संवाद-1 : श्रीराम-हनुमान
{श्रीराम-लक्ष्मण पंपा सरोवर पर सीता की खोज में भटक रहे थे। तभी हनुमानजी साधु-वेश में आए और मधुर वाणी से बोले- आप कौन हैं, जिनका तेज सूर्य जैसा है और मुख शांति से भरा है? {राम ने कहा- देखो लक्ष्मण! इस वानर की भाषा कितनी मधुर है, इसके वाक्य कितने शुद्ध और विचार कितने स्पष्ट हैं। इसका हृदय धर्म और विद्या से भरा है। {श्रीराम ने कहा- हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हारी वाणी ने मुझे मोहित किया है। तुममें ज्ञान, विनम्रता और शील तीनों हैं। मैं तुम्हें अपना मित्र मानता हूं। चुनौती: हम अक्सर लोगों को उनके पहनावे, स्थिति या पृष्ठभूमि से आंक लेते हैं और धोखा खा जाते हैं। सीख: असली पहचान व्यक्ति के कर्म और विचारों से होती है, न कि उसके बाहरी रूप से। स्पष्ट और नम्र वाणी ही भरोसे और रिश्तों की असली नींव है। संवाद-2 : श्रीराम-सुग्रीव
{हनुमानजी के जरिए श्रीराम को सुग्रीव से मिलाया। {श्रीराम ने कहा- मैं पत्नी सीता को रावण से मुक्त कराने निकला हूं। {सुग्रीव बोले- मेरे भाई बाली ने मेरा राज्य और पत्नी छीन ली है। अब आपकी व्यथा मेरी और मेरी व्यथा आपकी। हम एक-दूसरे की मदद करें। {उन्होंने मित्रता का संकल्प लिया। {श्रीराम ने कहा- मित्र और उसके धर्म की रक्षा मेरा कर्तव्य है। अब आपका शत्रु मेरा शत्रु है। {सुग्रीव बोले- जैसे ही मुझे राज्य मिलेगा, मेरी पूरी वानर सेना आपकी पत्नी सीता की खोज में लग जाएगी। चुनौती: नौकरी हो, बिजनेस या परिवार… अवरोध या समस्याएं आती हैं। सहयोगी का संकट भी दिखता है। सीख: अकेले संघर्ष कर रहे हैं तो भरोसेमंद साथी खोजें। बड़ी चुनौतियां अकेले हल नही होतीं, सहयोग ही असली ताकत। ईमानदारी-वचनबद्धता जरूरी है। संवाद-3 : बाली-तारा
{श्रीराम की मित्रता पाकर सुग्रीव अपने भाई बाली को युद्ध की चुनौती देते हैं। {बाली की पत्नी तारा कहती हैं- आप वैरभाव छोड़कर श्रीराम के साथ सौहार्द और सुग्रीव के साथ प्रेम संबंध स्थापित कर लें। {बाली ने कहा- आपने मेरे प्रति अपना स्नेह दिखाया है और भक्ति का भी परिचय दिया। अब जाएं, घबराहट छोड़ दें। मैं आगे बढ़कर सुग्रीव का सामना करूंगा और उसका घमंड चूर-चूर कर डालूंगा। आपको अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं है। मैं युद्ध में उसे हराकर लौट आऊंगा। चुनौती: अक्सर गलतफहमियों और अहंकार के कारण अनावश्यक लड़ाई और नुकसान को न्योता दे देते हैं। सीख: अहंकार और संघर्ष के बजाय संवाद और सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए। किसी भी सलाह को नजरअंदाज करने के बजाए उस पर विचार करें। संवाद-4 : श्रीराम-बाली
{घायल बाली कहते हैं- प्रभु राम! आप क्षत्रिय हैं, धर्मपालक कहे जाते हैं। आपने अकारण मेरा वध क्यों किया, यह धर्म और शौर्य के विरुद्ध है। मेरी शत्रुता तो सुग्रीव से थी, आप क्यों बीच में आए? {राम कहते हैं- हे बाली! आपने भाई की पत्नी को छीनकर धर्म का उल्लंघन किया है। जो पुरुष अपनी कन्या, बहन अथवा छोटे भाई की स्त्री के पास दूषित मंशा से जाता है, उसका वध करना ही उसके लिए उपयुक्त दंड माना गया है। मैं अयोध्या का राजकुमार हूं। अधर्मी को दंड मेरा राजधर्म है। चुनौती: न सिर्फ राजनीति-कॉरपोरेट, बल्कि परिवारों में भी जो ताकतवर है, अक्सर वही नियम तोड़ता है। सीख: शक्तिशाली व्यक्ति भी धर्म के विरुद्ध है, तो उसे दंड देना जरूरी है। अन्याय किसी के साथ भी हो, धर्मनिष्ठ व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसका जवाब दे।
