असम के नगांव शहर का छोटा सा गांव कैवर्ता। 2200 की आबादी। यहां आप जिससे भी मिलेंगे, वो अपनी एक किडनी की कहानी सुनाने लगेगा। गांव के 40% लोगों के शरीर में सिर्फ एक ही किडनी है। दरअसल, नशे की लत और आर्थिक बदहाली के चलते ये लोग अपनी एक किडनी बेच चुके हैं। इनकी हालत देखकर दलाल इनसे संपर्क करते। फिर कोलकाता ले जाते, जहां ऑपरेशन के बाद इनकी एक किडनी निकाल ली जाती। पुलिस ने गरीबों की किडनी लेने का रैकेट चलाने वाले 3 तस्करों धरनी दास, महेंद्र दास और दीपदास को गिरफ्तार कर लिया है। तीनों यह रैकेट लंबे समय से चला रहे थे। यह मामला बीते दिनों गांव में अवैध शराब और नशीली दवाओं के खिलाफ हुई जागरूकता बैठक के दौरान सामने आया था। गांव में 20% लोग नौकरी तो 10% खेतीबाड़ी करते हैं।बाकी बेरोजगार ही हैं। उस जागरूकता बैठक में पता चला कि सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने के बावजूद गांव वाले आर्थिक बदहाली से त्रस्त थे, इसलिए वे 3 से 6 लाख रुपए में दलालों से किडनी का सौदा कर लेते थे। मेडिकल जांच के नाम पर ले गए, किडनी निकाली एक अन्य पीड़ित ने बताया कि हम लोगों को मेडिकल जांच के नाम पर कोलकाता ले गए थे। फिर बेहोश करके किडनी निकाल ली। हमें महीनों बाद इसका पता चला। आज हम जैसे कई पीड़ित बीमार पड़े हैं। गांव के भीतर यह अब ‘खुला रहस्य’ बन चुका है। इसके बारे में हर कोई जानता है, लेकिन कोई बोलता नहीं। ग्रामीण बोला- भावनात्मक रूप से गिरफ्त में लिया एक ग्रामीण ने बताया कि गांव की कुछ शादीशुदा महिलाएं जब ससुराल छोड़कर मायके चली गईं, तो ऐसे पुरुषों को दलालों ने भावनात्मक रूप से गिरफ्त में लिया। फिर कमीशन और रोजगार का लालच देकर उन्हें किडनी बेचने के लिए राजी किया। लॉकडाउन के बाद फिर सक्रिय हुआ था गिरोह 2020 के लॉकडाउन के दौरान मोरीगांव जिले के दक्षिण धरमतुल में भी ऐसा ही एक अंग व्यापार रैकेट पकड़ा गया था। उस मामले में 20 गरीब लोग फंसाए गए थे। गुवाहाटी की लिलीमाई बड़ा नाम की एक महिला को मुख्य सरगना के रूप में गिरफ्तार किया गया था। 2021 में भी नगांव के हूज गांव के दीपक सिंह को ‘गार्ड की नौकरी’ का लालच देकर कोलकाता ले जाया गया था। वहां मेडिकल टेस्ट के नाम पर उसकी किडनी निकालने की साजिश रची गई, लेकिन दीपक को शक हुआ और वह भाग निकला। सालों से चल रहा था धंधा, पत्नियों की किडनी भी ली हुज-कैबर्टा गांव के मुखिया के अनुसार, यह अवैध धंधा कई सालों से चल रहा था। गरीबी, अवैध शराब का व्यापार और किडनी बेचने की मजबूरी के कारण गांव विकलांगों के समाज में बदलता जा रहा है। लोगों ने बताया कि गांव के कई घरों में आज पति-पत्नी दोनों ने अपनी एक-एक किडनी बेच दी है। अगर किसी परिवार में पांच सदस्य हैं, तो उनमें से तीन पहले बेच चुके हैं।
