हर साल की तरह एक बार फिर उत्तराखंड की एकमात्र रामसर साइट ‘आसन वेटलैंड’ में विदेशी पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है। यमुना और आसन नदियों के संगम पर स्थित आसन वेटलैंड फिर से प्रवासी पक्षियों के स्वागत के लिए तैयार है। आलम ये है कि अक्टूबर माह के अंतिम हफ्ते तक तकरीबन 1800-2000 विदेशी पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। उम्मीद है कि दिसंबर के अंत तक यह संख्या 5000 से ज्यादा हो जाएगी। चकराता वन प्रभाग ने पहले से ही झाड़ियों की कटाई-छंटाई और बर्ड वॉच टावर की साफ-सफाई करवा दी थी। इसके अलावा, मड टापू (कीचड़ द्वीप) को ठीक किया गया ताकि विदेशी पक्षियों को अनुकूल माहौल मिले और पक्षी प्रेमियों को बेहतर अनुभव हो। अक्टूबर से अप्रैल के पहले हफ्ते तक यहां कई अंतरंगी विदेशी पक्षी देखने को मिलेंगे। हर साल होता है रंगीन मेहमानों का आगमन देहरादून के विकासनगर स्थित इस वेटलैंड हर साल अक्टूबर के मध्य में प्रवासी पक्षी यहां पहुंचते हैं। मध्य एशिया, साइबेरिया, कजाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन, उज्बेकिस्तान, मंगोलिया, रूस जैसे देशों से आने वाले पक्षी यहां सर्दियों के दौरान समय बिताते हैं और गर्मी के आने के साथ ही अपने देश लौट जाते हैं। इन छह महीनों तक यह पूरा इलाका रंग-बिरंगे पंखों और मधुर कलरव से सराबोर रहता है। पक्षी विशेषज्ञ और आसन रेंज के वन दरोगा प्रदीप सक्सेना बताते हैं कि यहां सबसे पहले रुडी शेल्डक (सुर्खाब) दिखाई देते हैं। सोने जैसे चमकते पंखों वाले ये पक्षी पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों को खूब आकर्षित करते हैं। अक्टूबर में ही लगभग 1800-2000 प्रवासी पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। दिसंबर के आते-आते यहां 5 हजार से ज्यादा पक्षी दिखाई देते हैं। प्रशासन ने पहले ही कर ली थी तैयारी वन विभाग ने आसन वेटलैंड में विदेशी पक्षियों के स्वागत की तैयारी पहले ही पूरी कर ली है। इस दौरान झील में उगी झाड़ियां हटाई गईं और पुराने मड टापू ठीक किए गए, ताकि आने वाले महीनों में पक्षियों और उन्हें देखने वालों को किसी तरह की असुविधा न हो। गौरतलब है कि इन रंग-बिरंगे पक्षियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में देशभर से बर्ड वॉचर्स यहां पहुंचते हैं। कौन-कौन से आते हैं मेहमान? आसन वेटलैंड में हर साल बड़ी संख्या में विदेशी और देसी परिंदों का आना होता है। इनमें ग्रेवूली नेक्ड, पेंटेड स्टार्क, रूडी शेल्डक, रेड कैप्टन आइबिस, पलाश फिश ईगल, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब, ग्रे लेग गूज, यूरेशियन विजन, मल्लार्ड, कामन पोचार्ड, टफ्ड डक, पर्पल स्वैम्प हेन, कॉमन मूरहेन, कामन कूट, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, ब्लैक हेडेड गल, लिटिल इग्रेट, ग्रे हेरोन, किंगफिशर सहित कई प्रजातियां शामिल हैं। पलाश फिश ईगल के आने का इंतजार सबसे खास है पलाश फिश ईगल, जो पिछले 60 सालों से हर सर्दी में यहां घोंसला बनाता आ रहा है। जिसका लोगों को बेसब्री से इंतजार है। आमतौर पर यह पक्षी ऊंचे सेमल के पेड़ पर अपना आशियाना बनाता है और इंसानी दखल से दूरी बनाए रखना पसंद करता है। इसकी मछली पकड़ने की अनोखी कला पक्षी प्रेमियों को रोमांचित कर देती है। सफेद सिर और पूंछ पर पट्टी की वजह से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। फिलहाल पक्षी प्रेमियों को