(श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में कल पांचवें भाग में पढ़ें सुंदर कांड…)
संवाद-1 : श्रीराम-हनुमान
{श्रीराम-लक्ष्मण पंपा सरोवर पर सीता की खोज में भटक रहे थे। तभी हनुमानजी साधु-वेश में आए और मधुर वाणी से बोले- आप कौन हैं, जिनका तेज सूर्य जैसा है और मुख शांति से भरा है? {राम ने कहा- देखो लक्ष्मण! इस वानर की भाषा कितनी मधुर है, इसके वाक्य कितने शुद्ध और विचार कितने स्पष्ट हैं। इसका हृदय धर्म और विद्या से भरा है। {श्रीराम ने कहा- हे वानरश्रेष्ठ! तुम्हारी वाणी ने मुझे मोहित किया है। तुममें ज्ञान, विनम्रता और शील तीनों हैं। मैं तुम्हें अपना मित्र मानता हूं। चुनौती: हम अक्सर लोगों को उनके पहनावे, स्थिति या पृष्ठभूमि से आंक लेते हैं और धोखा खा जाते हैं। सीख: असली पहचान व्यक्ति के कर्म और विचारों से होती है, न कि उसके बाहरी रूप से। स्पष्ट और नम्र वाणी ही भरोसे और रिश्तों की असली नींव है। संवाद-2 : श्रीराम-सुग्रीव
{हनुमानजी के जरिए श्रीराम को सुग्रीव से मिलाया। {श्रीराम ने कहा- मैं पत्नी सीता को रावण से मुक्त कराने निकला हूं। {सुग्रीव बोले- मेरे भाई बाली ने मेरा राज्य और पत्नी छीन ली है। अब आपकी व्यथा मेरी और मेरी व्यथा आपकी। हम एक-दूसरे की मदद करें। {उन्होंने मित्रता का संकल्प लिया। {श्रीराम ने कहा- मित्र और उसके धर्म की रक्षा मेरा कर्तव्य है। अब आपका शत्रु मेरा शत्रु है। {सुग्रीव बोले- जैसे ही मुझे राज्य मिलेगा, मेरी पूरी वानर सेना आपकी पत्नी सीता की खोज में लग जाएगी। चुनौती: नौकरी हो, बिजनेस या परिवार… अवरोध या समस्याएं आती हैं। सहयोगी का संकट भी दिखता है। सीख: अकेले संघर्ष कर रहे हैं तो भरोसेमंद साथी खोजें। बड़ी चुनौतियां अकेले हल नही होतीं, सहयोग ही असली ताकत। ईमानदारी-वचनबद्धता जरूरी है। संवाद-3 : बाली-तारा
{श्रीराम की मित्रता पाकर सुग्रीव अपने भाई बाली को युद्ध की चुनौती देते हैं। {बाली की पत्नी तारा कहती हैं- आप वैरभाव छोड़कर श्रीराम के साथ सौहार्द और सुग्रीव के साथ प्रेम संबंध स्थापित कर लें। {बाली ने कहा- आपने मेरे प्रति अपना स्नेह दिखाया है और भक्ति का भी परिचय दिया। अब जाएं, घबराहट छोड़ दें। मैं आगे बढ़कर सुग्रीव का सामना करूंगा और उसका घमंड चूर-चूर कर डालूंगा। आपको अब कुछ और कहने की जरूरत नहीं है। मैं युद्ध में उसे हराकर लौट आऊंगा। चुनौती: अक्सर गलतफहमियों और अहंकार के कारण अनावश्यक लड़ाई और नुकसान को न्योता दे देते हैं। सीख: अहंकार और संघर्ष के बजाय संवाद और सुलह का रास्ता अपनाना चाहिए। किसी भी सलाह को नजरअंदाज करने के बजाए उस पर विचार करें। संवाद-4 : श्रीराम-बाली
{घायल बाली कहते हैं- प्रभु राम! आप क्षत्रिय हैं, धर्मपालक कहे जाते हैं। आपने अकारण मेरा वध क्यों किया, यह धर्म और शौर्य के विरुद्ध है। मेरी शत्रुता तो सुग्रीव से थी, आप क्यों बीच में आए? {राम कहते हैं- हे बाली! आपने भाई की पत्नी को छीनकर धर्म का उल्लंघन किया है। जो पुरुष अपनी कन्या, बहन अथवा छोटे भाई की स्त्री के पास दूषित मंशा से जाता है, उसका वध करना ही उसके लिए उपयुक्त दंड माना गया है। मैं अयोध्या का राजकुमार हूं। अधर्मी को दंड मेरा राजधर्म है। चुनौती: न सिर्फ राजनीति-कॉरपोरेट, बल्कि परिवारों में भी जो ताकतवर है, अक्सर वही नियम तोड़ता है। सीख: शक्तिशाली व्यक्ति भी धर्म के विरुद्ध है, तो उसे दंड देना जरूरी है। अन्याय किसी के साथ भी हो, धर्मनिष्ठ व्यक्ति का कर्तव्य है कि उसका जवाब दे।
(श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में कल पांचवें भाग में पढ़ें सुंदर कांड…)