केरल हाईकोर्ट ने तलाक के केस में मंगलवार को कहा कि अगर पत्नी कमाने के काबिल है, लेकिन उसकी आमदनी स्थायी नहीं है या अपना खर्च नहीं उठा पा रही है, तो वह भरण-पोषण की हकदार है। उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस कौसर एडप्पगाथ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कमाई करने की क्षमता और वास्तव में पर्याप्त कमाई करने में फर्क है। मामला एक महिला की याचिका से जुड़ा है, जिसने वह अपने पति से अलग रहने के बाद अपने और दो बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की थी। महिला ने बताया कि वह सिलाई जानती है, लेकिन स्थायी काम नहीं है और आमदनी भी पर्याप्त नहीं है। उसने पति पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया और कहा कि इसी कारण वे अलग रह रहे हैं। पहले मामले को जानिए यह मामला केरल का है। महिला का आरोप है कि पति उसके साथ मारपीट करता था। इसके कारण दोनों अलग रह रहे थे। दोनों के दो बच्चे हैं, जो महिला के साथ रहते हैं। महिला ने बच्चों और अपने लिए पति से भरण-पोषण की मांग की थी। महिला ने बताया कि सिलाई का काम जानती है, लेकिन उसकी कमाई दोनों बच्चों और खुद के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं है। महिला ने बताया कि उसे हर रोज काम भी नहीं मिलता। जबकि उसका पति भी एक दर्जी है और वह पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त कमाता है। महिला ने अपने पति से अपने लिए ₹15,000 प्रति माह और अपने दोनों बच्चों के लिए ₹10-10 हजार रुपए प्रति माह भरण-पोषण की मांग की थी। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का हवाला दिया जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने शैलजा एवं अन्य बनाम खोबन्ना (2018) केस में कहा था कि एक ऐसी पत्नी जो सच में अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमा रही है और एक ऐसी महिला जो ‘सक्षम’ है, लेकिन भरण पोषण के लायक कमाई नहीं कर रही है, के बीच अंतर है। हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य (2021) केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, दोहराया कि अगर पत्नी कमा रही हो, तो भी वह उसे भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकेगी। पढ़ें वो मामले जिनमें HC और SC ने भरण-पोषण पर सख्त कमेंट किए 22 जुलाई: SC महिला से बोला- खुद कमाकर खाइए, आप भी पढ़ी लिखी सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में कहा था कि अगर महिला काफी पढ़ी-लिखी है, तो उसे एलिमनी मांगने की बजाय खुद कमाकर खाना चाहिए। महिला ने मुंबई में एक फ्लैट, 12 करोड़ रुपए का भरण-पोषण और एक महंगी BMW कार की मांग की थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी आर गवई की बेंच ने कहा था-आपकी शादी सिर्फ 18 महीने चली और आप हर महीने 1 करोड़ मांग रही हैं। आप इतनी पढ़ी-लिखी हैं, फिर नौकरी क्यों नहीं करतीं? एक उच्च शिक्षित महिला बेकार नहीं बैठ सकती। आपको अपने लिए कुछ मांगना नहीं चाहिए बल्कि खुद कमाकर खाना चाहिए। पूरी खबर पढ़ें… दिसंबर 2024: SC बोला-गुजारे भत्ते का मकसद पति को सजा देना नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद के मामले में 10 दिसंबर को एक आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी और बच्चों को 5 करोड़ रुपए का गुजारा-भत्ता दे। कोर्ट ने आदेश दिया कि पति फाइनल सेटलमेंट के तौर पर यह रकम पत्नी को दे। कोर्ट ने आदेश के दौरान यह साफ कर दिया था कि गुजारा-भत्ता देने का मकसद यह नहीं है कि पति को सजा दी जाए। हम यह चाहते हैं कि पत्नी और बच्चे सम्मानित तरीके से जीवन गुजार सकें। