केरल हाईकोर्ट ने कहा ईसाई धर्म मानने वाली अविवाहित बेटी अपने पिता से गुजारा-भत्ता लेने का दावा नहीं कर सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि क्रिश्चियन पर्सनल लॉ में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ और हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) में ऐसा हक मौजूद है। जानिए क्या है पूरा मामला केरल हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ की बेंच ने 29 अक्टूबर की एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें 65 वर्षीय ईसाई व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उसे अलग रह रही पत्नी को हर महीने 20,000 रुपए और 27 साल की अविवाहित बेटी को 10,000 रुपए भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी बेटी याचिका दायर होने के समय बालिग थी, इसलिए वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। साथ ही उसने कहा कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर अलग रहती है और आर्थिक रूप से सक्षम है। हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता पर लगाई रोक हाईकोर्ट ने याचिका को आंशिक मंजूरी देते हुए बेटी को दिए जाने वाले 10,000 रुपए मासिक भरण-पोषण के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर बेटी बालिग है तो वह तभी भरण-पोषण मांग सकती है जब किसी शारीरिक या मानसिक समस्या के कारण खुद का खर्च न उठा सके। कोर्ट ने आगे कहा कि HAMA की धारा 20(3) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में पिता को अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करना होता है, लेकिन ईसाई व्यक्तिगत कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है। इसलिए पारिवारिक अदालत का फैसला सही नहीं था। सुनवाई में पत्नी की ओर से कहा गया कि वह मुंबई में अपने बीमार बेटे की पढ़ाई और इलाज के लिए रह रही है। हाईकोर्ट ने इसे उचित माना और कहा कि मां की माता-पिता वाली जिम्मेदारी उसकी वैवाहिक जिम्मेदारी से बड़ी होती है। हाईकोर्ट ने पत्नी को हर महीने 20,000 रुपए भरण-पोषण और बेटे के शिक्षा के लिए 30,000 रुपए खर्च देने के आदेश में कोई बदलाव नहीं किया। ——————————— ये खबरें भी पढ़ें… केरल हाईकोर्ट- शक करने वाला पति हो तो जीवन नर्क:निचली अदालत का फैसला पलटा केरल हाईकोर्ट में जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेहलता की खंडपीठ ने एक महिला की तलाक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि पति का बिना वजह पत्नी पर शक करना मानसिक क्रूरता का गंभीर रूप है। यह वैवाहिक जीवन को नर्क बना सकता है।पूरी खबर पढ़ें
केरल हाईकोर्ट ने कहा ईसाई धर्म मानने वाली अविवाहित बेटी अपने पिता से गुजारा-भत्ता लेने का दावा नहीं कर सकती। अदालत ने स्पष्ट किया कि क्रिश्चियन पर्सनल लॉ में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ और हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA) में ऐसा हक मौजूद है। जानिए क्या है पूरा मामला केरल हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ की बेंच ने 29 अक्टूबर की एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें 65 वर्षीय ईसाई व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी जिसमें उसे अलग रह रही पत्नी को हर महीने 20,000 रुपए और 27 साल की अविवाहित बेटी को 10,000 रुपए भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि उसकी बेटी याचिका दायर होने के समय बालिग थी, इसलिए वह भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है। साथ ही उसने कहा कि उसकी पत्नी उसे छोड़कर अलग रहती है और आर्थिक रूप से सक्षम है। हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता पर लगाई रोक हाईकोर्ट ने याचिका को आंशिक मंजूरी देते हुए बेटी को दिए जाने वाले 10,000 रुपए मासिक भरण-पोषण के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर बेटी बालिग है तो वह तभी भरण-पोषण मांग सकती है जब किसी शारीरिक या मानसिक समस्या के कारण खुद का खर्च न उठा सके। कोर्ट ने आगे कहा कि HAMA की धारा 20(3) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में पिता को अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करना होता है, लेकिन ईसाई व्यक्तिगत कानून में ऐसा कोई नियम नहीं है। इसलिए पारिवारिक अदालत का फैसला सही नहीं था। सुनवाई में पत्नी की ओर से कहा गया कि वह मुंबई में अपने बीमार बेटे की पढ़ाई और इलाज के लिए रह रही है। हाईकोर्ट ने इसे उचित माना और कहा कि मां की माता-पिता वाली जिम्मेदारी उसकी वैवाहिक जिम्मेदारी से बड़ी होती है। हाईकोर्ट ने पत्नी को हर महीने 20,000 रुपए भरण-पोषण और बेटे के शिक्षा के लिए 30,000 रुपए खर्च देने के आदेश में कोई बदलाव नहीं किया। ——————————— ये खबरें भी पढ़ें… केरल हाईकोर्ट- शक करने वाला पति हो तो जीवन नर्क:निचली अदालत का फैसला पलटा केरल हाईकोर्ट में जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेहलता की खंडपीठ ने एक महिला की तलाक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि पति का बिना वजह पत्नी पर शक करना मानसिक क्रूरता का गंभीर रूप है। यह वैवाहिक जीवन को नर्क बना सकता है।पूरी खबर पढ़ें