
नए वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस मसीह की बेंच सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुल तीन मुद्दे हैं, जिन पर रोक लगाने की मांग की गई है और उस पर मैंने जवाब दाखिल कर दिया है। इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं को की तरफ से पेश हो रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ने कहा कि सिर्फ तीन मुद्दे नहीं हैं। पूरे वक्फ पर अतिक्रमण का मुद्दा है। कोर्ट रूम लाइव: याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल: 2025 का वक्फ कानून वक्फ की सुरक्षा के मकसद से बनाया गया है, लेकिन असल में इसे ऐसे तरीके से तैयार किया गया है जिससे वक्फ संपत्तियों को एक गैर-न्यायिक प्रक्रिया के जरिए कब्जे में लिया जा सके। निजी संपत्तियां सिर्फ इसलिए छीनी जा रही हैं क्योंकि उनमें कोई विवाद है, और हमें यह भी नहीं पता कि विवाद की प्रकृति क्या है। कलेक्टर से ऊपर के स्तर के एक अधिकारी को उस विवाद को देखने के लिए नियुक्त किया जाता है, और इस बीच संपत्ति को कब्जे में ले लिया जाता है। CJI: बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए? सिब्बल: सरकार अपनी प्रक्रिया खुद तय करती है, कोई भी विवाद खड़ा कर सकता है। यह एक पहलू है। दूसरा, वक्फ क्या होता है? वक्फ का मतलब है अल्लाह (ईश्वर) के नाम पर संपत्ति का दान, और इसके अनुसार वह संपत्ति ट्रांसफर नहीं की जा सकती। एक बार वक्फ हो गया, तो वह हमेशा वक्फ ही रहेगा। इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि हमारे संविधान के तहत राज्य किसी भी धार्मिक संस्था को फंड नहीं कर सकता। अगर कोई मस्जिद है, तो राज्य उसकी फंडिंग नहीं कर सकता। कब्रिस्तान हो, तो वह भी निजी जमीन पर ही बनाया जाता है… वहां कोई कमाई नहीं होती, लोग बस अपने प्रियजनों को दफनाने आते हैं। फिर इन्हें चलाया कैसे जाता है? चैरिटी यानी दान-पुण्य के जरिए। CJI: ऐसा अन्य मंदिरों में भी होता है। मैं दरगाह भी जाता हूं, वहां भी यही होता है। सिब्बल: लेकिन दरगाह और मस्जिद अलग होते हैं। इन संपत्तियों को बचाने के लिए समुदाय की जिम्मेदारी होती है। वे कहते हैं कि अगर उस पर अतिक्रमण हो जाए, तो वक्फ की प्रकृति बदल जाती है। आप 1913, 1923, 1954, 1984, 1995, 2013 और 2025 के कानूनों का इतिहास देखिए। सॉलिसिटर जनरल मेहता: 2025 का कानून असल में सिर्फ संशोधन है। सिब्बल: नहीं, 2025 का कानून पिछली परंपराओं से पूरी तरह अलग है। इसमें दो अहम बातें थीं- वक्फ बाय यूजर और समर्पण। मतलब, अगर कोई संपत्ति धार्मिक कार्य के लिए समर्पित की गई हो और लोग उसे उसी उद्देश्य से इस्तेमाल करते रहे हों, तो वह वक्फ बाय यूजर बन जाती है। यह अवधारणा बाबरी मस्जिद के केस में भी मानी गई थी। लेकिन अब इस कानून में इसे हटा दिया गया है। वे कहते हैं कि पहले वाले कानूनों में वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी था, और आपने आपने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, तो वह संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। लेकिन बहुत सी संपत्तियां तो 100, 200 या 500 साल पहले बनाई गई थीं, तब रजिस्ट्रेशन की कोई प्रक्रिया नहीं थी। CJI: क्या रजिस्ट्रेशन जरूरी था? सिब्बल: हां, जरूरी तो था, लेकिन अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो कोई दंड या परिणाम तय नहीं था। CJI: आपको A, B, C, D से शुरू करना होगा, मैं खुद से पूरा कानून नहीं पढ़ूंगा। बस बताइए, क्या रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था? सिब्बल: कानून में “shall” (करना होगा) शब्द लिखा था। CJI: सिर्फ “shall” लिखने से कोई चीज अनिवार्य नहीं हो जाती, जब तक कि उस पर कोई स्पष्ट परिणाम या दंड न तय हो। सिब्बल: हां, लेकिन इसका नतीजा ये नहीं था कि अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो वक्फ की प्रकृति ही बदल जाएगी या वह वक्फ नहीं मानी जाएगी। कोर्ट ने केंद्र को तीन निर्देश दिए थे… पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था- अंतरिम राहत देने पर विचार करेंगे इससे पहले कोर्ट ने इस मुद्दे पर 15 मई को सुनवाई की थी। तब CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने केंद्र और याचिकाकर्ता को 19 मई तक हलफनामा पेश करने को कहा था। हालांकि, इसको लेकर जानकारी अभी सामने नहीं आई है। केंद्र की और से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। बेंच ने कहा कि अंतरिम राहत दिए जाने के मुद्दे पर हम 20 मई को विचार करेंगे। दोनों पक्षों के वकीलों ने कहा था कि याचिकाओं के मुद्दों पर नजर डालने के लिए जजों को कुछ और वक्त की जरूरत हो सकती है। केंद्र ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब तक मामले को सुन रहा है, तब तक कानून के अहम प्रावधान लागू नहीं होंगे, यथास्थिति बनी रहेगी। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर किया था 1300 पेज का हलफनामा केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा था कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। 1332 पन्नों के हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल है। नया कानून अप्रैल में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हुआ था। लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 128 सांसदों ने इसका समर्थन किया था। कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सॉलिसिटर जनरल बोले- लाखों सुझावों के बाद संशोधित कानून बना
अब CJI बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज की बेंच मामले पर सुनवाई करेगी। पहले तत्कालीन CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस खन्ना 13 मई को रिटायर हो गए। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता, जबकि कानून के खिलाफ कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह दलीलें रख रहे हैं। 17 अप्रैल की सुनवाई में SG मेहता ने कहा था कि संसद से ‘उचित विचार-विमर्श के साथ’ पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि लाखों सुझावों के बाद नया कानून बना है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें गांवों को वक्फ ने हड़प लिया। कई निजी संपत्तियों को वक्फ में ले लिया गया। इस पर बेंच ने कहा कि हम अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले रहे हैं। याचिका में 3 बड़ी बातें… 16 अप्रैल: पहले दिन की सुनवाई की 3 बड़ी बातें… 1. वक्फ बोर्ड बनाने की प्रक्रिया: कानून के खिलाफ दलील दे रहे कपिल सिब्बल ने कहा,’हम उस प्रावधान को चुनौती देते हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं, राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?’ 2. पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन पर: सिब्बल ने कहा- यह इतना आसान नहीं है। वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाया गया है। अब ये 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड मांगेंगे। यहां समस्या है। इस पर SG ने कहा- वक्फ का रजिस्ट्रेशन 1995 के कानून में भी था। सिब्बल साहब कह रहे हैं कि मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा। अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वह जेल जाएगा। यह 1995 से है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अंग्रेजों से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन नहीं होता था। कई मस्जिदें 13वीं, 14वीं सदी की है। इनके पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर करेंगे। उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।’ 3. बोर्ड मेंबर्स में गैर-मुस्लिम: सिब्बल ने कहा, ‘केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि नागरिक धार्मिक और समाजसेवा के लिए संस्था की स्थापना कर सकते हैं। इस मसले पर CJI और SG के बीच तीखी बहस हुई। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करेगी? SG ने कहा कि वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों के अलावा दो से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे। इस पर बेंच ने कहा, ‘नए एक्ट में वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से आठ मुस्लिम होंगे। इसमें दो ऐसे जज हो सकते हैं, जो मुस्लिम न हों। ऐसे में बहुमत गैर मुस्लिमों का होगा। इससे संस्था का धार्मिक चरित्र कैसे बचेगा?’ क्यों हो रहा कानून का विरोध… पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में हिंसा हुई —————————–
मामले से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… वक्फ कानून में 14 बड़े बदलाव, महिलाओं और गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में एंट्री होगी भारत में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। करीब 9.4 लाख एकड़। इतनी जमीन में दिल्ली जैसे 3 शहर बस जाएं। इसी वक्फ बोर्ड से जुड़े एक्ट में बदलाव के लिए केंद्र सरकार आज संसद में बिल पेश करेगी। विपक्ष के नेता और मुसलमानों का एक बड़ा तबका इसके विरोध में हैं। पूरी खबर पढ़ें…