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी की बेंच ने कहा कि सेटलमेंट में से एक करोड़ की रकम उनके बेटे के गुजारे-भत्ते और उसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए तय की जाए। पूरी खबर पढ़ें… नवंबर 2024: दिल्ली HC बोला- सक्षम जीवनसाथी को गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सक्षम जीवनसाथी को गुजारा भत्ता (एलिमनी) नहीं दिया सकता। स्थायी गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय का एक जरिया (टूल) है। सक्षम लोगों को अमीर बनाने या उनकी आर्थिक बराबरी करने का साधन नहीं है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा- गुजारा भत्ता मांगने वाले को यह साबित करना होगा कि उसे वास्तव में आर्थिक मदद की जरूरत है। इस मामले में पत्नी रेलवे में ग्रुप एक अधिकारी हैं।पर्याप्त पैसा कमाती हैं। पूरी खबर पढ़ें… सर्वे- तलाक के लिए 42 फीसदी पुरुषों ने कर्ज लिया अक्टूबर में देश की एक वित्तीय सलाहकार कंपनी का सर्वे सामने आया था। बताया था कि शादी के बाद 42% पुरुषों ने तलाक से जुड़े खर्चों के लिए कर्ज लिया। 46 प्रतिशत महिलाओं ने सवेतन काम छोड़ दिया या कम कर दिया। यह सर्वे ‘वन फाइनेंस एडवाइजरी कंपनी’ ने टियर-I और टियर-II शहरों में 1,258 तलाकशुदा या तलाक के लिए आवेदन कर चुके लोगों पर किया। सर्वे में बताया गया कि 29 प्रतिशत पुरुषों ने गुजारा भत्ता देने के बाद खुद को नकारात्मक निवल मूल्य की स्थिति में पाया। सर्वे के अनुसार, पुरुषों की सालाना आय का 38% हिस्सा भरण-पोषण में चला गया। तलाक से जुड़े खर्चों में 19% महिलाओं ने 5 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए। वहीं, 49 प्रतिशत पुरुषों ने भी इतना ही खर्च किया। सर्वे में 67 प्रतिशत लोगों ने माना कि शादी के दौरान उनकी अक्सर पैसों को लेकर बहस होती थी। 43 प्रतिशत ने कहा कि वित्तीय विवाद या असमानता ही उनके तलाक का सीधा कारण बना। शादी के समय 56 प्रतिशत महिलाएं अपने पति से कम कमाती थीं। केवल 2% महिलाएं ही पति से ज्यादा कमाती थीं।
केरल हाईकोर्ट ने तलाक के केस में मंगलवार को कहा कि अगर पत्नी कमाने के काबिल है, लेकिन उसकी आमदनी स्थायी नहीं है या अपना खर्च नहीं उठा पा रही है, तो वह भरण-पोषण की हकदार है। उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस कौसर एडप्पगाथ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कमाई करने की क्षमता और वास्तव में पर्याप्त कमाई करने में फर्क है। मामला एक महिला की याचिका से जुड़ा है, जिसने वह अपने पति से अलग रहने के बाद अपने और दो बच्चों के लिए भरण-पोषण की मांग की थी। महिला ने बताया कि वह सिलाई जानती है, लेकिन स्थायी काम नहीं है और आमदनी भी पर्याप्त नहीं है। उसने पति पर मानसिक और शारीरिक क्रूरता का आरोप लगाया और कहा कि इसी कारण वे अलग रह रहे हैं। पहले मामले को जानिए यह मामला केरल का है। महिला का आरोप है कि पति उसके साथ मारपीट करता था। इसके कारण दोनों अलग रह रहे थे। दोनों के दो बच्चे हैं, जो महिला के साथ रहते हैं। महिला ने बच्चों और अपने लिए पति से भरण-पोषण की मांग की थी। महिला ने बताया कि सिलाई का काम जानती है, लेकिन उसकी कमाई दोनों बच्चों और खुद के भरण-पोषण के लिए काफी नहीं है। महिला ने बताया कि उसे हर रोज काम भी नहीं मिलता। जबकि उसका पति भी एक दर्जी है और वह पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण देने के लिए पर्याप्त कमाता है। महिला ने अपने पति से अपने लिए ₹15,000 प्रति माह और अपने दोनों बच्चों के लिए ₹10-10 हजार रुपए प्रति माह भरण-पोषण की मांग की थी। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का हवाला दिया जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने शैलजा एवं अन्य बनाम खोबन्ना (2018) केस में कहा था कि एक ऐसी पत्नी जो सच में अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त कमा रही है और एक ऐसी महिला जो ‘सक्षम’ है, लेकिन भरण पोषण के लायक कमाई नहीं कर रही है, के बीच अंतर है। हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा एवं अन्य (2021) केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, दोहराया कि अगर पत्नी कमा रही हो, तो भी वह उसे भरण-पोषण का दावा करने से नहीं रोकेगी। पढ़ें वो मामले जिनमें HC और SC ने भरण-पोषण पर सख्त कमेंट किए 22 जुलाई: SC महिला से बोला- खुद कमाकर खाइए, आप भी पढ़ी लिखी सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के एक मामले में कहा था कि अगर महिला काफी पढ़ी-लिखी है, तो उसे एलिमनी मांगने की बजाय खुद कमाकर खाना चाहिए। महिला ने मुंबई में एक फ्लैट, 12 करोड़ रुपए का भरण-पोषण और एक महंगी BMW कार की मांग की थी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी आर गवई की बेंच ने कहा था-आपकी शादी सिर्फ 18 महीने चली और आप हर महीने 1 करोड़ मांग रही हैं। आप इतनी पढ़ी-लिखी हैं, फिर नौकरी क्यों नहीं करतीं? एक उच्च शिक्षित महिला बेकार नहीं बैठ सकती। आपको अपने लिए कुछ मांगना नहीं चाहिए बल्कि खुद कमाकर खाना चाहिए। पूरी खबर पढ़ें… दिसंबर 2024: SC बोला-गुजारे भत्ते का मकसद पति को सजा देना नहीं सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद के मामले में 10 दिसंबर को एक आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी और बच्चों को 5 करोड़ रुपए का गुजारा-भत्ता दे। कोर्ट ने आदेश दिया कि पति फाइनल सेटलमेंट के तौर पर यह रकम पत्नी को दे। कोर्ट ने आदेश के दौरान यह साफ कर दिया था कि गुजारा-भत्ता देने का मकसद यह नहीं है कि पति को सजा दी जाए। हम यह चाहते हैं कि पत्नी और बच्चे सम्मानित तरीके से जीवन गुजार सकें। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी की बेंच ने कहा कि सेटलमेंट में से एक करोड़ की रकम उनके बेटे के गुजारे-भत्ते और उसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए तय की जाए। पूरी खबर पढ़ें… नवंबर 2024: दिल्ली HC बोला- सक्षम जीवनसाथी को गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सक्षम जीवनसाथी को गुजारा भत्ता (एलिमनी) नहीं दिया सकता। स्थायी गुजारा भत्ता सामाजिक न्याय का एक जरिया (टूल) है। सक्षम लोगों को अमीर बनाने या उनकी आर्थिक बराबरी करने का साधन नहीं है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा- गुजारा भत्ता मांगने वाले को यह साबित करना होगा कि उसे वास्तव में आर्थिक मदद की जरूरत है। इस मामले में पत्नी रेलवे में ग्रुप एक अधिकारी हैं।पर्याप्त पैसा कमाती हैं। पूरी खबर पढ़ें… सर्वे- तलाक के लिए 42 फीसदी पुरुषों ने कर्ज लिया अक्टूबर में देश की एक वित्तीय सलाहकार कंपनी का सर्वे सामने आया था। बताया था कि शादी के बाद 42% पुरुषों ने तलाक से जुड़े खर्चों के लिए कर्ज लिया। 46 प्रतिशत महिलाओं ने सवेतन काम छोड़ दिया या कम कर दिया। यह सर्वे ‘वन फाइनेंस एडवाइजरी कंपनी’ ने टियर-I और टियर-II शहरों में 1,258 तलाकशुदा या तलाक के लिए आवेदन कर चुके लोगों पर किया। सर्वे में बताया गया कि 29 प्रतिशत पुरुषों ने गुजारा भत्ता देने के बाद खुद को नकारात्मक निवल मूल्य की स्थिति में पाया। सर्वे के अनुसार, पुरुषों की सालाना आय का 38% हिस्सा भरण-पोषण में चला गया। तलाक से जुड़े खर्चों में 19% महिलाओं ने 5 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए। वहीं, 49 प्रतिशत पुरुषों ने भी इतना ही खर्च किया। सर्वे में 67 प्रतिशत लोगों ने माना कि शादी के दौरान उनकी अक्सर पैसों को लेकर बहस होती थी। 43 प्रतिशत ने कहा कि वित्तीय विवाद या असमानता ही उनके तलाक का सीधा कारण बना। शादी के समय 56 प्रतिशत महिलाएं अपने पति से कम कमाती थीं। केवल 2% महिलाएं ही पति से ज्यादा कमाती थीं।