पंजाब सरकार ने अपनी लैंड पूलिंग पॉलिसी को तीन महीने बाद ही वापस ले लिया है। पॉलिसी की नोटिफिकेशन लागू होने के बाद किसान सरकार के खिलाफ उतर आए थे। विरोधी पार्टियों को मुद्दा मिल गया था, जबकि पार्टी के अंदर भी नेता इस मामले को लेकर एकमत नहीं थे। ऐसे में 2027 के विधानसभा चुनाव की राह खतरे में पड़ती दिख रही थी। इस खतरे को देखते हुए सरकार ने बैकफुट लेना बेहतर समझा। हालांकि, पॉलिसी वापस लेने के बाद राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने अपनी पहली स्टेटमेंट में कहा कि सरकार ने किसानों के लिए लैंड पूलिंग पॉलिसी बनाई थी, लेकिन वह किसानों को पसंद नहीं आई, इसलिए इसे वापस लेन रहे हैं। पॉलिसी वापस लिए जाने के बाद फतेहगढ़ साहिब से AAP विधायक लखबीर सिंह राय ने लड्डू बांटें। पॉलिसी लाने से लेकर वापस लेने तक की जानकारी 4 प्वाइंटों में- 1. पॉलिसी को लेकर किसानों ने सीधा विरोध
पंजाब सरकार ने जैसे ही लैंड पूलिंग पॉलिसी लागू की तो इसके बाद से पूरे पंजाब में पॉलिसी का विरोध शुरू हो गया। जहां पंजाब सरकार खुद को राज्य की सबसे बड़ी किसान हितैषी बता रही थी, वहीं गांवों में विधायकों और आम आदमी पार्टी (आप) कार्यकर्ताओं का विरोध होने लगा। गांवों में पोस्टर लग गए थे कि AAP नेता गांवों में प्रवेश न करें। किसानों के मन में एक बात साफ हो गई थी कि सरकार हमारे खेतों को छीनने वाली है। मामला जमीन से जुड़ा होने के चलते सरकार के खिलाफ विरोध बढ़ता ही जा रहा था, जिसके बाद चंडीगढ़ में 18 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में आम आदमी पार्टी के नेता नहीं पहुंचे। इसके बाद किसानों और सरकार के बीच खाई बढ़ती ही चली गई। किसानों को साफ हो गया है कि अब सरकार पीछे हटने वाली नहीं है। ऐसे में उन्होंने आंदोलन की कॉल दी। पहले ट्रैक्टर मार्च निकाला गया। जबकि 24 अगस्त को बड़ा प्रोग्राम रखा गया था। 2. विरोधियों के हाथ लग गया बड़ा मुद्दा
पंजाब में कुल आबादी के 75 फीसदी लोग किसान हैं। जैसे ही लैंड पूलिंग पॉलिसी को लेकर विवाद शुरू हुआ । सभी राजनीतिक पार्टियों को एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। सभी इस मामले को लेकर किसानों के साथ एकजुट हो गए। कांग्रेस ने पूरे पंजाब में रैलियां की। शिरोमणि अकाली दल ने पूरे पंजाब में पहले रैलियां की और एक सितंबर से मोहाली में पक्का मोर्चा लगाने का फैसला लिया। इसी तरह भाजपा ने जिलों में प्रदर्शन किए। जबकि 17 अगस्त से जमीन बचाओ किसान बचाओ यात्रा निकालने का फैसला लिया था। सरकार नहीं चाहती थी कि इस मुद्दे काे अपने विरोधियों को घेरने दें। क्योंकि साढ़े तीन साल में यह पहला मौका था, जब सरकार के खिलाफ सीधे विरोध में उतरे थे। 3. पार्टी के अंदर हुई बगावत
किसान और राजनीतिक पार्टियों के विरोध में बाद आम आदमी पार्टी के अंदर भी पॉलिसी के विरोध में सुर उठने लगे। हालांकि लीडरशिप ने चंडीगढ़ में किसानों से फीडबैक लिया। इसके बाद सीएम खुद कई जिलों में गए। यहां कई जगह पर कुछ नेताओं ने पार्टी से त्यागपत्र दिए। इसी बीच श्री आनंदपुर साहिब के सांसद मालविंदर सिंह कंग ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्ट डालकर लिखा कि सरकार को लैंड पूलिंग के मुद्दे पर किसानों से बातचीत करनी चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने यह पोस्ट हटा ली। लेकिन इससे साफ संकेत था कि अंदर भी स्वर उठ रहे हैं। इसके बाद जुलाई महीने में पॉलिसी में कुछ संशोधन किए। लेकिन इससे भी किसान खुश नहीं थे। पार्टी के प्रधान पंजाब प्रधान अमन अरोड़ा का तीन दिन पहले घेराव हुआ था तो उन्होंने कहा था कि वह किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं। 4. हाईकोर्ट भी पॉलिसी को लेकर सख्त
इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा गया। जैसे ही 6 अगस्त को मामले की सुनवाई हुई, तो सरकारी वकीलों ने किसानों के जवाब दाखिल करने के लिए एक दिन का समय मांगा। हाईकोर्ट ने उस दौरान एक दिन के लिए पॉलिसी पर स्टे लगाया। जबकि जब 7 अगस्त को सुनवाई हुई, तो सरकारी वकील कोई मजबूत तर्क नहीं रख पाए। कोर्ट सरकार के तर्कों से सहमत नहीं थी। 7 अगस्त को हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को लैंड पूलिंग पॉलिसी पर फटकार लगाई थी। अदालत का सवाल था कि यदि 65 हजार एकड़ जमीन इस पॉलिसी के तहत ली जाती है, तो वहां उगने वाले अनाज का क्या होगा और खेत मजदूरों का भविष्य कैसे सुरक्षित रहेगा। हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि सरकार या तो यह पॉलिसी वापस ले, वरना कोर्ट इसे रद्द कर देगी। सरकारी वकीलों ने कहा था कि वे सरकार से चर्चा कर उचित जवाब देंगे। कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया था। हालांकि बाद में सरकार को लगा कि पॉलिसी हाईकोर्ट में न टिक पाए, तो ज्यादा विवाद हो जाएगा। ऐसे में पॉलिसी को वापस लेना ही उचित समझा गया।
पंजाब सरकार ने अपनी लैंड पूलिंग पॉलिसी को तीन महीने बाद ही वापस ले लिया है। पॉलिसी की नोटिफिकेशन लागू होने के बाद किसान सरकार के खिलाफ उतर आए थे। विरोधी पार्टियों को मुद्दा मिल गया था, जबकि पार्टी के अंदर भी नेता इस मामले को लेकर एकमत नहीं थे। ऐसे में 2027 के विधानसभा चुनाव की राह खतरे में पड़ती दिख रही थी। इस खतरे को देखते हुए सरकार ने बैकफुट लेना बेहतर समझा। हालांकि, पॉलिसी वापस लेने के बाद राज्य के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने अपनी पहली स्टेटमेंट में कहा कि सरकार ने किसानों के लिए लैंड पूलिंग पॉलिसी बनाई थी, लेकिन वह किसानों को पसंद नहीं आई, इसलिए इसे वापस लेन रहे हैं। पॉलिसी वापस लिए जाने के बाद फतेहगढ़ साहिब से AAP विधायक लखबीर सिंह राय ने लड्डू बांटें। पॉलिसी लाने से लेकर वापस लेने तक की जानकारी 4 प्वाइंटों में- 1. पॉलिसी को लेकर किसानों ने सीधा विरोध
पंजाब सरकार ने जैसे ही लैंड पूलिंग पॉलिसी लागू की तो इसके बाद से पूरे पंजाब में पॉलिसी का विरोध शुरू हो गया। जहां पंजाब सरकार खुद को राज्य की सबसे बड़ी किसान हितैषी बता रही थी, वहीं गांवों में विधायकों और आम आदमी पार्टी (आप) कार्यकर्ताओं का विरोध होने लगा। गांवों में पोस्टर लग गए थे कि AAP नेता गांवों में प्रवेश न करें। किसानों के मन में एक बात साफ हो गई थी कि सरकार हमारे खेतों को छीनने वाली है। मामला जमीन से जुड़ा होने के चलते सरकार के खिलाफ विरोध बढ़ता ही जा रहा था, जिसके बाद चंडीगढ़ में 18 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई। इस मीटिंग में आम आदमी पार्टी के नेता नहीं पहुंचे। इसके बाद किसानों और सरकार के बीच खाई बढ़ती ही चली गई। किसानों को साफ हो गया है कि अब सरकार पीछे हटने वाली नहीं है। ऐसे में उन्होंने आंदोलन की कॉल दी। पहले ट्रैक्टर मार्च निकाला गया। जबकि 24 अगस्त को बड़ा प्रोग्राम रखा गया था। 2. विरोधियों के हाथ लग गया बड़ा मुद्दा