असम के नगांव शहर का छोटा सा गांव कैवर्ता। 2200 की आबादी। यहां आप जिससे भी मिलेंगे, वो अपनी एक किडनी की कहानी सुनाने लगेगा। गांव के 40% लोगों के शरीर में सिर्फ एक ही किडनी है। दरअसल, नशे की लत और आर्थिक बदहाली के चलते ये लोग अपनी एक किडनी बेच चुके हैं। इनकी हालत देखकर दलाल इनसे संपर्क करते। फिर कोलकाता ले जाते, जहां ऑपरेशन के बाद इनकी एक किडनी निकाल ली जाती। पुलिस ने गरीबों की किडनी लेने का रैकेट चलाने वाले 3 तस्करों धरनी दास, महेंद्र दास और दीपदास को गिरफ्तार कर लिया है। तीनों यह रैकेट लंबे समय से चला रहे थे। यह मामला बीते दिनों गांव में अवैध शराब और नशीली दवाओं के खिलाफ हुई जागरूकता बैठक के दौरान सामने आया था। गांव में 20% लोग नौकरी तो 10% खेतीबाड़ी करते हैं।बाकी बेरोजगार ही हैं। उस जागरूकता बैठक में पता चला कि सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने के बावजूद गांव वाले आर्थिक बदहाली से त्रस्त थे, इसलिए वे 3 से 6 लाख रुपए में दलालों से किडनी का सौदा कर लेते थे। मेडिकल जांच के नाम पर ले गए, किडनी निकाली एक अन्य पीड़ित ने बताया कि हम लोगों को मेडिकल जांच के नाम पर कोलकाता ले गए थे। फिर बेहोश करके किडनी निकाल ली। हमें महीनों बाद इसका पता चला। आज हम जैसे कई पीड़ित बीमार पड़े हैं। गांव के भीतर यह अब ‘खुला रहस्य’ बन चुका है। इसके बारे में हर कोई जानता है, लेकिन कोई बोलता नहीं। ग्रामीण बोला- भावनात्मक रूप से गिरफ्त में लिया एक ग्रामीण ने बताया कि गांव की कुछ शादीशुदा महिलाएं जब ससुराल छोड़कर मायके चली गईं, तो ऐसे पुरुषों को दलालों ने भावनात्मक रूप से गिरफ्त में लिया। फिर कमीशन और रोजगार का लालच देकर उन्हें किडनी बेचने के लिए राजी किया। लॉकडाउन के बाद फिर सक्रिय हुआ था गिरोह 2020 के लॉकडाउन के दौरान मोरीगांव जिले के दक्षिण धरमतुल में भी ऐसा ही एक अंग व्यापार रैकेट पकड़ा गया था। उस मामले में 20 गरीब लोग फंसाए गए थे। गुवाहाटी की लिलीमाई बड़ा नाम की एक महिला को मुख्य सरगना के रूप में गिरफ्तार किया गया था। 2021 में भी नगांव के हूज गांव के दीपक सिंह को ‘गार्ड की नौकरी’ का लालच देकर कोलकाता ले जाया गया था। वहां मेडिकल टेस्ट के नाम पर उसकी किडनी निकालने की साजिश रची गई, लेकिन दीपक को शक हुआ और वह भाग निकला। सालों से चल रहा था धंधा, पत्नियों की किडनी भी ली हुज-कैबर्टा गांव के मुखिया के अनुसार, यह अवैध धंधा कई सालों से चल रहा था। गरीबी, अवैध शराब का व्यापार और किडनी बेचने की मजबूरी के कारण गांव विकलांगों के समाज में बदलता जा रहा है। लोगों ने बताया कि गांव के कई घरों में आज पति-पत्नी दोनों ने अपनी एक-एक किडनी बेच दी है। अगर किसी परिवार में पांच सदस्य हैं, तो उनमें से तीन पहले बेच चुके हैं।