
राजस्थान के पोकरण से आज ही के दिन 51 साल पहले भारत परमाणु संपन्न देश बना। 18 मई 1974 को ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ की सफलता ने भारत को दुनिया में छठा परमाणु ताकत वाला देश बना दिया था। यह राह आसान नहीं थी। मुंबई से पोकरण परमाणु बम का उपकरण थर्मस में ले जाया गया था। ‘ड्रैगन की पूंछ सहलाने’ जैसे कोड का उपयोग करते हुए भारत ने अमेरिका को भनक तक नहीं लगने दी थी। भारत के न्यूक्लियर पावर बनने की कहानी आप भी पढ़िए… सिलसिलेवार समझते हैं पूरा मामला तैयारी का कोई रिकॉर्ड नहीं, सब मौखिक आदेश
भारत ने 60 के दशक से ही परमाणु परीक्षण की तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन इसे आगे बढ़ाने में कई तरह की अड़चनें आईं। इंदिरा गांधी ने इसे आगे बढ़ाया। प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के समय से भारत का परमाणु कार्यक्रम चल रहा था, लेकिन उनकी प्लेन एक्सीडेंट में मृत्यु होने से कई प्लानिंग अधूरी रह गई थी। इसे बाद में आगे बढ़ाया गया। इंदिरा गांधी जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी, तब परमाणु परीक्षण करने का प्लान आगे बढ़ा। इंदिरा गांधी ने 7 सितंबर 1972 को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) का दौरा किया था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु विस्फोट के लिए तैयार डिजाइन का काम आगे बढ़ाने का मौखिक आदेश दिया था। परमाणु विस्फोट कार्यक्रम की हर प्लानिंग को गोपनीय रखना जरूरी था। इसलिए इसकी तैयारी से जुड़ी कोई बात फाइल पर या किसी दस्तावेज में नहीं रखी गई। सब कुछ मौखिक आदेश से चला। कागज पर प्लानिंग या तैयारी से जुड़ी कोई चीज लिखने से इसके लीक होने का खतरा था। गोपनीयता अंत तक बरकरार रखी गई। 7 साल तैयारी, अमेरिका को भनक नहीं लगी
पहले परमाणु विस्फोट कार्यक्रम की किसी को भनक तक नहीं लगी। अमेरिका तक को कुछ पता नहीं चला। साल 1967 से लेकर 1974 की अवधि में इसके काम में 75 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने अथक मेहनत की, लेकिन किसी को ऑन रिकॉर्ड काम पर नहीं रखा। इसमें हजारों लोगों ने अलग-अलग लेवल पर काम किया, लेकिन किसी का रिकॉर्ड नहीं था। सारे काम ऑफ दि रिकॉर्ड चल रहा था। परमाणु परीक्षण के लिए डिवाइस को भाभा परमाणु सेंटर (बार्क) मुंबई में ही तैयार किया गया था। इसके कई छोटे-बड़े उपकरण लगाए जाने थे। एक छोटे उपकरण को थर्मस में रखकर फ्लाइट से पहुंचाया गया था। परमाणु कार्यक्रम में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिक इसे अपने साथ लेकर गए थे। ड्रैगन की पूंछ को गुदगुदाने का प्रयोग
इक्विपमेंट 4 मई 1974 तक तैयार नहीं हुआ था। इसे समय पर पोकरण पहुंचाने के लिए अयंगर और मूर्ति इसे थर्मस में भरकर इंडियन एयरलाइंस की नियमित उड़ान में ले गए। परमाणु विस्फोट के उपकरण की डिजाइन पर लंबा काम चला था। इसे फाइनल होने में काफी वक्त लगा था। इसके कई तकनीकी पहलू थे। परीक्षण के उपकरण के डिजाइन को वेरिफाई करने का काम 19 फरवरी 1974 को हुआ। उस वक्त कोड के लिए ‘ड्रैगन की पूंछ को गुदगुदाने’ का प्रयोग किया गया। परमाणु परीक्षण के डिजाइन को टेस्ट करने के ट्रायल को यह नाम दिया गया था। जोधपुर में तैनात इंजीनियर रेजिमेंट ने खोदी थी परीक्षण की टनल
