
ब्रिटिश राज में कुंभ मेला स्वतंत्रता सेनानियों की मुलाकातों और लोगों को जागरूक करने का प्रभावी माध्यम था। प्रयाग कुंभ मेले में तीर्थ पुरोहितों (प्रयागवाल) के निशान की तर्ज पर क्रांतिकारी भी अपने संदेश देने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करते थे। इससे साथियों को एक जगह जुटने का खुफिया संदेश दिया जाता था। हालांकि इनका लिखित दस्तावेज नहीं है। प्रयाग तीर्थ पुरोहितों के दस्तावेज बताते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की रूपरेखा बनाने से पहले संगम नगरी आई थीं। वे एक तीर्थ पुरोहित के यहां ठहरीं। यह अकारण नहीं था कि अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में नागा साधु बाबा गंगादास की बड़ी शाला पहुंचीं। तब 2 हजार नागा साधुओं ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया और 745 साधु शहीद हुए। विद्रोह में शामिल हुए लोगों पर बम फेंके गए
जून 1857 में जब पहली क्रांति का संघर्ष चरम पर था, तब बड़ी संख्या में प्रयागवाल भी विद्रोह में शामिल हुए। इसके बाद इलाहाबाद पहुंचे कर्नल नील ने 15 जून, 1857 को संगम के नजदीक उन इलाकों में बम बरसवाए, जहां प्रयागवालों की बस्ती थी और माघ मेला का क्षेत्र था। 1915 में हरिद्वार कुंभ के दौरान अंग्रेज गंगा पर बांध बनाने लगे। आंदोलन बढ़ा तो फैसला वापस लेना पड़ा। बापू ने 1918 में संगम में डुबकी लगाई वायसराय ने पूछा-इतने लोगों को बुलाने का खर्च कितना, जवाब-2 पैसे
महामना मदनमोहन मालवीय के कहने पर 1942 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो प्रयाग कुंभ आए। अपार जन-समूह देख पूछा- ‘इतने लोगों को बुलाने में बहुत खर्च हुआ होगा?’ महामना ने कहा, ‘सिर्फ दो पैसे खर्च हुए।’ लिनलिथगो ने कहा, ‘पंडिज जी, मजाक तो नहीं कर रहे?’ इस पर महामना ने जेब से पंचांग निकालते हुए कहा, ‘यह दो पैसे का है। इससे कुंभ और स्नान पर्व पता चल जाते हैं। लोग बिना किसी निमंत्रण के चले आते हैं।’ 1946 से भूले-बिसरे शिविर
सन् 1946 के माघ मेले में 18 वर्ष के राजाराम तिवारी ने भूले-भटके लोगों को परिजनों तक पहुंचाने के लिए ‘भारत सेवा दल’ संस्था बनाकर काम शुरू किया। उनका निधन 2016 में हुआ और वे हर साल इस काम को करते रहे। उनके निधन के बाद उनके परिजन इस संस्था का संचालन कर रहे हैं। ————————————— महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर। यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबर इवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगा कुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशन कुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।
ब्रिटिश राज में कुंभ मेला स्वतंत्रता सेनानियों की मुलाकातों और लोगों को जागरूक करने का प्रभावी माध्यम था। प्रयाग कुंभ मेले में तीर्थ पुरोहितों (प्रयागवाल) के निशान की तर्ज पर क्रांतिकारी भी अपने संदेश देने के लिए प्रतीकों का प्रयोग करते थे। इससे साथियों को एक जगह जुटने का खुफिया संदेश दिया जाता था। हालांकि इनका लिखित दस्तावेज नहीं है। प्रयाग तीर्थ पुरोहितों के दस्तावेज बताते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 1857 की क्रांति की रूपरेखा बनाने से पहले संगम नगरी आई थीं। वे एक तीर्थ पुरोहित के यहां ठहरीं। यह अकारण नहीं था कि अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में नागा साधु बाबा गंगादास की बड़ी शाला पहुंचीं। तब 2 हजार नागा साधुओं ने अंग्रेजों से भीषण युद्ध किया और 745 साधु शहीद हुए। विद्रोह में शामिल हुए लोगों पर बम फेंके गए
जून 1857 में जब पहली क्रांति का संघर्ष चरम पर था, तब बड़ी संख्या में प्रयागवाल भी विद्रोह में शामिल हुए। इसके बाद इलाहाबाद पहुंचे कर्नल नील ने 15 जून, 1857 को संगम के नजदीक उन इलाकों में बम बरसवाए, जहां प्रयागवालों की बस्ती थी और माघ मेला का क्षेत्र था। 1915 में हरिद्वार कुंभ के दौरान अंग्रेज गंगा पर बांध बनाने लगे। आंदोलन बढ़ा तो फैसला वापस लेना पड़ा। बापू ने 1918 में संगम में डुबकी लगाई वायसराय ने पूछा-इतने लोगों को बुलाने का खर्च कितना, जवाब-2 पैसे
महामना मदनमोहन मालवीय के कहने पर 1942 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो प्रयाग कुंभ आए। अपार जन-समूह देख पूछा- ‘इतने लोगों को बुलाने में बहुत खर्च हुआ होगा?’ महामना ने कहा, ‘सिर्फ दो पैसे खर्च हुए।’ लिनलिथगो ने कहा, ‘पंडिज जी, मजाक तो नहीं कर रहे?’ इस पर महामना ने जेब से पंचांग निकालते हुए कहा, ‘यह दो पैसे का है। इससे कुंभ और स्नान पर्व पता चल जाते हैं। लोग बिना किसी निमंत्रण के चले आते हैं।’ 1946 से भूले-बिसरे शिविर
सन् 1946 के माघ मेले में 18 वर्ष के राजाराम तिवारी ने भूले-भटके लोगों को परिजनों तक पहुंचाने के लिए ‘भारत सेवा दल’ संस्था बनाकर काम शुरू किया। उनका निधन 2016 में हुआ और वे हर साल इस काम को करते रहे। उनके निधन के बाद उनके परिजन इस संस्था का संचालन कर रहे हैं। ————————————— महाकुंभ का हर अपडेट, हर इवेंट की जानकारी और कुंभ का पूरा मैप सिर्फ एक क्लिक पर प्रयागराज के महाकुंभ में क्या चल रहा है? किस अखाड़े में क्या खास है? कौन सा घाट कहां बना है? इस बार कौन से कलाकार कुंभ में परफॉर्म करेंगे? किस संत के प्रवचन कब होंगे? महाकुंभ से जुड़े आपके हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा दैनिक भास्कर के कुंभ मिनी एप पर। यहां अपडेट्स सेक्शन में मिलेगी कुंभ से जुड़ी हर खबर इवेंट्स सेक्शन में पता चलेगा कि कुंभ में कौन सा इवेंट कब और कहां होगा कुंभ मैप सेक्शन में मिलेगा हर महत्वपूर्ण लोकेशन तक सीधा नेविगेशन कुंभ गाइड के जरिये जानेंगे कुंभ से जुड़ी हर महत्वपूर्ण बात अभी कुंभ मिनी ऐप देखने के लिए यहां क्लिक कीजिए।