
पाकिस्तान की सीमा के साथ सटे पंजाब के गांवों में सीजफायर के बाद जिंदगी पटरी पर लौट आई है। गांव छोड़कर गए लोग घर लौट चुके हैं। यहां भारत-पाक सीमा पर फेंसिंग के साथ खेतों में ट्रैक्टर चल रहे हैं और गुरुद्वारों में लंगर पक रहे हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो गांव छोड़कर नहीं गए और यहीं पर सेना और BSF की सेवा में जुटे रहे। पाकिस्तान के अटैक के खतरे के बारे में पूछने पर लोग बोले- हमने 3 युद्ध देखे हैं, हम डरते नहीं हैं। कई बुजुर्ग तो ऐसे हैं जो पाकिस्तानी ड्रोन अटैक और शेलिंग के बीच भी गांव में ही डटे रहे। सीजफायर के 3 दिन बाद पाकिस्तान सीमा से महज 200 से 500 मीटर दूरी पर बसे गांवों का हाल जानने दैनिक भास्कर अमृतसर और पठानकोट के 6 गांवों में पहुंचा। यहां के लोगों से बात की तो उनका कहना था कि वे धान की पनीरी लगाने के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। अब बाजार भी रात 9 बजे तक खुल रहे हैं। उन्हें अपनी सेना पर पूरा भरोसा है। पढ़िए पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… सरहदी गांवों में पटरी पर लौटी जिंदगी, खेती होने लगी अमृतसर में चक्क अल्ला बख्श के रणजीत युद्ध के बीच सप्लाई करते रहे सामान भास्कर टीम सबसे पहले गांव चक्क अल्ला बख्श पहुंची। इस गांव की बॉर्डर से दूरी करीब 500 मीटर है। गांव में 30 से 40 ही घर है, वह एकदूसरे से कुछ-कुछ दूरी है। यहां टीम को गांव में फेरी लगाने वाले रणजीत सिंह मिले। पाकिस्तान की ओर से किए गए अटैक के वक्त चिंता जरूर हुई थी, लेकिन डरे नहीं थे। चिंता इसलिए, क्योंकि घर में बच्चे, महिलाएं है, खेती है, हमला बढ़ा तो क्या होगा। डरे इसलिए नहीं, कि हमने 1971 की जंग देखी है। यहां बहुत नुकसान हुआ था। सारा गांव खाली हो गया था, इस बार तो केवल बच्चों को बाहर भेजा था, लेकिन वे भी लौट आए हैं। मैं फेरी लगाने का काम करता हूं। युद्ध के हालात में भी मैंने सामान की सप्लाई जारी रखी।अब सीजफायर का फैसला बहुत अच्छा है। धनोला गांव के गुरनाम सिंह बोले- सेना ने बहुत मदद की
इसके बाद टीम धनोआ गांव पहुंची। यह गांव भी सरहद से करीब 300 मीटर की दूरी है। यहां की आबादी ज्यादा नहीं है। गांव में एंट्री के साथ ही गुरनाम सिंह और हरपाल सिंह मिले। युद्ध के बारे में सवाल पूछने पर गुरनाम ने बताया कि पाकिस्तान ने जब हमला किया और कल जब सीजफायर हुआ, तब से काफी फर्क है। पहले जंग को लेकर लोग सहमे थे। सीजफायर का पता चलने पर सुकून मिला है। गांव के ही हरपाल सिंह का कहना है कि अब खतरे की कोई बात नहीं है। बच्चे घर आना शुरू हो गए हैं। अब हालात ठीक हैं। पनीरी लगाने की तैयारी कर रहे हैं। बताया कि हमारी फौज ने काफी मदद की। सेना सीधे लोगों के संपर्क में रहती थी। सेना और लोकल प्रशासन के अधिकारियों की तरफ से गांव के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए है, उसमें प्रधान और अन्य लोगों को जोड़ा गया है। अगर कोई सूचना होती थी तो तुरंत जानकारी शेयर की जाती है। भरोपाल के लोगों ने कहा- कुछ परिवार अभी भी डर के कारण नहीं आए
धनोआ गांव के लोगों से युद्ध के वक्त का हाल जाने के बाद टीम पहुंची भरोपाल गांव। गांव की गलियों में कुछेक लोग ही नजर आए। इनमें शामिल सुखदेव सिंह ने पाकिस्तान की ओर से की गई गोलाबारी के सवाल पर बताया कि उनके गांव से बॉर्डर महज महज 200-300 मीटर ही दूर है। यहां वारदात तो होती रहती है। जब भी माहौल खराब होता है हम फेंसिंग से पीछे हट जाते हैं। सतपाल सिंह ने बताया कि परिवार वापस आ रहे हैं। कुछ परिवार अभी डर के कारण नहीं आए हैं। वहीं, मिंटू ने कहा कि यहां माहौल खराब रहा, लेकिन अब ठीक है। हमने फेंसिंग से दूर भैणी गांव में रातें काटी हैं। लड़ाई नहीं होनी चाहिए। छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहां जाएंगे। राजाताल के लोग बोले- हालात ठीक, बाजार भी रात 9 बजे तक खुल रहे
