हरियाणा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री संपत सिंह ने पार्टी छोड़ दी है। रविवार को उन्होंने अपना इस्तीफा सीधे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा। कांग्रेस छोड़ने के बाद दैनिक भास्कर एप से बातचीत में संपत सिंह ने कहा- ‘मैं अब चैन की नींद सोऊंगा। पार्टी छोड़ने का ये फैसला पूरी तरह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है। मैं किस पार्टी जाऊंगा? अभी इस पर कोई विचार नहीं किया। कल से इस बारे में सोचना शुरू करेंगे।’ संपत सिंह ने अपने इस्तीफे में हरियाणा के अंदर कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए स्टेट लीडरशिप पर सवाल उठाए। यही नहीं, उन्होंने राज्य के 8 बड़े नेताओं के नाम अपने इस्तीफे में लिखते हुए बताया कि आखिर ये लोग क्यों कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हुए। संपत ने लिखा- ‘इन परिस्थितियों में मुझे विश्वास नहीं रहा कि कांग्रेस हरियाणा की जनता के हितों का प्रतिनिधित्व कर सकती है। मैं एक गर्वित हरियाणवी हूं और अपने प्रदेश के लोगों को निराश नहीं कर सकता। प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व में मेरा विश्वास समाप्त हो गया है। इसलिए मैं कांग्रेस से अपना त्यागपत्र देने को विवश हूं।’ उन्होंने खड़गे के अलावा अपने इस्तीफे की कॉपी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस के महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, हरियाणा प्रभारी बीके हरिप्रसाद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र को भी भेजी। संपत सिंह ने अपने सियासी करियर की शुरुआत पूर्व उपप्रधानमंत्री ताऊ देवलाल के साथ की थी। वह बीती 25 सितंबर को ताऊ देवीलाल की जयंती पर रोहतक में हुई इनेलो की रैली में भी शामिल हुए थे। संपत सिंह ने हाल ही में पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाने पर भी सवाल उठाए थे। इसे लेकर उनकी शिकायत कांग्रेस की अनुशासन समिति के पास पहुंची थी।
जानिए संपत सिंह ने त्याग पत्र में क्या लिखा… हरियाणा विधानसभा का 6 बार निर्वाचित सदस्य रहा: मैं नलवा विधानसभा से चुनाव जीता : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में संपत सिंह ने कहा है कि मैं हरियाणा विधानसभा का 6 बार निर्वाचित सदस्य रहा हूं। मैंने दो कार्यकाल तक कैबिनेट मंत्री और एक कार्यकाल तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में कार्य किया है। राजनीति में आने से पहले, मैं राजनीति विज्ञान का सहायक प्राध्यापक था। मैंने वर्ष 2009 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जॉइन की। मुझे फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र से टिकट देने का आश्वासन था, परंतु मुझे नलवा से चुनाव लड़ने को कहा गया। इसके बावजूद नलवा की जनता ने मेरे कार्य और निष्ठा पर विश्वास जताते हुए मुझे विधानसभा के लिए चुना। मेरे प्रभाव से कांग्रेस जीती, मुझे मंत्री नहीं बनाया: संपत सिंह ने लिखा कि दुर्भाग्यवश, कांग्रेस पार्टी फतेहाबाद सीट हार गई, जिसका सीधा कारण यह था कि जनता मेरे क्षेत्र परिवर्तन से नाराज थी, जबकि मैं वहां से लगातार पांच बार जीत चुका था। कांग्रेस में मेरे प्रवेश से मेरे प्रभाव वाले लगभग आधे दर्जन अन्य क्षेत्रों में भी पार्टी को विजय मिली।
