भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने कानून के छात्रों से आह्वान किया है कि वे ईमानदारी को अपने चरित्र की मूल संरचना बनने दें और इसे कोई भी बदलाव न करें। ईमानदारी की बात कर रहे हैं और ये आपके लिए बड़ी महत्वपूर्ण लाइन है। CJI शनिवार को सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी पहुंचे। जिंदल यूनिवर्सिटी पहुंचने पर उनका स्वगत किया गया। ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के व्यापक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर आयोजित सेमिनार में CJI सूर्यकांत ने कहा कि कानून का अध्ययन कठिन और प्रेरणादायक दोनों हो सकता है। प्यारे छात्रों, याद रखें कि आप इस बात के छात्र हैं कि आगे क्या होगा। संविधान तभी तक रहेगा, जब तक आपकी नैतिकता इसे बरकरार रखती है। CJI सूर्यकांत ने कहा कि ‘ईमानदारी’ केवल चरित्र का आभूषण नहीं है, बल्कि यह वह अनुशासन है जो न्याय और प्रतिष्ठा दोनों को बनाए रखता है। उन्होंने कहा कि कानून का अभ्यास और न्याय की खोज हमेशा ‘ईमानदारी’ (Integrity) के इस आदर्श की ओर ही होनी चाहिए। सत्य और शोर का युग: सूर्यकांत ने वर्तमान युग की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, जहां ‘डीपफेक’ विकृतियां पैदा करते हैं, गलत सूचनाएं तेज़ी से फैलती हैं, और ‘डिजिटल गिरफ्तारियां’ आम हो गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे समय में, ईमानदारी और सच्चाई अब केवल उच्च आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व के साधन हैं, और वास्तविक सफलता का एकमात्र वैध “शॉर्टकट” हैं। फैसले में संविधान का मूल वादा जरूरी CJI ने आगे कहा कि जब भी कोई याचिका हमारे समक्ष आती है, हम न केवल तथ्यों और कानून पर विचार करते हैं, बल्कि हम हमेशा अपने संविधान के उस मूल वादे को भी याद रखते हैं, जिसके तहत हम सभी ने एक समाज के रूप में रहना स्वीकार किया है। हम सदैव इस बात को ध्यान में रखते हैं कि 26 नवंबर, 1949 को हमने जो दस्तावेज़ स्वयं को समर्पित किया था, उसमें निहित उच्चतर लक्ष्य क्या थे। और यही उच्चतर लक्ष्य सुनिश्चित करता है कि जब हम न्याय करते हैं, तो हम केवल कानून का पालन नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि हम कानून को एक बेहतर भारत के निर्माण की सेवा में समर्पित कर रहे होते हैं। मेघवाल ने राष्ट्रीय ध्वज पर दी जानकारी केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने सेमिनार में राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम रूप देने की ऐतिहासिक कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे डॉ. बी.आर. अंबेडकर के निर्णायक तर्क ने चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वक्ता ने ‘झंडा समिति’ की चर्चा करते हुए बताया कि जब राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तब तिरंगे के बीच में चरखा रखने पर विचार हो रहा था। डॉ. अंबेडकर ने इसका विरोध करते हुए कहा कि “अगर चरखा रखा गया, तो यह झंडा कांग्रेस का होगा, देश का नहीं।” उन्होंने अशोक चक्र का प्रस्ताव दिया, जिसमें 24 तीलियां हैं जो निरंतर कार्य और दया, करुणा, समता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे मानवीय गुणों का प्रतीक हैं। डॉ. अंबेडकर के तर्कों से सहमत होकर समिति ने चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। वक्ता ने जोर दिया कि इन 24 गुणों का अध्ययन करके ही हम विकसित भारत का निर्माण कर सकते हैं। IMAANDAR एकेडमी का शुभारंभ