परमाणु विस्फोट के लिए पोकरण इलाके में स्पेशल टनल (शाफ्ट) खोदना था। परमाणु परीक्षण के चीफ वैज्ञानिक राज रमन्ना ने परीक्षण से साल भर पहले टनल खोदने के लिए सेना के रेजिडेंट कमांडर से संपर्क किया। महीने भर तक सेना ने सहयोग नहीं किया। बाद में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदेश दिया तब काम आगे बढ़ा। प्रधानमंत्री के आदेशों के बाद सेना एक्टिव हुई। जोधपुर में तैनात इंजीनियरिंग रेजिमेंट को टनल के काम में लगाया गया था। इंजीनियर्स और सैनिकों से कुआं खोदने की बात कही गई
सेना की यूनिट को परमाणु परीक्षण की शाफ्ट खोदने का कोई अनुभव नहीं था इसलिए दिक्कतें आईं। परमाणु परीक्षण जमीन से सैकड़ों मीटर अंदर करना था। अंदर कुआंनुमा शाफ्ट (टनल) की सही खुदाई जरूरी थी। इस काम का नाम ‘ऑपरेशन ड्राई एंटरप्राइज’ रखा था। इंजीनियरों और सैनिकों को बताया गया था कि वे पोकरण रेंज को सप्लाई करने के लिए एक कुआं खोद रहे हैं। परमाणु परीक्षण से पहले स्पेशल शाफ्ट खोदने का काम कई बार बाधित हुआ। एक बार पानी आ जाने से काम रुक गया। इसका डिजाइन बदल गया। इसके चलते कुआं बदलना पड़ा और दूसरी जगह टनल बनाने का काम करना पड़ा। पहले कई कुएं खोदे गए थे। शाफ्ट का काम फरवरी 1974 में शुरू हुआ और परीक्षण से कुछ दिन पहले ही पूरा हुआ था सलाहकार विरोध में थे, फिर भी इंदिरा गांधी ने काम आगे बढ़ाया
परमाणु परीक्षण की अगुवाई करने वाले वैज्ञानिक रजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा में इस परीक्षण की तैयारियों पर कई खुलासे किए हैं। रमन्ना की आत्मकथा के अनुसार, परमाणु परीक्षण के बारे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फैसला करने से पहले अपने कोर सलाहकारों के साथ कई बैठकें कीं। इन बैठकों में केवल रमन्ना और तीन कोर वैज्ञानिकों के अलावा इंदिरा गांधी के दो सलाहकार ही शामिल रहते थे। दोनों सलाहकार विरोध में थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण का फैसला कर लिया था और वैज्ञानिकों को काम आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया था। इंदिरा गांधी ने अपने फाइनल फैसले के बारे में रक्षा मंत्री तक को नहीं बताया था। उपकरण और प्लूटोनियम कोर को मुंबई से पोकरण पहुंचने में लगे थे तीन दिन
परमाणु परीक्षण के उपकरण को ट्राम्बे मुंबई से सेना के ट्रक में पोकरण पहुंचाया गया था। इसमें तीन दिन लगे थे। सेना के ट्रकों के काफिले के साथ इसे पोकरण लाया गया था। इस उपकरण को विशेष केस में पैक करके सावधानी से लाया गया था। किसी को कानों कान खबर नहीं थी कि ट्रकों के इस काफिले में एक ट्रक में कुछ ऐसा था, जिससे आने वाले दिनों में दुनिया में बवाल मचने वाला था। परमाणु विस्फोट वाले उपकरण का वजन 14 क्विंटल था
परमाणु परीक्षण में काम आने वाले उपकरण को पोकरण में परीक्षण साइट पर बहुत सावधानी से लाया गया था। उसे शाफ्ट से जोड़ा जाना था। परीक्षण से 5 दिन पहले इसे शाफ्ट से जोड़ने का काम कोर वैज्ञानिकों ने शुरू किया। इसे शाफ्ट से 40 मीटर दूर एक झोपड़ी में जोड़ा गया था। इस उपकरण का वजन 14 क्विंटल था। इसे रेल से शाफ्ट तक ले जाया गया था, बाद में रेत से ढका गया था। 15 मई की सुबह डिवाइस को शाफ्ट में उतारा गया, इसे एल-आकार के शाफ्ट के निचले हिस्से में एक साइड कैविटी में रखा गया था। शाफ्ट को रेत और सीमेंट से सील कर दिया गया। 8 बजे परीक्षण था, साइट पर एक इंजीनियर फंसा