इसके लिए इंतजार करना होगा। उत्तराखंड की एकमात्र रामसर साइट 444.40 हेक्टेयर में फैला आसन वेटलैंड 2005 में कंजर्वेशन रिजर्व के रूप में स्थापित हुआ था। यहां पर्यटकों के लिए ईको हट्स भी मौजूद हैं। सालभर पानी से भरी यह झील खूबसूरत वनस्पतियों और पक्षियों के चलते मन मोह लेता है। यही कारण है कि 21 जुलाई 2020 को इसे रामसर कन्वेंशन साइट का दर्जा दिया गया। यह भारत का 38वां और उत्तराखंड का पहला रामसर स्थल है। हर साल पक्षियों की गिनती आसन वेटलैंड में आने वाले पक्षियों की गिनती भी की जाती है। आंकड़े बताते हैं कि यहां हर साल परिंदों की तादाद में उतार-चढ़ाव रहता है। बावजूद इसके विदेशी पक्षियों को यह जगह बेहद पसंद हैं. • 2022: 49 प्रजातियां, 5,680 परिंदे • 2023: 42 प्रजातियां, 4,642 परिंदे • 2024: 141 प्रजातियां, 5,230 परिंदे • 2025: 171 प्रजातियां, 5,225 परिंदे क्या होती है रामसर साइट? रामसर साइट किसी भी ऐसी आर्द्र भूमि (Wetland) को कहा जाता है जिसे ‘रामसर कन्वेंशन’ के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि घोषित किया गया हो। रामसर कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य आर्द्र भूमियों का संरक्षण और उनके संसाधनों का विवेकपूर्ण, सतत इस्तेमाल सुनिश्चित करना है। रामसर कन्वेंशन की स्थापना 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में हुई थी, इसलिए इसका नाम ‘रामसर’ पड़ा। गढ़वाल मंडल विकास निगम के अनुसार, हर साल विदेशी परिंदों के आने से वेटलैंड की प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहां की आय भी बढ़ी है। पक्षियों का दीदार करने के लिए न केवल देश के कोने-कोने से, बल्कि विदेशों से भी पर्यटक पहुंचते हैं।
हर साल की तरह एक बार फिर उत्तराखंड की एकमात्र रामसर साइट ‘आसन वेटलैंड’ में विदेशी पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है। यमुना और आसन नदियों के संगम पर स्थित आसन वेटलैंड फिर से प्रवासी पक्षियों के स्वागत के लिए तैयार है। आलम ये है कि अक्टूबर माह के अंतिम हफ्ते तक तकरीबन 1800-2000 विदेशी पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। उम्मीद है कि दिसंबर के अंत तक यह संख्या 5000 से ज्यादा हो जाएगी। चकराता वन प्रभाग ने पहले से ही झाड़ियों की कटाई-छंटाई और बर्ड वॉच टावर की साफ-सफाई करवा दी थी। इसके अलावा, मड टापू (कीचड़ द्वीप) को ठीक किया गया ताकि विदेशी पक्षियों को अनुकूल माहौल मिले और पक्षी प्रेमियों को बेहतर अनुभव हो। अक्टूबर से अप्रैल के पहले हफ्ते तक यहां कई अंतरंगी विदेशी पक्षी देखने को मिलेंगे। हर साल होता है रंगीन मेहमानों का आगमन देहरादून के विकासनगर स्थित इस वेटलैंड हर साल अक्टूबर के मध्य में प्रवासी पक्षी यहां पहुंचते हैं। मध्य एशिया, साइबेरिया, कजाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन, उज्बेकिस्तान, मंगोलिया, रूस जैसे देशों से आने वाले पक्षी यहां सर्दियों के दौरान समय बिताते हैं और गर्मी के आने के साथ ही अपने देश लौट जाते हैं। इन छह महीनों तक यह पूरा इलाका रंग-बिरंगे पंखों और मधुर कलरव से सराबोर रहता है। पक्षी विशेषज्ञ और आसन रेंज के वन दरोगा प्रदीप सक्सेना बताते हैं कि यहां सबसे पहले रुडी शेल्डक (सुर्खाब) दिखाई देते हैं। सोने जैसे चमकते पंखों वाले ये पक्षी पर्यटकों और पक्षी प्रेमियों को खूब आकर्षित करते हैं। अक्टूबर में ही लगभग 1800-2000 प्रवासी पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। दिसंबर के आते-आते यहां 5 हजार से ज्यादा पक्षी दिखाई देते हैं। प्रशासन ने पहले ही कर ली थी तैयारी वन विभाग ने आसन वेटलैंड में विदेशी पक्षियों के स्वागत की तैयारी पहले ही पूरी कर ली है। इस दौरान झील में उगी झाड़ियां हटाई गईं और पुराने मड टापू ठीक किए गए, ताकि आने वाले महीनों में पक्षियों और उन्हें देखने वालों को किसी तरह की असुविधा न हो। गौरतलब है कि इन रंग-बिरंगे पक्षियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में देशभर से बर्ड वॉचर्स यहां पहुंचते हैं। कौन-कौन से आते हैं मेहमान? आसन वेटलैंड में हर साल बड़ी संख्या में विदेशी और देसी परिंदों का आना होता है। इनमें ग्रेवूली नेक्ड, पेंटेड स्टार्क, रूडी शेल्डक, रेड कैप्टन आइबिस, पलाश फिश ईगल, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब, ग्रे लेग गूज, यूरेशियन विजन, मल्लार्ड, कामन पोचार्ड, टफ्ड डक, पर्पल स्वैम्प हेन, कॉमन मूरहेन, कामन कूट, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, ब्लैक हेडेड गल, लिटिल इग्रेट, ग्रे हेरोन, किंगफिशर सहित कई प्रजातियां शामिल हैं। पलाश फिश ईगल के आने का इंतजार सबसे खास है पलाश फिश ईगल, जो पिछले 60 सालों से हर सर्दी में यहां घोंसला बनाता आ रहा है। जिसका लोगों को बेसब्री से इंतजार है। आमतौर पर यह पक्षी ऊंचे सेमल के पेड़ पर अपना आशियाना बनाता है और इंसानी दखल से दूरी बनाए रखना पसंद करता है। इसकी मछली पकड़ने की अनोखी कला पक्षी प्रेमियों को रोमांचित कर देती है। सफेद सिर और पूंछ पर पट्टी की वजह से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। फिलहाल पक्षी प्रेमियों को इसके लिए इंतजार करना होगा। उत्तराखंड की एकमात्र रामसर साइट 444.40 हेक्टेयर में फैला आसन वेटलैंड 2005 में कंजर्वेशन रिजर्व के रूप में स्थापित हुआ था। यहां पर्यटकों के लिए ईको हट्स भी मौजूद हैं। सालभर पानी से भरी यह झील खूबसूरत वनस्पतियों और पक्षियों के चलते मन मोह लेता है। यही कारण है कि 21 जुलाई 2020 को इसे रामसर कन्वेंशन साइट का दर्जा दिया गया। यह भारत का 38वां और उत्तराखंड का पहला रामसर स्थल है। हर साल पक्षियों की गिनती आसन वेटलैंड में आने वाले पक्षियों की गिनती भी की जाती है। आंकड़े बताते हैं कि यहां हर साल परिंदों की तादाद में उतार-चढ़ाव रहता है। बावजूद इसके विदेशी पक्षियों को यह जगह बेहद पसंद हैं. • 2022: 49 प्रजातियां, 5,680 परिंदे • 2023: 42 प्रजातियां, 4,642 परिंदे • 2024: 141 प्रजातियां, 5,230 परिंदे • 2025: 171 प्रजातियां, 5,225 परिंदे क्या होती है रामसर साइट? रामसर साइट किसी भी ऐसी आर्द्र भूमि (Wetland) को कहा जाता है जिसे ‘रामसर कन्वेंशन’ के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्र भूमि घोषित किया गया हो। रामसर कन्वेंशन एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य आर्द्र भूमियों का संरक्षण और उनके संसाधनों का विवेकपूर्ण, सतत इस्तेमाल सुनिश्चित करना है। रामसर कन्वेंशन की स्थापना 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में हुई थी, इसलिए इसका नाम ‘रामसर’ पड़ा। गढ़वाल मंडल विकास निगम के अनुसार, हर साल विदेशी परिंदों के आने से वेटलैंड की प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ यहां की आय भी बढ़ी है। पक्षियों का दीदार करने के लिए न केवल देश के कोने-कोने से, बल्कि विदेशों से भी पर्यटक पहुंचते हैं।