धनोआ गांव के निकट ही गांव है राजाताल, जिसकी बॉर्डर से दूरी करीब 400 मीटर है। इस गांव की आबादी ज्यादा नहीं है, 30 से 40 घर है। गांव में मिले राजदीप सिंह ने बताया कि अब हालात ठीक हैं। बाजार भी अब रात 9 बजे तक खुल रहे हैं। परमजीत ने बताया कि गांव के लोगों ने अपने बच्चे और बुजुर्गों को दूर रहने वाले रिश्तेदारों के घर भेज दिया था । क्योंकि पहले रात को हमला हो रहा था तो घरों की दीवारें हिल जाती थीं। इस कारण बच्चे रात को सो नहीं पा रहे थे। उस समय मैं घर से बाहर चला गया था। अब हालात बेहतर है तो मैं लौट आया हूं। पठानकोट के जीरो लाइन के गांव सिंबल में बने है पुराने बंकर
इसके बाद भास्कर टीम जीरो लाइन पर बसे पठानकोट के गांव सिंबल सकोल में पहुंची। इस गांव की 1500 की आबादी है। यहां से 200 मीटर दूर फेंसिंग है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यहां से महिलाओं-बच्चों को लोगों ने रिश्तेदारों के पास भेज दिया था, लेकिन अब वे लौट रहे हैं। यहां के बुजुर्ग पाकिस्तान के ड्रोन अटैक और शेलिंग के बीच भी यहीं डटे रहे। बताया कि गांव में पुराने बंकर है, जब रात में हमला होता था तो लोग बंकर में चले जाते थे। दिन में हालात सामान्य होने पर बाहर आ जाते थे। गांव के बुजुर्ग कहीं नहीं गए, कोई टेंशन नहीं है, सेना पर पूरा भरोसा
गांव सिंबल सकोल के बलदेव राज ने बताया कि अब फायरिंग बंद है। गांव के बुजुर्ग कहीं नहीं गए थे, बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेज दिया था। वो भी अब वापस आ रहे हैं। गांव में अब कोई टेंशन नहीं है। बच्चे खेल रहे हैं और लोग पहले की तरह काम कर रहे हैं। वहीं, गांव के ही कुलदीप सिंह बॉर्डर के बिल्कुल साथ लगती अपने जमीन पर नया पक्का मकान डालने जा रहे हैं। उनका कहना है कि हमें अपनी सेना का भरोसा है। परिवार यहीं रहा, बस बच्चों को बाहर भेजा
गांव की ही तृप्ता देवी ने बताया कि माहौल खराब होने पर भी परिवार यहीं पर रहा। बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेजा था, अब वो भी वापस आ गए हैं। पशुओं को भी गांव से निकाल दिया था। अब इनको ले आए हैं। गोलियां चलती रहीं, गांव छोड़कर नहीं गईं ज्योति
सिंबल गांव की ज्योति ने बताया कि यहां गोलियां चली थीं। अब यहां पर शांति है। अब माहौल ठीक है। यहां कि महिलाएं गांव छोड़कर कम ही गई हैं। मैं भी यहीं पर थी। बच्चों को जरूर बाहर भेजा था, जिनको अब बुला लिया है। 2 इन्फोग्राफिक्स में देखें पाकिस्तान के पंजाब में हमले से जुड़ी अहम जानकारियां… ********************* ये खबर भी पढ़ें :- बठिंडा प्लेन क्रैश के घायल तक पहुंचा भास्कर:बोला- प्लेन जमीन में धंसा, आग बुझाने पर धमाका; हरियाणा के युवक की मौत हुई थी 7 मई को बठिंडा में हुए प्लेन क्रैश में घायल व्यक्ति तक दैनिक भास्कर पहुंचा। उसने बताया कि हमारे गांव के ऊपर से जहाज गुजरा था। कुछ दूरी पर जाकर जहाज नीचे गिर गया। कुछ दूरी पर देखा तो एक अन्य खेत में जहाज गिरा हुआ था। एक व्यक्ति ने कहा कि किसी के जलने की बदबू आ रही है। जब हम आग पर मिट्टी डालने लगे तो अचानक धमाका हो गया। इसमें मैं भी बुरी तरह झुलस गया। पढ़ें पूरी खबर