8 मई को सुबह 8 बजे परीक्षण का समय तय हुआ था, लेकिन इसमें पांच मिनट की देरी हुई। परीक्षण से पहले हाई स्पीड कैमरों की जांच के लिए एक इंजीनियर परीक्षण साइट पर फंस गए थे। उनकी जीप स्टार्ट नहीं हुई। परीक्षण का समय हो रहा था, सबकी धड़कनें बढ़ गई थीं। इंजीनियर जीप छोड़कर वहां से निकले। बाद में दूसरी जीप से टो करके फंसी जीप को निकाला गया, लेकिन इस पूरी कवायद मेंं पांच मिनट की देरी हो गई। बटन दबाते ही विस्फोट और भारत ने रचा था इतिहास
पोकरण की परीक्षण साइट पर वैज्ञानिकों ने सुबह 8 बजकर पांच मिनट पर स्विच दबाया था। कुछ देर बाद ही धूल का गुबार उठा। कुछ समय में ही अमेरिका को इसके बारे में पता लग गया। इसके बाद तो दुनिया भर में यह खबर फैल गई। भारत परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का छठा देश बन गया था। इस परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में एक दशक से ज्यादा का वक्त लगा था। देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और राजनीति के बूते ही देश परमाणु परीक्षण करने में कामयाब रहा था। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में शामिल अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूके, चीन के पास तक ही परमाणु ताकत सीमित थी। इंदिरा ने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम बताया था
पोकरण (जैसलमेर) में जब भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के लिए किया गया परीक्षण बताया था। अमेरिका ने उस दौरान भारत पर कई प्रतिबंध लगाए थे। इस विस्फोट के 23 साल बाद भारतीय परमाणु कार्यक्रम के पूर्व निदेशक और पोकरण वन परीक्षण के प्रमुख वैज्ञानिक राज रमन्ना ने कहा था- पोकरण परीक्षण एक बम था। मैं अब आपको बता सकता हूं, विस्फोट तो विस्फोट है। बंदूक तो बंदूक है। चाहे आप किसी पर गोली चलाएं या जमीन पर चलाएं। मैं सिर्फ यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि पोकरण परीक्षण बिल्कुल शांतिपूर्ण नहीं था। अमेरिका ने भारत को आगे परमाणु परीक्षण नहीं करने पर राजी किया था
पोकरण में हुए पहले परमाणु परीक्षण से 12 किलोटन यील्ड का टारगेट था। वास्तव में रिजल्ट 8 किलोटन के आसपास था। सरकार ने उस वक्त रणनीति के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट करार देते हुए इसका मकसद खनन टेक्नोलॉजी के विस्तार, ऑयल फील्ड को चार्ज करने और एनर्जी जरूरतों को पूरा करने में लगाने की बात कही थी। अमेरिका ने उस वक्त भारत को आगे और परमाणु परीक्षण नहीं करने पर राजी कर लिया था। इसे लेकर लंबे समय तक विवाद चला था। सोर्स: इयर्स ऑफ पिल्ग्रिमेज एन ऑटोबायोग्राफी- राजा रमन्ना ————- राजस्थान के फौजी अफसर की यह खबर भी पढ़िए…
पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाले राजस्थान के फौजी अफसर:रोते थे पाक आर्मी के कई बड़े अधिकारी, बोलते थे- मुंह दिखाने लायक नहीं रहे भारत-पाकिस्तान तनाव और फिर सीजफायर के बाद फिर से पुराने युद्धों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पाकिस्तान सभी युद्ध बुरी तरह हारा। पढ़ें पूरी खबर…