इसके बावजूद, मुझे न तो मंत्रीमंडल में स्थान मिला और न ही संगठन में कोई भूमिका। बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि चुनाव के बाद मेरी कुमारी सैलजा से मुलाकात और उनके मंत्रालय द्वारा मेरे क्षेत्र को ₹18 करोड़ की स्वीकृति दिए जाने के कारण मुझे दरकिनार कर दिया गया। इसके बाद मुझे एक ही क्षेत्र तक सीमित कर दिया गया, जिससे मैं हरियाणा के अन्य हिस्सों में पार्टी को सशक्त नहीं कर सका। मेरे साथ आए इनेलो में चले गए मैं नहीं गया: संपत ने लिखा कि मेरे साथ आए कई सहयोगी 2014 में वापस इनेलो में चले गए, और परिणामस्वरूप उस वर्ष हिसार लोकसभा और विधानसभा सीटें इनेलो ने जीत लीं। इतिहास ने 2019 के विधानसभा चुनावों में खुद को दोहराया – मुझे फिर टिकट नहीं मिला, और नलवा व फतेहाबाद दोनों सीटें भाजपा ने जीत लीं। 2024 में मुझे सिरसा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का समन्वयक नियुक्त किया गया, जहां कुमारी सैलजा कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उनके पक्ष में मेरे सच्चे प्रयासों से राज्य नेतृत्व असुरक्षित महसूस करने लगा। सैलजा की रैली में भाग लेने से राज्य नेतृत्व नाराज हुआ: संपत सिंह ने लिखा कि 2024 में मैंने सैलजा जी की नरनौंद रैली में भाग लिया, जिससे राज्य नेतृत्व नाराज हुआ। बाद में मुझे पुनः टिकट से वंचित किया गया, और एक बार फिर कांग्रेस नलवा सीट हार गई। 2024 का हरियाणा विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अध्ययन का विषय होना चाहिए। लगभग हर सर्वे, मीडिया रिपोर्ट और आकलन में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी थी, परंतु परिणाम इसके विपरीत रहे. जो उन सभी को आश्चर्यजनक नहीं था जो संगठन के भीतर लगातार हो रही कमजोरी से परिचित थे। इन राजनीतिक घटनाओं का जिक्र किया…
2016 की घटना का जिक्र किया
त्यागपत्र में संपत सिंह ने 2016 की राज्यसभा की घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि सोनिया गांधी ने आरके आनंद के नाम को स्वीकृति दी थी, जिन्हें कांग्रेस और इनेलो के 37 विधायकों का समर्थन था। फिर भी एक राज्य नेता को “वोट न देने” की अनुमति कैसे दी गई? यहां तक कि एक निर्दलीय विधायक (जो अब कांग्रेस सांसद हैं) को जानबूझकर अलग पेन से वोट डालने को कहा गया, जिससे सभी वोट निरस्त हो गए। 2019-2024 के दौरान की घटना का जिक्र किया
कुमारी सैलजा कांग्रेस महासचिव और देश की सबसे वरिष्ठ दलित महिला नेता, को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया, पर 2022 में राज्य नेतृत्व के दबाव में उन्हें हटा दिया गया। श्रुति चौधरी, दो बार सांसद, को भिवानी से टिकट नहीं दिया गया। आज वे भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
किरण चौधरी, 5 बार विधायक, दो बार मंत्री, और भूतपूर्व उपसभापति (दिल्ली), को लगातार अपमानित किया गया। जब वे कांग्रेस विधायक दल की नेता थीं, तब कुछ विधायकों को उनके बैठकों का बहिष्कार करने को कहा गया। सावित्री जिंदल, तीन बार विधायक, दो बार मंत्री – कांग्रेस छोड़कर आज निर्दलीय विधायक हैं। नवीन जिंदल, तीन बार सांसद – अब भाजपा सांसद हैं। राज्य नेतृत्व पर सवाल उठाए
संपत सिंह ने लिखा कि राज्य नेतृत्व ने अपनी व्यक्तिगत शक्ति को मजबूत किया। 2020 में राज्यसभा की रिक्त सीट पर अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग के योग्य सदस्य को आगे बढ़ाने के बजाय, नेता के पुत्र को नामित किया गया। जिससे राष्ट्रीय पार्टी एक पारिवारिक उपक्रम बन गई।
यहां तक कि रणदीप सिंह सुरजेवाला, चार बार विधायक और एआईसीसी महासचिव, को भी हरियाणा में गुटबाजी के कारण राजस्थान से राज्यसभा भेजा गया। अजय माकन, कोषाध्यक्ष, हरियाणा से राज्यसभा चुनाव हार गए – यह नेतृत्व संकट का ही परिणाम था। संपत सिंह के त्यागपत्र की कॉपी…