पंजाब में कुल आबादी के 75 फीसदी लोग किसान हैं। जैसे ही लैंड पूलिंग पॉलिसी को लेकर विवाद शुरू हुआ । सभी राजनीतिक पार्टियों को एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया। सभी इस मामले को लेकर किसानों के साथ एकजुट हो गए। कांग्रेस ने पूरे पंजाब में रैलियां की। शिरोमणि अकाली दल ने पूरे पंजाब में पहले रैलियां की और एक सितंबर से मोहाली में पक्का मोर्चा लगाने का फैसला लिया। इसी तरह भाजपा ने जिलों में प्रदर्शन किए। जबकि 17 अगस्त से जमीन बचाओ किसान बचाओ यात्रा निकालने का फैसला लिया था। सरकार नहीं चाहती थी कि इस मुद्दे काे अपने विरोधियों को घेरने दें। क्योंकि साढ़े तीन साल में यह पहला मौका था, जब सरकार के खिलाफ सीधे विरोध में उतरे थे। 3. पार्टी के अंदर हुई बगावत
किसान और राजनीतिक पार्टियों के विरोध में बाद आम आदमी पार्टी के अंदर भी पॉलिसी के विरोध में सुर उठने लगे। हालांकि लीडरशिप ने चंडीगढ़ में किसानों से फीडबैक लिया। इसके बाद सीएम खुद कई जिलों में गए। यहां कई जगह पर कुछ नेताओं ने पार्टी से त्यागपत्र दिए। इसी बीच श्री आनंदपुर साहिब के सांसद मालविंदर सिंह कंग ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्ट डालकर लिखा कि सरकार को लैंड पूलिंग के मुद्दे पर किसानों से बातचीत करनी चाहिए। हालांकि बाद में उन्होंने यह पोस्ट हटा ली। लेकिन इससे साफ संकेत था कि अंदर भी स्वर उठ रहे हैं। इसके बाद जुलाई महीने में पॉलिसी में कुछ संशोधन किए। लेकिन इससे भी किसान खुश नहीं थे। पार्टी के प्रधान पंजाब प्रधान अमन अरोड़ा का तीन दिन पहले घेराव हुआ था तो उन्होंने कहा था कि वह किसानों से बातचीत के लिए तैयार हैं। 4. हाईकोर्ट भी पॉलिसी को लेकर सख्त
इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा गया। जैसे ही 6 अगस्त को मामले की सुनवाई हुई, तो सरकारी वकीलों ने किसानों के जवाब दाखिल करने के लिए एक दिन का समय मांगा। हाईकोर्ट ने उस दौरान एक दिन के लिए पॉलिसी पर स्टे लगाया। जबकि जब 7 अगस्त को सुनवाई हुई, तो सरकारी वकील कोई मजबूत तर्क नहीं रख पाए। कोर्ट सरकार के तर्कों से सहमत नहीं थी। 7 अगस्त को हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को लैंड पूलिंग पॉलिसी पर फटकार लगाई थी। अदालत का सवाल था कि यदि 65 हजार एकड़ जमीन इस पॉलिसी के तहत ली जाती है, तो वहां उगने वाले अनाज का क्या होगा और खेत मजदूरों का भविष्य कैसे सुरक्षित रहेगा। हाईकोर्ट ने साफ कहा था कि सरकार या तो यह पॉलिसी वापस ले, वरना कोर्ट इसे रद्द कर देगी। सरकारी वकीलों ने कहा था कि वे सरकार से चर्चा कर उचित जवाब देंगे। कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्तों का समय दिया था। हालांकि बाद में सरकार को लगा कि पॉलिसी हाईकोर्ट में न टिक पाए, तो ज्यादा विवाद हो जाएगा। ऐसे में पॉलिसी को वापस लेना ही उचित समझा गया।