राजस्थान के पोकरण से आज ही के दिन 51 साल पहले भारत परमाणु संपन्न देश बना। 18 मई 1974 को ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ की सफलता ने भारत को दुनिया में छठा परमाणु ताकत वाला देश बना दिया था। यह राह आसान नहीं थी। मुंबई से पोकरण परमाणु बम का उपकरण थर्मस में ले जाया गया था। ‘ड्रैगन की पूंछ सहलाने’ जैसे कोड का उपयोग करते हुए भारत ने अमेरिका को भनक तक नहीं लगने दी थी। भारत के न्यूक्लियर पावर बनने की कहानी आप भी पढ़िए… सिलसिलेवार समझते हैं पूरा मामला तैयारी का कोई रिकॉर्ड नहीं, सब मौखिक आदेश
भारत ने 60 के दशक से ही परमाणु परीक्षण की तैयारियां शुरू कर दी थीं, लेकिन इसे आगे बढ़ाने में कई तरह की अड़चनें आईं। इंदिरा गांधी ने इसे आगे बढ़ाया। प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के समय से भारत का परमाणु कार्यक्रम चल रहा था, लेकिन उनकी प्लेन एक्सीडेंट में मृत्यु होने से कई प्लानिंग अधूरी रह गई थी। इसे बाद में आगे बढ़ाया गया। इंदिरा गांधी जब पहली बार प्रधानमंत्री बनी, तब परमाणु परीक्षण करने का प्लान आगे बढ़ा। इंदिरा गांधी ने 7 सितंबर 1972 को भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) का दौरा किया था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु विस्फोट के लिए तैयार डिजाइन का काम आगे बढ़ाने का मौखिक आदेश दिया था। परमाणु विस्फोट कार्यक्रम की हर प्लानिंग को गोपनीय रखना जरूरी था। इसलिए इसकी तैयारी से जुड़ी कोई बात फाइल पर या किसी दस्तावेज में नहीं रखी गई। सब कुछ मौखिक आदेश से चला। कागज पर प्लानिंग या तैयारी से जुड़ी कोई चीज लिखने से इसके लीक होने का खतरा था। गोपनीयता अंत तक बरकरार रखी गई। 7 साल तैयारी, अमेरिका को भनक नहीं लगी
पहले परमाणु विस्फोट कार्यक्रम की किसी को भनक तक नहीं लगी। अमेरिका तक को कुछ पता नहीं चला। साल 1967 से लेकर 1974 की अवधि में इसके काम में 75 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने अथक मेहनत की, लेकिन किसी को ऑन रिकॉर्ड काम पर नहीं रखा। इसमें हजारों लोगों ने अलग-अलग लेवल पर काम किया, लेकिन किसी का रिकॉर्ड नहीं था। सारे काम ऑफ दि रिकॉर्ड चल रहा था। परमाणु परीक्षण के लिए डिवाइस को भाभा परमाणु सेंटर (बार्क) मुंबई में ही तैयार किया गया था। इसके कई छोटे-बड़े उपकरण लगाए जाने थे। एक छोटे उपकरण को थर्मस में रखकर फ्लाइट से पहुंचाया गया था। परमाणु कार्यक्रम में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिक इसे अपने साथ लेकर गए थे। ड्रैगन की पूंछ को गुदगुदाने का प्रयोग
इक्विपमेंट 4 मई 1974 तक तैयार नहीं हुआ था। इसे समय पर पोकरण पहुंचाने के लिए अयंगर और मूर्ति इसे थर्मस में भरकर इंडियन एयरलाइंस की नियमित उड़ान में ले गए। परमाणु विस्फोट के उपकरण की डिजाइन पर लंबा काम चला था। इसे फाइनल होने में काफी वक्त लगा था। इसके कई तकनीकी पहलू थे। परीक्षण के उपकरण के डिजाइन को वेरिफाई करने का काम 19 फरवरी 1974 को हुआ। उस वक्त कोड के लिए ‘ड्रैगन की पूंछ को गुदगुदाने’ का प्रयोग किया गया। परमाणु परीक्षण के डिजाइन को टेस्ट करने के ट्रायल को यह नाम दिया गया था। जोधपुर में तैनात इंजीनियर रेजिमेंट ने खोदी थी परीक्षण की टनल