इस अवसर पर ‘IMAANDAR – इंटरनेशनल मूटिंग एकेडमी फॉर एडवोकेसी, नेगोशिएशन, डिस्प्यूट एडजुडिकेशन, आर्बिट्रेशन एंड रेजोल्यूशन’ का औपचारिक उद्घाटन भी किया गया। इस एकेडमी का उद्देश्य विधि छात्रों को एडवोकेसी, विवाद निपटान और आर्बिट्रेशन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण प्रदान करना है। देश-विदेश के शीर्ष न्यायविदों की प्रभावशाली भागीदारी सम्मेलन में 17 सुप्रीम कोर्ट जज, 10 पूर्व मुख्य न्यायाधीश, 10 हाईकोर्ट जज, 14 अंतरराष्ट्रीय न्यायविद, 5 मंत्री एवं सांसद, 61 वरिष्ठ अधिवक्ता और 91 से अधिक विधि शिक्षक, वकील व शोधकर्ता शामिल हुए। इतनी विशाल और उच्च स्तरीय सहभागिता ने कार्यक्रम को वैश्विक महत्व प्रदान किया। नवीन जिंदल और कुलपति डॉ. राजकुमार का संबोधन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के चांसलर नवीन जिंदल और संस्थापक कुलपति प्रो. (डॉ.) सी. राजकुमार ने सम्मेलन के उद्देश्य, न्यायिक शिक्षा के भविष्य और वैश्विक कानूनी विमर्श की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त किए। केशवानंद भारती केस का नाट्य रूपांतरण, संविधान की आत्मा पर पुनर्विचार कार्यक्रम में भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा की उपस्थिति में ऐतिहासिक ‘केशवानंद भारती केस’ का सजीव प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति ने संविधान की मूल संरचना, न्यायिक समीक्षा की शक्ति और लोकतांत्रिक संतुलन पर न्यायपालिका की भूमिका को फिर से रेखांकित किया। 13 जजों की बेंच द्वारा मूल संरचना सिद्धांत पर विचार एनैक्टमेंट के बाद 13 न्यायाधीशीय बेंच के चिंतन सत्र में मूल संरचना सिद्धांत की प्रासंगिकता पर चर्चा हुई। 24 अप्रैल 1973 को दिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय ने यह स्थापित किया था कि संविधान की कुछ मूल विशेषताएं जैसे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढाँचा, न्यायिक स्वतंत्रता और कानून का शासन,संसद द्वारा संशोधित नहीं की जा सकतीं। अंत में, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल का परिचय प्रो. (डॉ.) दीपिका जैन, कार्यकारी डीन, ने दिया और धन्यवाद ज्ञापन ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रो. डबीरु श्रीधर पटनायक ने प्रस्तुत किया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने कानून के छात्रों से आह्वान किया है कि वे ईमानदारी को अपने चरित्र की मूल संरचना बनने दें और इसे कोई भी बदलाव न करें। ईमानदारी की बात कर रहे हैं और ये आपके लिए बड़ी महत्वपूर्ण लाइन है। CJI शनिवार को सोनीपत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हुए। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी पहुंचे। जिंदल यूनिवर्सिटी पहुंचने पर उनका स्वगत किया गया। ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के व्यापक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर आयोजित सेमिनार में CJI सूर्यकांत ने कहा कि कानून का अध्ययन कठिन और प्रेरणादायक दोनों हो सकता है। प्यारे छात्रों, याद रखें कि आप इस बात के छात्र हैं कि आगे क्या होगा। संविधान तभी तक रहेगा, जब तक आपकी नैतिकता इसे बरकरार रखती है। CJI सूर्यकांत ने कहा कि ‘ईमानदारी’ केवल चरित्र का आभूषण नहीं है, बल्कि यह वह अनुशासन है जो न्याय और प्रतिष्ठा दोनों को बनाए रखता है। उन्होंने कहा कि कानून का अभ्यास और न्याय की खोज हमेशा ‘ईमानदारी’ (Integrity) के इस आदर्श की ओर ही होनी चाहिए। सत्य और शोर का युग: सूर्यकांत ने वर्तमान युग की चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, जहां ‘डीपफेक’ विकृतियां पैदा करते हैं, गलत सूचनाएं तेज़ी से फैलती हैं, और ‘डिजिटल गिरफ्तारियां’ आम हो गई हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे समय में, ईमानदारी और सच्चाई अब केवल उच्च आदर्श नहीं, बल्कि अस्तित्व के साधन हैं, और वास्तविक सफलता का एकमात्र वैध “शॉर्टकट” हैं। फैसले में संविधान का मूल वादा जरूरी CJI ने आगे कहा कि जब भी कोई याचिका हमारे समक्ष आती है, हम न केवल तथ्यों और कानून पर विचार करते हैं, बल्कि हम हमेशा अपने संविधान के उस मूल वादे को भी याद रखते हैं, जिसके तहत हम सभी ने एक समाज के रूप में