हिमाचल हाईकोर्ट ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के एक कांस्टेबल महेंद्र सिंह की डिसमिसल (बर्खास्तगी) को मनमाना और अनुचित बताया। खासकर तब जब ITBP जवान मेडिकल कारणों से गैर हाजिर था। जस्टिस संदीप शर्मा ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने 18 वर्षों से अधिक समय तक बेदाग सेवा की थी। इसके बाद अपनी बीमारी के बारे में अधिकारियों को बार-बार सूचित किया। फिर भी उसे छुट्टी नहीं दी गई। लुधियाना ड्यूटी जाते हुए एक्सिडेंट दरअसल, याचिकाकर्ता महेंद्र सिंह 1988 में ITBP में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुए। 13 दिसंबर 2005 में जब याचिकाकर्ता बड़सर से हेड ऑफिस लुधियाना के लिए ड्यूटी पर जा रहे थे, तो उनका एक्सीडेंट हो गया। उन्हें न्यूरोलॉजिकल समस्या के इलाज के लिए लुधियाना अस्पताल में भर्ती कराया गया। छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध नहीं माना गया: कोर्ट इस दौरान याचिकाकर्ता को ट्यूबरक्लोसिस का भी पता चला और उन्हें इलाज के लिए देहरादून के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया। शुरुआत में उन्हें इलाज के लिए 30 दिनों की छुट्टी दी गई और जब उन्होंने इलाज के लिए छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध किया, तो उन्हें मना कर दिया गया। इससे हमीरपुर के बड़सर निवासी महेंद्र सिंह ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पाए। भगोड़ा घोषित कर डिसमिस किया इसके बाद, एक ऑफिस ऑर्डर के माध्यम से उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को ड्यूटी पर लौटने के निर्देश देने के लिए बार-बार ज्ञापन भेजे गए, लेकिन उसने इसका पालन नहीं किया। इसलिए, उन्हें डिसमिस करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा। जवान के दावे की ITBP ने सच्चाई नहीं जांची: कोर्ट कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने डिसमिस करने से पहले छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध किया था। आईटीबीपी ने न तो छुट्टी बढ़ाई और न ही याचिकाकर्ता द्वारा उसकी बीमारी के संबंध में किए गए दावे की सत्यता की पुष्टि के लिए कोई जांच बिठाई। कोर्ट ने ITBP के आचरण में प्रक्रियागत असंगति का भी उल्लेख किया, जिसमें पहले उसे भगोड़ा घोषित किया गया। फिर उसे ड्यूटी पर वापस आने के लिए कहा गया। इस तरह कोर्ट ने महेंद्र सिंह बनाम भारत सरकार एवं अन्य केस में कहा कि ITBP की कार्रवाई कठोर और पूरी तरह से अनुचित थी, क्योंकि याचिकाकर्ता की लंबी सेवा और चिकित्सा स्थिति को नजरअंदाज किया गया।
हिमाचल हाईकोर्ट ने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के एक कांस्टेबल महेंद्र सिंह की डिसमिसल (बर्खास्तगी) को मनमाना और अनुचित बताया। खासकर तब जब ITBP जवान मेडिकल कारणों से गैर हाजिर था। जस्टिस संदीप शर्मा ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने 18 वर्षों से अधिक समय तक बेदाग सेवा की थी। इसके बाद अपनी बीमारी के बारे में अधिकारियों को बार-बार सूचित किया। फिर भी उसे छुट्टी नहीं दी गई। लुधियाना ड्यूटी जाते हुए एक्सिडेंट दरअसल, याचिकाकर्ता महेंद्र सिंह 1988 में ITBP में कांस्टेबल के पद पर भर्ती हुए। 13 दिसंबर 2005 में जब याचिकाकर्ता बड़सर से हेड ऑफिस लुधियाना के लिए ड्यूटी पर जा रहे थे, तो उनका एक्सीडेंट हो गया। उन्हें न्यूरोलॉजिकल समस्या के इलाज के लिए लुधियाना अस्पताल में भर्ती कराया गया। छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध नहीं माना गया: कोर्ट इस दौरान याचिकाकर्ता को ट्यूबरक्लोसिस का भी पता चला और उन्हें इलाज के लिए देहरादून के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया। शुरुआत में उन्हें इलाज के लिए 30 दिनों की छुट्टी दी गई और जब उन्होंने इलाज के लिए छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध किया, तो उन्हें मना कर दिया गया। इससे हमीरपुर के बड़सर निवासी महेंद्र सिंह ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर पाए। भगोड़ा घोषित कर डिसमिस किया इसके बाद, एक ऑफिस ऑर्डर के माध्यम से उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता को ड्यूटी पर लौटने के निर्देश देने के लिए बार-बार ज्ञापन भेजे गए, लेकिन उसने इसका पालन नहीं किया। इसलिए, उन्हें डिसमिस करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा। जवान के दावे की ITBP ने सच्चाई नहीं जांची: कोर्ट कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने डिसमिस करने से पहले छुट्टी बढ़ाने का अनुरोध किया था। आईटीबीपी ने न तो छुट्टी बढ़ाई और न ही याचिकाकर्ता द्वारा उसकी बीमारी के संबंध में किए गए दावे की सत्यता की पुष्टि के लिए कोई जांच बिठाई। कोर्ट ने ITBP के आचरण में प्रक्रियागत असंगति का भी उल्लेख किया, जिसमें पहले उसे भगोड़ा घोषित किया गया। फिर उसे ड्यूटी पर वापस आने के लिए कहा गया। इस तरह कोर्ट ने महेंद्र सिंह बनाम भारत सरकार एवं अन्य केस में कहा कि ITBP की कार्रवाई कठोर और पूरी तरह से अनुचित थी, क्योंकि याचिकाकर्ता की लंबी सेवा और चिकित्सा स्थिति को नजरअंदाज किया गया।