पाकिस्तान की सीमा के साथ सटे पंजाब के गांवों में सीजफायर के बाद जिंदगी पटरी पर लौट आई है। गांव छोड़कर गए लोग घर लौट चुके हैं। यहां भारत-पाक सीमा पर फेंसिंग के साथ खेतों में ट्रैक्टर चल रहे हैं और गुरुद्वारों में लंगर पक रहे हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो गांव छोड़कर नहीं गए और यहीं पर सेना और BSF की सेवा में जुटे रहे। पाकिस्तान के अटैक के खतरे के बारे में पूछने पर लोग बोले- हमने 3 युद्ध देखे हैं, हम डरते नहीं हैं। कई बुजुर्ग तो ऐसे हैं जो पाकिस्तानी ड्रोन अटैक और शेलिंग के बीच भी गांव में ही डटे रहे। सीजफायर के 3 दिन बाद पाकिस्तान सीमा से महज 200 से 500 मीटर दूरी पर बसे गांवों का हाल जानने दैनिक भास्कर अमृतसर और पठानकोट के 6 गांवों में पहुंचा। यहां के लोगों से बात की तो उनका कहना था कि वे धान की पनीरी लगाने के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। अब बाजार भी रात 9 बजे तक खुल रहे हैं। उन्हें अपनी सेना पर पूरा भरोसा है। पढ़िए पूरी ग्राउंड रिपोर्ट… सरहदी गांवों में पटरी पर लौटी जिंदगी, खेती होने लगी अमृतसर में चक्क अल्ला बख्श के रणजीत युद्ध के बीच सप्लाई करते रहे सामान भास्कर टीम सबसे पहले गांव चक्क अल्ला बख्श पहुंची। इस गांव की बॉर्डर से दूरी करीब 500 मीटर है। गांव में 30 से 40 ही घर है, वह एकदूसरे से कुछ-कुछ दूरी है। यहां टीम को गांव में फेरी लगाने वाले रणजीत सिंह मिले। पाकिस्तान की ओर से किए गए अटैक के वक्त चिंता जरूर हुई थी, लेकिन डरे नहीं थे। चिंता इसलिए, क्योंकि घर में बच्चे, महिलाएं है, खेती है, हमला बढ़ा तो क्या होगा। डरे इसलिए नहीं, कि हमने 1971 की जंग देखी है। यहां बहुत नुकसान हुआ था। सारा गांव खाली हो गया था, इस बार तो केवल बच्चों को बाहर भेजा था, लेकिन वे भी लौट आए हैं। मैं फेरी लगाने का काम करता हूं। युद्ध के हालात में भी मैंने सामान की सप्लाई जारी रखी।अब सीजफायर का फैसला बहुत अच्छा है। धनोला गांव के गुरनाम सिंह बोले- सेना ने बहुत मदद की
इसके बाद टीम धनोआ गांव पहुंची। यह गांव भी सरहद से करीब 300 मीटर की दूरी है। यहां की आबादी ज्यादा नहीं है। गांव में एंट्री के साथ ही गुरनाम सिंह और हरपाल सिंह मिले। युद्ध के बारे में सवाल पूछने पर गुरनाम ने बताया कि पाकिस्तान ने जब हमला किया और कल जब सीजफायर हुआ, तब से काफी फर्क है। पहले जंग को लेकर लोग सहमे थे। सीजफायर का पता चलने पर सुकून मिला है। गांव के ही हरपाल सिंह का कहना है कि अब खतरे की कोई बात नहीं है। बच्चे घर आना शुरू हो गए हैं। अब हालात ठीक हैं। पनीरी लगाने की तैयारी कर रहे हैं। बताया कि हमारी फौज ने काफी मदद की। सेना सीधे लोगों के संपर्क में रहती थी। सेना और लोकल प्रशासन के अधिकारियों की तरफ से गांव के व्हाट्सएप ग्रुप बनाए गए है, उसमें प्रधान और अन्य लोगों को जोड़ा गया है। अगर कोई सूचना होती थी तो तुरंत जानकारी शेयर की जाती है। भरोपाल के लोगों ने कहा- कुछ परिवार अभी भी डर के कारण नहीं आए
धनोआ गांव के लोगों से युद्ध के वक्त का हाल जाने के बाद टीम पहुंची भरोपाल गांव। गांव की गलियों में कुछेक लोग ही नजर आए। इनमें शामिल सुखदेव सिंह ने पाकिस्तान की ओर से की गई गोलाबारी के सवाल पर बताया कि उनके गांव से बॉर्डर महज महज 200-300 मीटर ही दूर है। यहां वारदात तो होती रहती है। जब भी माहौल खराब होता है हम फेंसिंग से पीछे हट जाते हैं। सतपाल सिंह ने बताया कि परिवार वापस आ रहे हैं। कुछ परिवार अभी डर के कारण नहीं आए हैं। वहीं, मिंटू ने कहा कि यहां माहौल खराब रहा, लेकिन अब ठीक है। हमने फेंसिंग से दूर भैणी गांव में रातें काटी हैं। लड़ाई नहीं होनी चाहिए। छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहां जाएंगे। राजाताल के लोग बोले- हालात ठीक, बाजार भी रात 9 बजे तक खुल रहे
