सड़क मार्ग सीज ,मरीज बुजुर्ग, बच्चे,राहगीर परेशान , मात्र गिने चुने आमंत्रित लोग ही पहुंच पाए मेले में

जम्मू/राजौरी -अनिल भारद्वाज: जम्मू का राजौरी क्षेत्र 15 अगस्त 1947 को नहीं, 13 अप्रैल 1948 के दिन आजाद हुआ था आजादी दिवस पर प्रशासन, सेना द्वारा लाखों रु. खर्च कर हर साल मेले का आयोजन किया जाता है, पर उस मेले का क्या फायदा जो आम लोगों को देखना नसीब न हो और पाबंदियां लगा दी जाएं। आम लोगों के लिए पाबंदियां क्यों न हों ,एलजी ने जो मेले में आना था। प्रशासन को आवाम से क्या लेना देना पाबंदियां से यही दर्शाता । केंद्र सरकार लाख दावे करे, लेकिन सच्चाई तो यह है कि जम्मू कश्मीर में आज भी अशांति है।
लोगों को लगा था कि धारा 370 के बाद परेशानियों में सुधार होगा , लेकिन नहीं आज भी केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की आवाम आज भी कंट्रीली तारों के झाल में फंसी देखी जा सकती है, चाहे नियंत्रण सीमा-रेखा के पास बसने वाले किसान लोग हों या जिला हैडक्वाटर की सीटी के शहरी लोग, यूटी प्रशासन के बड़े अवसर के आने पर सिटी के रास्ते कुछ कि.मी सड़क मार्ग पर कंट्रीली तारें बिछा कर क्षेत्र को सीज कर दिया जाता है। यही हाल राजौरी स्वतंत्रता दिवस (राजौरी-डे) पर रविवार राजौरी सिटी में भी देखा गया। लोगों के रोजमर्रा रास्ते , सड़कें कंट्रीली तारें साथ सुरक्षाबलों को तैनात कर बंद कर दिए। जिसके चलते जीएमसी अस्पताल इलाज को आने -जाने वाले मरीज, बुजुर्ग, बच्चे, बीमार महिलाओं , अन्य राहगीर लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। राजौरी के आजादी दिवस पर केंद्र सरकार के सुरक्षा संबंधित सभी दावे खोखले हैं । राहगीर लोगों का कहना था कि जम्मू कश्मीर में शांति होती तो आज सड़कें बंद न होती, कंट्रीली तारें बिछी न होती। हम अपनी मर्जी से स्वतंत्रता के साथ चल-फिर रहे होते, आज कंट्रीली तारों में जकड़े न होते। हमें यह नहीं पता के राजौरी में क्या हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर में नेता व बड़े अवसरों को छोड़ सभी असुरक्षित हैं।
आजादी दिवस के रोज क्षेत्र वासियों को स्वतंत्रता से चलने-फिरने , सेहती दायरा यानी अस्पताल के लिए इलाज को जाने वाले रास्ते, सड़क मार्ग अगर पाबंदी लगा दी जाए तो राजौरी दिवस का क्या फायदा।
13 अप्रैल 1948 की सुबह भारत देश के राजौरी वासियों के लिए आजादी का दिन था जो हर वर्ष मनाया जाता है। शहीद लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। राजौरी के लोग इसे विजय दिवस और सेना शौर्य दिवस के रूप में मनाती है।
बड़े लेवल पर मेले का आयोजन किया जाता है। जो आम लोगों की पहुंच से बाहर था।
कुछ सलेक्टेड संस्थाओं के सदस्यों, लोगों, निजी स्कूल, नेताओं व अन्य गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया जाता है। यह भी बताते चले कि आमंत्रित पत्र में सेना का हाथ नहीं होता, बल्कि ऊपर से आदेश का पालन करना जरूरी होता है। हमने तो कंट्रीली तारों के अंदर सेना के जांबाज जवान देखे हैं। जगह का नाम हम बता नहीं सकते। यह तो आम जनता है जम्मू-कश्मीर की इसे परेशानियां न झेलनी पड़े ये हो नहीं सकता है। रविवार मेला समापन के दौरान छोटे वाहन चालक भी परेशान दिखे जिसमें तीन पहिया ऑटो शामिल हैं। सेना द्वारा आयोजित मेले में जम्मू कश्मीर प्रदेश के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। सेना अधिकारियों का कहना था कि बाहरी सुरक्षा का जिम्मा एलजी सिक्योरिटी और जेकेपी के हाथ था। हम चाहते हैं मेले में हर कोई आए।
वहीं बताते चले की वीर सैनिकों और वीर जवानों की वीरता और शौर्य को याद करने के लिए ( एएलजी) एडवांस लैंडिंग ग्राउंड राजौरी में मुख्य मेला समारोह का आयोजन किया गया। भारतीय सेना जवानों का कर्तव्य देखने लायक था। आजादी के अवसर पर आयोजित मेला दांतों तले उंगली चबाने पर मजबूर कर रहा था। पर उस मेले का क्या फायदा जिसे गरीब आवाम न देख सके।