
जम्मू से लगभग 250 किमी दूर स्थित पुंछ तीन तरफ से नियंत्रण रेखा से घिरा है। मुस्लिम बहुल यह इलाका हमेशा से पाकिस्तानी सेना के निशाने पर रहता है। बायसरन में आतंकी हमले से पहले यहां सब कुछ शांत था, मगर अब माहौल में एक बेचैनी सी छाई हुई है। दिन तो शांति से गुजर जाता है, मगर रात में तब चौंककर उठ बैठते हैं, जब गोलीबारी की आवाज सुनाई देती है। यहां के माहौल के बारे में बताते हुए बिहारी शर्मा बात-बात में पाकिस्तान को कोसते हैं, न जाने क्यों, इस देश को शांति रास नहीं आती है। उसे सख्त सबक सिखाना ही चाहिए।
मोहल्ला पुंछ में एक घर के दरवाजे पर बुजुर्ग लाजवंती देवी खड़ी मिलीं। सौवें साल में प्रवेश कर चुकी हैं। पाक अधिकृत कश्मीर से आकर यहां बसी हैं। सीमा पर क्या चल रहा है…इस सवाल पर बोलीं, सब ठीक है। कुछ नहीं होगा, घबराओ नहीं। इन बूढ़ी आंखों ने बहुत कुछ देख लिया है…,पाकिस्तान कुछ नहीं कर पाएगा। रात को चार गोलियां चला लेने से युद्ध नहीं होते हैं। उम्र की थकावट को हरा चुकीं लाजवंती देवी रुकती नहीं, फिर कहती हैं कि 1947 में यह एक राज्य था। एक तिहाई हिस्सा भारत के पास है, बाकी पाकिस्तान ने कब्जा रखा है। मोदी जी से कहो कि वो वापस लाएं।
जीरो लाइन के पास बसे गांव शाहपुर के रहने वाले ज्यादातर लोग काम धाम निपटाकर बंकरों में ही वक्त बिताते हैं। मो. शबीर, कमाल दीन, गुलाब जान, मो. वकार कहते हैं कि पाकिस्तानी सेना का कोई भरोसा नहीं कि कब गोलाबारी शुरू कर दे। इसलिए हम अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए ज्यादा समय बंकरों में ही बैठे रहते हैं, क्योंकि गोलीबारी में शाहपुर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। पाकिस्तानी गोलीबारी में दर्जनों ग्रामीणों की जान जा चुकी है। हम यहां कई प्रकार की परेशानियां उठा रहे हैं। सुख सुविधाओं से वंचित हैं, लेकिन पहलगाम मामले में हम सरकार के फैसले के साथ हैं, हम अपनी सेना के साथ है। हम नियंत्रण रेखा पर स्थायी अमन चाहते हैं।
आतंकी तो रमजान में भी ले चुके नमाजी की जान : शबीर कहते हैं, आतंकियों का कोई धर्म नहीं। उन्होंने तो रमजान के जुमे को गांव की मस्जिद को निशाना बनाकर एक नमाजी की जान ले ली थी। आधा दर्जन नमाजियों को घायल किया था।
नदी पार पसरा सन्नाटा… पहलगाम के बाद कोई न दिखा
सलोत्री गांव के केतन बाली सीमापार का हाल सुनाते हैं-कुछ वक्त पहले तक नदी उस पार लोग पशुओं को पानी पिलाने आते थे। गर्मी बढ़ी है, इस वक्त तो संख्या बढ़नी चाहिए थी, क्योंकि पानी की जरूरत ज्यादा होती है, पर एकदम सन्नाटा है।
- पहलगाम हमले के बाद कोई दिखा ही नहीं। बाली कहते हैं, हमारे इलाके के तीनों तरफ नियंत्रण रेखा है, मगर अब किसी को डर नहीं लगता है। निडरता ही हमारा हथियार है। कारगिल युद्ध के दौरान कुछ लोगों ने घर छोड़ा था। अब तो लोगों ने यहां से बाहर घर बना लिया है, जरूरत पड़ी तो वहां जाकर रह लेंगे, पर कोई भी यहां से जाने की सोच नहीं रहा है
सूना न रह जाए खेत, जल्दी हो काम…इसलिए ट्रैक्टर से बुआई
दोपहर के सन्नाटे में पुंछ के खेतों में ट्रैक्टर चलने की आवाज हर तरफ से सुनाई दे जाएगी। आमतौर पर यहां बैलों से बोआई ज्यादा होती है, पर इन दिनों ट्रैक्टर खेतों में चल रहे हैं। पाकिस्तानी चौकियों के ठीक सामने गांव अप्पर सलोत्री है। वहां ट्रैक्टर लगाकर मक्के की बोआई में जुटे किसान नजीर हुसैन कहते हैं कि हमने समय से पहले ही गेहूं की कटाई कर ली है। फिलहाल हमारे इलाके में शांति है, पर हालात बिगड़े तो, खेत सूने न रह जाएं, इसलिए बोआई करने के लिए ट्रैक्टर लगाया है।