धनोआ गांव के निकट ही गांव है राजाताल, जिसकी बॉर्डर से दूरी करीब 400 मीटर है। इस गांव की आबादी ज्यादा नहीं है, 30 से 40 घर है। गांव में मिले राजदीप सिंह ने बताया कि अब हालात ठीक हैं। बाजार भी अब रात 9 बजे तक खुल रहे हैं। परमजीत ने बताया कि गांव के लोगों ने अपने बच्चे और बुजुर्गों को दूर रहने वाले रिश्तेदारों के घर भेज दिया था । क्योंकि पहले रात को हमला हो रहा था तो घरों की दीवारें हिल जाती थीं। इस कारण बच्चे रात को सो नहीं पा रहे थे। उस समय मैं घर से बाहर चला गया था। अब हालात बेहतर है तो मैं लौट आया हूं। पठानकोट के जीरो लाइन के गांव सिंबल में बने है पुराने बंकर
इसके बाद भास्कर टीम जीरो लाइन पर बसे पठानकोट के गांव सिंबल सकोल में पहुंची। इस गांव की 1500 की आबादी है। यहां से 200 मीटर दूर फेंसिंग है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद यहां से महिलाओं-बच्चों को लोगों ने रिश्तेदारों के पास भेज दिया था, लेकिन अब वे लौट रहे हैं। यहां के बुजुर्ग पाकिस्तान के ड्रोन अटैक और शेलिंग के बीच भी यहीं डटे रहे। बताया कि गांव में पुराने बंकर है, जब रात में हमला होता था तो लोग बंकर में चले जाते थे। दिन में हालात सामान्य होने पर बाहर आ जाते थे। गांव के बुजुर्ग कहीं नहीं गए, कोई टेंशन नहीं है, सेना पर पूरा भरोसा
गांव सिंबल सकोल के बलदेव राज ने बताया कि अब फायरिंग बंद है। गांव के बुजुर्ग कहीं नहीं गए थे, बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेज दिया था। वो भी अब वापस आ रहे हैं। गांव में अब कोई टेंशन नहीं है। बच्चे खेल रहे हैं और लोग पहले की तरह काम कर रहे हैं। वहीं, गांव के ही कुलदीप सिंह बॉर्डर के बिल्कुल साथ लगती अपने जमीन पर नया पक्का मकान डालने जा रहे हैं। उनका कहना है कि हमें अपनी सेना का भरोसा है। परिवार यहीं रहा, बस बच्चों को बाहर भेजा
गांव की ही तृप्ता देवी ने बताया कि माहौल खराब होने पर भी परिवार यहीं पर रहा। बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेजा था, अब वो भी वापस आ गए हैं। पशुओं को भी गांव से निकाल दिया था। अब इनको ले आए हैं। गोलियां चलती रहीं, गांव छोड़कर नहीं गईं ज्योति
सिंबल गांव की ज्योति ने बताया कि यहां गोलियां चली थीं। अब यहां पर शांति है। अब माहौल ठीक है। यहां कि महिलाएं गांव छोड़कर कम ही गई हैं। मैं भी यहीं पर थी। बच्चों को जरूर बाहर भेजा था, जिनको अब बुला लिया है। 2 इन्फोग्राफिक्स में देखें पाकिस्तान के पंजाब में हमले से जुड़ी अहम जानकारियां… ********************* ये खबर भी पढ़ें :- बठिंडा प्लेन क्रैश के घायल तक पहुंचा भास्कर:बोला- प्लेन जमीन में धंसा, आग बुझाने पर धमाका; हरियाणा के युवक की मौत हुई थी 7 मई को बठिंडा में हुए प्लेन क्रैश में घायल व्यक्ति तक दैनिक भास्कर पहुंचा। उसने बताया कि हमारे गांव के ऊपर से जहाज गुजरा था। कुछ दूरी पर जाकर जहाज नीचे गिर गया। कुछ दूरी पर देखा तो एक अन्य खेत में जहाज गिरा हुआ था। एक व्यक्ति ने कहा कि किसी के जलने की बदबू आ रही है। जब हम आग पर मिट्टी डालने लगे तो अचानक धमाका हो गया। इसमें मैं भी बुरी तरह झुलस गया। पढ़ें पूरी खबर