परमाणु विस्फोट के लिए पोकरण इलाके में स्पेशल टनल (शाफ्ट) खोदना था। परमाणु परीक्षण के चीफ वैज्ञानिक राज रमन्ना ने परीक्षण से साल भर पहले टनल खोदने के लिए सेना के रेजिडेंट कमांडर से संपर्क किया। महीने भर तक सेना ने सहयोग नहीं किया। बाद में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदेश दिया तब काम आगे बढ़ा। प्रधानमंत्री के आदेशों के बाद सेना एक्टिव हुई। जोधपुर में तैनात इंजीनियरिंग रेजिमेंट को टनल के काम में लगाया गया था। इंजीनियर्स और सैनिकों से कुआं खोदने की बात कही गई
सेना की यूनिट को परमाणु परीक्षण की शाफ्ट खोदने का कोई अनुभव नहीं था इसलिए दिक्कतें आईं। परमाणु परीक्षण जमीन से सैकड़ों मीटर अंदर करना था। अंदर कुआंनुमा शाफ्ट (टनल) की सही खुदाई जरूरी थी। इस काम का नाम ‘ऑपरेशन ड्राई एंटरप्राइज’ रखा था। इंजीनियरों और सैनिकों को बताया गया था कि वे पोकरण रेंज को सप्लाई करने के लिए एक कुआं खोद रहे हैं। परमाणु परीक्षण से पहले स्पेशल शाफ्ट खोदने का काम कई बार बाधित हुआ। एक बार पानी आ जाने से काम रुक गया। इसका डिजाइन बदल गया। इसके चलते कुआं बदलना पड़ा और दूसरी जगह टनल बनाने का काम करना पड़ा। पहले कई कुएं खोदे गए थे। शाफ्ट का काम फरवरी 1974 में शुरू हुआ और परीक्षण से कुछ दिन पहले ही पूरा हुआ था सलाहकार विरोध में थे, फिर भी इंदिरा गांधी ने काम आगे बढ़ाया
परमाणु परीक्षण की अगुवाई करने वाले वैज्ञानिक रजा रमन्ना ने अपनी आत्मकथा में इस परीक्षण की तैयारियों पर कई खुलासे किए हैं। रमन्ना की आत्मकथा के अनुसार, परमाणु परीक्षण के बारे में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने फैसला करने से पहले अपने कोर सलाहकारों के साथ कई बैठकें कीं। इन बैठकों में केवल रमन्ना और तीन कोर वैज्ञानिकों के अलावा इंदिरा गांधी के दो सलाहकार ही शामिल रहते थे। दोनों सलाहकार विरोध में थे, लेकिन इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण का फैसला कर लिया था और वैज्ञानिकों को काम आगे बढ़ाने का आदेश दे दिया था। इंदिरा गांधी ने अपने फाइनल फैसले के बारे में रक्षा मंत्री तक को नहीं बताया था। उपकरण और प्लूटोनियम कोर को मुंबई से पोकरण पहुंचने में लगे थे तीन दिन
परमाणु परीक्षण के उपकरण को ट्राम्बे मुंबई से सेना के ट्रक में पोकरण पहुंचाया गया था। इसमें तीन दिन लगे थे। सेना के ट्रकों के काफिले के साथ इसे पोकरण लाया गया था। इस उपकरण को विशेष केस में पैक करके सावधानी से लाया गया था। किसी को कानों कान खबर नहीं थी कि ट्रकों के इस काफिले में एक ट्रक में कुछ ऐसा था, जिससे आने वाले दिनों में दुनिया में बवाल मचने वाला था। परमाणु विस्फोट वाले उपकरण का वजन 14 क्विंटल था
परमाणु परीक्षण में काम आने वाले उपकरण को पोकरण में परीक्षण साइट पर बहुत सावधानी से लाया गया था। उसे शाफ्ट से जोड़ा जाना था। परीक्षण से 5 दिन पहले इसे शाफ्ट से जोड़ने का काम कोर वैज्ञानिकों ने शुरू किया। इसे शाफ्ट से 40 मीटर दूर एक झोपड़ी में जोड़ा गया था। इस उपकरण का वजन 14 क्विंटल था। इसे रेल से शाफ्ट तक ले जाया गया था, बाद में रेत से ढका गया था। 15 मई की सुबह डिवाइस को शाफ्ट में उतारा गया, इसे एल-आकार के शाफ्ट के निचले हिस्से में एक साइड कैविटी में रखा गया था। शाफ्ट को रेत और सीमेंट से सील कर दिया गया। 8 बजे परीक्षण था, साइट पर एक इंजीनियर फंसा
