रुद्रप्रयाग जिले में स्थित द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट आज सुबह 8 बजे शीतकाल के लिए विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। मुख्य पुजारी ने स्थानीय पुष्पों और राख से स्वयंभू नाभि लिंग को समाधि दी। इसके बाद भोग मूर्तियों को चल उत्सव विग्रह डोली में विराजमान किया गया और डोली ने मंदिर की परिक्रमा की। इसके बाद ढोल-दमाऊ के साथ डोली अपने प्रथम पड़ाव गौंडार के लिए प्रस्थान कर गई। मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने बताया कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस साल यहां पर बाबा के दर्शन के लिए करीब 22 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं। 21 नवंबर को डोली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान होगी। इससे पहले बाबा केदारनाथ की डोली 23 अक्टूबर को कपाट बंद होने के बाद 25 अक्टूबर को ओंकारेश्वर पहुंच चुकी है। अब दोनों डोलियां एक साथ होने से श्रद्धालु पूरे पंचकेदार के दर्शन यहीं कर पाएंगे। मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने के PHOTOS… ब्रह्म मुहूर्त में खोला मंदिर, करीब साढ़े 300 लोग पहुंचे मुख्य पुजारी के नेतृत्व में आज ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खोला गया, जहां साढ़े तीन सौ से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन और पूजा-अर्चना की। इसके बाद सुबह 7 बजे से कपाट बंद करने की तैयारियां शुरू हुईं। बीकेटीसी के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल, सदस्य प्रह्लाद पुष्पवान और पंच गौंडारी हक हकूकधारी सहित अन्य अधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद रहे। मंदिर के स्वयंभू शिवलिंग को स्थानीय पुष्पों और राख से समाधि रूप दिया गया। सुबह 8 बजे जयघोष के साथ कपाट बंद किए गए और मंदिर की चल विग्रह डोली ने अपने भंडार का निरीक्षण किया तथा मंदिर की परिक्रमा की। ढोल-दमाऊ की ध्वनि के बीच डोली गौंडार के लिए प्रस्थान कर गई। अब पढ़िए कैसे बाबा की डोली पहुंचेंगी ओंकारेश्वर बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ के अनुसार, डोली आज रात्रि प्रवास के लिए गौंडार पहुंचेगी। 19 नवंबर को यह रांसी गांव स्थित राकेश्वरी मंदिर में और 20 नवंबर को गिरिया गांव में रात्रि प्रवास करेगी। जिसके बाद 21 नवंबर को चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ में विराजमान होगी। शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर में अब पंचकेदार दर्शन ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर को पंचकेदारों का शीतकालीन गद्दीस्थल माना जाता है। मान्यता है कि यहां एक ही स्थान पर पंचकेदारों के दर्शन संभव होते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के वरिष्ठ पुजारी शिव शंकर लिंग बताते हैं कि ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदारनाथ और द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर की शीतकालीन पूजा होती है। साथ ही यहां तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ और पंचम केदार कल्पेश्वर मंदिर का प्रतीकात्मक रूप से विराजमान हैं और उनके दर्शन और पूजा होती है, इसलिए ओंकारेश्वर मंदिर इसे पंच केदारनाथ गद्दी कहते हैं। अब इस दूसरे केदार के बारे में पढ़ें…. मध्यमहेश्वर का इतिहास और महात्म्य पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिव ने बैल का रूप धारण कर उन्हें दर्शन देने से इंकार कर दिया था। भीम ने बैल रूप में शिव को पहचान लिया और उनकी पीठ का भाग पकड़ लिया। शिव धरती में समा गए और उनके अंग विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए। नाभि का भाग मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ, इसलिए यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। यह भी कहा जाता है कि यहीं शिव और पार्वती ने मधुचंद्र मनाया था। मान्यता है कि मध्यमहेश्वर के जल की कुछ बूंदें भी मोक्षदायी होती हैं। यहां पिंडदान करने से सौ पुश्तें तर होने की मान्यता है। मंदिर की ऊंचाई, लोकेशन और वास्तुकला मध्यमहेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ क्षेत्र में समुद्र तल से लगभग 3,497 मीटर (11,473 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह उत्तर भारतीय शैली में बना पत्थर का भव्य मंदिर है, जिसकी संरचना केदारनाथ मंदिर से काफी मिलती-जुलती है। गर्भगृह में काले पत्थर से निर्मित स्वयंभू नाभि लिंग विराजते हैं। ट्रेक रूट- रांसी से 16–18 किमी का कठिन लेकिन खूबसूरत सफर मध्यमहेश्वर का ट्रेक उनियाना से शुरू होता है और नानू, गौंडार होते हुए मंदिर तक पहुंचता है। यह 16–18 किमी का ट्रेक घने जंगलों, झरनों और हिमालयी दृश्यों से भरा होता है। आखिरी 5 किमी की चढ़ाई अपेक्षाकृत कठिन है, लेकिन चौखंबा पर्वत की श्रृंखला के नजारे सारी थकान मिटा देते हैं।
