उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम में इस साल रिकॉर्ड 17 लाख 68 हजार लोगों ने बाबा केदार के दर्शन किए। इस आस्था के साथ केदारनाथ धाम में 2300 टन कचरे का पहाड़ भी जमा हो गया है। हर यात्री ने औसतन डेढ़ किलो तक कचरा यहां छोड़ा। पिछले साल की तुलना में करीब 150 ग्राम प्रति यात्री ज्यादा रहा। अब इस कचरे को निस्तारित करने में 25 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आ रहा है, जो इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में मौजूद शिव धाम के पर्यावरण के लिए नई चुनौती खड़ा कर रहा है। केदारनाथ में कचरा जलाने पर बैन केदारनाथ ऊंचे हिमालयी क्षेत्र में है। यहां न तो कचरा जलाने की अनुमति है, न निपटारे प्लांट लग सकता है। केदारनाथ धाम में इस साल करीब 2300 टन कचरा इकट्ठा हुआ। यह गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ धाम तक फैला था। जिसमें करीब 100 टन प्लास्टिक कचरा था जबकि 2200 टन बाकी कचरा रहा। यात्रा के दौरान जमा हुआ पूरा कचरा वापस नीचे सोनप्रयाग लाकर निस्तारित करना पड़ता है। यह काम खच्चर करते हैं। हर खच्चर सिर्फ 10 से 12 किलो तक कचरा ला पाता है। एक फेरा कराने का खर्च 1700 रुपए तक आता है। इसलिए केदारनाथ में फैले कचरे को सोनप्रयाग तक पहुंचाने में करीब 25 करोड़ का खर्च हो रहा है। केदारनाथ के कपाट 23 अक्टूबर 2025 (भैया दूज) को बंद कर दिए गए थे, जिसके बाद बाबा अब उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान हैं। इससे पहले इस साल केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को खोल गए थे। कपाट खुलते ही भक्तों ने मंदिर के अंदर जलती अखंड ज्योति के दर्शन किए थे। इसके बाद रुद्राभिषेक, शिवाष्टक, शिव तांडव स्तोत्र और केदाराष्टक के मंत्रों का जाप किया गया था।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम में इस साल रिकॉर्ड 17 लाख 68 हजार लोगों ने बाबा केदार के दर्शन किए। इस आस्था के साथ केदारनाथ धाम में 2300 टन कचरे का पहाड़ भी जमा हो गया है। हर यात्री ने औसतन डेढ़ किलो तक कचरा यहां छोड़ा। पिछले साल की तुलना में करीब 150 ग्राम प्रति यात्री ज्यादा रहा। अब इस कचरे को निस्तारित करने में 25 करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च आ रहा है, जो इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में मौजूद शिव धाम के पर्यावरण के लिए नई चुनौती खड़ा कर रहा है। केदारनाथ में कचरा जलाने पर बैन केदारनाथ ऊंचे हिमालयी क्षेत्र में है। यहां न तो कचरा जलाने की अनुमति है, न निपटारे प्लांट लग सकता है। केदारनाथ धाम में इस साल करीब 2300 टन कचरा इकट्ठा हुआ। यह गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ धाम तक फैला था। जिसमें करीब 100 टन प्लास्टिक कचरा था जबकि 2200 टन बाकी कचरा रहा। यात्रा के दौरान जमा हुआ पूरा कचरा वापस नीचे सोनप्रयाग लाकर निस्तारित करना पड़ता है। यह काम खच्चर करते हैं। हर खच्चर सिर्फ 10 से 12 किलो तक कचरा ला पाता है। एक फेरा कराने का खर्च 1700 रुपए तक आता है। इसलिए केदारनाथ में फैले कचरे को सोनप्रयाग तक पहुंचाने में करीब 25 करोड़ का खर्च हो रहा है। केदारनाथ के कपाट 23 अक्टूबर 2025 (भैया दूज) को बंद कर दिए गए थे, जिसके बाद बाबा अब उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में विराजमान हैं। इससे पहले इस साल केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को खोल गए थे। कपाट खुलते ही भक्तों ने मंदिर के अंदर जलती अखंड ज्योति के दर्शन किए थे। इसके बाद रुद्राभिषेक, शिवाष्टक, शिव तांडव स्तोत्र और केदाराष्टक के मंत्रों का जाप किया गया था।