8 मई को सुबह 8 बजे परीक्षण का समय तय हुआ था, लेकिन इसमें पांच मिनट की देरी हुई। परीक्षण से पहले हाई स्पीड कैमरों की जांच के लिए एक इंजीनियर परीक्षण साइट पर फंस गए थे। उनकी जीप स्टार्ट नहीं हुई। परीक्षण का समय हो रहा था, सबकी धड़कनें बढ़ गई थीं। इंजीनियर जीप छोड़कर वहां से निकले। बाद में दूसरी जीप से टो करके फंसी जीप को निकाला गया, लेकिन इस पूरी कवायद मेंं पांच मिनट की देरी हो गई। बटन दबाते ही विस्फोट और भारत ने रचा था इतिहास
पोकरण की परीक्षण साइट पर वैज्ञानिकों ने सुबह 8 बजकर पांच मिनट पर स्विच दबाया था। कुछ देर बाद ही धूल का गुबार उठा। कुछ समय में ही अमेरिका को इसके बारे में पता लग गया। इसके बाद तो दुनिया भर में यह खबर फैल गई। भारत परमाणु बम बनाने की क्षमता हासिल करने वाला दुनिया का छठा देश बन गया था। इस परमाणु परीक्षण को सफल बनाने में एक दशक से ज्यादा का वक्त लगा था। देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और राजनीति के बूते ही देश परमाणु परीक्षण करने में कामयाब रहा था। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में शामिल अमेरिका, रूस, फ्रांस, यूके, चीन के पास तक ही परमाणु ताकत सीमित थी। इंदिरा ने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम बताया था
पोकरण (जैसलमेर) में जब भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के लिए किया गया परीक्षण बताया था। अमेरिका ने उस दौरान भारत पर कई प्रतिबंध लगाए थे। इस विस्फोट के 23 साल बाद भारतीय परमाणु कार्यक्रम के पूर्व निदेशक और पोकरण वन परीक्षण के प्रमुख वैज्ञानिक राज रमन्ना ने कहा था- पोकरण परीक्षण एक बम था। मैं अब आपको बता सकता हूं, विस्फोट तो विस्फोट है। बंदूक तो बंदूक है। चाहे आप किसी पर गोली चलाएं या जमीन पर चलाएं। मैं सिर्फ यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि पोकरण परीक्षण बिल्कुल शांतिपूर्ण नहीं था। अमेरिका ने भारत को आगे परमाणु परीक्षण नहीं करने पर राजी किया था
पोकरण में हुए पहले परमाणु परीक्षण से 12 किलोटन यील्ड का टारगेट था। वास्तव में रिजल्ट 8 किलोटन के आसपास था। सरकार ने उस वक्त रणनीति के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट करार देते हुए इसका मकसद खनन टेक्नोलॉजी के विस्तार, ऑयल फील्ड को चार्ज करने और एनर्जी जरूरतों को पूरा करने में लगाने की बात कही थी। अमेरिका ने उस वक्त भारत को आगे और परमाणु परीक्षण नहीं करने पर राजी कर लिया था। इसे लेकर लंबे समय तक विवाद चला था। सोर्स: इयर्स ऑफ पिल्ग्रिमेज एन ऑटोबायोग्राफी- राजा रमन्ना ————- राजस्थान के फौजी अफसर की यह खबर भी पढ़िए…
पाकिस्तान के दो टुकड़े करने वाले राजस्थान के फौजी अफसर:रोते थे पाक आर्मी के कई बड़े अधिकारी, बोलते थे- मुंह दिखाने लायक नहीं रहे भारत-पाकिस्तान तनाव और फिर सीजफायर के बाद फिर से पुराने युद्धों को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पाकिस्तान सभी युद्ध बुरी तरह हारा। पढ़ें पूरी खबर…