नए वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस मसीह की बेंच सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुल तीन मुद्दे हैं, जिन पर रोक लगाने की मांग की गई है और उस पर मैंने जवाब दाखिल कर दिया है। इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं को की तरफ से पेश हो रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि ने कहा कि सिर्फ तीन मुद्दे नहीं हैं। पूरे वक्फ पर अतिक्रमण का मुद्दा है। कोर्ट रूम लाइव: याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल: 2025 का वक्फ कानून वक्फ की सुरक्षा के मकसद से बनाया गया है, लेकिन असल में इसे ऐसे तरीके से तैयार किया गया है जिससे वक्फ संपत्तियों को एक गैर-न्यायिक प्रक्रिया के जरिए कब्जे में लिया जा सके। निजी संपत्तियां सिर्फ इसलिए छीनी जा रही हैं क्योंकि उनमें कोई विवाद है, और हमें यह भी नहीं पता कि विवाद की प्रकृति क्या है। कलेक्टर से ऊपर के स्तर के एक अधिकारी को उस विवाद को देखने के लिए नियुक्त किया जाता है, और इस बीच संपत्ति को कब्जे में ले लिया जाता है। CJI: बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए? सिब्बल: सरकार अपनी प्रक्रिया खुद तय करती है, कोई भी विवाद खड़ा कर सकता है। यह एक पहलू है। दूसरा, वक्फ क्या होता है? वक्फ का मतलब है अल्लाह (ईश्वर) के नाम पर संपत्ति का दान, और इसके अनुसार वह संपत्ति ट्रांसफर नहीं की जा सकती। एक बार वक्फ हो गया, तो वह हमेशा वक्फ ही रहेगा। इसका ऐतिहासिक कारण यह है कि हमारे संविधान के तहत राज्य किसी भी धार्मिक संस्था को फंड नहीं कर सकता। अगर कोई मस्जिद है, तो राज्य उसकी फंडिंग नहीं कर सकता। कब्रिस्तान हो, तो वह भी निजी जमीन पर ही बनाया जाता है… वहां कोई कमाई नहीं होती, लोग बस अपने प्रियजनों को दफनाने आते हैं। फिर इन्हें चलाया कैसे जाता है? चैरिटी यानी दान-पुण्य के जरिए। CJI: ऐसा अन्य मंदिरों में भी होता है। मैं दरगाह भी जाता हूं, वहां भी यही होता है। सिब्बल: लेकिन दरगाह और मस्जिद अलग होते हैं। इन संपत्तियों को बचाने के लिए समुदाय की जिम्मेदारी होती है। वे कहते हैं कि अगर उस पर अतिक्रमण हो जाए, तो वक्फ की प्रकृति बदल जाती है। आप 1913, 1923, 1954, 1984, 1995, 2013 और 2025 के कानूनों का इतिहास देखिए। सॉलिसिटर जनरल मेहता: 2025 का कानून असल में सिर्फ संशोधन है। सिब्बल: नहीं, 2025 का कानून पिछली परंपराओं से पूरी तरह अलग है। इसमें दो अहम बातें थीं- वक्फ बाय यूजर और समर्पण। मतलब, अगर कोई संपत्ति धार्मिक कार्य के लिए समर्पित की गई हो और लोग उसे उसी उद्देश्य से इस्तेमाल करते रहे हों, तो वह वक्फ बाय यूजर बन जाती है। यह अवधारणा बाबरी मस्जिद के केस में भी मानी गई थी। लेकिन अब इस कानून में इसे हटा दिया गया है। वे कहते हैं कि पहले वाले कानूनों में वक्फ संपत्ति का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी था, और आपने आपने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, तो वह संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। लेकिन बहुत सी संपत्तियां तो 100, 200 या 500 साल पहले बनाई गई थीं, तब रजिस्ट्रेशन की कोई प्रक्रिया नहीं थी। CJI: क्या रजिस्ट्रेशन जरूरी था? सिब्बल: हां, जरूरी तो था, लेकिन अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो कोई दंड या परिणाम तय नहीं था। CJI: आपको A, B, C, D से शुरू करना होगा, मैं खुद से पूरा कानून नहीं पढ़ूंगा। बस बताइए, क्या रजिस्ट्रेशन अनिवार्य था? सिब्बल: कानून में “shall” (करना होगा) शब्द लिखा था। CJI: सिर्फ “shall” लिखने से कोई चीज अनिवार्य नहीं हो जाती, जब तक कि उस पर कोई स्पष्ट परिणाम या दंड न तय हो। सिब्बल: हां, लेकिन इसका नतीजा ये नहीं था कि अगर रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, तो वक्फ की प्रकृति ही बदल जाएगी या वह वक्फ नहीं मानी जाएगी। कोर्ट ने केंद्र को तीन निर्देश दिए थे… पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था- अंतरिम राहत देने पर विचार करेंगे इससे पहले कोर्ट ने इस मुद्दे पर 15 मई को सुनवाई की थी। तब CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने केंद्र और याचिकाकर्ता को 19 मई तक हलफनामा पेश करने को कहा था। हालांकि, इसको लेकर जानकारी अभी सामने नहीं आई है। केंद्र की और से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं। बेंच ने कहा कि अंतरिम राहत दिए जाने के मुद्दे पर हम 20 मई को विचार करेंगे। दोनों पक्षों के वकीलों ने कहा था कि याचिकाओं के मुद्दों पर नजर डालने के लिए जजों को कुछ और वक्त की जरूरत हो सकती है। केंद्र ने भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब तक मामले को सुन रहा है, तब तक कानून के अहम प्रावधान लागू नहीं होंगे, यथास्थिति बनी रहेगी। केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर किया था 1300 पेज का हलफनामा केंद्र ने 25 अप्रैल को दायर हलफनामे में कहा था कि कानून पूरी तरह संवैधानिक है। यह संसद से पास हुआ है, इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। 