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट आज सुबह 8 बजे शीतकाल के लिए विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। मुख्य पुजारी ने स्थानीय पुष्पों और राख से स्वयंभू नाभि लिंग को समाधि दी। इसके बाद भोग मूर्तियों को चल उत्सव विग्रह डोली में विराजमान किया गया और डोली ने मंदिर की परिक्रमा की। इसके बाद ढोल-दमाऊ के साथ डोली अपने प्रथम पड़ाव गौंडार के लिए प्रस्थान कर गई। मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने बताया कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बीच इस साल यहां पर बाबा के दर्शन के लिए करीब 22 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं। 21 नवंबर को डोली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान होगी। इससे पहले बाबा केदारनाथ की डोली 23 अक्टूबर को कपाट बंद होने के बाद 25 अक्टूबर को ओंकारेश्वर पहुंच चुकी है। अब दोनों डोलियां एक साथ होने से श्रद्धालु पूरे पंचकेदार के दर्शन यहीं कर पाएंगे। मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने के PHOTOS… ब्रह्म मुहूर्त में खोला मंदिर, करीब साढ़े 300 लोग पहुंचे मुख्य पुजारी के नेतृत्व में आज ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खोला गया, जहां साढ़े तीन सौ से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन और पूजा-अर्चना की। इसके बाद सुबह 7 बजे से कपाट बंद करने की तैयारियां शुरू हुईं। बीकेटीसी के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल, सदस्य प्रह्लाद पुष्पवान और पंच गौंडारी हक हकूकधारी सहित अन्य अधिकारी एवं श्रद्धालु मौजूद रहे। मंदिर के स्वयंभू शिवलिंग को स्थानीय पुष्पों और राख से समाधि रूप दिया गया। सुबह 8 बजे जयघोष के साथ कपाट बंद किए गए और मंदिर की चल विग्रह डोली ने अपने भंडार का निरीक्षण किया तथा मंदिर की परिक्रमा की। ढोल-दमाऊ की ध्वनि के बीच डोली गौंडार के लिए प्रस्थान कर गई। अब पढ़िए कैसे बाबा की डोली पहुंचेंगी ओंकारेश्वर बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ के अनुसार, डोली आज रात्रि प्रवास के लिए गौंडार पहुंचेगी। 19 नवंबर को यह रांसी गांव स्थित राकेश्वरी मंदिर में और 20 नवंबर को गिरिया गांव में रात्रि प्रवास करेगी। जिसके बाद 21 नवंबर को चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ में विराजमान होगी। शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर में अब पंचकेदार दर्शन ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर को पंचकेदारों का शीतकालीन गद्दीस्थल माना जाता है। मान्यता है कि यहां एक ही स्थान पर पंचकेदारों के दर्शन संभव होते हैं। ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के वरिष्ठ पुजारी शिव शंकर लिंग बताते हैं कि ओंकारेश्वर मंदिर में भगवान केदारनाथ और द्वितीय केदार भगवान मद्महेश्वर की शीतकालीन पूजा होती है। साथ ही यहां तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ और पंचम केदार कल्पेश्वर मंदिर का प्रतीकात्मक रूप से विराजमान हैं और उनके दर्शन और पूजा होती है, इसलिए ओंकारेश्वर मंदिर इसे पंच केदारनाथ गद्दी कहते हैं। अब इस दूसरे केदार के बारे में पढ़ें…. मध्यमहेश्वर का इतिहास और महात्म्य पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के गोत्रहत्या के पाप से मुक्ति के लिए शिव ने बैल का रूप धारण कर उन्हें दर्शन देने से इंकार कर दिया था। भीम ने बैल रूप में शिव को पहचान लिया और उनकी पीठ का भाग पकड़ लिया। शिव धरती में समा गए और उनके अंग विभिन्न स्थानों पर प्रकट हुए। नाभि का भाग मध्यमहेश्वर में प्रकट हुआ, इसलिए यहां भगवान शिव की नाभि की पूजा की जाती है। यह भी कहा जाता है कि यहीं शिव और पार्वती ने मधुचंद्र मनाया था। मान्यता है कि मध्यमहेश्वर के जल की कुछ बूंदें भी मोक्षदायी होती हैं। यहां पिंडदान करने से सौ पुश्तें तर होने की मान्यता है। मंदिर की ऊंचाई, लोकेशन और वास्तुकला मध्यमहेश्वर मंदिर रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ क्षेत्र में समुद्र तल से लगभग 3,497 मीटर (11,473 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यह उत्तर भारतीय शैली में बना पत्थर का भव्य मंदिर है, जिसकी संरचना केदारनाथ मंदिर से काफी मिलती-जुलती है। गर्भगृह में काले पत्थर से निर्मित स्वयंभू नाभि लिंग विराजते हैं। ट्रेक रूट- रांसी से 16–18 किमी का कठिन लेकिन खूबसूरत सफर मध्यमहेश्वर का ट्रेक उनियाना से शुरू होता है और नानू, गौंडार होते हुए मंदिर तक पहुंचता है। यह 16–18 किमी का ट्रेक घने जंगलों, झरनों और हिमालयी दृश्यों से भरा होता है। आखिरी 5 किमी की चढ़ाई अपेक्षाकृत कठिन है, लेकिन चौखंबा पर्वत की श्रृंखला के नजारे सारी थकान मिटा देते हैं।