बिहार में नीतीश कुमार की जदयू के पीछे रहने वाली BJP अब ‘छोटे’ से ‘बड़ा भाई’ बन चुकी है। 243 विधानसभा वाली सरकार में कुल 36 मंत्री हैं, पहली बार ऐसा हो रहा है कि 36 में से BJP के 21 मंत्री हैं। यानी जदयू से डेढ़ गुना ज्यादा मंत्री बीजेपी के हैं। खास बात ये है कि, बीजेपी ने मंत्रियों के चयन में यादवों को छोड़कर हर जाति को साधा है। पहली दफा कुर्मी जाति के विधायक को भी बीजेपी कोटे से मंत्री बनाया गया है। कुर्मी नीतीश का कोर वोट बैंक माने जाते हैं। दो दिन पहले पटना पहुंचे जेपी नड्डा ने जदयू नेताओं को साफ कर दिया था कि, अब बीजेपी को अपने संगठन पर ज्यादा फोकस करना है। कई दिनों से मंत्रिमंडल के विस्तार की कवायद चल रही थीं, लेकिन किन्हीं वजहों से हो नहीं पाया। एक वजह खुद नीतीश कुमार को लेकर भी थी कि वो कहीं फिर से गठबंधन तोड़ न लें। जब इन कयासों पर पूरी तरह से विराम लग गया तब बीजेपी ने मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी दी। बिहार के विधानसभा चुनाव में महज 7 महीने बचे हैं। 4 दिन बाद बजट आना है। ऐसे में सरकार अभी मंत्रिमंडल विस्तार नहीं करती तो बजट सत्र चलने यानी अगले एक महीने तक ये काम नहीं हो पाता। जेपी नड्डा के हालिया बिहार दौरे की भी मुख्य वजह यही थी। इस मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही ये तय हो गया है कि, अब भले ही सीएम की कुर्सी नीतीश कुमार के पास है, लेकिन ताकत बीजेपी के हाथों में है, जिसका फायदा बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। 27 फीसदी पिछड़ों को एकजुट करने की कोशिश बिहार में पिछड़ों की आबादी 27 फीसदी है। इसमें कोईरी–कुर्मी भी आते हैं। 2000 के दशक तक ये लालू यादव का वोटबैंक थे, लेकिन इसके बाद नीतीश कुमार को सपोर्ट करने लगे। हालांकि, बीते कुछ सालों में कुर्मी तो नीतीश के साथ बने रहे, लेकिन कोईरी यानी कुशवाह दूरी बनाते नजर आए। कुशवाह बहुल औरंगाबाद में आरजेडी की जीत इस बात की पुष्टि करती है। इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि, नीतीश की सरकार में जितनी तवज्जो कुर्मियों को मिली, उतनी कुशवाह को नहीं मिली। इसलिए वे नेता के बजाय जाति पर शिफ्ट होना शुरू हुए। इसी वोटबैंक को अब बीजेपी एकजुट करना चाहती है। 27 फीसदी आबादी के हिसाब से पिछड़ों के 12 मंत्री कैबिनेट में शामिल किए जा सकते हैं, अभी तक जदयू से 4 और बीजेपी से 2 थे, अब बीजेपी ने इस समाज के तीन और नेताओं को शामिल कर मंत्रियों की संख्या 9 कर दी है। यह आरजेडी की सेंधमारी को रोकने और कुशवाह को बीजेपी की तरफ मोड़ने के लिए किया गया है। अति पिछड़ों–सवर्णों को भी साधा बिहार में अति पिछड़ा की 36 फीसदी आबादी है। ये सीएम नीतीश कुमार का वोटबैंक कहे जाते हैं। हालांकि, जेडीयू का वोट परसेंट अभी करीब 16 फीसदी है। इससे ये पता चलता है कि, ईबीसी का 20 फीसदी वोटबैंक अब भी खाली है। बीजेपी इसी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है। अति पिछड़ा से दो विधायकों को मंत्री बनाया गया है। इस समाज से कुल 7 मंत्री बन चुके हैं, इनमें से 5 बीजेपी और 2 जदयू से हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनिकांत ठाकुर कहते हैं कि, ‘नीतीश कुमार के जरिए बीजेपी इस वोटबैंक को खुद से जोड़ना चाहती है।’ आबादी के हिसाब से दोगुना सवर्ण मंत्री आबादी के लिहाज से देखा जाए तो नीतीश सरकार में सवर्ण मंत्रियों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा हो गई है। हिंदू-मुस्लिम सवर्णों को मिलकर इनकी आबादी करीब 15 फीसदी है। इस हिसाब से सवर्ण जाति से 5 मंत्री बनाए जा सकते थे, लेकिन सवर्ण मंत्रियों की संख्या 12 है। इसमें 8 बीजेपी के कोटे से हैं। इसकी दो बड़ी वजह हैं। पहला, बीजेपी का कोर वोट बैंक है, जिसे पार्टी बनाए रखना चाहती है। दूसरा, विनिबिलिटी फैक्टर है। अधिकतर सवर्ण नेता धनबल और बाहुबल से मजबूत हैं। ऐसे में इनके जीतने की संभावना बढ़ जाती है। नीतीश अब पहले ही तरह पावरफुल नहीं रहे मनिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘नीतीश कुमार अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहे। इसकी एक बड़ी वजह उनकी शारीरिक कमजोरी भी है। जब तक नीतीश मजबूत रहे तब तक बीजेपी कभी भी उनके आगे नहीं आ पाई। क्योंकि जब भी ऐसी कोशिशें होती थीं तो जदयू की तरफ से कड़ा प्रहार होता था लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।’ ‘मौजूदा सिनेरियो में नीतीश को बीजेपी की ज्यादा जरूरत है। यदि वे बीजेपी से गठबंधन तोड़ते हैं तो उनकी पार्टी में ही इस बार टूट हो सकती है, क्योंकि उनके तमाम मंत्री भी अब दिल्ली पर ज्यादा भरोसा करते हैं। वहीं नीतीश अपने बेटे निशांत को भी यदि पॉलिटिक्स में सेट करना चाहते हैं तो उन्हें बीजेपी की मदद लेना होगी। वहीं बीजेपी के लिए नीतीश कुमार का चेहरा जरूरी है। बीजेपी के पास अभी कोई सीएम फेस नहीं है। वे नीतीश कुमार के जरिए अपना फैलाव करना चाहते हैं। ऐसे में आपसी सहमति से ही सब काम चल रहा है।’ ———————- ये भी पढ़ें… बिहार में चुनाव से 7 महीने पहले मंत्रिमंडल विस्तार:BJP के 7 विधायक मंत्री बने, इनमें 4 मिथिलांचल से, NDA के 30% MLA इसी इलाके से बिहार में अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से 7 महीने पहले बुधवार को नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। 7 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इनमें से 4 मिथिलांचल इलाके से हैं। इन्हें मिलाकर अब मिथिलांचल से 6 मंत्री हो गए हैं। आज मंत्री बनाए गए सभी विधायक भाजपा के हैं। इनमें 3 पिछड़े, 2 अति पिछड़े और 2 सवर्ण समुदाय से हैं। पूरी खबर पढ़िए
बिहार में नीतीश कुमार की जदयू के पीछे रहने वाली BJP अब ‘छोटे’ से ‘बड़ा भाई’ बन चुकी है। 243 विधानसभा वाली सरकार में कुल 36 मंत्री हैं, पहली बार ऐसा हो रहा है कि 36 में से BJP के 21 मंत्री हैं। यानी जदयू से डेढ़ गुना ज्यादा मंत्री बीजेपी के हैं। खास बात ये है कि, बीजेपी ने मंत्रियों के चयन में यादवों को छोड़कर हर जाति को साधा है। पहली दफा कुर्मी जाति के विधायक को भी बीजेपी कोटे से मंत्री बनाया गया है। कुर्मी नीतीश का कोर वोट बैंक माने जाते हैं। दो दिन पहले पटना पहुंचे जेपी नड्डा ने जदयू नेताओं को साफ कर दिया था कि, अब बीजेपी को अपने संगठन पर ज्यादा फोकस करना है। कई दिनों से मंत्रिमंडल के विस्तार की कवायद चल रही थीं, लेकिन किन्हीं वजहों से हो नहीं पाया। एक वजह खुद नीतीश कुमार को लेकर भी थी कि वो कहीं फिर से गठबंधन तोड़ न लें। जब इन कयासों पर पूरी तरह से विराम लग गया तब बीजेपी ने मंत्रिमंडल विस्तार को हरी झंडी दी। बिहार के विधानसभा चुनाव में महज 7 महीने बचे हैं। 4 दिन बाद बजट आना है। ऐसे में सरकार अभी मंत्रिमंडल विस्तार नहीं करती तो बजट सत्र चलने यानी अगले एक महीने तक ये काम नहीं हो पाता। जेपी नड्डा के हालिया बिहार दौरे की भी मुख्य वजह यही थी। इस मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही ये तय हो गया है कि, अब भले ही सीएम की कुर्सी नीतीश कुमार के पास है, लेकिन ताकत बीजेपी के हाथों में है, जिसका फायदा बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। 27 फीसदी पिछड़ों को एकजुट करने की कोशिश बिहार में पिछड़ों की आबादी 27 फीसदी है। इसमें कोईरी–कुर्मी भी आते हैं। 