हरियाणा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री संपत सिंह ने पार्टी छोड़ दी है। रविवार को उन्होंने अपना इस्तीफा सीधे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा। कांग्रेस छोड़ने के बाद दैनिक भास्कर एप से बातचीत में संपत सिंह ने कहा- ‘मैं अब चैन की नींद सोऊंगा। पार्टी छोड़ने का ये फैसला पूरी तरह मेरा व्यक्तिगत निर्णय है। मैं किस पार्टी जाऊंगा? अभी इस पर कोई विचार नहीं किया। कल से इस बारे में सोचना शुरू करेंगे।’ संपत सिंह ने अपने इस्तीफे में हरियाणा के अंदर कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए स्टेट लीडरशिप पर सवाल उठाए। यही नहीं, उन्होंने राज्य के 8 बड़े नेताओं के नाम अपने इस्तीफे में लिखते हुए बताया कि आखिर ये लोग क्यों कांग्रेस छोड़ने को मजबूर हुए। संपत ने लिखा- ‘इन परिस्थितियों में मुझे विश्वास नहीं रहा कि कांग्रेस हरियाणा की जनता के हितों का प्रतिनिधित्व कर सकती है। मैं एक गर्वित हरियाणवी हूं और अपने प्रदेश के लोगों को निराश नहीं कर सकता। प्रदेश कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व में मेरा विश्वास समाप्त हो गया है। इसलिए मैं कांग्रेस से अपना त्यागपत्र देने को विवश हूं।’ उन्होंने खड़गे के अलावा अपने इस्तीफे की कॉपी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, कांग्रेस के महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, हरियाणा प्रभारी बीके हरिप्रसाद और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राव नरेंद्र को भी भेजी। संपत सिंह ने अपने सियासी करियर की शुरुआत पूर्व उपप्रधानमंत्री ताऊ देवलाल के साथ की थी। वह बीती 25 सितंबर को ताऊ देवीलाल की जयंती पर रोहतक में हुई इनेलो की रैली में भी शामिल हुए थे। संपत सिंह ने हाल ही में पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता बनाने पर भी सवाल उठाए थे। इसे लेकर उनकी शिकायत कांग्रेस की अनुशासन समिति के पास पहुंची थी।
जानिए संपत सिंह ने त्याग पत्र में क्या लिखा… हरियाणा विधानसभा का 6 बार निर्वाचित सदस्य रहा: मैं नलवा विधानसभा से चुनाव जीता : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में संपत सिंह ने कहा है कि मैं हरियाणा विधानसभा का 6 बार निर्वाचित सदस्य रहा हूं। मैंने दो कार्यकाल तक कैबिनेट मंत्री और एक कार्यकाल तक नेता प्रतिपक्ष के रूप में कार्य किया है। राजनीति में आने से पहले, मैं राजनीति विज्ञान का सहायक प्राध्यापक था। मैंने वर्ष 2009 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जॉइन की। मुझे फतेहाबाद विधानसभा क्षेत्र से टिकट देने का आश्वासन था, परंतु मुझे नलवा से चुनाव लड़ने को कहा गया। इसके बावजूद नलवा की जनता ने मेरे कार्य और निष्ठा पर विश्वास जताते हुए मुझे विधानसभा के लिए चुना। मेरे प्रभाव से कांग्रेस जीती, मुझे मंत्री नहीं बनाया: संपत सिंह ने लिखा कि दुर्भाग्यवश, कांग्रेस पार्टी फतेहाबाद सीट हार गई, जिसका सीधा कारण यह था कि जनता मेरे क्षेत्र परिवर्तन से नाराज थी, जबकि मैं वहां से लगातार पांच बार जीत चुका था। कांग्रेस में मेरे प्रवेश से मेरे प्रभाव वाले लगभग आधे दर्जन अन्य क्षेत्रों में भी पार्टी को विजय मिली।