रहना स्वीकार किया है। हम सदैव इस बात को ध्यान में रखते हैं कि 26 नवंबर, 1949 को हमने जो दस्तावेज़ स्वयं को समर्पित किया था, उसमें निहित उच्चतर लक्ष्य क्या थे। और यही उच्चतर लक्ष्य सुनिश्चित करता है कि जब हम न्याय करते हैं, तो हम केवल कानून का पालन नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि हम कानून को एक बेहतर भारत के निर्माण की सेवा में समर्पित कर रहे होते हैं। मेघवाल ने राष्ट्रीय ध्वज पर दी जानकारी केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने सेमिनार में राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम रूप देने की ऐतिहासिक कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे डॉ. बी.आर. अंबेडकर के निर्णायक तर्क ने चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वक्ता ने ‘झंडा समिति’ की चर्चा करते हुए बताया कि जब राष्ट्रीय ध्वज को अंतिम रूप दिया जा रहा था, तब तिरंगे के बीच में चरखा रखने पर विचार हो रहा था। डॉ. अंबेडकर ने इसका विरोध करते हुए कहा कि “अगर चरखा रखा गया, तो यह झंडा कांग्रेस का होगा, देश का नहीं।” उन्होंने अशोक चक्र का प्रस्ताव दिया, जिसमें 24 तीलियां हैं जो निरंतर कार्य और दया, करुणा, समता, स्वतंत्रता और न्याय जैसे मानवीय गुणों का प्रतीक हैं। डॉ. अंबेडकर के तर्कों से सहमत होकर समिति ने चरखे के स्थान पर अशोक चक्र को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। वक्ता ने जोर दिया कि इन 24 गुणों का अध्ययन करके ही हम विकसित भारत का निर्माण कर सकते हैं। IMAANDAR एकेडमी का शुभारंभ
इस अवसर पर ‘IMAANDAR – इंटरनेशनल मूटिंग एकेडमी फॉर एडवोकेसी, नेगोशिएशन, डिस्प्यूट एडजुडिकेशन, आर्बिट्रेशन एंड रेजोल्यूशन’ का औपचारिक उद्घाटन भी किया गया। इस एकेडमी का उद्देश्य विधि छात्रों को एडवोकेसी, विवाद निपटान और आर्बिट्रेशन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण प्रदान करना है। देश-विदेश के शीर्ष न्यायविदों की प्रभावशाली भागीदारी सम्मेलन में 17 सुप्रीम कोर्ट जज, 10 पूर्व मुख्य न्यायाधीश, 10 हाईकोर्ट जज, 14 अंतरराष्ट्रीय न्यायविद, 5 मंत्री एवं सांसद, 61 वरिष्ठ अधिवक्ता और 91 से अधिक विधि शिक्षक, वकील व शोधकर्ता शामिल हुए। इतनी विशाल और उच्च स्तरीय सहभागिता ने कार्यक्रम को वैश्विक महत्व प्रदान किया। नवीन जिंदल और कुलपति डॉ. राजकुमार का संबोधन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के चांसलर नवीन जिंदल और संस्थापक कुलपति प्रो. (डॉ.) सी. राजकुमार ने सम्मेलन के उद्देश्य, न्यायिक शिक्षा के भविष्य और वैश्विक कानूनी विमर्श की आवश्यकता पर अपने विचार व्यक्त किए। केशवानंद भारती केस का नाट्य रूपांतरण, संविधान की आत्मा पर पुनर्विचार कार्यक्रम में भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा की उपस्थिति में ऐतिहासिक ‘केशवानंद भारती केस’ का सजीव प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति ने संविधान की मूल संरचना, न्यायिक समीक्षा की शक्ति और लोकतांत्रिक संतुलन पर न्यायपालिका की भूमिका को फिर से रेखांकित किया। 13 जजों की बेंच द्वारा मूल संरचना सिद्धांत पर विचार एनैक्टमेंट के बाद 13 न्यायाधीशीय बेंच के चिंतन सत्र में मूल संरचना सिद्धांत की प्रासंगिकता पर चर्चा हुई। 24 अप्रैल 1973 को दिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय ने यह स्थापित किया था कि संविधान की कुछ मूल विशेषताएं जैसे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढाँचा, न्यायिक स्वतंत्रता और कानून का शासन,संसद द्वारा संशोधित नहीं की जा सकतीं। अंत में, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल का परिचय प्रो. (डॉ.) दीपिका जैन, कार्यकारी डीन, ने दिया और धन्यवाद ज्ञापन ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार प्रो. डबीरु श्रीधर पटनायक ने प्रस्तुत किया।