27 साल में तमिलनाडु के 1856 परिवारों को बंधुआ मजदूरी से आजाद कराने वाली 47 साल की अलमेलु बन्नन अब अलमेलु अम्मा बन गई हैं। वे बताती हैं- मैं और मेरा भाई तमिलनाडु के सेलम जिले के छोटे से गांव में दलित परिवार में पैदा हुए। नतीजतन बंधुआ मजदूर बन गए। सुबह साढ़े 4 बजे से रात 10 बजे तक पूरे परिवार के साथ खेतों में मजदूरी करते… मजदूरी में मिलता था सिर्फ खाना। वो भी इतना कि पूरे परिवार का पेट शायद ही कभी भरा हो। ढाई साल ऐसे ही मजदूरी करने के बाद 14 साल की उम्र में जिंदगी तब बदली जब एक दयालु शिक्षक वेंकटासलम ने हमें वहां से छुड़ाया और स्कूल में दाखिला कराया। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने कोऑपरेटिव मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया फिर बीकॉम। किताबों ने मुझे नई दुनिया दिखाई, लेकिन मैं उस दौर को कभी भुला नहीं पाई। इसलिए मैं बंधुआ मजदूर परिवारों को इस दलदल से निकालने की कोशिश करने लगी। रूरल विमेन डवलपमेंट ट्रस्ट बनाया था। इसी के जरिए महिलाओं के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू की। अब तक 1580 महिलाओं को ट्रेंड किया। 4120 महिलाओं को रोजगार दिलाया। अब तो कभी बंधुआ मजदूर रहीं 62 महिलाएं व्यवसायी बन गई हैं। वे रस्सी बनाने, सिलाई-कढ़ाई या पशुपालन जैसा अपना काम करती हैं। मुझे खुशी है कि 2600 दलित-आदिवासी बच्चों को मैं स्कूल भेज सकी। शेष-6मैं पूरे तमिलनाडु में घूमी। खेतों में गई, ईंट भट्ठों पर गई, फैक्ट्रियों और दूर-दराज के गांवों में गई… बंधुआ मजदूरों को वहां से छुड़ाया, कभी बातचीत से बात बन गई, तो कभी पुलिस व कानून की मदद से। फिर उन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग और सरकारी योजनाओं के जरिए संसाधन जैसे सिलाई मशीन, पशु उपलब्ध करा सके। जरूरत पड़ने पर छोटे कर्ज भी। मैंने कोशिश की कि लोग पढ़ें और अपनी जिंदगी बदलें। मैं यह भी जानती हूं कि जब पेट भरा होगा तभी किताबों की बातें सुनाई देंगी। 74 गांवों में चल रहे सांध्य स्टडी सेंटर अलमेलु बन्नन अपने ट्रस्ट के जरिए तमिलनाडु में दूर-दराज के 74 गांवों में सांध्य स्टडी सेंटर चला रही हैं। यहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों को पढ़ाया जाता है। लक्ष्य सिर्फ एक-कोई अनपढ़ न रहे ताकि अपना रोजगार कर सके और बंधुआ मजदूर न बनना पड़े। अलमेलु अम्मा ने 14 साल पहले मुझे छुड़ाया और रस्सी बनाना सिखाया। अब मेरा खुद का यूनिट है। 14 महिलाएं काम करती हैं। मैं 1000–1300 रु. रोज कमाती हूं। मेरा बेटा अब आर्किटेक्ट है। – मथम्मल, पूर्व बंधुआ मजदूर, सेलम
27 साल में तमिलनाडु के 1856 परिवारों को बंधुआ मजदूरी से आजाद कराने वाली 47 साल की अलमेलु बन्नन अब अलमेलु अम्मा बन गई हैं। वे बताती हैं- मैं और मेरा भाई तमिलनाडु के सेलम जिले के छोटे से गांव में दलित परिवार में पैदा हुए। नतीजतन बंधुआ मजदूर बन गए। सुबह साढ़े 4 बजे से रात 10 बजे तक पूरे परिवार के साथ खेतों में मजदूरी करते… मजदूरी में मिलता था सिर्फ खाना। वो भी इतना कि पूरे परिवार का पेट शायद ही कभी भरा हो। ढाई साल ऐसे ही मजदूरी करने के बाद 14 साल की उम्र में जिंदगी तब बदली जब एक दयालु शिक्षक वेंकटासलम ने हमें वहां से छुड़ाया और स्कूल में दाखिला कराया। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने कोऑपरेटिव मैनेजमेंट में डिप्लोमा किया फिर बीकॉम। किताबों ने मुझे नई दुनिया दिखाई, लेकिन मैं उस दौर को कभी भुला नहीं पाई। इसलिए मैं बंधुआ मजदूर परिवारों को इस दलदल से निकालने की कोशिश करने लगी। रूरल विमेन डवलपमेंट ट्रस्ट बनाया था। इसी के जरिए महिलाओं के लिए वोकेशनल ट्रेनिंग शुरू की। अब तक 1580 महिलाओं को ट्रेंड किया। 4120 महिलाओं को रोजगार दिलाया। अब तो कभी बंधुआ मजदूर रहीं 62 महिलाएं व्यवसायी बन गई हैं। वे रस्सी बनाने, सिलाई-कढ़ाई या पशुपालन जैसा अपना काम करती हैं। मुझे खुशी है कि 2600 दलित-आदिवासी बच्चों को मैं स्कूल भेज सकी। शेष-6मैं पूरे तमिलनाडु में घूमी। खेतों में गई, ईंट भट्ठों पर गई, फैक्ट्रियों और दूर-दराज के गांवों में गई… बंधुआ मजदूरों को वहां से छुड़ाया, कभी बातचीत से बात बन गई, तो कभी पुलिस व कानून की मदद से। फिर उन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महिलाओं को ट्रेनिंग और सरकारी योजनाओं के जरिए संसाधन जैसे सिलाई मशीन, पशु उपलब्ध करा सके। जरूरत पड़ने पर छोटे कर्ज भी। मैंने कोशिश की कि लोग पढ़ें और अपनी जिंदगी बदलें। मैं यह भी जानती हूं कि जब पेट भरा होगा तभी किताबों की बातें सुनाई देंगी। 74 गांवों में चल रहे सांध्य स्टडी सेंटर अलमेलु बन्नन अपने ट्रस्ट के जरिए तमिलनाडु में दूर-दराज के 74 गांवों में सांध्य स्टडी सेंटर चला रही हैं। यहां बच्चों से लेकर बुजुर्गों को पढ़ाया जाता है। लक्ष्य सिर्फ एक-कोई अनपढ़ न रहे ताकि अपना रोजगार कर सके और बंधुआ मजदूर न बनना पड़े। अलमेलु अम्मा ने 14 साल पहले मुझे छुड़ाया और रस्सी बनाना सिखाया। अब मेरा खुद का यूनिट है। 14 महिलाएं काम करती हैं। मैं 1000–1300 रु. रोज कमाती हूं। मेरा बेटा अब आर्किटेक्ट है। – मथम्मल, पूर्व बंधुआ मजदूर, सेलम