2000 के दशक तक ये लालू यादव का वोटबैंक थे, लेकिन इसके बाद नीतीश कुमार को सपोर्ट करने लगे। हालांकि, बीते कुछ सालों में कुर्मी तो नीतीश के साथ बने रहे, लेकिन कोईरी यानी कुशवाह दूरी बनाते नजर आए। कुशवाह बहुल औरंगाबाद में आरजेडी की जीत इस बात की पुष्टि करती है। इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि, नीतीश की सरकार में जितनी तवज्जो कुर्मियों को मिली, उतनी कुशवाह को नहीं मिली। इसलिए वे नेता के बजाय जाति पर शिफ्ट होना शुरू हुए। इसी वोटबैंक को अब बीजेपी एकजुट करना चाहती है। 27 फीसदी आबादी के हिसाब से पिछड़ों के 12 मंत्री कैबिनेट में शामिल किए जा सकते हैं, अभी तक जदयू से 4 और बीजेपी से 2 थे, अब बीजेपी ने इस समाज के तीन और नेताओं को शामिल कर मंत्रियों की संख्या 9 कर दी है। यह आरजेडी की सेंधमारी को रोकने और कुशवाह को बीजेपी की तरफ मोड़ने के लिए किया गया है। अति पिछड़ों–सवर्णों को भी साधा बिहार में अति पिछड़ा की 36 फीसदी आबादी है। ये सीएम नीतीश कुमार का वोटबैंक कहे जाते हैं। हालांकि, जेडीयू का वोट परसेंट अभी करीब 16 फीसदी है। इससे ये पता चलता है कि, ईबीसी का 20 फीसदी वोटबैंक अब भी खाली है। बीजेपी इसी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है। अति पिछड़ा से दो विधायकों को मंत्री बनाया गया है। इस समाज से कुल 7 मंत्री बन चुके हैं, इनमें से 5 बीजेपी और 2 जदयू से हैं। वरिष्ठ पत्रकार मनिकांत ठाकुर कहते हैं कि, ‘नीतीश कुमार के जरिए बीजेपी इस वोटबैंक को खुद से जोड़ना चाहती है।’ आबादी के हिसाब से दोगुना सवर्ण मंत्री आबादी के लिहाज से देखा जाए तो नीतीश सरकार में सवर्ण मंत्रियों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा हो गई है। हिंदू-मुस्लिम सवर्णों को मिलकर इनकी आबादी करीब 15 फीसदी है। इस हिसाब से सवर्ण जाति से 5 मंत्री बनाए जा सकते थे, लेकिन सवर्ण मंत्रियों की संख्या 12 है। इसमें 8 बीजेपी के कोटे से हैं। इसकी दो बड़ी वजह हैं। पहला, बीजेपी का कोर वोट बैंक है, जिसे पार्टी बनाए रखना चाहती है। दूसरा, विनिबिलिटी फैक्टर है। अधिकतर सवर्ण नेता धनबल और बाहुबल से मजबूत हैं। ऐसे में इनके जीतने की संभावना बढ़ जाती है। नीतीश अब पहले ही तरह पावरफुल नहीं रहे मनिकांत ठाकुर कहते हैं, ‘नीतीश कुमार अब पहले की तरह मजबूत नहीं रहे। इसकी एक बड़ी वजह उनकी शारीरिक कमजोरी भी है। जब तक नीतीश मजबूत रहे तब तक बीजेपी कभी भी उनके आगे नहीं आ पाई। क्योंकि जब भी ऐसी कोशिशें होती थीं तो जदयू की तरफ से कड़ा प्रहार होता था लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं।’ ‘मौजूदा सिनेरियो में नीतीश को बीजेपी की ज्यादा जरूरत है। यदि वे बीजेपी से गठबंधन तोड़ते हैं तो उनकी पार्टी में ही इस बार टूट हो सकती है, क्योंकि उनके तमाम मंत्री भी अब दिल्ली पर ज्यादा भरोसा करते हैं। वहीं नीतीश अपने बेटे निशांत को भी यदि पॉलिटिक्स में सेट करना चाहते हैं तो उन्हें बीजेपी की मदद लेना होगी। वहीं बीजेपी के लिए नीतीश कुमार का चेहरा जरूरी है। बीजेपी के पास अभी कोई सीएम फेस नहीं है। वे नीतीश कुमार के जरिए अपना फैलाव करना चाहते हैं। ऐसे में आपसी सहमति से ही सब काम चल रहा है।’ ———————- ये भी पढ़ें… बिहार में चुनाव से 7 महीने पहले मंत्रिमंडल विस्तार:BJP के 7 विधायक मंत्री बने, इनमें 4 मिथिलांचल से, NDA के 30% MLA इसी इलाके से बिहार में अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से 7 महीने पहले बुधवार को नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। 7 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इनमें से 4 मिथिलांचल इलाके से हैं। इन्हें मिलाकर अब मिथिलांचल से 6 मंत्री हो गए हैं। आज मंत्री बनाए गए सभी विधायक भाजपा के हैं। इनमें 3 पिछड़े, 2 अति पिछड़े और 2 सवर्ण समुदाय से हैं। पूरी खबर पढ़िए