इलॉन मस्क की कंपनी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर गहरी चिंता जताई है। एक पोस्ट में X ने लिखा है कि इस आदेश के बाद पुलिस अधिकारियों को सीक्रेट ऑनलाइन पोर्टल सहयोग के जरिए मनमाने ढंग से कंटेंट हटाने के निर्देश जारी करने का अधिकार मिल गया है। कंपनी ने कहा कि इस नई व्यवस्था का कानून में कोई आधार नहीं है। न ही आईटी एक्ट की धारा 69A के मुताबिक है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ है और भारतीयों की अभिव्यक्ति की आजादी जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। मस्क की कंपनी ने साफ किया है कि वह कर्नाटक हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ अपील करेगी और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ेगी। 24 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने X की केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी। साथ ही कहा था कि विदेशी कंपनियां अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का दावा नहीं कर सकतीं। X ने मार्च 2025 में भारत सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार के अफसर X पर कंटेंट ब्लॉक कर रहे हैं, जो IT एक्ट की धारा 79(3)(B) का गलत इस्तेमाल है। पोस्ट में X की दलीलें… कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था- देश में काम करना है तो कानून मानने होंगे सुनवाई के दौरान जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा था- X कॉर्प देश में फेसलेस होने के नाते, एक मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है। वह अनुच्छेद 19 के तहत देश के किसी भी कानून को चुनौती नहीं दे सकता है। इसकी मौजूदगी वहां नहीं है। यह सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता। अगर यह देश में काम करना चाहता है, तो इसे कानूनों का पालन करना होगा, इतनी सी बात है। कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म देश के कानूनों से छूट नहीं ले सकता। भारतीय बाजारों को खेल के मैदान की तरह नहीं देखा जा सकता। जानिए क्या है सहयोग पोर्टल सहयोग पोर्टल-X विवाद से जुड़ी टाइमलाइन —————— ये खबर भी पढ़ें… कर्नाटक हाईकोर्ट ने X से कहा-अमेरिकी कानून यहां लागू नहीं:अभिव्यक्ति की आजादी की भी सीमा कर्नाटक हाईकोर्ट ने इलॉन मस्क की कंपनी X की केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है, खासकर उन मामलों में जो महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े हैं। उन्होंने कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) नागरिकों का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ सीमाएं भी लागू होती हैं। अमेरिका के कानूनों और फैसलों को भारत के संविधान पर सीधे लागू नहीं किया जा सकता। पढ़ें पूरी खबर…
इलॉन मस्क की कंपनी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर गहरी चिंता जताई है। एक पोस्ट में X ने लिखा है कि इस आदेश के बाद पुलिस अधिकारियों को सीक्रेट ऑनलाइन पोर्टल सहयोग के जरिए मनमाने ढंग से कंटेंट हटाने के निर्देश जारी करने का अधिकार मिल गया है। कंपनी ने कहा कि इस नई व्यवस्था का कानून में कोई आधार नहीं है। न ही आईटी एक्ट की धारा 69A के मुताबिक है। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ है और भारतीयों की अभिव्यक्ति की आजादी जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। मस्क की कंपनी ने साफ किया है कि वह कर्नाटक हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ अपील करेगी और अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ेगी। 24 सितंबर को कर्नाटक हाईकोर्ट ने X की केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी। साथ ही कहा था कि विदेशी कंपनियां अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का दावा नहीं कर सकतीं। X ने मार्च 2025 में भारत सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। जिसमें कहा गया था कि भारत सरकार के अफसर X पर कंटेंट ब्लॉक कर रहे हैं, जो IT एक्ट की धारा 79(3)(B) का गलत इस्तेमाल है। पोस्ट में X की दलीलें… कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था- देश में काम करना है तो कानून मानने होंगे सुनवाई के दौरान जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा था- X कॉर्प देश में फेसलेस होने के नाते, एक मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है। वह अनुच्छेद 19 के तहत देश के किसी भी कानून को चुनौती नहीं दे सकता है। इसकी मौजूदगी वहां नहीं है। यह सोशल मीडिया को नियंत्रित करने वाले कानूनों को चुनौती नहीं दे सकता। अगर यह देश में काम करना चाहता है, तो इसे कानूनों का पालन करना होगा, इतनी सी बात है। कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म देश के कानूनों से छूट नहीं ले सकता। भारतीय बाजारों को खेल के मैदान की तरह नहीं देखा जा सकता। जानिए क्या है सहयोग पोर्टल सहयोग पोर्टल-X विवाद से जुड़ी टाइमलाइन —————— ये खबर भी पढ़ें… कर्नाटक हाईकोर्ट ने X से कहा-अमेरिकी कानून यहां लागू नहीं:अभिव्यक्ति की आजादी की भी सीमा कर्नाटक हाईकोर्ट ने इलॉन मस्क की कंपनी X की केंद्र सरकार के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया कंटेंट को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है, खासकर उन मामलों में जो महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े हैं। उन्होंने कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) नागरिकों का अधिकार है, लेकिन इस पर कुछ सीमाएं भी लागू होती हैं। अमेरिका के कानूनों और फैसलों को भारत के संविधान पर सीधे लागू नहीं किया जा सकता। पढ़ें पूरी खबर…