरू होना मुश्किल:तार ने 6 महीने रोका काम, नए साल में जाम से मुक्ति मिलेगी लखनऊ-कानपुर के बीच देश का सबसे छोटा एक्सप्रेस-वे बन रहा है। इसकी लंबाई 63 किलोमीटर है और लागत करीब 4700 करोड़ रुपए। जून- 2025 में इसका उद्घाटन प्रस्तावित था। लेकिन, बिजली के एक पोल से लगातार देरी होती चली गई। फाइनली उस बिजली के पोल की टेस्टिंग पूरी हो गई। अब उम्मीद है कि अगले डेढ़ से दो महीने के बीच काम पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद लखनऊ-कानपुर के बीच की दूरी एक घंटे कम हो जाएगी। पढ़िए पूरी खबर…