इसके बावजूद, मुझे न तो मंत्रीमंडल में स्थान मिला और न ही संगठन में कोई भूमिका। बाद में मुझे ज्ञात हुआ कि चुनाव के बाद मेरी कुमारी सैलजा से मुलाकात और उनके मंत्रालय द्वारा मेरे क्षेत्र को ₹18 करोड़ की स्वीकृति दिए जाने के कारण मुझे दरकिनार कर दिया गया। इसके बाद मुझे एक ही क्षेत्र तक सीमित कर दिया गया, जिससे मैं हरियाणा के अन्य हिस्सों में पार्टी को सशक्त नहीं कर सका। मेरे साथ आए इनेलो में चले गए मैं नहीं गया: संपत ने लिखा कि मेरे साथ आए कई सहयोगी 2014 में वापस इनेलो में चले गए, और परिणामस्वरूप उस वर्ष हिसार लोकसभा और विधानसभा सीटें इनेलो ने जीत लीं। इतिहास ने 2019 के विधानसभा चुनावों में खुद को दोहराया – मुझे फिर टिकट नहीं मिला, और नलवा व फतेहाबाद दोनों सीटें भाजपा ने जीत लीं। 2024 में मुझे सिरसा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का समन्वयक नियुक्त किया गया, जहां कुमारी सैलजा कांग्रेस उम्मीदवार थीं। उनके पक्ष में मेरे सच्चे प्रयासों से राज्य नेतृत्व असुरक्षित महसूस करने लगा। सैलजा की रैली में भाग लेने से राज्य नेतृत्व नाराज हुआ: संपत सिंह ने लिखा कि 2024 में मैंने सैलजा जी की नरनौंद रैली में भाग लिया, जिससे राज्य नेतृत्व नाराज हुआ। बाद में मुझे पुनः टिकट से वंचित किया गया, और एक बार फिर कांग्रेस नलवा सीट हार गई। 2024 का हरियाणा विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए अध्ययन का विषय होना चाहिए। लगभग हर सर्वे, मीडिया रिपोर्ट और आकलन में कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी थी, परंतु परिणाम इसके विपरीत रहे. जो उन सभी को आश्चर्यजनक नहीं था जो संगठन के भीतर लगातार हो रही कमजोरी से परिचित थे। इन राजनीतिक घटनाओं का जिक्र किया…
2016 की घटना का जिक्र किया
त्यागपत्र में संपत सिंह ने 2016 की राज्यसभा की घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि सोनिया गांधी ने आरके आनंद के नाम को स्वीकृति दी थी, जिन्हें कांग्रेस और इनेलो के 37 विधायकों का समर्थन था। फिर भी एक राज्य नेता को “वोट न देने” की अनुमति कैसे दी गई? यहां तक कि एक निर्दलीय विधायक (जो अब कांग्रेस सांसद हैं) को जानबूझकर अलग पेन से वोट डालने को कहा गया, जिससे सभी वोट निरस्त हो गए। 2019-2024 के दौरान की घटना का जिक्र किया
कुमारी सैलजा कांग्रेस महासचिव और देश की सबसे वरिष्ठ दलित महिला नेता, को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया, पर 2022 में राज्य नेतृत्व के दबाव में उन्हें हटा दिया गया। श्रुति चौधरी, दो बार सांसद, को भिवानी से टिकट नहीं दिया गया। आज वे भाजपा सरकार में मंत्री हैं।
किरण चौधरी, 5 बार विधायक, दो बार मंत्री, और भूतपूर्व उपसभापति (दिल्ली), को लगातार अपमानित किया गया। जब वे कांग्रेस विधायक दल की नेता थीं, तब कुछ विधायकों को उनके बैठकों का बहिष्कार करने को कहा गया। सावित्री जिंदल, तीन बार विधायक, दो बार मंत्री – कांग्रेस छोड़कर आज निर्दलीय विधायक हैं। नवीन जिंदल, तीन बार सांसद – अब भाजपा सांसद हैं। राज्य नेतृत्व पर सवाल उठाए
संपत सिंह ने लिखा कि राज्य नेतृत्व ने अपनी व्यक्तिगत शक्ति को मजबूत किया। 2020 में राज्यसभा की रिक्त सीट पर अनुसूचित जाति या पिछड़ा वर्ग के योग्य सदस्य को आगे बढ़ाने के बजाय, नेता के पुत्र को नामित किया गया। जिससे राष्ट्रीय पार्टी एक पारिवारिक उपक्रम बन गई।
यहां तक कि रणदीप सिंह सुरजेवाला, चार बार विधायक और एआईसीसी महासचिव, को भी हरियाणा में गुटबाजी के कारण राजस्थान से राज्यसभा भेजा गया। अजय माकन, कोषाध्यक्ष, हरियाणा से राज्यसभा चुनाव हार गए – यह नेतृत्व संकट का ही परिणाम था। संपत सिंह के त्यागपत्र की कॉपी…