1332 पन्नों के हलफनामे में सरकार ने दावा किया 2013 के बाद से वक्फ संपत्तियों में 20 लाख एकड़ से ज्यादा का इजाफा हुआ। इस वजह से कई बार निजी और सरकारी जमीनों पर विवाद हुआ। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने सरकार के आंकड़ों को गलत बताया और कोर्ट से झूठा हलफनामा देने वाले वाले अधिकारी पर कार्रवाई की मांग की। नए वक्फ कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई हैं, लेकिन कोर्ट सिर्फ पांच मुख्य याचिकाओं पर ही सुनवाई करेगा। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका शामिल है। नया कानून अप्रैल में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हुआ था। लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 128 सांसदों ने इसका समर्थन किया था। कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सॉलिसिटर जनरल बोले- लाखों सुझावों के बाद संशोधित कानून बना
अब CJI बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज की बेंच मामले पर सुनवाई करेगी। पहले तत्कालीन CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही थी। जस्टिस खन्ना 13 मई को रिटायर हो गए। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता, जबकि कानून के खिलाफ कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह दलीलें रख रहे हैं। 17 अप्रैल की सुनवाई में SG मेहता ने कहा था कि संसद से ‘उचित विचार-विमर्श के साथ’ पारित कानून पर सरकार का पक्ष सुने बिना रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि लाखों सुझावों के बाद नया कानून बना है। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें गांवों को वक्फ ने हड़प लिया। कई निजी संपत्तियों को वक्फ में ले लिया गया। इस पर बेंच ने कहा कि हम अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले रहे हैं। याचिका में 3 बड़ी बातें… 16 अप्रैल: पहले दिन की सुनवाई की 3 बड़ी बातें… 1. वक्फ बोर्ड बनाने की प्रक्रिया: कानून के खिलाफ दलील दे रहे कपिल सिब्बल ने कहा,’हम उस प्रावधान को चुनौती देते हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं, राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?’ 2. पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन पर: सिब्बल ने कहा- यह इतना आसान नहीं है। वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाया गया है। अब ये 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड मांगेंगे। यहां समस्या है। इस पर SG ने कहा- वक्फ का रजिस्ट्रेशन 1995 के कानून में भी था। सिब्बल साहब कह रहे हैं कि मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा। अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वह जेल जाएगा। यह 1995 से है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अंग्रेजों से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन नहीं होता था। कई मस्जिदें 13वीं, 14वीं सदी की है। इनके पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर करेंगे। उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।’ 3. बोर्ड मेंबर्स में गैर-मुस्लिम: सिब्बल ने कहा, ‘केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि नागरिक धार्मिक और समाजसेवा के लिए संस्था की स्थापना कर सकते हैं। इस मसले पर CJI और SG के बीच तीखी बहस हुई। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करेगी? SG ने कहा कि वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों के अलावा दो से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे। इस पर बेंच ने कहा, ‘नए एक्ट में वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से आठ मुस्लिम होंगे। इसमें दो ऐसे जज हो सकते हैं, जो मुस्लिम न हों। ऐसे में बहुमत गैर मुस्लिमों का होगा। इससे संस्था का धार्मिक चरित्र कैसे बचेगा?’ क्यों हो रहा कानून का विरोध… पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में हिंसा हुई —————————–
मामले से जुड़ी यह खबर भी पढ़ें… वक्फ कानून में 14 बड़े बदलाव, महिलाओं और गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में एंट्री होगी भारत में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है। करीब 9.4 लाख एकड़। इतनी जमीन में दिल्ली जैसे 3 शहर बस जाएं। इसी वक्फ बोर्ड से जुड़े एक्ट में बदलाव के लिए केंद्र सरकार आज संसद में बिल पेश करेगी। विपक्ष के नेता और मुसलमानों का एक बड़ा तबका इसके विरोध में हैं। पूरी खबर पढ़ें…